The Lallantop
लल्लनटॉप का चैनलJOINकरें

हुबली ईदगाह: 'मोहरा नहीं बनना', 1994 में मारे गए बेटे के पिता ने VHP के प्रोग्राम से बनाई दूरी

उमा भारती के नेतृत्व में भीड़ ने 1994 में हुबली ईदगाह मैदान में तिरंगा फहराने की कोशिश की थी. गोलीबारी में गई थी 6 की जान. अब विश्व हिंदू परिषद ने मारे गए लोगों के परिजनों को सम्मानित करने का प्रोग्राम रखा था.

post-main-image
बीते 29 अगस्त को हुबली के ईदगाह मैदान में पहरा देती पुलिस. (फोटो: पीटीआई)

कर्नाटक (Karnataka) के हालिया हुबली ईदगाह (Hubli Idgah) विवाद के चलते साल 1994 की यादें ताजा हो गई हैं. इसे लेकर हिंदुत्ववादी संगठन विश्व हिंदू परिषद (VHP) ने एक कार्यक्रम आयोजित किया था, लेकिन एक परिवार ने इसमें शामिल होने से इनकार कर दिया. 

दरअसल, बीजेपी नेता उमा भारती की अगुवाई में प्रदर्शनकारियों की एक भीड़ ने हुबली-धारवाड़ के ईदगाह मैदान में 15 अगस्त 1994 को जबरदस्ती तिरंगा फहराने की कोशिश की थी. प्रशासन ने पहले ही इलाके में कर्फ्यू लगा रखा था, लेकिन भीड़ ने इसका उल्लंघन किया और आगे बढ़ने लगी. तभी पुलिस ने पूरे समूह को तितर-बितर करने के लिए फायरिंग की थी, जिसमें छह लोगों की मौत हो गई थी.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, VHP ने हालिया विवाद के मद्देनजर घटना के पीड़ितों के परिजनों को सम्मानित करने के लिए एक कार्यक्रम का आयोजन किया था, लेकिन इसमें एक के पिता ने शामिल होने से मना कर दिया. उन्होंने कहा कि वे राजनीति का ‘मोहरा' नहीं बनेंगे.

कर्नाटक हाईकोर्ट के आदेश के बाद रानी चेन्नम्मा मैदान गजानन उत्सव महामंडली ने हुबली के ईदगाह ग्राउंड में गणेश उत्सव मनाने के लिए एक मूर्ति स्थापित की थी. इस मंडली में VHP भी शामिल है. संगठन ने इस मौके पर 1994 के पीड़ितों के परिवार को सम्मानित करने का आयोजन भी रखा था. लेकिन वे सिर्फ एक परिवार को इस कार्यक्रम ला सके और उन्हें सम्मानित किया.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, VHP के लोग बालाचंदर बराड़ के पास भी गए थे, लेकिन उन्होंने इसमें शामिल होने से साफ इनकार कर दिया. उस घटना में बराड़ के 12 साल के बेटे मंजूनाथ की भी मौत हो गई थी.

उन्होंने अखबार को बताया, 

‘मंजूनाथ बाहर खेल रहा था और गोलियों की आवाज सुनकर वो अचानक घर में घुस गया. लेकिन बाद में उसने देखा कि उसने अपना चप्पल तो बाहर ही छोड़ दिया है. वो अपना चप्पल लेने बाहर गया और फिर कभी वापस नहीं आ सका.’

‘हम मोहरा नहीं बनना चाहते’

इन घटनाओं को लेकर गहरी नाराजगी जाहिर करते हुए बराड़ ने आगे कहा, 

'तिरंगा फहराना हमारा अधिकार है और ऐसा करने से रोकना अन्याय है. हम हर दिन इस अन्याय के खिलाफ लड़ रहे हैं. लेकिन उस 15 अगस्त को जो भी लोग मारे गए थे, वे निर्दोष थे, उनका किसी संगठन से कोई मतलब नहीं था. लेकिन इसके केंद्र में राजनीति आ गई और आज इतने सालों बाद हमें सम्मानित करने के लिए बुलाया जा रहा है. हम किसी की राजनीति का मोहरा नहीं बनना चाहते हैं.'

VHP के एक नेता कृष्णमूर्ति ने दावा किया कि वे कोई राजनीति नहीं करना चाह रहे थे. उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस से कहा, 

'अपने वीरों की मृत्यु को याद करने में कुछ भी राजनीतिक नहीं है. राष्ट्रीय ध्वज के लिए बलिदान देने वाले कार्यकर्ताओं को याद करना महत्वपूर्ण है. इसके अलावा, हमने सम्मान समारोह की योजना तभी बनाई, जब उच्च न्यायालय ने हमें गणेश की मूर्ति स्थापित करने की अनुमति दी थी.'

बराड़ के अलावा वीएचपी के लोग गोपाल राव रानाडे को ढूंढ पाए थे, जिनके छोटे भाई प्रसन्ना रानाडे की गोलीबारी में मौत हुई थी. रिपोर्ट के मुताबिक, वीएचपी ने रानाडे को कार्यक्रम में सम्मानित किया. बता दें कि साल 1992 में बाबरी मस्जिद को गिराने के बाद हुबली में हिंसा हुई थी. उस समय कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार थी और एम. वीरप्पा मोईली मुख्यमंत्री थे.

वीडियो: कर्नाटक हाईकोर्ट ने WIFE के फुल फॉर्म में ये क्या बता दिया?