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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, सांसदों-विधायकों के बोलने पर कोई अन्य पाबंदी नहीं!

मंत्रियों के बयान को सरकार का बयान नहीं ठहराया जा सकता

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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला (फोटो-आजतक)

सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है. कहा है कि मंत्रियों, सांसदों और विधायकों जैसे तमाम पदाधिकारियों को बाकी नागरिकों जितनी ही अभिव्यक्ति की आजादी है(Supreme Court on public functionaries freedom of speech). कोर्ट ने इनके बोलने की आजादी पर कोई एक्स्ट्रा पाबंदी लगाने की अपील को खारिज किया है. ये फैसला जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर, एएस बोपन्ना, बीआर गवई, वी रामासुब्रमण्यम और बीवी नागरत्ना की संविधान पीठ ने सुनाया है.

कोर्ट ने कहा कि मंत्री द्वारा दिए गए बयान को सरकार का बयान नहीं ठहराया जा सकता. यानी किसी भी मंत्री के बयान के लिए सरकार नहीं बल्कि खुद मंत्री ही जिम्मेदार होगा. 

आज तक के मुताबिक, बेंच ने फैसला सुनाते हुए कहा,

राज्य या केंद्र सरकार के मंत्रियों, सांसदों / विधायकों व उच्च पद पर बैठे व्यक्तियों की अभिव्यक्ति की आजादी पर कोई अतिरिक्त पाबंदी की जरूरत नहीं है.

एक अलग फैसले में न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना ने कहा,

भाषण और अभिव्यक्ति की आजादी एक बहुत जरूरी अधिकार है ताकि नागरिकों को शासन के बारे में अच्छी तरह से सूचित और शिक्षित किया जा सके. ये अभद्र भाषा में नहीं बदल सकता.

ये पूरा मामला उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मंत्री आजम खान के एक बयान से शुरू हुआ. 29 जुलाई, 2016 में बुलंदशहर में गैंग रेप का मामला सामने आया था.  उस पर आजम खान ने आपत्तिजनक बयान देते हुए गैंग रेप को राजनीतिक साजिश कह दिया था. तब पीड़िता के पिता ने याचिका दायर की. 2016 में मामले को एक बड़ी पीठ के पास भेजा गया.

बाद में आजम खान ने बयान को लेकर माफी मांगी थी, जिसे अदालत ने स्वीकार कर लिया था. लेकिन मामले के अन्य पहलुओं को देखते हुए सुनवाई जारी रखी थी. 15 नवंबर को इस मामले में अदालत ने कहा था कि सार्वजनिक पदों पर बैठे लोगों को ऐसी बातें नहीं करनी चाहिए, जो देशवासियों के लिए अपमानजनक हों. 
 

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