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गुजरात में बच्चियों को बेचकर उनका रेप करने के घिनौने सिस्टम का पता चला

गुजरात में तस्करी के लिए लड़कियों को कैसे बनाया जा रहा है शिकार?

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पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार किया जो 10 साल से तस्करी के धंधे में था (सांकेतिक तस्वीर- आजतक/AFP)

कुछ दिन पहले गुजरात में 41 हजार से ज्यादा महिलाओं के गायब होने की खबर आई थी. बाद में पुलिस ने बताया कि इनमें से 39 हजार से ज्यादा महिलाओं को ढूंढ लिया गया. और वो वापस अपने परिवार के साथ रह रही हैं. अब राज्य में बच्चियों की तस्करी का पता चला है. पिछले महीने गुजरात पुलिस ने 48 घंटे के भीतर एक ऐसी बच्ची का रेस्क्यू किया, जिसे उसके परिवार की सहमति से बाजार ले जाया गया था. लेकिन बाद में पता चला कि वो तस्करी का शिकार हो गई और उसके साथ बलात्कार किया गया. इस केस के साथ पुलिस को कई और लड़कियों की तस्करी के बारे में पता चला.

अंग्रेजी अखबार द हिंदू ने इस घटना पर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित की है. रिपोर्ट के मुताबिक, 11 मई को अशोक और रेणुका पटेल 13 साल की हेमा सलात (बदला हुआ नाम) के घर पहुंचते हैं. दोनों हेमा के दूर के रिश्तेदार के जरिये उसके परिवार को जानते थे. हेमा ने उन लोगों को बोलते हुए सुना था, 

"आपकी बेटी को कुछ कपड़े और एक पायल दिलवा देते हैं, वो हमारी बेटी की तरह है."

काफी मनाने के बाद हेमा के मां-पिता मान गए और पटेल के साथ उन्हें जाने दिया. अगले दिन अशोक पटेल हेमा को लेकर एक कार में लेकर पड़ोस के गांव गए. वहां, उनकी मुलाकात पारूल से हुई. अशोक ने दावा किया कि वो उसकी बहन है. उन्होंने हेमा के लिए कपड़े खरीदे. फिर फोन पर पटेल ने हेमा के पिता को बताया कि सब ठीक है, वो कुछ देर और वहां बिताना चाहते हैं, वे जल्द लौटेंगे.

बाद में हेमा के पिता रमेश सलात (बदला हुआ नाम) ने जब पटेल को दोबारा कॉल किया तो फोन रीचेबल नहीं था. रिपोर्ट के मुताबिक, पटेल और पारूल हेमा को 100 किलोमीटर दूर मेहसाणा के एक गांव लेकर जा चुके थे. वहां एक कमरे में हेमा के साथ अगले 30 घंटे लगातार मारपीट की गई और उसका रेप किया गया. 13 मई को हेमा के परिवार वालों ने कनभा पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज करवाई. FIR दर्ज करने के बाद कार ड्राइवर और पारूल को ट्रेस किया गया. इसके बाद पुलिस उस जगह तक पहुंची, जहां हेमा को रखा गया था. उसको रेस्क्यू कर पुलिस ने उसके परिवार के हवाले किया. जांच में पता चला कि हेमा को बेचे जाने की योजना थी.

पिछड़े समुदाय की लड़कियां बन रहीं शिकार

द हिंदू ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि तस्करी का शिकार होने वाली ज्यादातर लड़कियां अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST) और अन्य पिछड़े वर्ग (OBC) से हैं. इनमें से ज्यादातर गरीबी का शिकार हैं, अशिक्षित हैं और उन्हें अपने अधिकारों के बारे में पता नहीं है. टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेस के प्रोफेसर विजय राघवन ने अखबार को बताया कि इन्हीं कारणों की वजह से आदिवासी और दलित लड़कियां आसानी से तस्करी का शिकार हो जाती हैं. उन्होंने बताया कि अपराधी तस्करी के कामों के लिए अपना एजेंट भी इन्हीं समुदायों से चुनते हैं ताकि वे खुद बच जाएं.

उदाहरण के लिए, हेमा के मामले में गिरफ्तार पारूल एक सिंगल मां है और घर को संभालने वाली अकेली महिला है. उसे कमीशन देने के वादे पर हायर किया गया था. उसे लड़कियों की तस्करी में मदद के लिए पैसे मिलते हैं. इसके अलावा ‘पटेल समुदाय’ के कई पुरुषों से शादी करके भी पैसे बना चुकी है. हर शादी के बाद वे गहने और पैसे लेकर भाग जाती थी. गुजरात पुलिस के एक सीनियर अधिकारी ने द हिंदू को बताया कि जांच के दौरान उसके खिलाफ ऐसे कई मामलों का पता चला. इन मामलों में भी अशोक पटेल मास्टरमाइंड था और वो पारूल के सिंगल होने का फायदा उठाता था.

अशोक पटेल को गिरफ्तार करने के बाद पुलिस ने उसके फोन को खंगाला. बताया कि जांच में पता चला कि अशोक, हेमा को किसी चहर सिंह नाम के बिचौलिये को बेचने वाला था. खनभा थाने के सब-इंस्पेक्टर जयेश कलोतरा ने बताया कि मामले में गिरफ्तार आरोपी पीड़ित लड़कियों का नाम बदलते थे और उन्हें 'पटेल' सरनेम देते थे. ताकि पटेल समुदाय के लोग लड़कियों को आसानी से खरीद लें.

अशोक पटेल के खिलाफ 2017 में अहमदाबाद के वेजलपुर थाने में केस दर्ज हुआ था. उनके खिलाफ किडनैपिंग, यौन उत्पीड़न की धाराएं और पॉक्सो एक्ट की धाराएं लगाई गई थीं. जांच के दौरान पुलिस ने बताया कि अशोक पिछले एक दशक से इस तस्करी के धंधे में लगा हुआ है.

इस तरह के मामलों में परिवार की सहमति या बिना सहमति के बिना भी लड़कियों को खरीदा जाता है. परिवार से दूसरी जगहों पर ले जाया जाता है और उनका यौन उत्पीड़न होता है. कई मामलों में उनसे बंधुआ मजदूरी करवाई जाती है. कुछेक केस में बच्चियों का अपहरण कर जबरन रखा जाता है और शादी करवा दी जाती है.

गुजरात पुलिस ने पिछले महीने एक ट्वीट में बताया था, 

"NCRB के डेटा सोर्स का हवाला देते हुए मीडिया रिपोर्ट हैं कि गुजरात में 2016 से लेकर 2020 के बीच 41,621 महिलाएं गायब हो गईं. लापता महिलाओं में से 39,497 यानी 94.90% महिलाओं को गुजरात पुलिस ने ढूंढ लिया है. वो अपने परिवारों के साथ हैं. ये जानकारी क्राइम इन इंडिया 2020 वाली रिपोर्ट में भी है."

पुलिस ने ये भी बताया था कि जांच के मुताबिक, महिलाएं पारिवारिक विवाद, 'भाग जाने', परीक्षा में फेल होने जैसे कारणों के चलते लापता होती हैं. हालांकि, गुमशुदगी के मामलों की जांच में यौन शोषण के लिए तस्करी, अंगों की तस्करी जैसे मामलों का पता नहीं चला है.

एक और लड़की को रेस्क्यू किया गया

हेमा के मामले में कार्रवाई के दौरान पुलिस ने एक और 14 साल की लड़की का रेस्क्यू किया. प्रिया पटनी (बदला हुआ नाम) का 11 महीने पहले अपहरण हुआ था. उसे 3 लाख रुपये में बेचा गया था. प्रिया के मामले में शाहीबाग पुलिस स्टेशन में 11 महीने पहले FIR दर्ज हुई थी. पुलिस ने बताया कि प्रिया की दो बार शादी करवाई गई और लड़के वाले उसे बंधुआ नौकर की तरह रख रहे थे.

प्रिया एक दिहाड़ी मजदूर की बेटी है. उसने पुलिस को बताया कि वो घर के नजदीक मछली बाजार गई थी. वहीं उसके एक पड़ोसी ने उसे बताया था कि किसी जगह मुफ्त कपड़े और पायल बांटे जा रहे हैं. जब वो वहां पहुंची तो अशोक की पत्नी रेणुका ने उसका चेहरा ढक दिया और एक रिक्शा में बैठा कर ले गई. कई महीनों तक अशोक और उसके बड़े बेटे ने उसका रेप किया. बाद में उसे एक 40 साल के व्यक्ति के हाथों 3 लाख में बेच दिया गया. वहां से उसे एक दूसरे पटेल के पास 5 लाख रुपये में बेच दिया गया.

प्रिया के पिता ने द हिंदू को बताया कि उन्होंने पुलिस को और स्थानीय बीजेपी नेताओं को कई बार लेटर दिया, लेकिन कुछ नहीं हुआ था. कोई जांच नहीं हुई. पुलिस वाले बोल देते कि आपकी बेटी भाग गई है.

हेमा को पुलिस ने 48 घंटे में रेस्क्यू कर लिया. घटना से पहले उसकी सगाई हो चुकी थी. लेकिन कई मामले ऐसे हैं जिनमें सही तरीके से जांच नहीं होती. एक सीनियर पुलिस अधिकारी ने अखबार को बताया कि इस तरह के अधिकतर मामलों में ज्यादा गंभीरता से ध्यान नहीं दिया जाता. रेस्क्यू की गई लड़कियों को किसी तरीके का मेंटल हेल्थ सपोर्ट नहीं मिलता. राज्य सरकार पीड़िता को सिर्फ 2 लाख रुपये का मुआवजा देती है.

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