सरकार ने ये तय कर दिया है कि आने वाले सीजन में जो फसलें होंगी उनकी न्यूनतम कीमत क्या होगी? तय ये भी किया गया है कि हम और आप जो लोन की ईएमआई चुकाते हैं वो बढ़ेंगी, घटेंगी या यथास्थिति बनी रहेगी. महंगाई और देश की अर्थव्यवस्था को लेकर कुछ अनुमान भी लगाए गए हैं. साथ ही लगाया गया है पैसा सरकारी टेलीकॉम कंपनी पर. पूरे 89 हजार करोड़ रुपए के पैकेज का ऐलान हुआ है.
आर्थिक मोर्चे से पहली खबर आई 7 जून को हुई यूनियन कैबिनेट मीटिंग से. खरीफ की फसलों के लिए सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी MSP बढ़ाने का फैसला किया. न्यूनतम समर्थन मूल्य, वह न्यूनतम मूल्य होता है जिस पर सरकार किसानों से अनाज खरीदने की गांरटी देती है. ये एक तरीके से किसानों की उपज के लिए आधार मूल्य का काम करता है. किस फसल की MSP कितनी होगी इस बात का फैसला कैबिनेट कमेटी ऑन इकॉनमिक अफेयर्स जिसे CCEA कहते हैं, उसकी बैठक में तय होते हैं. मीटिंग की अध्यक्षता प्रधानमंत्री मोदी कर रहे थे. मीटिंग में कमीशन फॉर एग्रीकल्चरल कॉस्ट ऐंड प्राइस ने खरीफ फसलों के दाम बढ़ाने के लिए जो सिफारिश की थी, उसे मंज़ूर कर लिया गया. MSP की घोषणा साल में 2 बार होती है - एक बार रबी की फसलों के लिए और एक बार खरीफ की फसलों के लिए. बारिश का मौसम आने को है, सो सरकार ने खऱीफ की फसलों की MSP का ऐलान किया है.
#MSP पर सरकार ने क्या ऐलान किया?
देश में सबसे अधिक उगाई जाने वाली फसल धान के MSP में 7% की बढ़ोतरी की गई है. 2023-24 के लिए सामान्य धान का MSP - 2 हज़ार 183 रुपये प्रति क्विंटल निर्धारित हुआ है. मूंग दाल की MSP भी 10.4 फीसदी बढ़ी है. ये 7 हजार 775 रुपए प्रति क्विंटल से बढ़कर 8 हजार 558 रुपए प्रति क्विंटल हो गया है. इस साल सबसे ज़्यादा दाम मूंग के ही बढ़े हैं. बाकी फसलों की लिस्ट ये रही -
> मूंगफली - 9 फीसदी
>सोयाबीन - 7 फीसदी (लगभग)
> सूरजमुखी - 5.63 फीसदी
> अरहर - 6 फीसदी
> उड़द - 5 फीसदी
कैबिनेट के फैसलों की जानकारी देते हुए केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि इस वर्ष का बढ़ा हुआ न्यूनतम समर्थन मूल्य पिछले कई सालों से अधिक है. पिछले साल के मुकाबले इस बार दाम ज्यादा बढ़ाए गए हैं. वैसे भी 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले खरीफ की फसलों की MSP बढ़ाने का ये आखिरी मौका था. इसके बाद सरकार एक बार रबी की फसलों MSP बढ़ा सकती है. और उसके बाद चुनाव का माहौल गर्म हो जाएगा. संभवतः इसीलिए सरकार की MSP बढ़ोत्तरी को प्रधानमंत्री मोदी ने से खूब सराहना मिली है. उन्होंने कहा कि MSP बढ़ाने से किसानों को उनकी उपज का लाभकारी मूल्य मिलेगा और नई फसल उगाने में भी प्रयासों को सहयोग मिलेगा.ऐसा प्रधानमंत्री का कहना है.
#सरकार ने BSNL को कितना रुपए दिए?
आर्थिक मोर्चे से जुड़ी दूसरी खबर भी कैबिनेट बैठक से आई है. केंद्र सरकार ने भारत संचार निगम लिमिटेड यानी BSNL को दोबारा अपने पैरों पर खड़ा करने के लिए 89 हजार करोड़ का पैकेज दिया है. इसके जरिए BSNL को 4G और 5G स्पेक्ट्रम खरीदने में मदद मिलेगी.
गौर करने वाली बात ये है कि कैबिनेट ने 700 मेगाहर्ट्ज बैंड में BSNL को एयरवेव्स आवंटित करने का प्रावधान किया है. जिससे यह रिलायंस जियो के अलावा एकमात्र अन्य टेलीकॉम कंपनी बन गई है जिसके पास इस फ्रीक्वेंसी में स्पेक्ट्रम होगा. 700 मेगाहर्ट्ज बैंड की खासियत ये है कि ज्यादा जनसंख्या वाले इलाकों में कवरेज के लिए इसे सबसे बेहतर माना जाता है.
एक ज़माने में BSNL का फोन या सिम लेने के लिए कम से कम विधायक का जैक लगता था. लेकिन आज ये कंपनी रिलायंस जियो, भारती एयरटेल और वोडाफोन-आइडिया से जैसे टेलिकॉम सेक्टर के मठधीशों के सामने निहत्थी सी लगती है. ये कंपनियां 4 G बाज़ार पर पकड़ बनाए हुए हैं और 5 G सेवाएं शुरू कर रही हैं. जबकि BSNL ने अभी तक 4जी सेवाएं ही शुरू नहीं की हैं. स्पेक्ट्रम आवंटन के बाद ये स्थिति बदल सकती है.
इससे पहले 2019 में, सरकार ने BSNL को 69 हज़ार करोड़ रुपये का रिवाइवल पैकेज दिया था. 2022 में भी 1 लाख 64 हज़ार करोड़ रुपये का पैकेज दिया गया. संचार मंत्री अश्विनी वैष्णव ने कहा कि दूसरे रिवाइवल पैकेज के बाद, BSNL ने वित्तीय वर्ष 2022-23 में लगभग 15 सौ करोड़ रुपये का ऑपरेशनल प्रॉफिट कमाया. और अपने कर्ज के बोझ को 10 हज़ार 500 करोड़ रुपये कम कर दिया है. उन्होंने कहा कि अगले तीन साल में BSNL कर्ज मुक्त हो जाएगी
यानी सरकार लगातार BSNL को जिंदा करने के लिए पैकेज की घोषणा कर रही है.
# क्या रिजर्व बैंक ने रेपो रेट बढ़ाया?
अब चलते हैं तीसरी खबर की ओर. ये खबर आई रिजर्व बैंक से. आज सुबह रिजर्व बैंक गवर्नर शक्तिकांत दास ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की. RBI की मौद्रिक नीति समिति (MPC) की बैठक के नतीजों का ऐलान किया. बताया कि रेपो रेट में कोई बदलाव नहीं किया गया है. इसे 6.5 प्रतिशत पर ही रखा जाएगा. ये लगातार दूसरी बार है जब रेपो रेट में कोई बदलाव न करने का फैसला किया गया है. इससे पहले अप्रैल में भी इसी तरह का फैसला आया था. माने राहत की सांस लीजिए - आपकी ईएमआई नहीं बढ़ने वाली.
- रेपो रेट वह दर होती है जिस पर RBI बैंकों को कर्ज देता है. मतलब रेपो रेट सीधे-सीधे बैंक लोन को प्रभावित करता है. ये बढ़ता है तो लोन महंगा हो जाता है और घटता है तो लोन सस्ता हो जाता है. इसका सीधा असर होम लोन, ऑटो लोन या पर्सनल लोन पर पड़ता है. और आपकी EMI भी इसी से घटती बढ़ती है. रेपो रेट के उलट होता है रिवर्स रेपो रेट. जब बैंक अपना पैसा रिज़र्व बैंक में जमा करता है तो उसे ब्याज़ मिलता है इस ब्याज की दर को रिवर्स रेपो रेट कहते हैं. RBI की मौद्रिक नीति समिति हर दो महीने पर बैठक करती है और इनकी समीक्षा करती है.
पिछली दो बैठकों में भले ही RBI ने रेपो रेट में बदलाव न करने का फैसला किया हो लेकिन उससे पहले मई 2022 से फरवरी 2023 तक लगातार 6 बार रेपो रेट में बढ़ोतरी कर चुकी है. अप्रैल 2023 में भी इसमें बढ़ोतरी की उम्मीद की जा रही थी लेकिन RBI के फैसले ने लोगों को चौंकाया था. हालांकि अप्रैल की नीति के बाद से कंज्यूमर प्राइस इंडेक्स या खुदरा महंगाई में कमी आई है. RBI की कोशिश होती है कि CPI 4 प्रतिशत के आसपास रखा जाए. अप्रैल में ये पिछले 18 महीने के निचले स्तर 4.7 प्रतिशत पर आ गया था. आज गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि पिछले 3 सालों में हमने बड़ी चुनौतियों का सामना किया. लेकिन अब पॉलिसी सही ट्रैक पर है. हम महंगाई नियंत्रित करने में कामयाब रहे हैं.
-रेपो रेट के बाद अब आते हैं GDP पर. RBI ने अनुमान जताया है कि वित्त वर्ष 2023-24 में भारत की वास्तविक GDP वृद्धि दर 6.5 फीसदी रह सकती है. RBI को उम्मीद है कि वित्त वर्ष 2023-24 की पहली तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर 8 फीसदी, दूसरी तिमाही में 6.5 फीसदी, तीसरी तिमाही में 6 फीसदी और चौथी तिमाही में 5.7 फीसदी रह सकती है.
आपने गौर किया होगा, हमने ''वास्तविक जीडीपी'' कहा. माने रीयल जीडीपी. ये क्या बला होता है, बताते हैं. GDP यानी सकल घरेलू उत्पाद. आसान भाषा में कहें तो देश में इकॉनमी की हालत आंकने का एक अहम पैमाना. सकल का मतलब सभी. घरेलू माने घर संबंधी. यहां घर का आशय देश है. उत्पाद का मतलब है उत्पादन. प्रोडक्शन. कुल मिलाकर देश में हो रहा हर तरह का उत्पादन. उत्पादन कहां होता है? कारखानों में, खेतों में. कुछ साल पहले इसमें शिक्षा, स्वास्थ्य, बैंकिंग और कंप्यूटर जैसी अलग-अलग सेवाओं यानी सर्विस सेक्टर को भी जोड़ दिया गया. इस तरह उत्पादन और सेवा क्षेत्र की तरक्की या गिरावट का जो आंकड़ा होता है, उसे जीडीपी कहते हैं.
-अब आते हैं रीयल और नॉमिनल जीडीपी के अंतर पर. वास्तविक GDP यानी जब एक साल में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के मूल्यों की गिनती किसी आधार वर्ष या स्थिर मूल्य पर की जाए. ऐसे में जो वैल्यू मिलती है उसे रियल जीडीपी कहते हैं. वहीं दूसरी तरफ जब एक साल में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य की गिनती बाजार मूल्य या करेंट प्राइस पर की जाए तो GDP की जो वैल्यू मिलती है उसे नॉमिनल जीडीपी कहते हैं.
खैर, लौटते हैं RBI के अनुमानों पर, जो आने वाले महीनों की तस्वीर हमारे सामने रखते हैं. जब हम वहां तक पहुंचेंगे, अनुमान का सही गलत हमारे सामने होगा. लेकिन जो आंकड़े आ चुके हैं वो क्या बताते हैं?
हाल ही में आए आंकड़े बताते हैं कि 2022-23 में भारत की जीडीपी ने 7.2 फीसद की वृद्धि दर्ज की. जो ज्यादातर अर्थशास्त्रियों और केंद्र के अपने 7 फीसद के अनुमान से थोड़ी ज्यादा है. इसकी एक बड़ी वजह वित्त वर्ष 2022-23 की आखिरी तिमाही में जीडीपी का 6.1 फीसद बढ़ना रहा, जो 5 फीसद की चौतरफा उम्मीद से काफी ज्यादा थी. और ये वृद्धि कैसे हुई?
आंकड़े बताते हैं कि फाइनेंस, रियल स्टेट और प्रोफेशनल सर्विस सेक्टर ने 7.1 फीसद की बढ़ोतरी दर्ज की. व्यापार, होटल, ट्रांसपोर्ट, संचार और ब्राडकास्ट सर्विस की वृद्धि दर 14 फीसद रही. निर्माण 10 फीसद और बिजली, जलापूर्ति और दूसरी सर्विसेज 9 फीसद बढ़ीं.
लेकिन पिछले साल हुई इस बढ़ोतरी के आगे बने रहने पर सवाल भी उठ रहे हैं. क्योंकि इस बढ़ोतरी के पीछे वजह महामारी के दौरान दबी हुईं मांग को बताया गया. इससे पहले वित्त वर्ष 2021-22 में 9.1 फीसद की वृद्धि दर्ज की गई थी. यानी पिछले कुछ सालों में देश की जीडीपी में वृद्धि तो हो रही है.
इंडिया टुडे से बात करते हुए बैंक ऑफ बड़ौदा के चीफ इकॉनोमिस्ट मदन सबनवीस कहते हैं,
“7.2 फीसद की वृद्धि से खुश होने की कोई वजह नहीं है. हम (अब भी) उस 8 फीसद के दायरे में नहीं हैं जो हमने पिछले दशक के शुरुआती सालों में हासिल किया था.”
पिछले एक साल से भी ज्यादा समय से चल रहे रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से वैश्विक अर्थव्यवस्था सुस्त पड़ती दिखती है. लेकिन इस बीच भारतीय अर्थव्यवस्था में वृद्धि की संभावनाएं खासा चर्चा का विषय रही हैं. हालांकि जानकार कहते हैं कि दुनिया की बाकी अर्थव्यवस्थाओं के साथ भारत की तुलना शायद वाजिब न हो. क्योंकि कुछ छोटे देश हमसे बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं. मदन सबनवीस कहते हैं,
“सवाल यह है कि क्या हम ज्यादा नौकरियां और ज्यादा आमदनी पैदा कर रहे हैं या ज्यादा लोगों को गरीबी से बाहर निकाल रहे हैं?.”
ये टिप्पणी उन दावों को एक संदर्भ देती है, जिनमें भारत की अर्थव्यवस्था को राइज़िंग स्टार कहा गया. ये एक तथ्य है, कि भारत की अर्थव्यवस्था विश्व की बड़ील अर्थव्यवस्थाओं से कहीं बेहतर प्रदर्शन कर रही है. लेकिन हमें इस उपलब्धि का उत्सव मनाने के साथ साथ ये भी ध्यान देना होगा कि हमारी यात्रा लंबी है. हमें बहुत दूर जाना है.