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विदेशी रिपोर्ट ने मोदी सरकार के 9 सालों पर क्या खुलासा कर दिया?

अभी हमारे पास दो हालिया रपटें हैं: मॉर्गन स्टैनली की रिपोर्ट और जनवरी से मार्च तिमाही के आंकड़े.

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Morgan Stanley, Narendra Modi and generic shot representing worker in a factory (Left to Right): (Photo: India Today)

अर्थ का अनर्थ करना बहुत लोग जानते हैं -- ये आपको स्वीपिंग रिमार्क सा लग सकता है. लेकिन आप ये मानेंगे कि अर्थ का अर्थ कम लोग जानते हैं. आपकी जेब में कितना रुपया आया और गया, ऐसी ख़बरें आपने गाहे-बगाहे देखी होंगी. पेट्रोल इतना बढ़ा, सिलेंडर इतना घटा. मगर देश की जेब में कितना रुपया आया और कितना रुपया गया, ये बिना किसी बड़ी रिपोर्ट के बड़ा कीवर्ड नहीं बन पाता. और जब बात देश की होगी, तो देश की सत्ता से सवाल पूछे जाएंगे.

एक तरफ़ इनवेस्टमेंट बैंकिंग कंपनी मॉर्गन स्टैनली की रिपोर्ट है, जो नरेंद्र मोदी की इकोनॉमिक्स को सही दिशा पर बताती है. दूसरे खित्ते रिपोर्ट का खंडन भी है, जहां अर्थशास्त्री इस रिपोर्ट के मानकों को सटीक नहीं मानते. फिर अर्थव्यवस्था के सरकारी आंकड़े हैं, जो अर्थशास्त्रियों के दावों को काउंटर करते हैं. इस पूरे पेच-ओ-ख़म में मोदी सरकार ने हमारी-आपकी कितनी मदद की? की भी या नहीं? यहीं जांचेंगे आज की बड़ी ख़बर में.

-बड़ी खबर

रवायतन पहले आपको हाल का हाल बताएंगे. फिर कहानी तक जाएंगे. अभी हमारे पास दो हालिया रपटें हैं: मॉर्गन स्टैनली की रिपोर्ट और जनवरी से मार्च तिमाही के आंकड़े.

#GDP

पहले सरकार का ही आंकड़ा पकड़ते हैं. NSO ने 31 मई को GDP ग्रोथ के आंकड़े जारी किए. जनवरी से मार्च तिमाही में भारत का GDP 6.1% बढ़ा है. पिछली तिमाही में ये बढ़ोतरी 4.4% थी. यानी अच्छा उछाल है. सांख्यिकी मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक़, मार्च तिमाही में भारत के मैनुफ़ैक्चरिंग सेक्टर का उत्पादन 4.5 प्रतिशत चढ़ गया है और कृषी क्षेत्र के प्रोड्यूस में भी वृद्धि दिखी है. NSO की रिलीज़ में ये बात भी रिपोर्ट की गई है, कि भारत का GDP साल 2022-23 में 7.2% से बढ़ा है. हालांकि, ये बढ़ोतरी पिछले साल के मुक़ाबले कम है. 2021-22 में GDP ग्रोथ 9.1% थी.

बीता मई का महीना 36 सालों में सबसे ठंडा मई गुज़रा. गर्मी में राहत की तरह ही आया नैशनल स्टेटिस्टिकल ऑफ़िस (NSO) का आंकड़ा. कम से कम फ़ेस वैल्यू पर तो यही लगता है.

एक मज़े की बात और बताते हैं. अर्थव्यवस्था सुनते ही सबसे पहला शब्द जो दिमाग़ में आता है, वो है GDP. ग्रॉस डोमेस्टिक प्रॉडक्ट. हिंदी में - सकल घरेलू उत्पाद. माने भारत की फैक्ट्रियों, दफ़्तरों और खेतों में जितना भी उत्पादन होता है - चाहे वो सीमेंट हो या फिर सॉफ़्टवेयर - उसकी कुल क़ीमत. लेकिन कई देश-दुनिया के नामी अर्थशास्त्रियों ने बारहा GDP को क़ायदे का मानक मानने से इनकार किया है. लेकिन हम इस विवाद में ज़्यादा नहीं पड़ेंगे क्योंकि अभी कोई वैकल्पिक मानक है नहीं, जिसपर दांव खेला जाए. तो इसी को मान लेते हैं.

GDP बढ़त की रिपोर्ट में ये साफ़ है कि ग्रोथ तीनों ही क्षेत्रों में हुई है - माने खेती, मैनुफ़ैक्चरिंग और सर्विस. सर्विस इसमें अव्वल है. महामारी के बाद से पर्यटन बढ़ा है, सो हॉस्पिटैलिटी सर्विस में 14% की भरपूर बढ़त दिखी. लेकिन इन्हीं नंबर्स में एक सिकुड़ा हुआ नंबर छिप जा रहा है.

Personal consumption expenditure का नंबर कम हुआ है. मतलब लोग अपनी जेब से कम ख़र्च कर रहे हैं. ये बहुत चिंता की बात है क्योंकि बीते दो सालों से यही ट्रेंड रहा है. GDP में निजी खपत का हिस्सा पिछले दो सालों में सिकुड़ा है और 2022-23 में भी यही हाल है. डबल इंजन की तरह ही डबल परेशानी की बात ये है कि GDP बढ़ने के बावजूद ये शेयर गिर रहा है. माने संभावना है कि लोगों की जगह, GDP की बढ़त में सरकार का निवेश ज़्यादा है. आमतौर पर, सरकारी धक्का तभी काम करता है, जब इसमें निजी इंटरप्राइज़ेज़ का बराबर ज़ोर हो. वर्ना ये आंकड़ा खोखला है.

GDP का मामला जितना साफ़ हो सकता था, उसकी हमने कोशिश कर ली. 

#मॉर्गन स्टैनली की रिपोर्ट

अब आते हैं दूसरी रिपोर्ट की तरफ़. जो आई विलायत से है. लेकिन चूंकि तारीफ़ में है. तो इस पर कोई "इंटर्नल मैटर" वाली प्रतिक्रियाएं नहीं आईं. इसे सहर्ष स्वीकार किया गया. रिपोर्ट की बात करें, इससे पहले मॉर्गन स्टैनली के बारे में जान लीजिए. 100 साल पुरानी अमेरिकी निवेश बैंक और ब्रोकरेज फ़र्म है मॉर्गन स्टैनली. भारत समेत दुनियाभर में 40 से ज्यादा देशों में दफ़्तर हैं. ये फ़र्म कंपनियों और कई देशों की सरकारों को क़र्ज़ देती है और उनके पैसे का प्रबंधन भी करती है. भारतीय इक्विटी रणनीति और अर्थशास्त्र को लेकर मॉर्गन स्टैनली की रिपोर्ट कहती है कि अभी का भारत 2013 से अलग है. व्यापक और मार्केट आउटलुक के लिहाज़ से 10 सालों में भारत ने ज़रूरी सकारात्मक नतीज़ों के साथ विश्व व्यवस्था में जगह बनाई है. हम इन बदलावों और उनके प्रभावों का एक स्नैपशॉट पेश कर रहे हैं. क्या बदलाव हुए हैं, बिंदुवार समझ लेते हैं --
मॉर्गन स्टेनली की रिपोर्ट बताती है कि

- भारत में सप्लाई साइड पॉलिसी रिफ़ॉर्म्स के तहत पिछले एक दशक से भी कम समय में कारपोरेट टैक्स और बुनियादी ढांचे में निवेश को लेकर बड़े बदलाए हुए हैं. कॉरपोरेट टैक्स रेट अन्य देशों के बराबर हुई है. बुनियादी ढांचे में निवेश भी बढ़ रहा है.

- नए क़ानून रियल एस्टेट रेगुलेशन एवं डेवलपमेंट यानी रेरा लाया से रियल एस्टेट सेक्टर में काफ़ी सुधार हुआ है.

-  GST कलेक्शन में लगातार इज़ाफ़ा हो रहा है. साथ ही डिजिटल लेनदेन भी बढ़ रहा है.

- सोशल सेक्टर में डायरेक्ट बैंक ट्रांसफर (DBT) में तेज़ी आई है.

- सरकार का फॉरन डायरेक्ट निवेश (FDI) पर फ़ोकस बढ़ा है.

- मल्टी नैशनल कंपनियों के कल्चर को लेकर सरकार का रवैया पहले के मुक़ाबले काफी बेहतर हुआ है.

- महंगाई को क़ाबू में रखने के लिए बढ़िया क़दम उठाये गए हैं.  

- रिपोर्ट में दर्ज किया गया है कि भारत का निर्यात बाजार हिस्सा 2031 तक बढ़कर 4.5 फीसदी हो जाएगा, जो 2021 के स्तर से लगभग 2 गुना होगा.

- अभी भारत में प्रति व्यक्ति आय क़रीब 1 लाख 82 हज़ार रुपये है. ये 2032 तक बढ़कर 4 लाख 30 हजार के आसपास पहुंच जाएगी.

मॉर्गन स्टैनली(Photo: India Today)



कुल मिलाकर रिपोर्ट की मानें तो सब चंगा ही चंगा सी. 

अर्थशास्त्री अरुण कुमार रिपोर्ट के मानकों में ही ग़लत बता रहे हैं. उन्होंने हाईलाइट किया कि रिपोर्ट में देश के असंगठित क्षेत्रों पर टिप्पणी नहीं की गई है. साथ में ये भी कहा कि देश में अमीर और ग़रीब के बीच खाई बढ़ी है. देश के ग़रीब वर्ग को जो तव्वजो मिलनी चाहिए, वो मिल नहीं रही. अब सवाल है कि नरेंद्र मोदी सरकार के नौ साल में अर्थ का रिपोर्ट कार्ड क्या रहा? इंडियन एक्सप्रेस के उदित मिश्रा ने 2014 और 2023 के आंकड़ों की अच्छी तुलना की है. 

देखिए, कोई डेटा पूरी तस्वीर नहीं दे सकता. लेकिन कुछ पैरामीटर्स है जिनके आधार पर हम ये देख सकते हैं कि क्या बदलाव हुआ. जैसे- भारतीयों की औसत आय, महंगाई, गरीबी और असमानता, बेरोजगारी आदि के स्तर में क्या बदलाव हुए? हेल्थ पैरामीटर्स कितने इम्प्रूव हुए, फाइनेंसियल सिस्टम्स (बैंकों)  की सेहत कैसी है?  
तो सबसे पहले बात जीडीपी विकास दर की. 

-GDP: 28 फरवरी को जारी GDP के आंकड़ों के अनुमानों के अनुसार मार्च 2023 के अंत में भारत की GDP को 159.7 लाख करोड़ रुपए आंका गया था. जबकि मार्च 2014 के अंत में भारत की GDP 98 लाख करोड़ रुपए थी. यानी पिछले नौ साल में भारत की जीडीपी में 63% की वृद्धि हुई है. अगर पिछली सरकार से तुलना करें, तो 2005 से 2014 तक के 9 सालों में भारत के GDP में 97% की वृद्धि हुई थी. हालांकि हमें ये भी याद रखना होगा कि इस दौरान कोरोना महामारी और लॉकडाउन की चुनौती भी हमारे सामने थी.

> महंगाई: 2013 में बीजेपी के सत्ता में आने से पहले मुद्रास्फीति दर लगातार दोहरे अंकों में थी. मार्च 2014 में ये 8.31 प्रतिशत तक आई. इस समय महंगाई की समस्या के पीछे एक बड़ी वजह कच्चे तेल की ऊंची कीमतें थीं.  बाद में इसमें गिरावट हुई और मुद्रास्फीति दर में भी. अप्रैल 2023 में मुद्रास्फीति की दर 4.7 प्रतिशत थी. ये महंगाई बढ़ने की दर है. जो एक तरीके से ये बताता है कि बीते सालों में मोदी सरकार महंगाई को कंट्रोल कर पाने में सफल रही है.

> प्रति व्यक्ति आय: 2014-15 में प्रति व्यक्ति की औसत आय 86 हजार 647 रुपए हुआ करती थी. मार्च 2023 के आंकड़ों के मुताबिक अब ये लगभग दोगुना 1 लाख 72 हजार रुपए हो गई है. हालांकि अगर 2006-07 से 2014-15 वाले टेन्योर से इसकी तुलना करें तो उस समय 157 फीसद की बढ़ोतरी हुई थी.

> ग़रीबी और असमानता: 2011 की जनगणना हमें बताती है कि 22 फीसद लोग यानी करीब 27 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे जीवनयापन करते हैं. जनगणना को 12 साल बीत चुके हैं. फिलहाल नई जनगणना हुई नहीं है तो लेटेस्ट आंकड़ा हमारे पास है वर्ल्ड बैंक का.

वर्ल्ड बैंक की report “Poverty and Shared Prosperity 2022: Correcting Course” के मुताबिक़, दुनिया में 2015 के बाद से ग़रीबी घटी है, लेकिन कोरोना और रूस-यूक्रेन के युद्ध के बाद माजरा ही बदल गया. भारत का क्या हाल है? 177.13 रुपये प्रति दिन की रिवाइज़्ड ग़रीबी रेखा से पता चलता है कि 2019 में भारत में 10% भारतीय ग़रीब थे. 2011 में ये आंकड़ा 22.5% की गिरावट है.

तो लब्बोलुवाब ये कि 9 सालों में भारतीय अर्थव्यवस्था का प्रदर्शन कैसा रहा, ये काफ़ी जटिल सवाल है. जटिल इसलिए क्योंकि कोई डेटा पूरी स्थिति साफ नहीं कर सकता है. मिसाल के लिए अगर जीडीपी को ही लिया जाए, तो ये एक सीमित समझ देता है. 

सरकार के समर्थक कभी बताने में नहीं चूकते कि वर्ल्ड बैंक और IMF जैसी मल्टीलैटर एजेंसीज़ भारत की अर्थव्यवस्था को अंधेरे के समुद्र में रोशनी के जज़ीरे की तरह देखती हैं. लेकिन हक़ीक़त क्या है? 5 ट्रिलियन डॉलर इकॉनमी माने करीब 414 लाख करोड़ रुपए. लाख और करोड़ में बात समझने वाले देश की सरकार ''ट्रिलियन डॉलर'' में क्यों बात करने लगी थी, वो तो वही जाने. और बाइ द वे, वो लक्ष्य भी दो साल के लिए टाल दिया गया है. कारण दिया गया, महामारी और रूस-यूक्रेन युद्ध. बहरहाल, अभी देश की GDP है 3.3 ट्रिलियन डॉलर या 271 लाख करोड़ रुपये. आप हिसाब लगा लीजिएगा कि लक्ष्य से कितनी दूरी बची है. और, साथ ही ये भी कि GDP के ये आंकड़े आपकी आंख के सामने कितने सार्थक खरे उतर रहे हैं.