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योगी से अतीक अहमद का एनकाउंटर करने की मांग करने वाले कौन हैं?

लोगों में इंस्टेंट जस्टिस की चाह क्यों बढ़ रही है?

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साबरमती जेल से बाहर आता अतीक अहमद (साभार- आजतक)

अदालत के हुक्म पर एक कैदी को अहमदाबाद की साबरमती जेल से प्रयागराज लाया गया. क्योंकि उसकी पेशी होनी है. एक बेहद सामान्य कार्यवाही, जो देश भर में रोज़ होती है. लेकिन तकरीबन 100 मामलों में आरोपी अतीक अहमद के साथ पूरे देश ने 1300 किलोमीटर लंबी रोड ट्रिप की. आगे-आगे अतीक, पीछे-पीछे पत्रकार. अतीक अब गाड़ी में चढ़े. अब पेशाब के लिए रुके. अब गाड़ी गाय से टकराई. पल-पल के अपडेट. और अपडेट के साथ एक सवाल - गाड़ी पलटेगी, कि नहीं?

सारा दोष आप मीडिया पर नहीं मढ़ सकते. आम लोगों से लेकर योगी सरकार के मंत्री तक गाड़ी ''पलटने'' का ज़िक्र करते रहे. अतीक प्रयागराज पहुंच गया है. लेकिन एक सवाल की यात्रा पूरी नहीं हुई है. कि हमारे समाज, मीडिया और राजनीति में गाड़ियों के ''पलटने'' को लेकर इतना आग्रह कहां से पनप गया?

24 फरवरी 2023. दिन शुक्रवार और प्रयागराज का धूमनगंज. शाम के साढ़े 5 बजे के आसपास ये इलाका गोलियों और बमों की तड़तड़ाहट से गूंज उठा. उमेश पाल और उनकी सुरक्षा में लगे दो पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी गई थी. आरोप लगा अतीक अहमद पर. सीसीटीवी फुटेज आए. पता चला हमला करने वालों में अतीक से जुड़े लोग और उसका बेटा भी शामिल था. एक महीने से ज्यादा का समय बीत चुका है. उमेश पाल की हत्या करने वाले हमलावर कहां हैं किसी को नहीं पता. दो ही आरोपी थे, जिनके बारे में पुलिस दावे से जानती थी - बरेली की जेल में बंद अशरफ. और गुजरात की साबरमती जेल में बंद अशरफ का बड़ा भाई अतीक अहमद. अतीक गुजरात कैसे पहुंचा, ये अपने आप में एक ऐसा किस्सा है, जिससे आपको मालूम चल जाएगा कि ''सख्त'' कार्रवाई का दावा करने वाला तंत्र अतीक के आगे कितना बेबस था.

26 दिसंबर 2018. उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से बिजनेसमैन मोहित जायसवाल को अगवा कर 300 किलोमीटर दूर देवरिया ले जाया जाता है. वो भी ऐसी-वैसी जगह नहीं, सीधे जेल में. देवरिया जेल में मोहित के साथ मारपीट होती है. धमकाया जाता है. ताकि लोगों में दहशत बनी रहे. मोहित ने आरोप लगाया था कि उनका अपहरण अतीक अहमद ने करवाया था, जो उस वक्त देवरिया जेल में बंद था. इन आरोपों से हड़कंप मच गया. अतीक की जेल बदलने का हुक्म हुआ. नया पता - बरेली जेल. उन दिनों मीडिया रिपोर्ट्स में दावे किए गए थे कि बरेली जेल प्रशासन ने हाथ खड़े कर दिए थे. वो अतीक को अपने यहां नहीं रखना चाहते थे. इस बाबत आधिकारिक पत्राचार कभी मीडिया के हाथ नहीं लगा. लेकिन अतीक की जेल एक बार फिर बदल दी गई. उसे बरेली से प्रयागराज की नैनी जेल ट्रांसफर किया गया.

इधर मोहित जायसवाल को अगवा कर देवरिया जेल ले जाने का मामला देश की सर्वोच्च अदालत तक पहुंचा. 23 अप्रैल 2019 को तत्कालीन चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अध्यक्षता वाली एक बेंच का आदेश आया. आदेश ये कि मोहित जायसवाल के अपहरण मामले की जांच CBI से कराई जाए. आदेश ये भी आया कि मामले में मुख्य आरोपी अतीक अहमद को उत्तर प्रदेश की जेल से गुजरात की जेल में ट्रांसफर कर दिया जाए. साथ में सुप्रीम कोर्ट की ये नसीहत भी नत्थी थी कि अतीक अहमद के खिलाफ दर्ज सभी लंबित मामलों का निपटारा जल्द से जल्द किया जाए.

इस फैसले को आए 4 साल बीत चुके हैं. रंजन गोगोई के बाद चार चीफ जस्टिस शपथ ले चुके हैं. लेकिन अदालत के हुक्म में जो तेज़ी लाने की बात थी, उसपर अमल अभी तक नहीं हुआ. आज भी जिस मामले में अतीक को पेशी के लिए लाया गया है, उसका फैसला कब आएगा, हम नहीं जानते. और ऐसे कुल 100 से ज़्यादा मामले हैं. पहला दर्ज हुआ था साल 1979 में, जब वो 17 साल का था. तब से लेकर अब तक उसने हर तरह का हिंसक अपराध किया है. हत्या, हत्या का प्रयास, अपहरण, जबरन वसूली, आपराधिक साजिश, बलवा. प्रयागराज शहर का शायद ही कोई ऐसा थाना हो जहां के रजिस्टर में अतीक और उसके गुर्गों के खिलाफ गुंडा एक्ट, आर्म्स एक्ट, गैंगस्टर एक्ट या एनएसए जैसी धाराओं में मामला दर्ज न हो. अतीक के गैंग में तकरीबन सवा सो लोग हैं, जो पुलिस रिकॉर्ड में 'इंटर स्टेट-227' नाम से दर्ज है.

ज़ाहिर है, अपराध इतने हैं, तो पीड़ितों की संख्या भी है. जो न्याय की राह देख रहे हैं. सिस्टम से अब तक उन्हें इंतज़ार ही मिला है. इसीलिए गाड़ी के पलट जाने, या उसे पलटा दिए जाने की बातों को हवा मिल रही है. विकास दुबे प्रकरण को एक उदाहरण तरह आगे किया जा रहा है. उसपर 8 पुलिसकर्मियों की हत्या का आरोप था. फरार हुआ. मध्यप्रदेश के उज्जैन में पकड़ा गया. और सड़क के रास्ते कानपुर लाया गया. इसी बीच पुलिस की गाड़ी ''पलट'' जाती है. पुलिस ने दावा किया कि विकास ने भागने की कोशिश की, पुलिस वालों पर हमला किया. और जवाबी कार्रवाई में मारा गया. जैसा कि हमने कहा, ये पुलिस का दावा है.

कायदे से ये पुलिस की विफलता थी. एक कुख्यात आरोपी, जो पूछताछ में बता सकता था कि 8 पुलिस वालों की जान किन परिस्थितियों में गई, इसके लिए और कौन ज़िम्मेदार था, सुरक्षित जेल नहीं पहुंचा. लेकिन इस प्रकरण को ऐसे पेश किया गया, जैसे ये न्याय का शॉर्ट कट हो. दूसरे राज्यों के गृहमंत्री तक कहने लगे, कि योगी जी के राज में तो गाड़ी पलट जाती है. ये तंज़ नहीं था, तारीफ थी. वो बयान पुराने हो गए हों, तो आप ताज़ा बयान सुनिए. करीब महीने भर पहले योगी सरकार में मंत्री जेपीएस राठौर ने माइक और कैमरे के सामने अपराधियों की गाड़ी पलटने को लेकर चेतावनी जारी की थी.

अब कन्नौज से बीजेपी सांसद सुब्रत पाठक का ये ट्वीट देखिए. जिसमें उन्होंने लिखा है-

'उत्तर प्रदेश पुलिस की सुरक्षा में उमेश पाल सहित पुलिस सुरक्षाकर्मी की हत्या सीधे उत्तर प्रदेश की सरकार पर हमला है याद रखो जब विकास दुबे नहीं बचा तो इन दुर्दांतों का क्या होगा ये बताने की आवश्यकता नहीं है , और अब यदि गाड़ी अतीक की भी पलट जाय तो मुझे कोई आश्चर्य नहीं होगा.'

सुब्रत पाठक का ये ट्वीट 1 मार्च का है अगर आज भी उनका ट्विटर थोड़ी देर स्क्रॉल कर लिया जाए तो उनकी वॉल पर अतीक की गाड़ी पलटने की कामना करने वाले ट्वीट दिख जाएंगे.

लेकिन हमारे माननीयों के बीच इस बात को लेकर चिंता नहीं दिखी, कि 44 साल से हर पार्टी के राज में अपराध करने वाला अतीक अहमद, साल 2023 में भी जेल से कैसे ऑपरेट कर ले रहा है. ख़बरें चलती हैं कि अतीक़ ने कहा था कि उमेश पाल को ऐसा मारेंगे कि 15 दिन ख़बर चलेगी. 15 दिन से एक महीना हो गया. खबर चल रही है, क्योंकि उमेश पाल हत्याकांड के आरोपी कहां हैं, यूपी पुलिस बता नहीं पा रही है. उमेश पाल की माता का बयान आया है, जिसमें उन्होंने यही कहा कि जैसे उनके बेटे को मारा गया, वैसे अतीक को भी मारा जाए. एक संतप्त मां ये कहे, तो ये समझा जा सकता है. लेकिन जैसा कि हमने अभी स्थापित किया, ऐसा कहने वाली वो अकेली नहीं हैं.

आपने अंग्रेजी में एक कहावत सुनी होगी justice delayed is justice denied. यानी न्याय में देरी अन्याय के समान है. ये एक आम राय है कि भारत में अदालतें असामान्य रूप से ढीली हैं. मामले खिंचते चले जाते हैं. न्यायपालिका के इतर हमने यूपी में तेजी से बढ़ रहे एनकाउंटर कल्चर को भी समझना चाहा. नियमित रूप से खबरें आती हैं कि अमुक अपराधी ने भागने की कोशिश की, उसके बाद पुलिस को गोली चलानी पड़ी. क्या कथित सामाजिक दबाव भी पुलिस को एनकाउंटर के लिए प्रोत्साहित करता है?

हमारे संविधान में, हमारी न्याय प्रणाली में किसी भी अपराधी को अपराध की सज़ा देने के लिए तमाम प्रावधान हैं. IPC है, CRPC है. लेकिन इन सबसे परे, इन सबको क्रॉस करते हुए त्वरित 'न्याय' करने का सिस्टम एनकाउंटर है. न कोर्ट, न कचहरी. पुलिस की गोली और फैसला ऑन द स्पॉट. 'ठोक देंगे', 'मिट्टी में मिला देंगे'.. इन्हें ऑन द स्पॉट के ही अलग-अलग वर्ज़न्स के तौर पर देखा जा सकता है. और, ये कोई हाल के वर्षों की घटनाएं नहीं हैं. ब्रितानी हुक़ूमत से चला आ रहा है. ब्रिटिश शासन अपने ख़िलाफ़ उठने वाले हर विद्रोह को ऐसे ही कुचलता था. त्वरित कार्रवाई से. 1924 में रंपा विद्रोह के नायक अल्लूरी सीताराम राजू की गिरफ़्तारी और हत्या, ऐसा ही एक उदाहरण था. आज़ादी मिली, लेकिन एनकांउटर्स से नहीं.

पुलिस फायरिंग या अदालत ले जाते समय या किसी और परिस्थिति में पुलिस के हाथों ऐसी हत्याएं होती रही हैं. जिन्हें बाद में एनकाउंटर का नाम दे दिया जाता है. नाम चाहे जो दिया जाए, क़ानून की ज़ुबान में ऐसे एनकाउंटर्स को ग़ैर-न्यायिक या न्यायेतर हत्या कहा जाता है. पहले पुलिस फायरिंग से होने वाली ज्यादातर मौतें देश के पूर्वोत्तर भागों, जम्मू-कश्मीर या नक्सलवाद से प्रभावित क्षेत्रों में ही देखी जाती थीं. लेकिन पिछले कुछ सालों में ये अन्य राज्यों में भी तेजी से 'लोकप्रिय' हुआ है. इस शब्द का इस्तेमाल बहुत सोच के किया जा रहा है, 'लोकप्रिय'.

पॉलिटिकल साइंस में राज्य और शासन को लेकर कई थियरीज़ हैं. कई मतभेद हैं, जो लाज़मी भी हैं. लेकिन कुछ-एक मुद्दों पर मान-मुनव्वल है. जैसे किसी भी सरकार की पैमाइश इस बात से तय नहीं होती कि वो कितनी एफ़िशियंट है, कितनी तेज़ी से काम करती है. बल्कि इस बात से तय होती है कि सरकार कितनी न्यायिक है. राज्य के कॉन्सेप्ट में न्याय केवल ज़रूरी नहीं है, न्याय के बिना राज्य का कोई मतलब ही नहीं है. नियमों का पालन क्यों आवश्यक है, आपने जाना. अब आते हैं एक और महीन बहस पर. ''सख्त'' कार्रवाई. ''त्वरित'' कार्रवाई. इनकी चर्चा इसलिए भी बढ़ी है, क्योंकि पब्लिक ने मान लिया है कि सरकार तो ढीली ही है. बहुत वक्त बर्बाद करती है. और इस ढिलाई को दूर करने के लिए कुछ धमाकेदार करने की आवश्यकता है. उमेश पाल की हत्या के ठीक एक दिन बाद यूपी की विधानसभा में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भरे सदन में कहा था, 'मिट्टी में मिला देंगे'. हमें ऐसे बयान, और ऐसी कार्रवाई पसंद भी आती है. बुल्डोज़र. पलटने वाली गाड़ी. और चूंकि ये सब राज्य कर रहा है, हमें ऐसा लगता है कि ये वैध है. लेकिन विशेषज्ञ इस प्रवृत्ति में एक बहुत बड़ी समस्या की ओर इशारा करते हैं.

तो चुनाव आपका है. न्याय में देरी पर अदालतों को, सरकारों को टोकिए. लेकिन ऐसा माहौल भी मत बनाइए कि सरकार ही कानून तोड़कर उसे न्याया की तरह पेश करने लगे. बड़ा आसान है नेताओं को उनके भाषणों के लिए टोकना. ज़रूरत है कि आप खुद भी अपने अंदर झांक कर देखें. कि इस पागलपन में आप भी तो शामिल नहीं.

वीडियो: दी लल्लनटॉप शो: योगी से अतीक अहमद का एनकाउंटर करने की मांग करने वाले कौन हैं?