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'हम समझ रहे हैं, आप चाहते ही नहीं ये बेंच सुनवाई करे', बिलकिस बानो मामले में SC ने किससे ये कहा?

सुप्रीम कोर्ट में बिलकिस बानो गैंगरेप केस के दोषियों की रिहाई से जुड़ी याचिका पर अंतिम सुनवाई एक बार फिर टल गई है.

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बिलकिस बानो गैंगरेप मामले में 11 दोषियों को समय से पहले रिहा कर दिया था. (फाइल फोटो)

सुप्रीम कोर्ट में बिलकिस बानो गैंगरेप केस के दोषियों की रिहाई से जुड़ी याचिका पर अंतिम सुनवाई एक बार फिर टल गई है. गुजरात सरकार ने इन दोषियों को इनकी सजा की मियाद से पहले ही आजाद कर दिया था. इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गईं. इनमें बिलकिस बानो की याचिका भी शामिल है.

बिलकिस बानो और बाकी याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट से अपील की है कि गैंगरेप के दोषियों को छोड़े जाने का गुजरात सरकार का फैसला रद्द किया जाए. लेकिन इस अपील पर सुनवाई नहीं हो पा रही है. जस्टिस केएम जोसेफ और बीवी नागरत्ना की बेंच ने 2 मई को अंतिम सुनवाई की तारीख तय की थी. लेकिन सुनवाई नहीं हुई. मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक सुनवाई के दौरान जस्टिस जोसेफ ने दोषियों से कह दिया कि वे चाहते ही नहीं ये बेंच मामले की सुनवाई करे. जज ने ऐसा क्यों कहा, आगे बताते हैं.

क्यों नहीं हुई सुनवाई?

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, कुछ दोषियों की तरफ से पेश हुए वकीलों ने बिलकिस बानो के हलफनामे पर आपत्ति जताई. दरअसल, बिलकिस ने कोर्ट से मांग की थी कि दोषियों को मिले नोटिस को डीम्ड सर्विस घोषित किया जाए, क्योंकि उन्होंने (मतलब दोषियों ने) जवाब दाखिल करने का नोटिस लेने से इनकार किया. डीम्ड सर्विस का मतलब होता है कोई डॉक्यूमेंट या पार्सल किसी व्यक्ति के पास पहुंच गया. इस पर दोषियों के वकील ने कहा कि बिलकिस ने हलफनामा में झूठा दावा किया कि दोषियों ने नोटिस स्वीकार करने से इनकार किया. वकील के मुताबिक, पोस्टल रिकॉर्ड बताते हैं कि उन्हें (दोषियों) नोटिस नहीं मिल पाया क्योंकि वे शहर से बाहर थे.

वकील ने दावा किया कि बिलकिस ने कोर्ट के साथ फ्रॉड किया है. साथ ही उनके खिलाफ कार्रवाई की मांग की. हालांकि बिलकिस की वकील शोभा गुप्ता ने इन आरोपों से इनकार किया और कहा कि हलफनामा पोस्टल रिकॉर्ड के आधार पर दायर किया गया था.

"आप नहीं चाहते कि ये बेंच सुनवाई करे"

इसके बाद बेंच ने सुनवाई स्थगित कर दी. ताकि सभी दोषियों के वकील काउंटर हलफनामे में अपनी आपत्ति दर्ज करा सकें. बेंच ने निर्देश दिया कि जिन दोषियों को नोटिस नहीं मिला है, उन्हें उनके थाने के जरिये उपलब्ध कराई जाए.

जस्टिस केएम जोसेफ 16 जून को रिटायर हो रहे हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, हालांकि छुट्टियों से पहले उनका आखिरी वर्किंग डे 19 मई है. जस्टिस जोसेफ ने छुट्टियों के दौरान मामले की सुनवाई का ऑफर दिया. बिलकिस बानो की वकील राजी हो गईं, लेकिन सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता (केंद्र और गुजरात सरकार के वकील) और दोषियों के वकील तैयार नहीं हुए.

इन तमाम प्रक्रियाओं के कारण सुनवाई में हो रही देरी पर जस्टिस जोसेफ नाराज हो गए. फिर उन्होंने दोषियों के वकील से कहा कि यह साफ है कि आप नहीं चाहते हैं कि ये बेंच मामले की सुनवाई करे. उन्होंने वकीलों को यह भी कह दिया, 

"ये मेरे लिए सही नहीं है. हमने साफ दिया था कि मामले की सुनवाई निपटारे के लिए होगी. आप कोर्ट के अधिकारी हैं. आप अपनी जिम्मेदारी ना भूलें. आप केस जीत सकते हैं या हार सकते हैं. लेकिन कोर्ट के प्रति अपनी ड्यूटी ना भूलें."

वहीं, कोर्ट में सॉलिसिटर जनरल बिलकिस की तरफ से वकील शोभा गुप्ता के अलावा, वृंदा ग्रोवर और इंदिरा जयसिंह ने इस पर आपत्ति जताई. इंदिरा जयसिंह ने कोर्ट से 22 मई की तारीख तय करने की अपील की. लेकिन सॉलिसिटर जनरल नहीं माने. आखिरकार बेंच ने मामले की सुनवाई जुलाई तक स्थगित करने का फैसला किया.

इससे पहले पिछली सुनवाई के दौरान कोर्ट ने सरकार को फटकार लगाई थी. उसने कहा था कि बार-बार कहने के बावजूद गुजरात सरकार दोषियों की रिहाई से जुड़े डॉक्यूमेंट उसके सामने नहीं ला रही है. कोर्ट ने केंद्र और गुजरात सरकार से कहा था कि दोषियों को समय से पहले रिहाई देने से जुड़ी फाइलें उसके सामने पेश की जानी चाहिए. अगर दोषियों को रिहा करने की वजह नहीं बताई जाती है तो कोर्ट अपना निष्कर्ष निकालेगा.

केंद्र सरकार ने दी थी मंजूरी

पिछले साल गुजरात सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दायर कर बताया था कि केंद्र सरकार की मंजूरी के बाद इन अपराधियों को छोड़ा गया. जबकि CBI और विशेष अदालत ने उनकी रिहाई का विरोध किया था. डॉक्यूमेंट्स बताते हैं कि अपराधियों को छोड़ने के लिए राज्य सरकार की अनुमति मांगने के दो हफ्ते के भीतर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 11 जुलाई 2022 को ये मंजूरी दे दी थी.

साल 2002 में गुजरात दंगों के दौरान दाहोद में इन अपराधियों ने बिलकिस बानो का गैंगरेप किया था. ये घटना 3 मार्च 2002 की है. बिलकिस तब 5 महीने की गर्भवती थीं और गोद में 3 साल की एक बेटी भी थी. अपराधियों ने उनकी 3 साल की बेटी को पटक-पटककर मार डाला था. जनवरी 2008 में मुंबई की एक CBI अदालत ने गैंगरेप के आरोप में सभी 11 आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई थी. बाद में बॉम्बे हाईकोर्ट ने भी इस सजा को बरकरार रखा था.

वीडियो: 'आज बिलकिस बानो तो कल कोई और...'सुप्रीम कोर्ट ने सरकार को क्या सुना डाला?