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गवाह और सबूतों के बावजूद Samjhauta Train Blast के दोषियों को सजा क्यों नहीं मिली?

स्वामी असीमानंद और बाकी आरोपियों को बाइज्ज़त कैसे बरी कर दिया गया?

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असीमानन्द और समझौता एक्सप्रेस (फोटो सोर्स-AajTak)
एक छोटी सी कहानी सुनिए, एक अंग्रेज गवर्नर थे, उनकी अंगूठी खो गई, ढूंढने की कवायद शुरू हुई तो एक भारतीय पुलिस अफसर था. अंग्रेजों का वफादार, बोला, साहब अंगूठी तो ढूंढ लेंगे, थोड़ा अता-पता दीजिए, कहां से ली, कब ली, अंगूठी का वजन और बनावट पता चल जाए तो और बढ़िया. गवर्नर साहब ने अंगूठी की एंवॉइस थमा दी, लंदन के सर्राफ़ के यहां की. चापलूस भारतीय अफसर चालाक भी था, असली चोर मिले न मिले, इरादा साहब को खुश करने का था. लंदन टेलीग्राम भेजा और ज्वेलरी वाले से हू-ब-हू वही अंगूठी बनवाकर मंगवा ली. इधर अंग्रेज साहब को बता दिया कि एक माली पर शक है, माली की पिटाई हुई और चोरी गई अंगूठी की जगह नई वाली अंगूठी गमले से बरामद कर ली गई. और साहब को दे दी गई, इधर साहब ने एक दिन शेरवानी पहनी, जेब में हाथ डाला तो कुछ चुभा, टटोला तो अंगूठी थी. वही जिसपर हो-हल्ला कटा था. मामला दबा लिया गया. आखिर खुद को जेल कौन भेजता.
ये तो महज़ कहानी है, कल्पना के धरातल पर बुनी हुई. मामला एक अदद अंगूठी की चोरी का है. लेकिन सियासत कई बार मासूमों के खून की सौदेबाजी भी कर गुजरती है, मामले दब जाते हैं, निर्दोष लोगों की लाशें साल-दर-साल इंसाफ मांगती रहती हैं, आरोपी कौन था? तमाम जानें किसने लीं? इन सवालों के जवाब नहीं मिलते.
आज 18 फरवरी है और आज की तारीख़ का संबंध है एक ट्रेन में हुए उस बम धमाके से, जिसमें दो देशों के निर्दोष नागरिक मारे गए, जांचें हुईं, फैसले भी आया, लेकिन सजा किसी को नहीं मिली.
तारीख़ 24 सितंबर. 2002 का साल. गुजरात के अक्षरमधाम मंदिर पर आतंकी हमला हुआ. 33 लोग मारे गए, 50 से ज्यादा घायल हुए. इसी साल जम्मू के रघुनाथ मंदिर में बम धमाके किए गए. कई लोगों की जानें गईं. इसके बाद साल 2006 में वाराणसी के संकटमोचन मंदिर पर भी आतंकी हमला हुआ. बम धमाके में 11 श्रद्धालुओं की जानें गईं. कई लोग घायल हुए.
लेकिन कुछ लोग मंदिरों पर हुए इन हमलों से बेहद खफ़ा थे. बदला लेना चाहते थे. बम के बदले में बम. और इस बदले का प्लान बनाने के लिए ये लोग देश के कई शहरों में एक-दूसरे से मिला करते थे. इन लोगों ने बम बनाना सीखा. मध्य प्रदेश और फ़रीदाबाद की शूटिंग रेंज में पिस्तौल चलाने की ट्रेनिंग ली. इनमें से एक राजिंदर चौधरी और दूसरे शख्स कमल चौहान ने पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन की दो बार रेकी की. पहली बार दिसंबर 2006 के आस-पास इंदौर इंटरसिटी एक्सप्रेस से दिल्ली पहुंचे. सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबंद थी तो वापस लौट गए. इसके बाद फरवरी 2007 में दोबारा दिल्ली आए. सारा जायजा लिया और लौट गए. इंदौर में क्या हुआ? राजिंदर चौधरी 17 फ़रवरी को इंदौर में रमेश उर्फ़ अमित हकला के घर पहुंचा. अमित इस घर में सिर्फ एक साल पहले से किराए पर रह रहा था. और इसी घर में ब्लास्ट में इस्तेमाल किये गए एक्सप्लोसिव्स को बोतलों में पैक करने का काम किया गया था. यहां राजिन्दर का इन्तजार कमल चौहान और रामचंद्र कलसांगरा कर रहे रहे थे. राजिंदर के साथ एक और शख्स था, लोकेश शर्मा. इंदौर में रामचंद्र कलसांगरा ने लोकेश शर्मा, अमित हकला, कमल चौहान और राजिंदर चौधरी को फ़र्ज़ी नामों से दो-दो टिकटें दीं. और चारों को आईईडी से भरकर तैयार किया गया एक-एक सूटकेस देकर अपनी वैन से इंदौर स्टेशन छोड़ दिया.
इंदौर से चल कर ये लोग 18 फ़रवरी यानी आज ही के दिन सुबह निज़ामुद्दीन रेलवे स्टेशन और फिर वहां से लोकल ट्रेन पकड़कर पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पहुंच गए. पुरानी दिल्ली के डॉरमेट्री में दो कमरे लिए गए. चारों ने कुछ देर आराम की और टहलने चले गए. इस वक़्त चारों सूटकेस डॉरमेट्री में ही छोड़ दिए गए थे. शाम को डॉरमेट्री में वापस लौटने के बाद सूटकेस बमों में टाइमर सेट करना था. अमित हकला ने राजिंदर चौधरी से कहा कि दरवाज़े पर नज़र रखे. दूसरे कमरे में लोकेश शर्मा भी टाइमर सेट करने को था लेकिन इस कमरे में बाकी यात्रियों की आवाजाही ज्यादा थी. इसलिए जब लोकेश बमों को एक्टिवेट नहीं कर पाया तो उसने अमित से अपने सूटकेस से बदल लिए. और बदले हुए दो सूटकेस लेकर खुद प्लेटफॉर्म पर पहुंच गया. समझौता एक्सप्रेस के आने का इंतजार था. जिसमें इन बमों को फोड़ा जाना तय हुआ था.
भारत और पाकिस्तान के बाद शिमला समझौता हुआ था. जिसके बाद 22 जुलाई 1976 को दोनों देशों के बीच समझौता एक्सप्रेस ट्रेन शुरू हुई थी. तब यह ट्रेन अमृतसर और लाहौर के बीच रोज करीब 50 किलोमीटर का सफ़र किया करती थी. जिसके बाद साल 1980 में इसे अटारी तक सीमित कर दिया गया था. और 1994 में इसे रोजाना से हफ्ते में दो बार कर दिया गया था. इधर अमित हकला ने लोकेश से सीढ़ियों पर बदले गए दोनों सूटकेसों में भी टाइमर सेट कर दिया और खुद भी राजिंदर चौधरी के साथ प्लेटफॉर्म पर चला गया.
समझौता एक्सप्रेस ट्रेन(फोटो सोर्स-AajTak)
समझौता एक्सप्रेस ट्रेन(फोटो सोर्स-AajTak)

समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट- समझौता एक्सप्रेस पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के पहले प्लेटफॉर्म की शुरूआत में रुकी. अमित हकला और राजिंदर चौधरी ट्रेन में चढ़ गए. और अलग-अलग दो जनरल डब्बों में घुस गए. ट्रेन खचाखच भरी थी. राजिंदर चौधरी ने अपने चुने गए डब्बे में सूटकेस को ऊपर सामान वाली बर्थ पर रख दिया और खुद समझौता एक्सप्रेस से उतरकर जयपुर जाने वाली दूसरी ट्रेन में चढ़ गया.
इसके बाद समझौता एक्सप्रेस ट्रेन नंबर 4001 अप, रात 10 बजकर 50 मिनट पर दिल्ली से अटारी की ओर चल पड़ी. रात 11 बजकर 53 मिनट पर ट्रेन दिल्ली से 80 किलोमीटर दूर पानीपत के दिवाना रेलवे स्टेशन तक पहुँची थी, तभी ट्रेन के 12वें और 13वें डब्बे में दो धमाके हुए. इन दोनों धमाकों ने दोनों डब्बों के साथ 68 यात्रियों को ज़िंदा भून दिया था. मरने वालों में 16 बच्चे भी थे. धमाकों के चलते ट्रेन में आग लग गई थी, 12 और लोग भी घायल हो गए थे.
समझौता ट्रेन ब्लास्ट (फोटो सोर्स- AajTak)
समझौता ट्रेन ब्लास्ट (फोटो सोर्स- AajTak)

मामले की तफ़्तीश- अगले दिन यानी 19 फ़रवरी, 2007 को जीआरपी और हरियाणा पुलिस ने मामला दर्ज किया. पुलिस को मौके से दो सूटकेस बम मिले जो फटने से बच गए थे. इसके अलावा केरोसिन तेल की 14 बोतलें, एक पाइप, एक डिजिटल टाइमर, सूटकेस कवर जैसी चीजें भी मिलीं.
घटना पर दोनों देशों से प्रतिक्रिया आई. पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री शौक़त अज़ीज़ ने कहा कि मारे गए लोगों में 60 पाकिस्तानी हैं, हालांकि बाद में 53 शवों की पहचान हुई जिनमें से 43 पाकिस्तानी लोगों के थे. जबकि 15 शवों को पहचाना नहीं जा सका.
चश्मदीदों के मुताबिक दो संदिग्धों के स्केच भी बनाए गए. कहा गया कि ये दिल्ली से ट्रेन में सवार हुए और रस्ते में कहीं उतर गए थे. पुलिस ने 10 लाख के इनाम की भी घोषणा भी की. इसके बाद 15 मार्च 2007 को इंदौर से दो लोगों को गिरफ्तार किया गया. पूरे मामले में ये अब तक की पहली गिरफ्तारी थी. पुलिस इन दोनों तक सूटकेस के कवर के सहारे पहुंची थी. जो ब्लास्ट के कुछ ही दिन पहले इंदौर के कोठारी मार्केट से खरीदे गए थे.
जांच चली, हैदराबाद की मक्का मस्जिद पर हमला, अजमेर दरगाह और मालेगांव ब्लास्ट, कहा गया कि ये सभी मामले आपस में जुड़े हैं, हरियाणा पुलिस और महाराष्ट्र एटीएस को समझौता ब्लास्ट में हिंदू कट्टरपंथी संगठन ‘अभिनव भारत’ के शामिल होने के संकेत मिले. RSS नेता इन्द्रेश कुमार से पूछताछ की गई. और घटना के करीब ढाई साल बाद जांच का जिम्मा NIA को सौंपा गया.
30 दिसंबर 2010 को हरिद्वार से नब कुमार सरकार उर्फ़ स्वामी असीमानंद को गिरफ्तार कर लिया गया. NIA ने कहा कि हमले का मास्टरमाइंड स्वामी असीमानंद ही है और उनके पास स्वामी असीमानंद के खिलाफ़ पुख्ता सुबूत हैं. पहले इस घटना में सुनील जोशी को मुख्य आरोपी बनाया गया था, लेकिन उसकी साल 2007 में ही मध्यप्रदेश में रहस्यमय ढंग से मौत हो गई थी. जिसे हत्या बताया गया था.
26 जून, 2011 को  NIA ने पांच लोगों के ख़िलाफ़ पहली चार्जशीट दाख़िल की. इसमें नब कुमार सरकार उर्फ़ स्वामी असीमानंद, सुनील जोशी उर्फ़ मनोज उर्फ़ गुरुजी, रामचंद्र कलसांगरा उर्फ़ रामजी, संदीप दांगे उर्फ़ टीचर, लोकेश शर्मा उर्फ़ अजय, कमल चौहान, रमेश वेंकट महालकर उर्फ़ अमित हकला का नाम शामिल किया गया था. एनआईए का ही कहना था कि इन लोगों ने मंदिरों पर हुए आतंकी हमलों का बदला लेने के लिए समझौता ब्लास्ट की साजिश रची थी. इसके बाद 2012 में राजिन्दर चौधरी को भी उज्जैन से गिरफ़्तार कर लिया गया. राजिंदर चौधरी, कमल चौहान और लोकेश शर्मा का नाम 2006 के मालेगांव ब्लास्ट में भी सामने आया था. गिरफ़्तारी के बाद राजिंदर चौधरी को मध्य प्रदेश कोर्ट में पेश कर एनआईए ने उसे ट्रांजिट रिमांड पर लिया. 2012 और 2013 में दो और सप्लीमेंट्री चार्जशीट दाखिल की गईं.
स्वामी असीमानंद (फोटो सोर्स-India Today)
स्वामी असीमानंद (फोटो सोर्स-India Today)


इसके बाद अगस्त 2014 में समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट मामले में स्वामी असीमानंद को पंजाब और हरियाणा की हाईकोर्ट ने ज़मानत दे दी. मुकदमा स्वामी असीमानंद के इकबालिया बयान के आधार पर ही चलाया गया था, लेकिन बाद में स्वामी असीमानंद ये कहकर अपने बयान से मुकर गए कि उन्होंने बयान दबाव में आकर दिया था. जिसके लिए उन्हें टॉर्चर किया गया था. और कोर्ट में NIA असीमानंद के ख़िलाफ़ पर्याप्त सबूत भी नहीं दे सकी थी.
इसके बाद 16 अप्रैल 2018 को स्वामी असीमानंद को एनआईए की स्पेशल कोर्ट ने 2007 के मक्का मस्जिद मामले में भी बरी कर दिया. अजमेर दरगाह विस्फोट मामले में भी जांच का कोई नतीजा नहीं निकला और असीमानंद इस केस में भी बरी हो गए, और बाद में 20 मार्च 2019 को NIA की कोर्ट ने समझौता ब्लास्ट मामले में भी असीमानंद सहित लोकेश शर्मा, कमल चौहान और राजिंदर चौधरी को बाइज्जत बरी कर दिया था. बाकी 3 आरोपी संदीप डांगे, रामचन्द्र कलसांगरा और अमित हकला को भगोड़ा घोषित कर दिया गया. NIA पर आरोप- NIA ने असीमानंद और बाकी तीन आरोपी जिन्हें बरी किया था उनके बारे में कहा कि इनके खिलाफ़ पर्याप्त सबूत नहीं थे, ये वही NIA थी जिसने अपनी शुरुआती जांच में असीमानंद को आरोपी बताया था. साजिश के पीछे की पूरी कहानी बताई थी. हालांकि फैसले के कुछ ही दिन बाद 28 मार्च 2019 को पंचकुला में NIA की स्पेशल कोर्ट के जस्टिस जगदीप सिंह ने इस फैसले की 160 पन्ने की एक कॉपी पब्लिक कर दी थी. जगदीप सिंह ने कहा था कि फैसला बहुत गहरे दर्द और वेदना में दे रहा हूं. उनकी शिकायत थी कि आतंकवाद का एक नीच काम हुआ और दोषियों को सजा नहीं मिली. जस्टिस सिंह NIA से कुछ गवाहों के पेश न किए जाने पर और कुछ के मुकर जाने पर जवाब मांग रहे थे. कुल 302 गवाहों में से NIA ने 224 गवाहों को पेश किया था. जस्टिस जगदीप सिंह ने ये भी कहा कि NIA गवाहों को मुकरने से भी नहीं रोक सकी.
लेकिन NIA की तरफ़ से ये कहा जाता रहा कि गवाहों के मुकरने से केस पर ख़ास फर्क नहीं पडेगा, हमारे पास काफ़ी सुबूत हैं. लेकिन अंत में न सुबूत काम आए न गवाह. NIA पर लापरवाही के आरोप लगे, उसने न दिल्ली रेलवे स्टेशन के सीसीटीवी फुटेज कोर्ट में पेश किए थे और न ही ये बता सकी कि ट्रेन जब 10 मिनट के लिए रुकी थी तब उसमें से कौन उतरा, इंदौर के जिस टेलर ने सूटकेस के कवर सिले थे उसके सामने आरोपियों की शिनाख्त परेड भी नहीं करवाई गई. मालेगाँव ब्लास्ट के आरोपियों को बचाने का आरोप भी NIA पर उनकी ही वकील रहीं रोहिणी सालियान ने 2015 में लगाया था.
NIA लोगो (फोटो सोर्स-AajTak)
NIA लोगो (फोटो सोर्स-AajTak)


समझौता ब्लास्ट में 68 लोग मरे, जिनमें हिंदू भी थे, मुसलमान भी, 15 लोग ऐसे भी थे जिनकी पहचान नहीं हो सकी. जस्टिस जगदीप सिंह ने अपने फैसले में कहा था कि आतंक का धर्म नहीं होता. कोई धर्म हिंसा का पाठ नहीं पढाता, अदालती फैसले भी भावनाओं या धारणाओं पर नहीं होते. फैसले राजनीति से प्रेरित नहीं होने चाहिए, सबूतों के आधार पर होने चाहिए, लेकिन सुबूत तो मिले ही नहीं, समझौता ब्लास्ट की साजिश कैसे हुई? बम कहां बनाए गए, ट्रेन में बम किसने रखे, वो सब जो हमने आपको शुरू में बताया था वो NIA की ही बताई कहानी और दावे थे. जो बाद में हवा-हवाई हो गए.
दो अलग-अलग राजनीतिक दलों की सरकारों के बीच 15 साल हो गए, लेकिन समझौता ब्लास्ट में मारे गए लोगों को इंसाफ नहीं मिल सका. हिंदू आतंकवाद, पाकिस्तानी कट्टरपंथ, दो देशों के बीच की नफरत और देश की सियासत इन सबके बीच ट्रेन में बम धमाके करने वाले लोग कौन थे, ये सवाल सवाल ही रह गया.