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सुप्रीम कोर्ट ने पूछा, एक आदमी चला गया, तो पूरा ED बैठ जाएगा?

कोर्ट के मना करने के बावजूद केंद्र ने मिश्रा को दो-दो एक्सटेंशन दिए. अदालत पूछ रही है कि कोई और नहीं मिल रहा क्या?

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ED के निदेशक संजय कुमार मिश्रा केंद्र की पहली पसंद बने हुए हैं. (फोटो: ANI)

ED चीफ संजय मिश्रा (Sanjay Mishra) का कार्यकाल बढ़ाए जाने के खिलाफ दायर याचिका पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. जहां कार्यकाल के विस्तार को चुनौती देने वाली अलग-अलग याचिकाओं पर कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया. मामले में सुनवाई कर रही जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संजय करोल की बेंच ने इस मामले में सरकार से ये भी पूछा कि अगर एक आदमी विभाग में नहीं रहा, तो क्या पूरा डिपार्टमेंट ही काम करना बंद कर देगा?

मामला है क्या?

बात ये है कि संजय मिश्रा को नवंबर 2018 में दो साल के लिए ईडी निदेशक नियुक्त किया गया था. इसके बाद उन्हें सेवानिवृत्त होना था. लेकिन इससे पहले ही मोदी सरकार ने उन्हें एक साल का एक्सटेंशन दे दिया. इस फैसले को कॉमन कॉज़ नाम के गैर सरकारी संगठन, माने NGO ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. सितंबर 2021 में अदालत ने इस मामले में फैसला सुनाया. इसमें मिश्रा को मिले एक्सटेंशन को बरकरार रखा गया. लेकिन कोर्ट ने साफ-साफ कहा था कि मिश्रा को अब इस पद पर कोई एक्सटेंशन नहीं दिया जाएगा.

लेकिन नवंबर 2021 में केंद्र सरकार, सेंट्रल विजिलेंस कमीशन एक्ट में बदलाव के लिए एक अध्यादेश ले आई. और ये सिर्फ इसलिए किया गया था ताकि मिश्रा का कार्यकाल 2022 तक बढ़ाया जा सके. माने अदालत के एक्सटेंशन न देने के फैसले के बावजूद फिर एक्सटेंशन मिल गया. इतना ही नहीं, सरकार ने मिश्रा को तीसरा एक्सटेंशन भी दिया और उनका कार्यकाल नवंबर 2023 तक हो गया है. 

केंद्र के इसी फैसले को भी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती मिली. और अब सुनवाई चल रही है. केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को अवगत कराया कि नवंबर 2023 के बाद ED चीफ का कार्यकाल नहीं बढ़ाया जाएगा. तुषार मेहता ने कहा,

‘संजय मिश्रा किसी राज्य के पुलिस महानिदेशक नहीं हैं, बल्कि वो एक ऐसे अधिकारी हैं, जो संयुक्त राष्ट्र में भी देश का प्रतिनिधित्व करते हैं. वह मनी लॉन्ड्रिंग से जुड़ी कुछ महत्वपूर्ण जांच की निगरानी कर रहे हैं और निदेशक पद पर उनका बना रहना देशहित में जरूरी था. साथ ही FATF की समीक्षा हो रही है. ऐसे में कुछ दिशा-निर्देशों का पालन करना जरूरी है. हालांकि नवम्बर 2023 के बाद उन्हें सेवा विस्तार नहीं दिया जाएगा.’

इस पर कोर्ट की तरफ से सवाल किया गया,

‘जब साल 2021 में कोर्ट ने ईडी के कार्यकाल से जुड़े मामले में फैसला सुनाया था, उस समय FATF समीक्षा की बात कोर्ट को क्यों नहीं बताई गई? सरकार को इसके बारे में कब पता चला?’

जिसका जवाब देते हुए सॉलिसिटर जनरल ने कहा,

‘साल 2019 में ही सरकार को इसके बारे में पता था और कोर्ट को भी इसकी जानकारी दी गई थी. इसके अलावा, ईडी प्रमुख को एक्सटेंशन देने वाले अधिकारी को भी इसके बारे में पता था.’

सॉलिसिटर जनरल की दलील सुनने के बाद पीठ ने उनसे पूछा,

‘क्या ऐसी स्थिति है कि किसी एक आदमी के विभाग से हट जाने के बाद पूरा विभाग निष्क्रिय हो जाएगा?’

जिसका जवाब सॉलिसिटर जनरल ने ‘ना' में दिया. लेकिन साथ ही उन्होंने कहा कि नेतृत्व भी मायने रखता है. इससे पहले 3 मई को भी कोर्ट ने सरकार से पूछा था कि क्या मिश्रा को छोड़ कोई और प्रतिभाशाली अधिकारी नहीं है जो ED जैसी संस्था का नेतृत्व कर सके. 

याचिकाकर्ताओं ने क्या कहा?

एक याचिकाकर्ता के वकील गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि ED एक ऐसी संस्था है, जो देश और हर राज्य के सभी तरह के मामलों की जांच कर रही है. ऐसे में इसको स्वतंत्र होना चाहिए. वहीं, गैर सरकारी संगठन कॉमन कॉज की तरफ से पेश हुए वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि ED पिछले कुछ सालों में CBI की तुलना में अधिक शक्तिशाली हो गया है और विभाग में 95 प्रतिशत मामले विपक्षी नेताओं के खिलाफ चल रहे हैं. ऐसे में ED निदेशक के कार्यकाल का विस्तार एजेंसी की स्वतंत्रता से समझौता करने जैसा होगा. 

न्याय मित्र ने कहा था, सेवा विस्तार गलत है

अदालत ने इस मामले में वरिष्ठ वकील केवी विश्वनाथन को अमिकस क्यूरी नियुक्त किया था. इन्हें हिंदी में कहा जाता है न्याय मित्र. ये किसी खास मामले के न्यायिक पक्षों को समझने में अदालत की मदद करते हैं. फरवरी 2023 में विश्वनाथन ने कह दिया था कि मिश्रा को मिला तीसरा एक्सटेंशन और 2021 में आया केंद्र का अध्यादेश, जिसके तहत एक्सटेंशन दिए गए, दोनों गैरकानूनी हैं. 

इस मामले में सारी दलीलें अब पूरी हो चुकी हैं और कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रख लिया है.

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