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भारत पर हमला करने वाले मसूद अजहर ने पाकिस्तान को तालिबान से क्यों लड़वा दिया?

मसूद अज़हर की पूरी कहानी क्या है?

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मसूद अज़हर की पूरी कहानी क्या है? (AFP)

31 दिसंबर 1999 का दिन भारत के इतिहास में हमेशा दुविधाओं की चादर में लिपटा रहेगा. दरअसल, 24 दिसंबर को इंडियन एयरलाइंस का विमान IC-814 को पांच आतंकियों ने मिलकर हाईजैक कर लिया था. ये प्लेन नेपाल की राजधानी काठमांडू से नई दिल्ली आ रहा था. इसमें 186 यात्री और चालक दल के लोग सवार थे. हाईजैकर्स प्लेन को अमृतसर, लाहौर और दुबई में उतारने के बाद अफ़ग़ानिस्तान के कंधार ले गए. उस समय अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान का शासन चल रहा था. तालिबान ने आतंकियों को संरक्षण दे दिया. इस घटना ने पूरी दुनिया में तहलका मचा दिया. हाईजैकर्स बदले में भारत की जेलों में बंद 36 आतंकियों की रिहाई और 20 करोड़ डॉलर की मांग कर रहे थे. भारत सरकार ने शुरुआत में मिलिटरी ऑपरेशन के ज़रिए यात्रियों को छुड़ाने की बात सोची थी. लेकिन परिवारवालों के दबाव और डिसिजन लेने में देरी के कारण उन्हें आतंकियों के आगे झुकना पड़ा. हालांकि, समझौता तीन आतंकियों की रिहाई पर क्लोज हो गया था.

फिर 31 दिसंबर 1999 को भारत के तत्कालीन विदेशमंत्री जसवंत सिंह और इंटेलिजेंस ब्यूरो के चीफ़ अजित डोभाल तीनों आतंकियों को लेकर कंधार गए. किसी तरह अदला-बदली पूरी हो गई. एक को छोड़कर बाकी सभी यात्री और केबिन क्रू ज़िंदा वापस लौट आए. कंधार एयरपोर्ट पर तालिबान ने जहाज की घेराबंदी कर रखी थी. कई सालों बाद ये भी सामने आया कि अदला-बदली के समय पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी ISI के अधिकारी भी मौजूद थे. यानी, पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान खुले तौर पर आतंकियों को शह दे रहे थे.

आज हम ये कहानी क्यों सुना रहे हैं?

दरअसल, जिस आतंकी को बचाने के लिए पाकिस्तान और तालिबान एक साथ खड़े थे, 23 साल बाद उसी को पकड़ने के लिए दोनों में झगड़ा हो रहा है. पाकिस्तान, तालिबान को हुक्म दे रहा है, उसको पकड़कर हमारे हवाले कर दो. तालिबान कह रहा है, वो हमारे यहां नहीं है. तुम्हारे यहां होगा. वो कौन? ये कहानी जैश-ए-मोहम्मद (JeM) के सरगना मौलाना मसूद अज़हर की है. मसूद अज़हर उन तीन आतंकियों में से एक था, जिसे भारत को रिहा करना पड़ा था.

तो, आज हम जानेंगे,

- मसूद अज़हर की पूरी कहानी क्या है?

- और, उसको लेकर पाकिस्तान और अफ़ग़ान तालिबान आपस में झगड़ क्यों रहे हैं?

पाकिस्तान के पंजाब प्रांत में एक क़स्बा है, बहावलपुर. यहां के एक सरकारी स्कूल में हेडमास्टर थे, अल्लाह बख़्श शबीर. मास्टर साहब का परिवार बहुत बड़ा था. उनके 11 बच्चे थे. सरकारी वेतन में उनका गुज़ारा संभव नहीं था. इसलिए, वो डेयरी के साथ-साथ मुर्गीपालन भी कर रहे थे. इसके अलावा, शबीर मास्टर बगल की एक मस्जिद में मौलवी का काम भी करते थे. धार्मिक मसलों में एकदम कट्टर थे. उन्हीं शबीर मास्टर के एक दोस्त थे, मुफ़्ती सईद. वो कराची के एक मदरसे में पढ़ाते थे. उन्होंने शबीर मास्टर पर दबाव डाला कि वो अपने किसी बेटे को पढ़ने के लिए उनके साथ भेज दें.

शबीर मान गए. उन्होंने अपनी तीसरी संतान अज़हर को मुफ़्ती सईद के साथ भेज दिया. अज़हर ने कराची का बिनौरी मदरसा जॉइन कर लिया. जिस समय अज़हर मदरसे में पहुंचा, उस समय तक अफ़ग़ानिस्तान में सोवियत आर्मी की एंट्री हो चुकी थी. उनसे लड़ने के लिए मुजाहिदीन तैयार हो रहे थे. इन मुजाहिदीनों को पाकिस्तान सपोर्ट कर रहा था. मदरसों के ज़रिए नए लड़ाकों को रिक्रूट किया जा रहा था. कराची के बिनौरी मदरसे में हरक़त-उल-अंसार का दबदबा था. उन्होंने मदरसे के लड़कों को अफ़ग़ानिस्तान भेजने के लिए राज़ी कर लिया. इनमें से एक अज़हर भी था. वो भी लड़ाई के लिए तैयार था. लेकिन लड़ने से पहले ट्रेनिंग ज़रूरी थी. ये ट्रेनिंग अफ़ग़ानिस्तान में हुई. अज़हर इस ट्रेनिंग में फ़ेल हो गया. इसके बावजूद वो लड़ाई में शामिल हुआ और उसको घायल होकर बाहर होना पड़ा.

मसूद अज़हर की नौजवानी की फोटो (AFP)

अज़हर भले ही शरीर से कमज़ोर था, लेकिन उसकी बोली में तेज़ था. लोग उसकी बात सुनकर प्रभावित होते थे. उसके भाषण में ठहराव होता था. तब हरकत-उल-अंसार ने नए लड़ाकों को मोटिवेट करने का काम सौंपा. उसने जिहादी पत्रिकाओं का संपादन भी किया. इसी दौरान उसकी मुलाक़ात जमीयत-ए-उलेमा इस्लाम के मुखिया मौलाना फ़ज़लुर-रहमान ख़लील से हुई. मौलाना ख़लील के मदरसे पूरे पाकिस्तान में चलते थे. इन्हीं मदरसों से सीखे लोगों ने बाद में हरकत-उल-मुजाहिदीन और तालिबान जैसे संगठनों की स्थापना की.

फिर आया साल 1989 का. सोवियत सेना अफ़ग़ानिस्तान से बाहर चली गई. अफ़ग़ान वॉर खत्म हो चुका था. ऐसे में अज़हर को बाकी दुनिया में जिहाद का प्रचार करने भेजा गया. वो अफ़्रीका के कई देशों में गया. उसने बड़ी संख्या में लोगों को रिक्रूट किया. उन्हें क़ाफिरों पर हमले के लिए उकसाया. 1993 में अज़हर यूनाइटेड किंगडम पहुंचा. उस समय उसकी उम्र महज 25 साल थी. उसके बारे में बहुत कम लोग जानते थे. यूके के मौलवियों ने अज़हर के लिए रेड कार्पेट बिछा दिया था. वो एक महीने तक यूके में रहा. उसके 40 से अधिक भाषण हुए. उस वक़्त अज़हर को बहुत कम लोग जानते थे. कई सालों बाद जब उसकी यूके ट्रिप का रेकॉर्ड बाहर आया, तब कई चौंकाने वाली जानकारियां सामने आई. पता चला कि उसने मस्जिदों में घूम-घूमकर जिहाद पर ज़ोर दिया था. जब अज़हर ने अपना संगठन खड़ा किया, तब उसमें शामिल होने के लिए लोग यूके से भी आए थे. उनमें से एक बर्मिंघम का रहनेवाला मोहम्मद बिलाल था. जिसने सन 2000 में श्रीनगर में एक आर्मी कैंप के बाहर ख़ुद को उड़ा लिया था. इस घटना में छह सैनिक और तीन छात्रों की मौत हो गई थी.

वर्ल्ड ट्रिप पूरी करने के बाद अज़हर अपने संगठन में खासा पॉपुलर हो चुका था. उसे मौलाना मसूद अज़हर के नाम से जाना जाने लगा था. 1994 में उसका ध्यान भारत की तरफ़ गया. भारत में बाबरी मस्जिद गिराई जा चुकी थी. जम्मू-कश्मीर में चरमपंथ को रोकने के लिए भारतीय सैनिकों की तैनाती बढ़ गई थी. मसूद अज़हर के सीने पर सांप लोट रहा था. वो किसी भी तरह से जम्मू-कश्मीर को अलग-थलग करने पर आमादा था. इसके लिए वो किसी भी हद तक ख़ून बहाने के लिए तैयार था.

जनवरी 1994 की बात है. ढाका से वली एडम ईसा नाम का एक शख़्स दिल्ली आया. उसके पास पुर्तगाल का पासपोर्ट था. वो दिल्ली के कई पॉश होटलों में रुका. फिर बाबरी मस्जिद देखने गया. उसके बाद वो कश्मीर चला गया. वहां उसकी मुलाक़ात हरकत के दो कमांडर्स से हुई. मसूद अज़हर कश्मीर में कुछ कर पाता, उससे पहले ही वो पकड़ लिया गया. उस समय सिक्योरिटी एजेंसीज़ को इस बात का अंदाज़ा भी नहीं था कि उन्होंने किस शख़्स को पकड़ा है. लेकिन कुछ ही समय में इसका असर दिखने लगा. 1995 में हरकत के आतंकियों ने पांच विदेशियों को किडनैप कर लिया. उन्हें छोड़ने के बदले मसूद अज़हर की रिहाई की मांग की गई. इस मांग को ठुकरा दिया गया. एक विदेशी बंधक किसी तरह भाग निकला. बाकियों का कभी कोई पता नहीं चला. माना जाता है कि उनकी हत्या कर दी गई. इसके अलावा, एक बार जेल तोड़कर भी मसूद अज़हर को छुड़ाने की कोशिश की गई. वो कोशिश भी फ़ेल रही.

फिर दिसंबर 1999 में प्लेन हाईजैक कर कंधार ले जाया गया. हाईजैकर्स की मांग के आगे भारत सरकार ने सरेंडर कर दिया. इसी अदला-बदली में मौलाना मसूद अज़हर भी भारत की गिरफ़्त से निकल गया.

छूटने के तुरंत बाद मसूद अज़हर ने जैश-ए-मोहम्मद की स्थापना की. इसके बाद से इसके आतंकियों ने जम्मू-कश्मीर समेत कई जगहों पर भारतीय लोगों के ऊपर आतंकी हमले किए है. कई हमलों में JeM ने ज़िम्मेदारी ली. कईयों में वो अपनी भूमिका से पीछे हट गया. जिन बड़े हमलों में JeM का नाम आता है. एक नज़र उस पर डाल लीजिए.

- अक्टूबर 2001. जम्मू-कश्मीर विधानसभा. जैश के तीन आत्मघाती हमलावरों ने विस्फोटकों से भरी गाड़ी विधानसभा के मेन गेट से टकरा दी. इस घटना में 38 लोग मारे गए थे.

- दिसंबर 2001. भारत की संसद पर हमला हुआ. इसमें 09 लोगों की मौत हुई. सुरक्षाबलों ने पांच आतंकियों को मार गिराया. इस घटना के बाद भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध के हालात बन गए थे.

- जनवरी 2016. पठानकोट एयरबेस पर हमला.

- जनवरी 2016. मज़ार-ए-शरीफ़ में इंडियन मिशन पर हमला.

- सितंबर 2016. उरी में इंडियन आर्मी के कैंप पर हमला.

- फ़रवरी 2019. जम्मू-कश्मीर के पुलवामा में भारतीय सैनिकों के काफ़िले पर हमला.

दिखावे के तौर पर पाकिस्तान ने 2002 में जैश-ए-मोहम्मद को आतंकी संगठन घोषित कर दिया. लेकिन भितरखाने ये ख़बर चलती है कि जैश को खुफिया एजेंसी ISI का सपोर्ट मिला हुआ है. वही जैश के आतंकियों को भारत की सीमा में घुसाती है. मसूद अज़हर खुलेआम पाकिस्तान में घूमता रहा. उसे गिरफ़्तार नहीं किया गया. 2009 से ही उसको यूएन में मसूद अज़हर को आतंकवादी घोषित करने की मांग हो रही है. जानकारों की मानें तो पाकिस्तान सरकार के आग्रह पर चीन सिक्योरिटी काउंसिल में वीटो लगा देता है. चीन ने मई 2019 में अपना वीटो हटा लिया. अब मसूद अज़हर यूएन द्वारा घोषित आतंकी है.

मसूद अज़हर (AFP)
आज हम मसूद अज़हर की चर्चा क्यों कर रहे हैं?

इसलिए कर रहे हैं कि मसूद अज़हर को लेकर पाकिस्तान और तालिबान आपस में उलझ गए हैं. पाकिस्तान के जियो टीवी की रिपोर्ट के अनुसार, पाकिस्तान सरकार ने तालिबान को एक चिट्ठी लिखी है. इसमें कहा गया है कि तालिबान सरकार मसूद अज़हर को लोकेट, रिपोर्ट और अरेस्ट करने में मदद करे. पाकिस्तान का दावा है कि मसूद अज़हर अफ़ग़ानिस्तान में छिपा हुआ है और तालिबान ने उसे शरण दे रखी है. चिट्ठी में अफ़ग़ानिस्तान के नान्गरहार और कुनार का भी ज़िक्र किया गया है. संभावना जताई गई है कि वो इन्हीं दो जगहों में छिपा हो सकता है. जब इस बारे में पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय से पूछा गया, उन्होंने कोई बयान देने से मना कर दिया.

तालिबान पिछले बरस ही सत्ता में वापस आया है. उसका दावा है कि अफ़ग़ानिस्तान की धरती पर आतंकियों को पनपने नहीं दिया जाएगा. रपट छपने के बाद तालिबान का भी बयान आया. तालिबान के प्रवक्ता ज़बीउल्लाह मुजाहिद ने कहा,
जैश-ए-मोहम्मद का सरगना अफ़ग़ानिस्तान में नहीं है. ये शख़्स पाकिस्तान में हो सकता है. वैसे भी, हमसे इस बारे में कुछ भी नहीं पूछा गया है. हमने बस ख़बरों में सुना है. ये सत्य नहीं है.

तालिबान सरकार के विदेश मंत्रालय ने भी मसूद अज़हर के अफ़ग़ानिस्तान में होने के दावे का खंडन किया है. उन्होंने कहा कि बिना सबूत या दस्तावेज के आरोप-प्रत्यारोप से बचना चाहिए. इससे दोनों देशों के रिश्ते ख़राब हो सकते हैं.

अब सवाल ये उठता है कि पाकिस्तान मसूद अज़हर को खोज क्यों रहा है?

ये मसला फ़ाइनेंशियल ऐक्शन टास्क फ़ोर्स (FATF) की ग्रे लिस्ट से जुड़ा है. पाकिस्तान पिछले कई सालों से FATF की ग्रे लिस्ट में बना हुआ है. पाकिस्तान की आर्थिक स्थिति खराब है. उसे विदेशी संस्थाओं और दूसरे देशों से मदद चाहिए. लेकिन ग्रे लिस्ट में होने के कारण मदद मिल नहीं रही है. अगले महीने FATF की बड़ी बैठक होने वाली है. इसमें पाकिस्तान के भविष्य पर फ़ैसला हो सकता है. FATF पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट से निकालता है या नहीं, ये काफ़ी हद तक इसपर निर्भर है कि पाकिस्तान अपने यहां मौजूद आतंकियों से कैसे निपटता है. इसमें एक बड़ा नाम मसूद अज़हर का है. पाकिस्तान का दावा है कि अज़हर उसके यहां नहीं है. लेकिन सोशल मीडिया पर उसके भाषण और लेख छपते रहते हैं. इसमें वो तालिबान की तारीफ़ भी करता है. इसी को लेकर पाकिस्तान सरकार परेशान चल रही है. आगे क्या होता है, देखना दिलचस्प होगा.

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