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पत्रकारिता के अवॉर्ड बांट रहे थे CJI, फेक न्यूज और लोकतंत्र पर जो कहा बहुतों को बुरा लग जाएगा!

रामनाथ गोयनका अवॉर्ड्स में मुख्य अतिथि थे CJI चंद्रचूड़.

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रामनाथ गोयनका अवार्ड्स में बोलते हुए CJI चंद्रचूड़. (फोटो: सोशल मीडिया)

पत्रकारिता के क्षेत्र में उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिए 22 मार्च को प्रतिष्ठित रामनाथ गोयनका अवॉर्ड (Ramnath Goenka Awards) दिए गए. ये अवॉर्ड साल 2019 और साल 2020 के लिए दिए गए. इस मौके पर मुख्य अतिथि थे, भारत के चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ (Chief Justice of India DY Chandrachud). उन्होंने इस मौके पर लोकतंत्र में पत्रकारिता की भूमिका, पत्रकारों की समस्याओं और स्थानीय पत्रकारिता की आवश्यकता पर बात की. अपने भाषण में उन्होंने लोकतंत्र  के लिए पत्रकारिता की आजादी को जरूरी बताया. 

इंडियन एक्सप्रेस अखबार ने उनका विस्तृत भाषण छापा है. हम यहां उसके कुछ अंश पेश कर रहे हैं.

‘पत्रकारिता और वकालत की प्रतिष्ठा बदलेगी’

CJI चंद्रचूड़ ने अवॉर्ड जीतने वाले पत्रकारों को बधाई देने के साथ अपने संबोधन की शुरुआत की. उन्होंने कहा,

"हमारे देश में पत्रकार जिस तरह गहराई में जाकर रिपोर्टिंग करते हैं, मैं उससे बहुत प्रभावित हूं. जो पत्रकार आज नहीं भी जीते हैं वो किसी विजेता से कम नहीं हैं. आप एक महान पेशे में हैं. जब आपके पास और भी आकर्षक विकल्प मौजूद हों, ऐसे में कठिनाइयों के बावजूद इस काम को जारी रखना वाकई सराहनीय है. मैं पत्रकारिता और वकालत के पेशे के बारे में सोच रहा था. दोनों में कई चीजें कॉमन हैं. दोनों पेशों से जुड़े लोग ये मानते हैं कि कलम तलवार से ज्यादा ताकतवर होती है. ये लोग इस खतरे को भी समझते हैं कि इनके पेशों में व्यापारिक ख़तरा भी है. फिर भी ये लोग काम करते रहते हैं और उम्मीद करते हैं कि एक दिन इन पेशों की प्रतिष्ठा में बदलाव आएगा."  

CJI चंद्रचूड़ ने आगे कहा,

"पत्रकारों को अपने करियर में जिस चीज का सामना करना पड़ता है, उसे जी के चेस्टर्टन ने अच्छी तरह से समझाया था. उन्होंने कहा था कि पत्रकारिता मोटे तौर पर ये कहने में है कि लॉर्ड जोन्स मर चुके हैं, वो भी उन लोगों से जो कभी नहीं जानते थे कि लॉर्ड जोन्स जीवित थे. पत्रकार जनता के लिए लगातार मुश्किल जानकारियों को आसान बनाने में लगे हुए हैं. उस जनता के लिए जो किसी मुद्दे के बहुत बुनियादी तथ्यों से भी अनभिज्ञ हैं. लेकिन जानकारियों को आसान बनाने के लिए एक्यूरेसी से समझौता नहीं करना चाहिए. इससे पत्रकारों का काम और मुश्किल हो जाता है. ये पूरी दुनिया का सच है.”

पत्रकारिता की आवश्यकता पर जोर देते हुए CJI चंद्रचूड़ ने कहा,

“मीडिया बहस और चर्चा को स्थान देता है. ये एक्शन की तरफ पहला कदम है. सामाज अपने भीतर की दिक्कतों के प्रति उदासीन होता है. इस उदासीनता और जड़ता से पत्रकारिता ही हमें बाहर निकालती है. हाल ही में USA में फिल्म इंडस्ट्री से जुड़े कुछ लोगों के खिलाफ यौन उत्पीड़न के आरोपों से जुड़ी खबरें छपीं. जिससे वहां #MeToo आंदोलन की शुरुआत हुई. भारत में निर्भया के बलात्कार की मीडिया कवरेज के बाद बड़े पैमाने पर व्यापक विरोध हुआ और बाद में क़ानून में सुधार हुआ. यहां तक कि कुछ खबरों से संसद और राज्यों की विधानसभाओं में प्रश्नों और चर्चाओं को प्रेरणा मिलती है.”

‘लोकतंत्र बना रहे इसलिए प्रेस की आजादी जरूरी है’

CJI चंद्रचूड़ ने लोकतंत्र और पत्रकारिता को लेकर कहा,

“मीडिया राज्य की अवधारणा में चौथा स्तंभ है. लोकतंत्र का अभिन्न अंग है. एक स्वस्थ लोकतंत्र को एक ऐसी संस्था के रूप में पत्रकारिता के विकास को प्रोत्साहित करना चाहिए ताकि वह प्रतिष्ठान से सवाल कर सके या जैसा आम तौर पर कहा जाता है कि सत्ता से सवाल कर सके. अगर प्रेस को सच बोलने से रोका जाता है तो लोकतंत्र की जीवंतता से समझौता होता है. किसी देश में लोकतंत्र बना रहे, इसके लिए प्रेस को आजाद होना चाहिए. भारत के पास अख़बारों की एक महान विरासत है, जिन्होंने सामाजिक और राजनीतिक बदलाव के लिए उत्प्रेरक की तरह काम किया है. आजादी से पहले भी समाज सुधारकों और राजनीतिक कार्यकर्ताओं द्वारा जागरूकता बढ़ाने के लिए भी अखबार निकाले जाते थे. मिसाल के लिए, डॉ. अम्बेडकर ने भारत में सबसे उपेक्षित समुदायों के अधिकारों के बारे में जागरूकता पैदा करने के लिए मूकनायक, बहिष्कृत भारत, जनता और प्रबुद्ध भारत जैसे कई अखबार लॉन्च किए. आजादी के पहले के अखबार उस वक्त के विस्तृत इतिहास की एक तस्वीर दिखाते हैं. अब ये अखबार ज्ञान का स्रोत हैं.”

CJI चंद्रचूड़ ने आगे कहा,

"देश और दुनिया में कई पत्रकार बहुत मुश्किल स्थितियों में काम करते हैं. बतौर नागरिक हम किसी पत्रकार के नजरिए से असंतुष्ट हो सकते हैं. कई बार मैं भी खुद को पत्रकारों से असहमत पाता हूं. आखिर हममें से कौन बाकी सभी लोगों से सहमत है? लकिन इसे नफरत में नहीं बदलना चाहिए और नफरत को हिंसा में नहीं बदलना चाहिए. भारत के सुप्रीम कोर्ट ने कई फैसलों में पत्रकारों के अधिकारों पर जोर दिया गया है. एक फैसले में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि भारत की आजादी तब तक सुरक्षित है जब तक कि पत्रकार बदले के खतरे से डरे बिना सत्ता से सच बोल सकते हैं."

सोशल मीडिया पर भी बोले

CJI चंद्रचूड़ ने सोशल मीडिया को लेकर भी टिप्पणी की. उन्होंने कहा,

“सोशल मीडिया के आने से हमारा अटेंशन स्पैन कम हुआ है. अब 280 अक्षर में या कुछ सेकंड्स में इनफार्मेशन देने के मानक बन गए हैं. हालांकि, ये लंबी इनवेस्टिगेटिव रिपोर्ट्स का ख़राब रिप्लेसमेंट है. लंबी इनवेस्टिगेटिव रिपोर्ट्स का कोई रिप्लेसमेंट हो ही नहीं सकता. सोशल मीडिया के स्पेस में अपनी जगह बनाकर सच्चाई बयान कर पाना भी पत्रकारों के लिए एक चुनौती साबित हो रहा है.”

CJI चंद्रचूड़ ने आगे कहा,

“लोकल या कम्युनिटी बेस्ड जर्नलिज्म से सामाजिक एकता और राजनीतिक सक्रियता को प्रोत्साहन मिला है. स्थानीय पत्रकारिता से लोगों की जानकारी बढ़ती है. लोकल पत्रकारिता में वो मुद्दे जिनके बारे में लोगों को पता ही नहीं है,  उनपर चर्चा और फिर उनके लिए एक एजेंडा तय करने की क्षमता है. लोकल जर्नलिज्म उन लोकल मुद्दों पर रौशनी डालती है, जिन्हें नेशनल मीडिया द्वारा कवर नहीं किया जा सकता है. कई स्टडीज में पता चला है कि मेनस्ट्रीम मीडिया सभी समुदायों को रिप्रेजेंट नहीं करती है. कम्युनिटी जर्नलिज्म, उन समुदायों के लोगों की आवाज बनने के रास्ते खोलती है.”

प्रेस की खामियां भी गिनाईं

CJI चंद्रचूड़ ने अपने भाषण में प्रेस की कुछ खामियां भी गिनाईं-

- उन्होंने फ़ेक न्यूज़ को बढ़ा ख़तरा बताते हुए कहा कि नकली खबरें हमारे लोकतंत्र के मूल सिद्धांत के ही खिलाफ हैं जो कि हमारे अस्तित्व का आधार है. नकली खबरों से दुनियाभर में लोग गुमराह होते हैं, समुदायों के बीच तनाव पैदा होता है. 

- चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया ने न्यूज़ रूम में डाइवर्सिटी की जरूरत पर भी बात की. उन्होंने कहा कि किसी भी मीडिया प्लेटफार्म को लंबे वक़्त तक चलाने के लिए डाइवर्स वर्कफ़ोर्स जरूरी है. समाचारों में विविधता होनी चाहिए. किसी भी मुद्दे पर जर्नलिज्म को सेलेक्टिव नहीं होना चाहिए.

- CJI ने मीडिया ट्रायल पर भी बात रखी. उन्होंने कहा कि मीडिया ट्रायल ने हमारे सिस्टम को प्रभावित किया है. किसी व्यक्ति को तब तक निर्दोष माना जाता है, जब तक कि उसे कानून की अदालत द्वारा दोषी नहीं पाया जाता है. यह कानून और कानूनी प्रक्रियाओं के मूल सिद्धांतों में से एक है. हालाँकि, ऐसे उदाहरण सामने आए हैं कि जब मीडिया ने ऐसे नैरेटिव चलाए हैं जो किसी व्यक्ति को जनता की नज़रों में दोषी बनाते हैं, इससे पहले कि अदालत उसे दोषी पाए.

चीफ जस्टिस ऑफ़ इंडिया चंद्रचूड़ ने अपने भाषण के अंत में कहा कि पत्रकारों के लिए अपनी रिपोर्टिंग में सटीकता, निष्पक्षता और जिम्मेदारी के मानकों को बनाए रखना पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है.