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90s Kids को कार्टून नेटवर्क के ये टीवी सीरियल अब भी याद होंगे!

साल 2000 के आस-पास ऐसे तय होता था टीवी पर क्या देखना है.

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टॉम एंड जेरी और अन्य सीरियल्स का शेड्यूल (फोटो सोर्स- Twitter Priyanka Thirumurthy)

कोई एक टीवी शो, कोई एक पुराना गाना, कोई एक पुरानी खुशबू. बचपन की याद दिलाने के लिए इतना ही काफी होता है. जैसे मेरे लिए सर्दी  की सुबह गुड़ वाली चाय और पारले जी.नब्बे के दशक की पैदाइश वालो, तुम्हें अपने बचपन का क्या याद है?

मुझे तो अपनी वो दुछत्ती याद है, जहां चढ़के पतंग उड़ाना मेरा दंभ भी था और पढ़ाकू पूत बने रहने की मेरी तरकीब भी. दंभ इसलिए क्योंकि मुझे आस-पास के हम-उम्र पतंगबाजों से ज्यादा ऊंचाई मयस्सर थी. और तरकीब इसलिए कि शाम को ऑफिस से घर आ रहे पिताजी की नजर मुझ पर पड़े इससे पहले मैं नीचे उतर आता. क्योंकि इतनी ऊंचाई से मैं उन्हें पहले देख सकता था. हां, एक और चीज बखूबी याद है-अखबार का वो पन्ना, जहां मेरे पसंदीदा टीवी चैनल्स का पूरे दिन का शेड्यूल छपा होता था.

ऐसे ही किसी पुराने अखबार के एक पन्ने की कटिंग ट्विटर पर पोस्ट करके पत्रकार प्रियंका तिरुमूर्ती ने लाखों दिलों के तार झनझना दिए हैं. उन्होंने कैप्शन में लिखा है,

'साल 2001 में एक पर्फेक्ट दिन कुछ इस तरह दिखता था. #Nostalgia'

नॉस्टैल्जिक होना माने उदासी के ऐसे गुबार से भरा होना, जिसमें FOMO (Fear of Missing Out) है. यानी वक़्त और उम्र के सफ़र में कुछ पीछे छूट जाने की कसक. और जिसमें उस वक़्त की यादों से रिसती हुई एक भीनी सी खुशी भी है.

प्रियंका ने जो तस्वीर डाली है, उसमें कई अंग्रेजी टीवी चैनल्स के प्रोग्राम्स की लिस्ट छपी है. जरा कार्टून नेटवर्क वाली लिस्ट पर नजर डालिए. पहला है The New Scooby Doo Movies. इसका वक़्त लिखा है सुबह के 5 बजे. उन सालों में इस वक़्त तो हम सो रहे होते थे. लेकिन फिर नजर जाती है लिस्ट में थोड़ा नीचे. दोपहर 3 बजे, Tom and Jerry Kids. उस वक़्त और बाद के सालों में भी ये शो खूब देखा जाता था. हमने भी खूब देखा.

प्रियंका के ट्वीट पर 'टॉम एंड जेरी' का एक वीडियो शेयर करते हुए राघवन NG लिखते हैं,

'हर वक़्त की सबसे अच्छी कार्टून सीरीज़ में से एक. थीम सॉन्ग, वीडियोग्राफी इतनी एडवांस्ड थी कि आप बिना बोर हुए इसे बार-बार सुन सकते हैं.'

क्या ऐसा वाकई था? यूं हम हिंदी पट्टी वाले 'दूरदर्शन किड्स' रहे हैं. लेकिन कार्टून नेटवर्क के कुछ शोज पर वाकई काफ़ी वक़्त बिताया जा सकता था. उस उम्र की मांग थी. बचपन मरना नहीं चाहिए था. इसलिए शक्तिमान था. प्रेम के गीत सुनने के लिए फिर रंगोली भी आया. लेकिन 21वीं सदी में हिंदुस्तान को सिनेमैटोग्राफी, एनीमेशन और VFX के कुछ कमाल सीखने-करने थे. इसलिए 90 वाली पीढ़ी ने अमेरिकी तकनीक वाला 'टॉम एंड जेरी' भी देखा.

एक और शो था कार्टून नेटवर्क पर -The Popeye Show. शाम 6 बजे आता था. मुझे याद है. 5 से 5:30 तक मैं अपोनेंट टीम की उन सभी गेंदों को वाइड करार देता था, जिन पर बीट हुआ होता. लेकिन 6 बजे, भले मेरी टीम की बैटिंग का नंबर होता. मैं छोड़-छाड़ के टीवी स्क्रीन के सामने होता था. द पपॉय शो के लिए.

प्रियंका के ट्वीट पर एक यूजर बताते हैं,

'साल 2000 से पहले कार्टून नेटवर्क पर रात 8:30 बजे शुरू होने वाला 'द पपॉय शो' आख़िरी प्रोग्राम होता था. स्क्रीन पर एक TNT बम फटने के साथ ही 9 बजे रात के कार्टून्स ख़त्म हो जाते थे. उसके बाद ब्लैक एंड वॉइट स्क्रीन पर इंग्लिश गाने और मूवीज चला करती थीं.'

एक और यूजर मधुमिता इसी बात को आगे बढ़ाते हुए कहती हैं,

हां मुझे याद है, मैं इंतजार करती थी. ब्लैक एंड वॉइट मूवी शुरू होती थी, ये पुख्ता करने के लिए कि बम विस्फोट गलती से नहीं हुआ है. और अब वक़्त टीवी बंद करने का है.'

एक और शो था. शाम 4 बजे का Power Zone: Swat Kids. ट्विटर यूजर विनोद इस शो के फैन रहे होंगे. कह रहे हैं,

'मुझे याद है, मैं अपनी नीले रंग की साइकिल दौड़ाता हुआ घर पहुंचता था. यहां तक कि मैं स्कूल भी जल्दी जाता था. सिर्फ इसलिए कि मुझे साइकिल खड़ी करने के लिए पार्किंग में ऐसी जगह मिल जाए जहां से वापसी में बाहर निकलना आसान हो.'

चैनल ढेर सारे होते थे. और उन पर कई शोज. सबकी अपनी पसंद थी. लेकिन एक बात सबके साथ कॉमन थी. शोज के इंतजार की शिद्दत. कार्टून नेटवर्क पर सिर्फ टॉम एंड जेरी या किसी दूसरे शो की बात नहीं है. सिर्फ अंग्रेजी चैनल्स की भी बात नहीं है. दूरदर्शन पर चित्रहार, रंगोली, कैप्टन व्योम और युग जैसे कार्यक्रम देखने वालों को भी मैंने एपिसोड शुरू होने के इंतजार में बहुत बेताब देखा है. और एपिसोड ख़त्म होने पर उतना ही उदास या खुश, भावुक या कौतुक से भरा हुआ. लेकिन नॉस्टैल्जिक होने में सिर्फ एक दोष है. आप बीते वक़्त पर आज उदास हो सकते हैं. आपको आज अपना खज़ाना कुछ खाली खाली सा लग सकता है. लेकिन आज इस कमी का एहसास, भूतकाल की समृद्धि का द्योतक भी है. तब हम ज्यादा समृद्ध थे. हमारे पास अपने लिए मनपसंद चीजें चुनने और उन्हें जीने का समय था. अख़बारों में छपने वाले टीवी शोज के शेड्यूल से भी. और जीवन की विधाओं से भी. 

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