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पीएम मोदी ने चीते छोड़े तो कांग्रेस बोली- इतने तमाशे की जरूरत नहीं थी

पीएम ने कहा था पिछली सरकारों ने चीतों को बसाने के लिए कोई प्रयास नहीं किया. इस पर जयराम रमेश ने अपना काम गिनाया.

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चीते की फोटोग्राफी के दौरान पीएम मोदी (बाएं) और कांग्रेस नेता जयराम रमेश (फोटो- Narendra Modi/रॉयटर्स)

पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस नेता जयराम रमेश (Jairam Ramesh) ने पीएम मोदी द्वारा कूनो नेशनल पार्क में चीतों को छोड़े जाने के इवेंट को 'तमाशा' बता दिया. उन्होंने कहा कि ये राष्ट्रीय मुद्दों को दबाने और भारत जोड़ो यात्रा से ध्यान भटकाने की कोशिश है. 17 सितंबर को नामीबिया से लाए गए 8 चीतों को मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में छोड़ा गया. इसके बाद प्रधानमंत्री मोदी ने चीतों को 70 सालों से नहीं बसाने के लिए पिछली सरकारों पर निशाना साधा. इसी पर कांग्रेस सांसद ने पलटकर जवाब दिया है.

जयराम रमेश ने कांग्रेस सरकार के प्रयास को गिनाया

जयराम रमेश ने साल 2010 की अपनी एक तस्वीर ट्विटर पर शेयर की. ये तस्वीर उनके अफ्रीका दौरे की है. तब वे केंद्रीय पर्यावरण मंत्री थी. जयराम रमेश ने तस्वीर के साथ ट्विटर पर लिखा, 

"प्रधानमंत्री, सरकारों की निरंतरता (पिछली सरकार के काम) को शायद ही कभी स्वीकार करते हैं. चीता प्रोजेक्ट के लिए 25 अप्रैल 2010 को केपटाउन की मेरी यात्रा का जिक्र तक नहीं होना इसका ताजा उदाहरण है. आज पीएम ने बेवजह का तमाशा खड़ा किया. ये राष्ट्रीय मुद्दों को दबाने और भारत जोड़ो यात्रा से ध्यान भटकाने का प्रयास है."

एक और ट्वीट में जयराम रमेश ने कहा, 

"जब साल 2009-11 के दौरान बाघों को पहली बार पन्ना और सरिस्का में स्थानांतरित किया गया तब कई लोग आशंका जता रहे थे. वे गलत साबित हुए. चीता प्रोजेक्ट पर भी उसी तरह की भविष्यवाणियां की जा रही हैं. इसमें शामिल प्रोफेशनल्स बहुत अच्छे हैं. मैं इस प्रोजेक्ट के लिए शुभकामनाएं देता हूं!"

पीएम मोदी ने क्या कहा था?

कूनो नेशनल पार्क में चीतों को छोड़े जाने के बाद पीएम मोदी ने कहा था कि ये दुर्भाग्य रहा कि हमने 1952 में चीतों को देश से विलुप्त तो घोषित कर दिया, लेकिन उनके पुनर्वास के लिए दशकों तक कोई सार्थक प्रयास नहीं हुआ. प्रधानमंत्री ने कहा, 

"आज आजादी के अमृतकाल में अब देश नई ऊर्जा के साथ चीतों के पुनर्वास के लिए जुट गया है. हमारे मित्र देश नामीबिया और वहां की सरकार का धन्यवाद करता हूं जिनके सहयोग से दशकों बाद चीते भारत की धरती पर वापस लौटे हैं."

PM मोदी ने ये भी कहा कि कूनो नेशनल पार्क को ये चीते अपना घर बना पाएं, इसके लिए हमें इन चीतों को भी कुछ महीने का समय देना होगा. उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय गाइडलाइन्स पर चलते हुए भारत इन चीतों को बसाने की पूरी कोशिश कर रहा है.

चीतों को बसाने की कवायद

दरअसल, साल 1952 में भारत सरकार ने आधिकारिक रूप से चीतों को विलुप्त मान लिया था. यानी देश में एक भी चीता नहीं बचा था. चीतों को दोबारा देश में बसाने के लिए पिछली सरकारों ने भी प्रयास किए. हालांकि ये प्रयास अंत तक नहीं पहुंचे. 1970 के दशक में भारत ने ईरान से चीतों को लाने की कोशिश की थी, लेकिन ये सफल नहीं हो पाई थी. साल 2009 में यूपीए सरकार ने पहल की. अफ्रीकन चीतों को लाने के प्रस्ताव को सरकार ने मंजूरी दी.

अप्रैल 2010 में तत्कालीन पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश अफ्रीका भी गए. इसके लिए 2010-12 के बीच देश में 10 जगहों का सर्वेक्षण भी किया गया था. उस वक्त शुरुआती तौर पर 18 चीतों को तीन जगहों पर बसाने की योजना थी. हालांकि 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने चीतों के भारत लाने पर रोक लगा दी थी. मामले पर कोर्ट में सालों तक विवाद जारी रहा. फिर साल 2020 में कोर्ट ने अनुमति दी. इसके बाद नए सिरे से चीतों को लाने की कोशिशें जोर पकड़ीं. पिछले महीन केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय ने बताया था कि चीतों को लाने के लिए दक्षिण अफ्रीका के साथ भी समझौते की तैयारी चल रही है. अगर ये समझौता हुआ देश में चीतों की संख्या बढ़कर 12-14 हो सकती है.

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