अपनी यूपीएससी टॉपर थीं न, इरा सिंघल. टॉप करने के बाद खूब खबरों में रहीं. अब इरा ने नौकरी शुरू कर दी है. इरा दिल्ली सरकार में असिस्टेंट कलेक्टर बन गई हैं. इरा की नौकरी जॉइन करने की खबर उनके फेसबुक अकाउंट से पता चली. होता है न वो, Works At. उसी में अपना प्रोफाइल अपडेट कर लिया है IAS इरा ने.
IAS इरा सिंघल, जिसने 2015 में चौथी बार में जरनल कैटेगिरी में UPSC टॉप किया. यूं तो इरा की कामयाबी उनकी खुद की मेहनत की वजह से है. जैसा कि सबके साथ होता है. पर एक बात यहां बताना जरूरी है कि इरा को स्कोलियोसिस बीमारी है, जिसकी वजह से उन्हें तमाम शारीरिक दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.
मेरठ में जन्मी इरा का करियर पढ़ाई के लिहाज से चमकदार रहा है. वो मेरठ के सोफिया गर्ल्स स्कूल से लेकर दिल्ली के लोरेटो कॉन्वेंट स्कूल में अव्वल रहीं. वह दिल्ली में धौलाकुआं के आर्मी पब्लिक स्कूल में भी पढ़ीं. नेताजी सुभाष इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी से कंप्यूटर इंजीनियरिंग की और यहां पर पहले नंबर पर बनी रहीं. फैकल्टी ऑफ मैनेजमेंट स्टडीज से एमबीए किया.
बाजुएं ठीक से नहीं करती हैं काम
इरा स्कोलियोसिस से पीड़ित हैं. जिसकी वजह से रीढ़ की हड्डी प्रभावित है. इरा के बाजू भी ढंग से काम नहीं करती हैं. इरा के पेरेंट्स राजेंद्र सिंघल और अनीता सिंघल ने कभी भी उसकी कामयाबी को लेकर उम्मीद नहीं छोड़ी, कभी भी उसे इस बात का एहसास नहीं होने दिया, जिससे उसे कोई कमजोरी महसूस हो. इरा स्पेनिश लैंग्वेज भी जानती हैं. वह कैडबरी डेयरी मिल्क और कोका कोला कंपनी में भी जॉब कर चुकी हैं.
नहीं मिली थी नौकरी
इरा के करियर में ये बात बड़ी ही हैरानी वाली है कि वो 2010 में भारतीय राजस्व सेवा (IRS) में सलेक्ट हो गईं थीं. लेकिन उन्हें नियुक्ति नहीं दी गई. इसके लिए उन्हें 2014 तक इंतजार करना पड़ा. शारीरिक रूप से उन्हें विकलांग बताकर डीओपीटी ने नियुक्ति में अड़ंगा लगा दिया था. इसके बाद रेवेन्यू डिपार्टमेंट ने ये आपत्ति दर्ज करा दी कि वो हाथ से वजन नहीं उठा सकतीं. नियुक्ति न मिलने से वो परेशान नहीं हुईं. हिम्मत का दामन नहीं छोड़ा. उन्होंने कई एग्जाम दिए और साबित किया कि वो भले ही शारीरिक तौर पर कमजोर हो, लेकिन मानसिक रूप से सामान्य लोगों से कहीं ज्यादा हैं. उनके पिता राजेंद्र सिंघल ने नार्थ ब्लॉक से लेकर कैट में मुकदमा करने तक काफी संघर्ष किया. कैट के आदेश पर उन्हें आईआरएस की ट्रेनिंग के लिए भेजा गया.
लोगों की मदद करना ही मकसद
इरा ने जब UPSC में टॉप किया तो उन्होंने इंटरव्यू में बताया कि कभी भी उन्हें कुछ साबित नहीं करना पड़ा. वो मेडिकल फील्ड में जाना चाहती थीं. लेकिन पिता ने उन्हें ये फील्ड नहीं चुनने दी. पिता को लगता था कि वो शारीरिक रूप से स्वस्थ नहीं, इसलिए सर्जरी करने में दिक्कत होगी. इसके बाद इंजीनियरिंग की और बाद में अपनी ही मर्जी से सिविल सर्विस को चुना. उनका मकसद लोगों की मदद करना है. जब इरा नौ साल की थीं तो 1991 में उत्तर काशी में भूकंप आया था. तब उन्होंने अपने सारे पैसे भूकंप पीड़ितों को दे दिए थे.
'मैं छोटी सी लड़की'
इरा एक बार मसूरी से दिल्ली आ रही थीं. रास्ते में उन्हें सड़क पर एक एक्सीडेंट दिखता है. इरा पीड़ितों की मदद करने को रुकती हैं. वो लोगों से मदद मांगती हैं, लेकिन मदद नहीं मिलती. तब उन्होंने फेसबुक पर एक भावुक पोस्ट लिखी थी. इरा ने लिखा,
'मुझे उम्मीद थी कि मैं कम से कम एक ऐसी कार जरूर ढूंढ़ लूंगी, जो इन घायलों में से एक को ले जाए. हमारे पास से गुजरने के दौरान सभी कारों की रफ्तार धीमी हो रही थी और लोग इस भीषण दृश्य को देख रहे थे. मैंने कम से कम 20 कारों के दरवाजे खटखटाए और आती-जाती कारों को पागलों की तरह हाथ दिए पर कोई नहीं रुका. एक भी नहीं. यह हमारी मानवता है. आखिर में हमने एक पुलिस वैन बुलाई और उनमें से एक को भेजा. दूसरे की मौके पर ही मौत हो गई. इस घटना ने मुझे दुखी कर दिया कि उनमें से एक भी इंसान ने यह नहीं सोचा कि वे आसानी से यह कर सकते थे. किसी के अंदर भी इतनी इंसानियत नहीं थी कि वह रुक कर मदद करता. क्या यही देश हमने अपने लिए बनाया है? सभी ड्राइवर जानते थे कि मैं एक छोटी सी लड़की अंधेरी रात में, व्यस्त सड़क पर ऐसे खतरनाक हादसे के बाद उनसे मदद मांग रही थी और उन सभी ने मदद करने से मना कर दिया. यह हमारी दुनिया है. यह हम हैं.'