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साउथ अफ्रीका में 15 सालों से रोज़ाना 16-16 घंटे बिजली की कटौती क्यों हो रही है?

साउथ अफ़्रीका के ऊर्जा संकट की कहानी क्या है?

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साउथ अफ्रीका में 15 सालों से रोज़ाना 12-16 घंटे बिजली की कटौती क्यों हो रही है? (reuters)

आज से सैकड़ों बरस पहले जब इंसान के जीवन में बिजली आई होगी, उसे ख़ूब अचरज हुआ होगा. जैसे घर में कोई नई चीज़ आती है तो हम उसे कितनी उत्सुकता से उलट-पुलट कर देखते हैं. सदियों पहले के लोगों ने भी बिजली के साथ भी कुछ वैसा ही किया होगा. उन्हें उस समय अंदाज़ा भी नहीं होगा कि ये अनोखी चीज़ उनके जीवन का अभिन्न हिस्सा बन जाएगी. उसके बिना नॉर्मल ज़िंदगी की कल्पना मुश्किल होगी. और, जिसके आने-जाने में थोड़ा भी अंतर आया तो एक मुल्क बर्बादी के मुहाने पर पहुंच जाएगा. जैसा कि आज के समय में दक्षिण अफ़्रीका के साथ हो रहा है. यहां बिजली ईद का चांद होकर रह गई है. एक दिन में 12 से 16 घंटे तक पावर कट रूटीन में शामिल हो चुका है. और, ये एक दिन या एक हफ़्ते या एक महीने की बात नहीं है. दक्षिण अफ़्रीका में लुकाछिपी का ये खेल पिछले 15 सालों से चल रहा है. इसकी वजह से सरकार इमरजेंसी भी लगा चुकी है.

23 मई को सत्ताधारी पार्टी अफ़्रीकन नेशनल कांग्रेस (ANC) के एक बड़े नेता ने चेताया, अगर इसे ठीक नहीं किया गया तो साउथ अफ़्रीका फ़ेल्ड स्टेट बन सकता है. माने ऐसा देश जहां तंत्र और कानून का कोई मतलब ना रह जाए.

आइए जानते हैं,

- साउथ अफ़्रीका के ऊर्जा संकट की कहानी क्या है?
- कैसे एक भरा-पूरा मुल्क बर्बादी की कगार पर पहुंच गया?
- और, बिजली की सप्लाई थ्रिलर फ़िल्म की पटकथा क्यों बन गई?

जैसा कि नाम से पता चलता है, ये देश अफ़्रीकी महाद्वीप के दक्षिणी मुहाने पर बसा है. इसके पूरब, पश्चिम और दक्षिण में समंदर है. जिन देशों से इसकी ज़मीनी सीमा लगती है, वे हैं - नामीबिया, बोत्सवाना, ज़िम्बॉब्वे, मोज़ाम्बिक़ और स्वातिनी.

तीन राजधानियां हैं. प्रिटोरिया, केपटाउन और ब्लोमफ़ॉन्टेन.

आबादी - लगभग 06 करोड़. 60 प्रतिशत से अधिक जनता 30 साल से कम उम्र की है.

साउथ अफ़्रीका में 11 आधिकारिक भाषाएं हैं. ये अलग-अलग संस्कृतियों का प्रतिनिधित्व करती हैं.

साउथ अफ़्रीका यूएन, ब्रिक्स, G20, अफ़्रीकन यूनियन समेत कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों का अहम सदस्य है.

ये दुनिया की सबसे तेज़ी से विकसित हो रहे देशों में गिना जाता है.

साउथ अफ़्रीका में संसदीय लोकतंत्र वाली व्यवस्था है. 1994 में यहां पहली बार सबको चुनाव में हिस्सा लेने का मौका मिला. ANC ने इसमें जीत दर्ज़ की. मंडेला मुल्क के पहले अश्वेत राष्ट्रपति बने. तब से साउथ अफ़्रीका में यही पार्टी सरकार चला रही है. मौजूदा समय में ANC के सिरिल रामाफ़ोसा राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठे हैं.

कहा जाता है कि साउथ अफ़्रीका में दो ही चीज़ें स्थायी हैं.

पहली, ANC की सरकार.

और दूसरी, बिजली की कटौती.

तारीख़, 13 दिसंबर 2022. जगह, साउथ अफ़्रीका की सरकारी बिजली कंपनी एस्कॉम का दफ़्तर. उस रोज़ कंपनी के सीईओ आंद्रे डे रूटर अपने ऑफ़िस में दाखिल हुए. हार्ड कॉफ़ी उनके रूटीन का हिस्सा थी. रोज़ की तरह उन्होंने अपने पीए को कॉफ़ी लाने के लिए कहा. रूटर एक रोज़ पहले ही इस्तीफ़े की चिट्ठी सौंपकर आए थे. अभी इस्तीफ़ा स्वीकार नहीं हुआ था. फिर भी वो आराम से बैठकर कॉफ़ी पीते हुए अपना काम निपटाना चाहते थे. लेकिन उस दिन इसमें रुकावट आई. पहले कहा गया, कॉफ़ी मशीन ख़राब है. बदलनी पड़ेगी. मशीन बदलकर कॉफ़ी लाई गई. जैसे ही रूटर ने कॉफ़ी पीकर दस्तावेज पलटना शुरू किया, उनको बेचैनी महसूस हुई. कुछ ही समय में उन पर बेहोशी छाने लगी. रूटर को अस्पताल ले जाया गया. वहां पता चला कि उन्हें कॉफ़ी में ज़हर मिलाकर दिया गया था. उन्होंने पुलिस में इसकी शिकायत दर्ज़ कराई. लेकिन पुलिस ने इसे गंभीरता से नहीं लिया.

फ़रवरी 2023 में रूटर नोटिस पीरियड पर चल रहे थे. इसे पूरा होने में एक महीना बचा था. उससे पहले ही उन्होंने एक विस्फ़ोटक इंटरव्यू दिया. एस्कॉम के मैनेजमेंट, सरकारी अफ़सरों और मंत्रियों पर कई संगीन आरोप लगाए. रूटर बोले,

- एस्कॉम के अंदर जो कुछ समस्या चल रही है, उसकी जड़ में ANC है.
- सरकार में जमकर भ्रष्टाचार चल रहा है. मैंने ये बात एक सीनियर मंत्री को भी बताई. लेकिन उन्होंने कहा, ये तो चलता है. कुछ लोग तो खाएंगे ही.
- हर दिन कंपनी में करोड़ों की लूट हो रही है. सरकार को इसकी पूरी जानकारी है. लेकिन उनकी इसे ठीक करने में कोई दिलचस्पी नहीं है.

रूटर ने एस्कॉम के अंदर भ्रष्टाचार, गबन, लूट और लालफीताशाही समेत कई राज़ उजागर किए थे. उन्होंने ये भी कहा कि मेरे पास सारे सबूत हैं.
इस इंटरव्यू ने साउथ अफ़्रीका में हड़कंप मचा दिया. ANC ने उनको लालची और विदेशी एजेंट बता दिया. कहा कि वो दूसरों के इशारे पर बोल रहे हैं. इंटरव्यू के एक दिन बाद ही एस्कॉम की इमरजेंसी मीटिंग बुलाई गई. इसमें रूटर से तत्काल प्रभाव से नौकरी छोड़ने के लिए कहा गया. उन्होंने बात मान ली. नौकरी छोड़ने के कुछ समय बाद ही उन्होंने देश भी छोड़ दिया. अब वो व्हिस्लब्लोअर की भूमिका में काम करते हैं.

मई 2023 में रूटर ने एक किताब पब्लिश की. ट्रूथ टू पॉवर: माय थ्री ईयर्स इनसाइड एस्कॉम. इसमें उन्होंने अपने आरोपों को विस्तार दिया था. रूटर ने लिखा कि कई ऐसे क्रिमिनल गैंग्स हैं, जो एस्कॉम में किसी भी तरह का बदलाव नहीं चाहते. वे कंपनी के पावर प्लांट्स से कोयला और स्पेयर पार्ट्स चुरा रहे हैं. जानबूझकर पावरग्रिड और सप्लाई लाइंस को भी नुकसान पहुंचाते हैं. फिर वही लोग रिपेयर के लिए कंपनी से कॉन्ट्रैक्ट भी लेते हैं. जो कोई सुधार की बात करता है, वो इन गैंग्स के निशाने पर आ जाता है. इन्हें राजनेताओं का संरक्षण मिला हुआ है. कोई उन्हें छूने की हिम्मत नहीं करता.

अब आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि एस्कॉम है क्या और ये इतना प्रभावशाली कैसे बना?

एस्कॉम की स्थापना 1923 में हुई थी. जल्दी ही बिजली उत्पादन पर इसका एकाधिकार हो गया. कंपनी पूरी बिजली कोयले से बनाती थी. उस समय साउथ अफ़्रीका में रंगभेदी सरकार का शासन चल रहा था. उनका फ़ोकस गोरे लोगों पर होता था. बिजली की सबसे ज़्यादा सप्लाई उन्हीं इलाकों में होती थी. अगर कभी सप्लाई कम होती, तो इसका नुकसान अश्वेतों को सबसे ज़्यादा होता था.

जो ANC इस समय सरकार चला रही है, वो उस समय रंगभेदी सरकार की मुख़ालफ़त कर रही थी. भेदभाव के ख़िलाफ़ अभियान चला रही थी. 1994 में रंगभेद औपचारिक तौर पर समाप्त हो गया. तब से ANC की सरकार चल रही है. मगर भेदभाव पूरी तरह खत्म नहीं हुआ. पहले नस्ल के आधार पर भेदभाव होता था, अब अमीर और ग़रीब के आधार पर होता है. बिजली संकट पहले की तरह बदस्तूर जारी है.

ये संकट आया कैसे?

चार बड़ी वजहें हैं.

- नंबर एक. एस्कॉम साउथ अफ़्रीका की सबसे बड़ी सरकारी कंपनियों में से एक है. बिजली उत्पादन और डिस्ट्रिब्यूशन पर इसका एकाधिकार है. समय के साथ देश की आबादी बढ़ी और उनकी ज़रूरतें भी. लेकिन कंपनी के पावर प्लांट्स और सप्लाई ग्रिड्स आदम ज़माने के हैं. सरकार उसमें सुधार के लिए खर्च करने से बचती है.

- नंबर दो. एस्कॉम जो बिजली बनाती है, उसमें बड़ा हिस्सा कोयले से बनता है. जिस समय दुनियाभर के देश कोयले से ग्रीन एनर्जी की तरफ़ शिफ़्ट कर रही हैं, उस समय साउथ अफ़्रीका में माफ़िया गैंग्स कोल प्लांट्स को बरकरार रखना चाहते हैं. उनकी पूरी कमाई कोयले की लूट से चलती है. मीडिया रपटों के मुताबिक, ख़तरा इतना बड़ा है कि कई इलाकों में कोल प्लांट्स और कोयले के ट्रकों की सुरक्षा के लिए आर्मी भी बुलानी पड़ी है. सोचिए, जिस जगह पर मौजूदा पावर प्लांट्स चलाने में दिक़्क़त आ रही हो, वहां पर नए और आधुनिक पावर प्लांट्स की स्थापना कितनी मुश्किल होगी.
पश्चिमी देशों ने कोयले को चलन से बाहर करने के लिए लगभग 70 हज़ार करोड़ रुपये की मदद का वादा भी किया है. मगर इस पर भी ठीक से काम शुरू नहीं हो सका है.

- नंबर तीन.
एस्कॉम पर एक लाख करोड़ रुपये से अधिक का क़र्ज़ है. इस वजह से कंपनी रख-रखाव और नए कल-पुर्जों पर खर्च करने में नाकाम रही है. फ़रवरी 2023 में कंपनी दिवालिया होने की कगार पर पहुंच गई थी. तब सरकार ने अपने खाते से आधा क़र्ज़ चुकाने का वादा किया था. फिर भी कंपनी अपने पैरों पर खड़ी नहीं हो सकी.
आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि साउथ अफ़्रीका की एनर्जी इंडस्ट्री को प्राइवेट हाथों में देने का समय आ चुका है. तभी कुछ हो सकता है. वरना सब ऐसा ही चलता रहेगा. एस्कॉम चलाने वालों को बदलाव से ज़्यादा दिलचस्पी ढोते रहने में है.

- नंबर चार.
जब एस्कॉम की सप्लाई और बिजली की डिमांड में अंतर आया, तब कंपनी ने लोडशेडिंग का रास्ता चुना. धीरे-धीरे ये अंतर बढ़ता गया. और, इस तरह लोडशेडिंग भी बढ़ती गई. 2007 के बाद से ये चलन का हिस्सा बन गया. 2022 में साउथ अफ़्रीका में 205 दिनों तक बिजली की कटौती हुई. इस साल दो दिनो के अलावा हर रोज़ बिजली की आपूर्ति रुकी है. ये हाल देश के सबसे बड़े शहरों में भी है.

अब जान लेते हैं, बिजली संकट से क्या समस्याएं आई हैं?

- साउथ अफ़्रीका के सेंट्रल बैंक के मुताबिक, बिजली संकट के कारण हर रोज़ लगभग 400 करोड़ रुपयों का नुकसान हो रहा है. पूरे साल में
- सेंट्रल बैंक ने आर्थिक विकास की दर लगभग एक प्रतिशत के आसपास रखा है. अगर बिजली कटौती नहीं होती तो ये वृद्धि दर ढाई प्रतिशत होती.
- बिजली संकट की वजह से आर्थिक मंदी की आशंका भी बढ़ गई है.
- साउथ अफ़्रीका में बेरोज़गारी की दर 33 प्रतिशत है. 60 प्रतिशत से अधिक लोग गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन कर रहे हैं. बिजली संकट के कारण इसमें और बढ़ोत्तरी हो सकती है.

ये तो हुए डेटागत नुकसान. अब ज़मीनी हक़ीक़त भी जान लेते हैं.

- छोटे-मोटे बिजनेस के लिए काम जारी रख पाना मुश्किल हो गया है. कोल्ड स्टोरेज बंद पड़े हैं. होटल और रेस्तरां बिजनेस की मुश्किल भी बढ़ गई है. उनके लिए पेट्रोल जनरेटर्स के भरोसे रहना नामुमकिन है.

- बिजली की कमी के कारण कई इलाकों में स्ट्रीट लाइट्स बंद रहती हैं. इसके कारण क्रिमिनल गैंग्स का वर्चस्व बढ़ रहा है. रात में बाहर निकलना दूभर हो रहा है. इसके कारण सुरक्षा-व्यवस्था पटरी से उतरने की आशंका है.

- कई कंपनियां देर तक काम करती थीं. अब उन्होंने नाइट शिफ़्ट बंद कर दी हैं. इसके कारण उन्हें लोगों की छंटनी करनी पड़ी है.

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