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क्या कहता है IBC Amendment Bill, जिसे दिवालिया कंपनियों से निपटने के लिए लाया गया है

ऐसी कंपनियों को लोन निपटाने के लिए पहले 330 दिन मिलते थे, अब 120 दिन ही मिलेंगे.

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वित्तमंत्री निर्लला सीतारमन(फाइल फोटो) फोटो- आजतक
दिवालियापन. कंपनियों का दिवालिया घोषित होना आज के भारत के लिए कोई आम बात नहीं है. विजय माल्या, नीरव मोदी, मेहुल चौकसी, ललित मोदी. इन सारे नामों में क्या समानता है. यही कि बैंकों से हज़ारों करोड़ उधार लिए और चुकाने की बारी आई तो विदेश भाग लिए. ये तो वो बड़े नाम हैं जिनका जिक्र अलग-अलग वजहों से हम सुनते रहते हैं. असल में ऐसी सैकड़ों कंपनियां हैं, जो बैंकों से या किसी कर्ज देने वाली संस्था से पैसा उधार लेती हैं, लेकिन वापस नहीं चुका पातीं. दिवालिया हो जाती हैं. देश के बैंकों की बहुत बड़ी रकम डूबने वाले खाते में है. 8 लाख 34 हज़ार करोड़. यानी सरकार सालभर के लिए जितना बजट बनाती है उसके एक चौथाई हिस्से के बराबर. तो बैंकों का पैसा कम डूबे, या जो डूब रहा हो उसे वापस वसूल किया जा सके, इस दिशा में मोदी सरकार ने 2016 में एक कानून बनाया था. तब दिवंगत अरुण जेटली वित्त मंत्री थे. उस कानून का नाम है- Insolvency and Bankruptcy Code (IBC), 2016. हिंदी में इसे कहते हैं दिवाला और शोधन अक्षमता कोड, 2016. इसमें डूबे हुए कर्ज का 330 दिन में समाधान करने का प्रावधान है. इस प्रक्रिया को कॉरपोरेट इंसॉल्वेंसी रेसोल्यूशन प्रोसेस यानी CIRP कहते हैं. कर्ज़ देने वाले की तरफ से CIRP शुरू की जाती है. इसमें होता ये है कि कर्ज़ देने वाले की तरफ से एक कमेटी बनती है. और ये कमेटी तय करती है कि दिवालिया हो चुकी कंपनी से पैसा कैसे वसूलना है. क्या उसका अधिग्रहण करना है, या कंपनी के मैनेजमेंट में बदलाव करना है. और जब ये CIRP की प्रक्रिया चलती है तब दिवालिया कंपनी का पूरा कंट्रोल लोन देने वालों के हाथों में होता है. ये तो हुई 2016 वाले कानून की बात. अब अरुण जेटली के लाए कानून में मौजूदा वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण बदलाव कर रही हैं. इस बदलाव के लिए संशोधन बिल लाया गया जिसका नाम है- Insolvency and Bankruptcy Code (Amendment) Bill 2021. इसमें कर्ज़ के निपटारे का एक नया तरीका निकाला गया है. इसका नाम है प्री-पैकेज्ड इंसॉल्वेंसी रेसॉल्यूशन. कोई भी ऐसी कंपनी या उद्योग जिसने 1 लाख रुपए से ज्यादा का कर्ज लिया है, वो नई प्रक्रिया में शामिल हो सकते हैं. इसमें जो डिफॉल्टर है, यानी कर्ज़ नहीं चुका पाने वाली कंपनी के मालिक हैं, सेटलमेंट का प्रोसेस शुरू कर सकते हैं. कितना और कैसे कर्ज़ चुकाएंगे इसका प्लान वो लोन देने वालों को बता सकते हैं. इसके तहत 120 दिन में सेटलमेंट का काम करना होगा. और इस दौरान कर्ज़ में डूबे उद्योग का मैनेजमेंट मालिकों के पास ही रहेगा, कर्ज देने वालों के पास नहीं जाएगा. कर्ज़ में डूबी लघु, सूक्ष्म या मध्यम साइज़ की कंपनियां के फायदे के लिए पुराने कानून में ये बदलाव किया गया है. ताकि ऐसा ना हो कि कर्ज़ नहीं चुका पाए तो इंसाफ करने का पूरा हक कर्ज़ देने वाले के हाथ में हो, दिवालिया होने वाले के पास भी कुछ अधिकार हों, और कंपनी का काम ना रुके. तो इस बिल पर भी संसद में कोई बहस नहीं हुई. ये बिल 28 जुलाई को लोकसभा से पारित हुआ और 3 अगस्त को राज्यसभा से भी पास हो गया. और अब राष्ट्रपति का ठप्पा लगते ही कानून बन जाएगा.