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अब बिहार में CBI की टीम छापा नहीं मार पाएगी? नीतीश सरकार ये काम करेगी!

मंत्री ने कहा - "बिहार के लोग देख रहे हैं"

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(बाएं-दाएं) सीएम नीतीश कुमार और सीबीआई का लोगो. (तस्वीरें- इंडिया टुडे)

बिहार (Bihar) जल्दी ही देश का ऐसा 10वां राज्य बन सकता है, जहां CBI जांच के लिए आम सहमति (common consent for CBI Investigation) वापस ली जा सकती है. ऐसी खबरें हैं कि महागठबंधन के नेताओं ने सरकार से इसकी मांग की है. उनका आरोप है कि BJP के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार अपने राजनीतिक उद्देश्यों के लिए CBI का गलत इस्तेमाल कर रही है. बिहार से पहले पश्चिम बंगाल, छत्तीसगढ़, राजस्थान, पंजाब, मेघालय, मिजोरम, महाराष्ट्र, केरल और झारखंड CBI जांच के लिए जरूरी कॉमन कन्सेन्ट वापस ले चुके हैं.

CBI किस नियम के आधार पर छापा मार पाती है?

CBI दिल्ली विशेष पुलिस स्थापना अधिनियम, 1946 (Delhi Special Police Establishment या DSPE Act, 1946) के तहत काम करती है. इस अधिनियम का सेक्शन 6 दूसरे राज्यों में CBI जांच के लिहाज से महत्वपूर्ण है. ये सेक्शन कहता है कि संबंधित राज्य के अधिकार क्षेत्र में जांच शुरू करने से पहले CBI को उस राज्य की सरकार से सहमति लेनी होगी. कई राज्यों ने एजेंसी को ये सहमति दी हुई है. लेकिन कुछ राज्य सरकारें इस सहमति से इनकार कर चुकी हैं. 

जाहिर है इनमें से ज्यादातर राज्यों में विपक्षी दल सत्ता में हैं. हालांकि इनमें मेघालय का शामिल होना दिलचस्प है. वहां BJP के नेतृत्व वाले गठबंधन NDA के सहयोगी कोनराड संगमा की सरकार है. मेघालय में इसी साल मार्च महीने में CBI जांच से जुड़ा कन्सेन्ट वापस ले लिया गया था. NPP सरकार का आरोप था कि BJP, CBI का दुरुपयोग कर रही है.

मेघालय आम सहमति वापस लेने वाला देश का 9वां राज्य था. बिहार 10वां राज्य बनने की राह पकड़ चुका है. महागठबंधन में सहयोगी RJD के नेता शिवानंद तिवारी ने न्यूज एजेंसी पीटीआई से बातचीत में कहा है,

"BJP के विरोधियों को टारगेट करने के लिए जिस तरह केंद्रीय एजेंसियों का गलत इस्तेमाल किया जा रहा है, उसे देखते हुए बिहार की महागठबंधन सरकाकर को CBI को दिया कन्सेन्ट वापस लेना होगा. इसके अलावा, राज्य सरकार को केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग की जांच के लिए अदालत जाने का विकल्प देखना चाहिए. NDA के शासन में इन एजेंसियों ने अपनी विश्वसनीयता खो दी है."

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली JDU का भी कहना है कि CBI को दी आम सहमति वापस लेने का ये सही समय है. पार्टी के नेता और सरकार में मंत्री मदन सहनी ने कहा,

“बिहार के लोग देख रहे हैं कि विपक्ष के नेताओं की छवि बिगाड़ने के लिए किस तरह CBI, ED और इनकम टैक्स डिपार्टमेंट जैसी केंद्रीय एजेंसियों का गलत इस्तेमाल किया जा रहा है. वे सही समय आने पर करारा जवाब देंगे.” 

वहीं CPIML (L) के विधायक महबूब आलम ने भी कहा कि गैर-BJP सरकारों को अस्थिर करने के लिए केंद्र द्वारा केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग में कोई संदेह नहीं है. उन्होंने कहा,

“सारी केंद्रीय एजेंसियां राजनीतिक मकसद के तहत काम कर रही हैं. वे कभी भी BJP नेताओं के खिलाफ कार्रवाई नहीं करती हैं. बिहार में हमारी महागठबंधन सरकार को CBI की शक्तियां कम करते हुए इसको दिए कॉमन कन्सेन्ट को तुरंत वापस ले लेना चाहिए.”

यही बात महागठबंधन की एक और साथी सीपीआई (एम) के विधायक अजय कुमार ने भी कही है. वहीं बिहार कांग्रेस के प्रवक्ता राजेश राठौर ने कहा है,

"केंद्र की NDA सरकार तानाशाही है और एजेंसियों के जरिये विपक्ष की आवाज को दबाने की कोशिश में है. ये सब रुकना चाहिए और बिहार सरकार को तुरंत CBI से कन्सेन्ट वापस ले लेना चाहिए."

रिपोर्ट के मुताबिक RJD के एक सीनियर नेता ने नाम नहीं जाहिर करने की शर्त पर बताया कि बिहार सरकार ने इस दिशा में काम शुरू भी कर दिया है.

बीते हफ्ते 24 अगस्त को CBI ने बिहार में RJD के कई नेताओं के यहां अचानक छापा मार दिया था. इस कार्रवाई सवाल उठे थे. वजह ये कि इस रेड के थोड़ी ही देर बाद JDU-RJD के नेतृत्व वाली नीतीश कुमार सरकार को बिहार विधानसभा में बहुमत सिद्ध करना था. महागठबंधन के नेताओं ने आरोप लगाया था कि विधायकों को डराने के मकसद से BJP के इशारे पर CBI ने RJD के खिलाफ ये कार्रवाई की थी. वहीं BJP का कहना था कि केंद्रीय एजेंसी ने 'जमीन के बदले नौकरी घोटाला' के सिलसिले में ये छापेमारी की थी, जिसका पार्टी से कोई लेना-देना नहीं है.

CBI को छापा मारने के पहले क्या करना होता है?

कानून के मुताबिक जिस राज्य ने कॉमन कन्सेन्ट की अनुमति नहीं दी है या जहां किसी विशेष मामले को ये आम सहमति कवर नहीं करती, तो DSPE ऐक्ट के सेक्शन-6 के तहत राज्य सरकार से विशेष सहमति लेनी होती है. राज्य सरकार से कन्सेन्ट मिलने के बाद ही सेक्शन 5 के तहत CBI की जांच के अधिकार क्षेत्र को बढ़ाए जाने पर विचार किया जा सकता है. मतलब तभी CBI की टीम अमुक जांच के लिए राज्य की सीमा में दाखिल हो सकती है.  

पिछले साल नवंबर महीने में CBI ने सुप्रीम कोर्ट को बताया था कि कन्सेन्ट पर रोक लगाए जाने के कारण आठ राज्यों में उसकी जांच से जुड़ी कोई 150 अपीलें पेंडिंग पड़ी हैं. शीर्ष अदालत ने इस पर चिंता जाहिर की थी. कहा था कि उसे ऐसी स्थिति की अपेक्षा नहीं थी.

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