प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) SCO समिट के लिए समरकंद (Samarkand) के दौरे पर हैं. SCO यानी शंघाई कोऑपरेशन ऑर्गनाइज़ेशन. इस समिट के अलावा पीएम मोदी अलग-अलग राष्ट्राध्यक्षों से द्विपक्षीय मीटिंग भी करेंगे. ये भी उम्मीद की जा रही है कि प्रधानमंत्री, चीन के राष्ट्रपति शी जिन पिंग और पाकिस्तान के पीएम शहबाज शरीफ से भी मुकालात कर सकते हैं. हालांकि ऐसा फिलहाल तय नहीं है और ना ही इसका कोई शेड्यूल है. लेकिन ये बात तय है कि पीएम का ये दौरा SCO से इतर भी भारत के लिए कई मायनों में अहम हो जाता है. तो आइए समझने की कोशिश करते हैं कि उज़्बेकिस्तान के समरकंद में एशियाई देशों के राष्ट्राध्यक्षों के इस जमावड़े में भारत किन उम्मीदों को तलाश रहा है.
एक क्लिक में जानिए पीएम मोदी उज्बेकिस्तान क्या करने गए हैं?
क्या-क्या चीज डिस्कस होने वाली है? सब जान लीजिए
SCO के सदस्य देशों के बीच इन दिनों सबकुछ ठीक नहीं चल रहा है. भारत और पाकिस्तान के संबंधों पर 2019 के पुलवामा आतंकवादी हमले के बाद से बर्फ जमी हुई है. अप्रैल 2020 से भारत और चीन पूर्वी लद्दाख में आमने-सामने हैं. रूस और चीन ऊपर ऊपर तो दोस्त हैं, लेकिन जिस रफ्तार से चीन आगे बढ़ा है, रूस का असहज होना लाज़मी है. प्रभुत्व बढ़ाने के मकसद से रूस ने यूक्रेन पर हमला कर एक बहुत बड़ा दांव चला था, जो उलटा पड़ता जा रहा है. चीन कोविड लॉकडाउन से परेशान है. और पूरी दुनिया में ऊर्जा संकट है. ऐसे में इन सभी देशों के राष्ट्राध्यक्ष अगर एक टेबल पर आकर बात कर पाएं, तो समाधान का रास्ता निकलता है. आप पूछेंगे कि प्रतिद्वंद्वी साथ बैठ भी गए तो क्या बात करेंगे. तो इसका जवाब हम एक उदाहरण से देते हैं.
नवंबर 2008 में मुंबई पर 26/11 आतंकी हमला हुआ था. इस हमले के ज़िम्मेदार पाकिस्तान में बैठे थे. दोनों तरफ़ तनाव बढ़ गया था. तब जून 2009 में SCO की बैठक के बहाने ही भारत के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री आसिफ अली ज़रदारी की मुलाक़ात हुई थी. रूस के एकातेरिनबर्ग में तब मनमोहन सिंह ने ज़रदारी से कहा था,
''प्रधानमंत्री महोदय, मुझे आपसे मिलकर खुशी हो रही है. लेकिन मेरी ज़िम्मेदारी है कि मैं आपको बता दूं कि पाकिस्तान का इस्तेमाल आतंकवाद के लिए नहीं होना चाहिए.''
इससे तात्कालिक फायदा भले न मिला हो. लेकिन तनाव और असहजता कम हुई. बातचीत का एक रास्ता खुला. वैसे ही इस बार के SCO समिट के बारे में भी है. शाहबाज़ शरीफ और प्रधानमंत्री मोदी पहली बार आमने सामने मिलने जा रहे हैं. इसी तरह जून 2020 में गलवान घाटी में हुए संघर्ष के बाद ये पहली बार होगा कि प्रधानमंत्री मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग आमने-सामने होंगे. आधिकारिक ऐलान अभी नहीं हुआ, लेकिन संभव है कि दोनों नेताओं या दोनों नेताओं के साथ गए प्रतिनिधिमंडल के बीच बातचीत हो जाए. आधिकारिक न सही, तो अनाधिकारिक बातचीत का रास्ता तो हमेशा खुला रहता है.
इसके अलावा भारत अपने दो और पक्के दोस्तों से मिलेगा. रूस और ईरान. रूस के साथ भारत की दोस्ती पर अलग से प्रवचन देने की ज़रूरत नहीं है. बात ये है कि बीते दिनों भारत जिस तरह पश्चिम के करीब गया है, उसे लेकर रूस थोड़ा असहज है. चाहे वो हथियारों की खरीद हो या फिर QUAD जैसे संगठन. सो रूस की मौजूदगी वाले मंच पर जाकर भारत दो संदेश देना चाहता है - एक तो रूस को, कि भारत उसकी दोस्ती का आदर करता है. और उसके साथ खड़े होने में उसे कोई शर्म नहीं. दूसरा दुनिया को - कि दुनिया का मतलब यूरोप, अमेरिका या पश्चिम बस नहीं हो सकता. भारत अपने हितों के हिसाब से संबंध बनाएगा. और इन संबंधों को बनाते हुए नज़रिया भी भारतीय रखेगा. यूक्रेन युद्ध के चलते रूस बेहिसाब प्रतिबंधों का सामना कर रहा है. ऐसे में वो भारत की तरफ बड़ी उम्मीद से देखता है.
रही बात ईरान की, तो उसके साथ तो हमारे हज़ारों साल पुराने संबंध हैं. वहां से हम तेल आयात किया करते थे. हमने चाबहार में खरबों का निवेश किया था. लेकिन अमेरिकी प्रतिबंधों के चलते भारत ने ईरान से कुछ दूरी बना ली. खास तौर पर तेल के आयात के संबंध में. लेकिन जिस तरह यूक्रेन संकट के बाद नई दिल्ली ने रूस से तेल खरीदने को लेकर आत्म विश्वास दिखाया है, ईरान उम्मीद कर रहा है कि उसकी किस्मत भी खुल सकती है. ये भारत के लिए भी फायदे का सौदा हो सकता है क्योंकि प्रतिबंधों वाले माहौल में अगर भारत ईरान के करीब जाता है, तो ईरान भी कोई न कोई छूट ज़रूर देगा. अगर राष्ट्रपति रईसी और प्रधानमंत्री मोदी मिलते हैं, तो इस बाबत बात हो सकती है. इन सारी बातों को ध्यान में रखते हुए प्रधानमंत्री मोदी, बाबर के शहर समरकंद गए हैं.
वीडियो: पुतिन, जिनपिंग और पाकिस्तान से क्या क्या बात करने वाले हैं PM मोदी?