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मोदी सरकार का रिपोर्ट कार्ड 2022 - अर्थव्यवस्था

इस साल अर्थव्यवस्था पर मोदी सरकार का रिपोर्ट कार्ड कैसा रहा

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सांकेतिक फोटो (साभार: आजतक)

दी लल्लनटॉप  की खास सीरीज़ रिपोर्ट कार्ड 2022. इसमें हम साल 2022 के लिए मोदी सरकार का रिपोर्ट कार्ड पेश कर रहे हैं. आपने अब तक रक्षा और विदेश नीति का रिपोर्ट कार्ड देख लिया. आज बारी है रोकड़े की. कि देश की जेब में कितना रुपया आया और कितना रुपया गया. आपकी जेब में कितना रुपया आया और गया. और इस खेल में मोदी सरकार ने आपकी कितनी मदद की या नहीं की. 

1. GDP
अर्थव्यवस्था सुनते ही सबसे पहला शब्द जो दिमाग में आता है, वो है GDP. ग्रॉस डोमेस्टिक प्रॉडक्ट. हिंदी में - सकल घरेलू उत्पाद. माने भारत की फैक्ट्रियों, दफ्तरों और खेतों में जितना भी उत्पादन होता है - चाहे वो सीमेंट हो या फिर सॉफ्टवेयर - उसकी कुल कीमत. 5 ट्रिलियन डॉलर इकॉनमी का जो लक्ष्य था, उसका मतलब यही था कि भारत का कुल उत्पादन, माने GDP पांच ट्रिलियन डॉलर हो जाएगा. माने करीब 414 लाख करोड़ रुपए. लाख और करोड़ में बात समझने वाले देश की सरकार ''ट्रिलियन डॉलर'' में क्यों बात करने लगी थी, वो तो वही जाने. हमारा काम है ये बताना कि लक्ष्य की प्राप्ति में सरकार का प्रदर्शन कैसा रहा. वैसे इतनी बात यहीं जान लीजिए कि 5 ट्रिलियन वाले लक्ष्य को अब दो सालों के लिए आगे बढ़ा दिया गया है.

अब आते हैं गंभीर विषयों पर. सारे किंतु-परंतु से परे एक तथ्य अपनी जगह है. कि भारत की जीडीपी का आकार बढ़ा तो है. अक्टूबर 2022 में प्रधानमंत्री मोदी ने रोज़गार मेले के दौरान कहा कि बीते 8 सालों में भारत की GDP दुनिया में 10 वें स्थान से 5 वें स्थान पर आ गई है. इस साल हमने उस ब्रिटेन को पीछे छोड़ा, जो हम पर 200 साल राज करके गया है. प्रधानमंत्री ने आगे कहा कि भारत अब भी महंगाई और बेरोज़गारी जैसी चुनौतियों से जूझ रहा है. क्योंकि 100 सालों में आई सबसे बड़ी आपदा का असर 100 दिनों में गायब नहीं हो जाएगा.

फिलहाल भारत की जीडीपी का आकार है 3.12 ट्रिलियन डॉलर. माने 232 लाख करोड़ रुपए. हम यहां तक कैसे पहुंचे? चलिए समझते हैं. जैसा कि प्रधानमंत्री ने कहा, 2022 को कोरोना महामारी से उपजा आर्थिक संकट विरासत में मिला था. और उसके बाद यूक्रेन पर रूसी आक्रमण ने दुनिया भर की सप्लाई चेन की सांस रोक दी. जिसका असर भारत पर भी पड़ा. हमने विदेश नीति वाले रिपोर्ट कार्ड में इस संकट के राजनयिक पहलुओं की बात की थी.  
इस साल के लिए GDP ग्रोथ रेट के आंकड़ों पर गौर कीजिए, ताकि आगे की बातें उचित संदर्भ में समझी जा सकें -
> जनवरी 2022-मार्च 2022 - 4.1 %
> अप्रैल 2022-जून 2022 - 13.5%
> जुलाई 2022-सितंबर 2022 - 6.3%
> अक्टूबर 2022-दिसंबर 2022 - 4.4%*

अर्थव्यवस्था की विकास दर के लिए बहुत सारे आंकड़ों को अलट-पलटकर देखना पड़ता है, जिसमें काफी वक्त लगता है. प्रायः एक तिमाही के आंकड़े सामने आने में ढाई महीने तक लग जाते हैं. इसीलिए अक्टूबर-दिसंबर 2022 में GDP ग्रोथ रेट के जो आंकड़े हमने आपको बताए, वो भारतीय रिज़र्व बैंक के अनुमान के मुताबिक हैं और इनमें सुधार संभव है. ये आंकड़े हमारे सामने एक ऐसा ग्राफ पैदा करते हैं, जो पहले नीचे से शुरू होकर ऊपर जाता है. फिर नीचे लुढ़कने लगता है. अब यहां एक बात समझने वाली है. कि ये सारे आंकड़े ईयर ऑन ईयर माने YOY आंकड़े हैं. मतलब जब हम कह रहे हैं कि जनवरी-मार्च 2022 में GDP 4.1 फीसदी की रफ्तार से बढ़ रही थी, तो यहां तुलना जनवरी-मार्च 2021 से की गई थी.

इस संदर्भ में आंकड़ों का मतलब कुछ बदलता है. अप्रैल-जून 2021 में अर्थव्यवस्था को कोरोना की दूसरी लहर ने भारी नुकसान पहुंचा दिया था. इसलिए इस साल अप्रैल-जून में भारत का प्रदर्शन इतना बेहतर नज़र आ रहा था. इसके बाद की दो तिमाहियों में बीते साल रिकवरी चल रही थी. इसलिए इस साल विकास दर उतनी ज़्यादा नज़र नहीं आ रही. लेकिन बात बस तुलना की ही नहीं है. अर्थव्यवस्था वाकई सुस्त पड़ रही है. इसके बड़े कारण वही हैं, जिनकी चर्चा दी लल्लनटॉप लगातार आपसे करता रहा है -
>कोरोना महामारी
> रूस - यूक्रेन युद्ध
> वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी
इनके चलते मूडीज़ जैसी अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसीज़ से लेकर भारतीय रिज़र्व बैंक, सबने GDP ग्रोथ के अनुमान लगातार घटाए हैं. हमने अक्टूबर-दिसंबर की तिमाही के लिए जो अनुमानित दर आपको बताई थी, उसे भी बैंक ने हाल ही में 4.6 फीसदी से घटाकर 4.2 फीसदी कर दिया था. बावजूद इसके, भारत दुनिया की बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था है. 

2. INFLATION + BANK RATES
शरत कोहली ने शाइनिंग स्टार शब्द पर अपनी बात रखी. इसका ज़िक्र अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के साथ-साथ सरकार ने भी खूब किया. लेकिन इस चमकते सितारे के सामने एक ऐसी चुनौती ऐसी है, जिसे लेकर मोदी सरकार पूरे साल घिरी रही - महंगाई. भारतीय अर्थव्यवस्था आज एक ऐसी जगह पर है, जहां विकास दर घट रही है, मंदी की चेतावनियां जारी हो रही हैं. लेकिन महंगाई घटने की जगह बढ़ती जा रही है. आम लोगों के काम आने वाली सारी चीज़ों के दाम बढ़े -
CNG - 27 रुपए
LPG - 200 रुपए
दूध - 9 रुपए
गैस, सब्ज़ियां और अनाज महंगा हुआ है. इस महंगाई की निगरानी का काम करता है RBI. भारत सरकार ने रिज़र्व बैंक को मैंडेट दिया है कि खुदरा महंगाई 4 फीसदी के आसपास ही रहे. घटे, तो 2 फीसदी से नीचे न आ जाए और बढ़े, तो 6 फीसदी से ऊपर न चले जाए. लेकिन 2022 के पूरे 12 महीनों में महंगाई कभी 4 फीसदी के आसपास नहीं रही. इतना ही नहीं, वो जनवरी से अक्टूबर तक माने पूरे 10 महीने 6 फीसदी से कहीं ऊपर रही. हमने जून से नवंबर के छह महीनों में सरकार द्वारा जारी आंकड़ों को संकलित किया. इसी दौरान खुदरा महंगाई 7 फीसदी या उससे भी ऊपर रही. माने बीते साल अगर तेल का एक पाउच 100 रुपये में मिल जा रहा था, तो इस साल उसकी कीमत 107 रुपये पहुंच गई. 100 रुपए में 7 रुपए बढ़ जाएं तो आपको कम भी लग सकते हैं. लेकिन सोचिए, अगर 140 करोड़ लोगों को 7-7 रुपये ज़्यादा चुकाने पड़ें, तो कितनी बड़ी रकम लोगों की जेब से निकल जा रही है.

लगातार बढ़ रही महंगाई को काबू करने RBI मैदान में उतरा. मौद्रिक नीति की नियमित बैठकों के साथ साथ ऑफ साइकल बैठकें बुलाई गईं. इसे आप बैठकों का वाइल्ड कार्ड समझ सकते हैं. इन बैठकों में RBI ने रेपो रेट को कुल चार बार बढ़ाया. रेपो रेट क्या होता है, हम एक बार दोहरा देते हैं. भारत में सभी बैंकों को RBI के तहत काम करना होता है. अपने काम के लिए वो RBI से कर्ज़ लेते हैं. इसपर उन्हें RBI को जो ब्याज़ देना होता है, उसी को कहा जाता है REPO RATE. बैंक अपना पैसा RBI के पास जमा भी रखते हैं. इसपर उन्हें जिस दर पर ब्याज़ मिलता है, उसे कहा जाता है Repo Rate. स्वाभाविक सी बात है कि अगर RBI रेपो रेट बढ़ा देगा, तो बैंकों से आम लोगों और उद्योगों को मिलने वाले कर्ज़ भी महंगे हो जाएंगे. तब विकास भी धीमा पड़ जाएगा.

ऐसे में जो रेपो रेट मई 2022 में 4.40 फीसदी था, उसे RBI बढ़ाते बढ़ाते दिसंबर में 6.25 फीसदी पर क्यों ले आया? दरअसल रिज़र्व बैंक ने बहुत लंबे समय तक रेपो रेट को कम रखा, क्योंकि सरकार विकास दर पर फोकस कर रही थी. लेकिन जब सस्ते कर्ज़ के चलते बाज़ार में पैसा ज़रूरत से ज़्यादा बढ़ गया, तो महंगाई पर सरकार घिरने लगी. और पैसा समेटने के लिए बैंक को कर्ज़ महंगा करना पड़ा. रेपो रेट बढ़ने का एक फायदा ये भी होता है कि बैंकों में जमा आपकी बचत या FD जैसी चीज़ों पर ब्याज़ बढ़ता है. लेकिन ये एक ऐसी मिठाई है, जो मिल भी सकती है, और नहीं भी. जो मिठाई ज़रूर मिलती है, वो ये कि पहले से चल रहे लोन पर आपकी किस्त बढ़ जाती है.

RBI की मेहनत का नतीजा नवंबर से दिखना शुरू हुआ है, जब महंगाई दर 5.88 फीसदी पर आई. महंगाई अब भी 4 फीसदी के लक्ष्य से काफी ज़्यादा है. इसके कारण क्या हैं हम नहीं जानते. ऐसा नहीं है कि हमने मेहनत नहीं की. दरअसल सरकार ही कारण बताने में ज़्यादा दिलचस्पी नहीं ले रही. देश का कानून ये कहता है कि जब RBI लगातार तीन तिमाहियों तक, माने 9 महीने खुदरा महंगाई को 6 फीसदी से नीचे नहीं ला पाता, तो उसे एक रिपोर्ट सरकार को देनी होती है. अब आप पूछ सकते हैं कि भैया जब सरकार के पास देश के सबसे बड़े बैंक द्वारा भेजी गई रिपोर्ट है, तो उसकी जानकारी लल्लनटॉप क्यों नहीं जुटा पाया. तो इसका जवाब इसी शीत सत्र में केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी ने दिया है. उन्होंने कहा कि रिज़र्व बैंक एक्ट 1934 के मुताबिक रिपोर्ट सार्वजनिक किये जाने का प्रावधान ही नहीं है. लेकिन जो सरकार नहीं बताना चाहती, वो विशेषज्ञ समझते भी हैं और बताने को तैयार भी 

3.RISING IMPORTS
अर्थव्यवस्था की बात हो और आयात-निर्यात की बात न हो, ये संभव नहीं. स्वाभाविक सी बात है, हम आयात कम करना चाहते हैं, और निर्यात ज़्यादा. लेकिन चूंकि भारत में कच्चे तेल का उत्पादन नहीं होता, हमें उसके लिए विदेश पर ही निर्भर रहना होता है. रूस यूक्रेन युद्ध के बाद पूरी दुनिया में कच्चे तेल के दाम बढ़े. दिसंबर 2021 में ब्रेंट क्रूड का दाम जो 80 डॉलर के करीब था, वो मार्च 2022 में 128 डॉलर को भी पार कर गया था. ये डेढ़ गुना की बढ़त थी. भारत में पेट्रोल और डीज़ल के दाम डेढ़ गुना तो नहीं हुए, लेकिन तेल का दाम हमारे विदेशी मुद्रा के भंडार को खाने लगा.

विदेशी मुद्रा भंडार को दूसरी चोट पड़ी रुपये के गिरते मूल्य के चलते. रुपये में ऐतिहासिक गिरावट की खबर हमने ही आपको कई बार दी. एक साल के भीतर ही रुपया 11 फीसदी टूट गया. और अक्टूबर 2022 में 1 डॉलर की कीमत ने 83 रुपये तक पहुंच गई. हमें राहत मिली दो चीज़ों से - पहले तो जब रूसी आक्रमण के बाद दुनिया सामान्य होने लगी, तो तेल की कीमतें 80 डॉलर प्रति बैरल के आसपास ही स्थिर होने लगीं. फिर भारत तमाम विरोध के बावजूद रूस से तेल खरीदता रहा, जिसपर उसे कुछ डिसकाउंट मिला. सारे हिसाब किताब के बाद विदेशी मुद्रा भंडार, फिलहाल 563.49 अरब डॉलर पर है. ये जानकारी हाल ही में RBI ने दी थी. तुलना के लिए बता दें कि आज की तारीख में भारत पर कुल 614 अरब डॉलर का कर्ज है. माने हमारी बचत, हमारे कर्ज़ से कम हो गई है.

ये तो हुई तेल और विदेशी मुद्रा भंडार की बात. अब आते हैं कुल आयात-निर्यात के आंकड़ों पर. नवंबर 2022 में भारत सरकार के वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक अप्रैल से अक्टूबर 2022 के बीच भारत ने कुल 444.74 अरब डॉलर का निर्यात किया. और 543.26 अरब डॉलर का आयात किया. इसका मतलब हमने उठाया 98.52 अरब डॉलर का घाटा. हमने मूल्य को रुपये में इसलिए नहीं बदला है, क्योंकि महीने बदलने के साथ मूल्य बदलता रहा है. इसीलिए हम वही आंकड़े दे रहे हैं, जो भारत सरकार ने जारी किए. चिंता की बात ये है कि बीते साल ये घाटा था 34.05 अरब डॉलर. तो हमारा व्यापार घाटा बढ़ रहा है. सरकार के लिये ये काफी असहज करने वाली बात होगी कि न सिर्फ व्यापार घाटा बढ़ रहा है, बल्कि चीन से भी आयात बेतहाशा बढ़ा है, वो भी गलवान घाटी में हुए संघर्ष के बाद. हरिकिशन शर्मा की इस रिपोर्ट पर गौर कीजिए, जो उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस के लिये की. ये रिपोर्ट बताती है कि भारत चीने से लगभग उतना ही व्यापार करता है, जितना कि अमेरिका से. लेकिन फर्क ये है कि अमेरिका से होने वाले व्यापार में हमें फायदा होता है. और चीन से होने वाले व्यापार में हम उठाते हैं घाटा. 2020-21 में हमने इस तरह 44.02 बिलियन डॉलर का घाटा उठाया. जो 2021-22 में बढ़कर 73.31 बिलियन डॉलर हो गया.

4. ROZGAR BEROZGAR
इकॉनमी के मोर्चे की बात बिना रोजगार का जिक्र किए, पूरी नहीं हो सकती है.रोजगार को दो कैटगरी में बांटकर देखिये. पहली सरकारी नौकरी, जो भर्तियों के जरिए होती है.और दूसरी, जिसपर मोदी सरकार विशेष जोर देती है - स्वरोजगार, स्टार्ट्अप्स.पहले सरकारी नौकरियों की बात कर लेते हैं.2017 के पहले तक सरकार का ही लेबर ब्यूरो 9 सेक्टर में मिली नौकरियों का डाटा जारी करता था.लेकिन इस प्रथा को बंद कर दिया गया.अब सरकारी आंकड़े संसद में पूछे गए सवालों के जरिए ही मिल पाते हैं.7 दिसंबर 2022 को लोकसभा में NCP सांसद दीपक बैज ने लिखित सवाल पूछा, जिसमें सरकारी क्षेत्र में रिक्त पदों का विभागवार ब्योरा प्रधानमंत्री से मांगा गया.
प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री डॉक्टर जीतेंद्र सिंह ने लिखित जवाब दिया.जिसमें 78 विभागों का ब्योरा था.अब जो आंकड़े बता रहा हैं उस पर गौर कीजिए.
>9 लाख 79 हजार 327.देश के 78 विभागों में कुल इतने पद आज की तारीख में खाली हैं.करीब 40 लाख स्वीकृत पदों में 22% से ज्यादा पद खाली पड़े हैं.
>सबसे ज्यादा पद रेलवे में खाली हैं. कुल 2 लाख 93 हजार 943.
> रक्षा विभाग में 2 लाख 64 हजार से ज्यादा पद रिक्त हैं.
>गृह विभाग को भी 1 लाख 43 हजार से ज्यादा कर्मचारियों की जरूरत है.माने इतनी कुर्सियां वहां खाली चल रही हैं.
> इसके अलावा डाक विभाग में 90 हजार से ज्यादा और राजस्व विभाग में 80 हजार से ज़्यादा पद खाली पड़े हैं.
रिटायर होने वाले कर्मचारियों के बाद खाली पदों की संख्या बढ़ती रहती है.अब ये पद कब भरे जाएंगे.ये पूछते-पूछते कितने ओवर एज गए.जवाब सराकर ही दे सकती है, जो अब तक दिया नहीं गया है.

हमने इसी साल देखा है.कैसे RRB NTPC के रिजल्ट के बाद छात्रों के उग्र प्रदर्शन को देखा है.ट्रेनों में तोड़फोड़ और पटरियों पर विरोध पहली घटना छात्रों की तरफ से इसी के बाद हुआ.इसके शुरूआत जनवरी में ही हो गई थी.दरअसल रेलवे ने फरवरी 2019 में 'नौकरियां ही नौकरियां' वाला विज्ञापन निकाला. NTPC में 35 हज़ार 208 पोस्ट की वैकेंसी थी. परीक्षा के जरिए रेलवे में क्लर्क, टिकट क्लर्क, गुड्स गार्ड, स्टेशन मास्टर, जूनियर क्लर्क सह टाइपिस्ट, कमर्शियल क्लर्क सह टाइपिस्ट जैसे पदों पर भर्ती होनी थी.इन पदों पर आवेदन करने वालों की संख्या 1 करोड़ 26 लाख के लगभग थी.फॉर्म भरने का खर्चा, किराया-भाड़ा जोड़कर छात्र हिसाब लगाते रह गए.लेकिन भर्ती पूरी होने तक कइयों के बाल सफेद हो जाते हैं.ऐसा इसलिए कहना पड़ रहा है क्योंकि ये 2019 की भर्ती है और हम 2022 के खत्म होने पर भी इसकी बात कर रहे हैं.एक बात, केंद्र सरकार में मंत्री पीयूष गोयल ने भी कही थी.

मंत्री पीयूष गोयल ने 2019 के चुनाव से पहले 4 लाख भर्तियों का वादा किया था.क्या इतनी भर्तियां पूरी हुईं? जवाब आपको पता है.हमने इसी साल देखा कि कैसे SSC GD के छात्र-छात्राएं खाली पदों को भरने की मांग को लेकर नागपुर से दिल्ली पैदल तिरंगा रैली लेकर चले आते हैं.और हमने इसी साल एक ट्वीट भी देखा.जिसमें प्रधानमंत्री कार्यालय की तरफ से ये ऐलान किया गया कि आने में डेढ़ सालों में केंद्र सरकार के तहत आने वाले पदों पर 10 लाख लोगों को भर्तियां की जाएंगी.यानी रोजगार का बंपर वादा.1.5 साल का मतलब 2024 के चुनाव से पहले.वादा है, पूरा हो जाएगा तो ही बेहतर.

मगर रोजगार सिर्फ सरकारी नौकरियों तक सीमित नहीं है.संगठित और असंगठित क्षेत्र, दोनों में ही रोजगार के खूब अवसर होते हैं.पूरे साल की बात की जाए तो भारत में बेरोजगारी दर औसतन 7% के ऊपर ही रही.CMIE के आंकड़ों के मुताबिक पिछले महीने नवंबर में बेरोजगारी दर 8% के आंकड़े को पार कर गई.
जो अपने आप में चिंता का विषय है.
रोजगार की जब भी बात होती है तो सरकार अपनी तरफ से -
प्रधानमंत्री रोजगार सृजन कार्यक्रम,
मनरेगा,
प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना,
गरीब कल्याण योजना,
आत्मनिर्भर भारत योजना,
पं. दीनदयाल ग्रामीण कौशल्य योजना,
आजिवीका मिशन,
जैसी योजनाओं की बात करती है.मनरेगा को छोड़ दिया जाए तो बाकी के आंकड़े सामने नहीं आते कि इन योजनाओं से कितने लोगों को लाभ मिला.मनरेगा की कार्यशैली पर भी बाकयादा सवालिया निशान है.इसके अलावा सरकार स्टार्ट्अप्स, यूनिकॉन जैसे दो शब्दों के ईर्द-गिर्द रोजगार की बात करती है.

अर्थव्यवस्था की नज़र से देखें, तो 2022 मिला जुला रहा. भारत अपना एक्पोर्ट बढ़ाते हुए 400 बिलियन डॉलर तक ले गया. भारत अपनी डिजिटल करेंसी ले आया. और शेयर मार्केट ने भी अच्छी रिकवरी दिखाई. जो चुनौतियां थीं, उनका ज़िक्र हमने कर ही दिया. बाकी का मूल्यांकन आप स्वयं करें.

वीडियो: दी लल्लनटॉप शो: 2022 में मोदी सरकार ने रूस-यूक्रेन संकट और चीन का सामना कैसे किया?