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सचिन पायलट को सीएम क्यों नहीं बनने देना चाहते गहलोत? अंदर की कहानी ये है

अगर कांग्रेस आलाकमान ने पायलट को सीएम बना दिया तो दो ख़ेमे डिस्टर्ब होंगे. पहला गहलोत खेमा, दूसरा वो जो दूर से लड़ाई का आनंद ले रहा है.

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बाएं- अशोक गहलोत, दाएं- सचिन पायलट (फोटो-आजतक)

दोपहर के क़रीब 2.30 बज रहे थे. जयपुर से क़रीब 550 किलोमीटर दूर जैसलमेर से कुछ तस्वीरें आईं. राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत (Rajasthan CM Ashok Gehlot) तनोट माता के मंदिर में आशीर्वाद ले रहे थे. पहली नज़र में लगा कि कांग्रेस अध्यक्ष बनने से पहले माता के दर्शन कर रहे हैं. मगर सियासत में ‘जादूगर’ के नाम से मशहूर गहलोत के मन तो कुछ और ही था.

जयपुर में दिल्ली से हाईकमान ने मल्लिकार्जुन खड़गे और अजय माकन को ऑब्ज़र्वर बनाकर भेजा था. चर्चा थी कि गांधी परिवार पायलट (Sachin Pilot) को सीएम बनाना चाहता है. मगर विधायकों की सहमति के साथ. विधायक दल की बैठक में अगले सीएम का नाम तय होना था. गहलोत ने इन सबसे अपने आप को दूर कर लिया. जैसे वो इस खेल का हिस्सा ही ना हों.

कमान संभाली शांति धारीवाल ने. गहलोत सरकार में नंबर दो माने जाते हैं, शहरी विकास, क़ानून, संसदीय कार्य जैसे भारी भरकम मंत्रालय संभाल रहे हैं. उनके घर पर गहलोत ख़ेमे के एक के बाद एक विधायक इकट्ठा होने लगे. रात तक मजमा बढ़ा, बाहर कैमरों के फ़्लैश अंदर से आती खबर के इंतज़ार में टकटकी लगाए थे. 

अंदर से बाहर कोई आता, उससे पहले एक बड़ी-सी बस आकर खड़ी हो गई. लामबंदी पूरी हो चुकी थी. रात में 60 के क़रीब विधायक, विधानसभा अध्यक्ष सीपी जोशी के घर पहुंच गए.

खबर पुख़्ता हो गई, गहलोत ख़ेमे के विधायकों ने इस्तीफ़ा सौंप दिया. एक टर्म एंड कंडीशन के साथ. इस्तीफ़ा अनिश्चितक़ालीन है, मतलब वापस भी हो सकता है. ख़ैर इस्तीफ़ा स्वीकार करना अध्यक्ष के अधिकार में हैं और स्पीकर जोशी फ़िलहाल गहलोत ख़ेमे में है. सीएम पद के लिए उनके नाम की भी चर्चा है. सीपी जोशी के घर पहुंचे कई विधायक कहते नज़र आए, उनके नेता अशोक गहलोत हैं. जिन्होंने पार्टी से ग़द्दारी की थी, उनको सीएम नहीं बनने देंगे.

यहां जुलाई 2020 में हुई बग़ावत की तरफ़ इशारा था. जब 30 के क़रीब विधायकों के साथ पायलट गुरुग्राम में डेरा डाले थे. बीजेपी के साथ जाने की चर्चा थी. गहलोत ने तब विधायकों की बाड़ेबंदी कर सरकार बचाई थी.  सचिन पायलट को सूबे में कांग्रेस अध्यक्ष और डिप्टी सीएम दोनों की कुर्सी गंवानी पड़ी थी.

रात में राजस्थान में मची हलचल के बीच सबसे बड़ी खबर यही थी कि सीएम गहलोत ने अध्यक्ष बनने से पहले ही गांधी परिवार के फ़ैसले को चुनौती दे डाली है. दिल्ली के ऑब्ज़र्वर बैठे रह गए. मीटिंग नहीं हो पाई, विधायकों को इकट्ठा कर इस्तीफ़े का खेल हो गया. प्रेशर पॉलिटिक्स. मक़सद सिर्फ़ एक सचिन पायलट को CM नहीं बनने देना है.

गहलोत और पायलट की लड़ाई क्या है ?

पायलट और गहलोत ख़ेमे के लड़ाई पहले दिन से है. पायलट ख़ेमे को लगता था उनकी अध्यक्षी में चुनाव जीते, सीएम का आशीर्वाद गहलोत दिल्ली से ले आए. डिप्टी सीएम रहते हुए पायलट खुद को बेबस बताते रहे, गहलोत ख़ेमे ने पार्टी से ग़द्दारी का आरोप लगाया. ऑडियो टेप कांड हुआ. अपनी ही सरकार में पायलट पर देशद्रोह की धारा तक लगा दी गई. पूरी ताक़त मिलने के बाद गहलोत ने एक-एक पायलट समर्थक विधायकों को किनारे लगा दिया.

परिस्थिति कैसी भी हो, हथियार पायलट ख़ेमे ने भी नहीं डाले. कुछ दिन पहले राजस्थान यूनिवर्सिटी में छात्रसंघ के चुनाव हुए. उस वक्त पायलट ख़ेमे ने ताक़त दिखाई. NSUI के आधिकारिक प्रत्याशी के मुक़ाबले निर्दलीय निर्मल चौधरी को उतार दिया.

नतीजा ये हुआ कि NSUI की ऋतु बराला तीसरे नंबर पर खिसक गईं. निर्मल चौधरी 1300 वोटों से जीत कर अध्यक्ष बन गए. जिनका प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से पायलट ख़ेमे के विधायक मुकेश भाकर ने समर्थन किया. पायलट को निर्मल अपना आदर्श बताते हैं. यूं तो चुनाव छात्रसंघ का था, मगर नतीजों को गहलोत ख़ेमे की हार के तौर पर देखा गया.

अगर कांग्रेस आलाकमान ने पायलट को सीएम बना दिया तो दो ख़ेमे डिस्टर्ब होंगे. पहला गहलोत खेमा, दूसरा वो जो दूर से लड़ाई का आनंद ले रहा है. मगर पूरी दिलचस्पी यहीं है.

वसुंधरा राजे सिंधिया का ख़ेमा

बीजेपी राजस्थान में कई धड़ों में बंटी है, मगर आज भी 30 ज़्यादा विधायक वसुंधरा ख़ेमे के बताए जाते हैं. राजस्थान में पिछले 30 सालों का इतिहास उठाकर देंखें तो एक बार गहलोत तो एक बार वसुंधरा सीएम रही हैं. पायलट सीएम बन गए तो एक नया ही समीकरण तैयार हो जाएगा. जो दोनों ख़ेमों को रास नहीं आ सकता. चूंकि गहलोत ने पायलट समर्थक विधायकों को किनारे लगाया था तो अब अब गहलोत समर्थक विधायकों के मन में ये डर है कि पायलट उनसे बदला ले सकते हैं. इसलिए पूरी ताक़त झोंक दी गई है कि किसी को भी सीएम बना दो, सचिन पायलट को नहीं.

आगे क्या होगा ?

राजस्थान में मची हलचल से कांग्रेस आलाकमान नाराज़ बताया जा रहा है. सूत्रों के मुताबिक़ सोनिया गांधी ने अशोक गहलोत और सचिन पायलट दोनों को दिल्ली बुलाया है. सूत्र बता रहे हैं कि गहलोत ताक़त दिखाने के लिए दिल्ली में भी विधायकों की परेड करा सकते हैं. पार्टी के कई विधायक गहलोत के साथ हैं. अभी कांग्रेस के पास 108 विधायक हैं. इसमें 90 के करीब अशोक गहलोत के खेमे में हैं. पायलट खेमे की संख्या 25-28 तक जाकर अटक जाती है. विधायकों में छह बसपा से आए विधायक हैं. 13 निर्दलीय हैं जो अशोक गहलोत के साथ हर मौके पर खड़े रहे हैं. दो सीपीएम और दो बीटीपी के विधायक हैं जो सत्ता के साथ खड़े रहते हैं. 

आलाकमान में पहले जैसी ताक़त रही नहीं, जिसकी लाठी, उसकी भैंस. इसीलिए कहा जा रहा है-

मर्ज़ भी उसी ने दिया 
दवा भी उसी के पास है 
वो डॉक्टर नहीं ‘जादूगर’ है

देखें वीडियो- कांग्रेस प्रेसिडेंट बने अशोक गहलोत तो राजस्थान में इस नेता को सीएम बनवा देंगे?