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Odisha Train Accident: रेल सुरक्षा पर CAG की रिपोर्ट में खुलासा, कहां खर्च किया गया पैसा?

ओडिशा ट्रेन हादसे के बाद रेल सुरक्षा को लेकर उठते सवालों के बीच CAG की ऑडिट रिपोर्ट ने चिंता और बढ़ा दी है.

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CAG की रिपोर्ट में कई बड़े खुलासे हुए हैं (फाइल फोटो)

रेल सफर को सुरक्षित बनाने के लिए साल 2017 में एक लाख करोड़ रुपये के फंड से ‘राष्ट्रीय रेल संरक्षा कोष’ (RRSK) बनाया गया था. इन पैसों से होनी थी पटरी की मरम्मत, बनने थे सुरक्षित क्रॉसिंग और आने थे नई तकनीक के कोच. लेकिन इन्हीं पैसों से बर्तन, फर्नीचर और फुट मसाजर खरीदे गए! जी हां, ये खुलासा हुआ है CAG की ऑडिट रिपोर्ट में. CAG ने 2017-18 से लेकर 2020-21 के दौरान इस फंड के इस्तेमाल पर 2022 में यह रिपोर्ट तैयार की थी. 

रिपोर्ट के मुताबिक, इन पैसों से किचन का सामान, इलेक्ट्रिकल सामान खरीदे गए. साथ ही फुट मसाजर आए, जेरॉक्स मशीनें, प्रिंटर, लैपटॉप, एलईटी स्ट्रीट लाइट, ठंड के जैकेट जैसी चीजें खरीदी गईं. स्टाफ क्वॉर्टर, ऑफिसर रेस्ट हाउस, हॉस्टल का काम हुआ. यात्रियों के लिए लिफ्ट लगवाए गए और प्लेटफॉर्म के कंस्ट्रक्शन का काम हुआ है. इन खर्चों को रेवेन्यू एक्सपेंडिचर कहा जाता है. यानी कारोबार या कामकाज चलाने के लिए किसी कंपनी के सभी खर्चे. रिपोर्ट के मुताबिक, RRSK से कुल 48.21 करोड़ रुपये रेवेन्यू एक्सपेंडिचर के नाम पर किए गए.

एक नजर इस फंड से हुए खर्चों परः

यात्रियों की सुविधाओं जैसे-लिफ्ट, स्वचालित सीढ़ियां, प्लेटफॉर्म घटाने बढ़ाने के नाम पर 30.84 करोड़ रुपये खर्च किए गए.

गार्डेन, वेटिंग हॉल, सीसीटीवी, लैन एलईडी, फूट मसाजर, विंटर जैकेट, एसी, अस्थायी बिजली कनेक्शन, इंटरकॉम जैसी चीजों पर 4.54 करोड़ रुपये.

फंड के 5.05 करोड़ रुपये सैलरी और बोनस देने के लिए खर्च हुए.

स्टाफ क्वॉर्टर, ऑफिसर रेस्ट हाउस, हॉस्टल, पैसेंजर रिजर्वेशन सिस्टम ऑफिस जैसी चीजों पर 1.48 करोड़ रुपये. 

भाड़े पर गाड़ियां लेने के लिए 0.085 करोड़ रुपये, कम्प्यूट जेरॉक्स मशीन, प्रिंटर, लैपटॉप के लिए 0.35 करोड़ रुपये.

स्टडी में उन दो जोनल रेलवे को शामिल किया गया था, जहां सबसे ज्यादा ट्रेनें आती जाती हैं. CAG ने ये आंकड़े सिर्फ चार महीनों के खर्चों को जोड़कर निकाले हैं. रिपोर्ट कहती है कि अगर 4 साल के पूरे रेवेन्यू एक्सपेंडिचर को जोड़ा गया तो यह रकम कहीं ज्यादा हो सकती है. इन खर्चों पर सवाल उठाते हुए CAG ने कहा था कि रेवेन्यू से जुड़े खर्चों के लिए अलग से फंड आता है. इन्हें सुरक्षा कोष से पूरा करना गैर-जिम्मेदाराना है. वो भी उस स्थिति में जब फंड में पहले से ही जरूरत से कम पैसे दिए गए हों. 2015 में रेलवे की एक कमेटी ने रेलवे में सुरक्षा उपायों के लिए करीबन एक लाख 54 हजार करोड़ की जरूरत बताई थी. वहीं, इस RSSK के तहत एक लाख करोड़ रुपये का फंड ही मंजूर हुआ. यानी मांग से 54 हजार करोड़ रुपये कम मिले.

इन चीजों पर लगने थे पैसे

फंड के पैसों का समझदारी से इस्तेमाल हो, इसलिए मंत्रालय ने प्राथमिकता के आधार पर पहले ही कामों की लिस्ट बनाकर दी थी. इसके मुताबिक, पहली प्राथमिकता डीरेलमेंट रोकने और लेवल क्रॉसिंग से जुड़े उपायों पर होनी चाहिए. उसके बाद नए तरह की कोच, पहियों में क्रैक ढूंढने वाली तकनीक, रोलिंग स्टॉक मेंटनेंस स्ट्रक्चर पर खर्च होना था. आखिर में बचे हुए फंड से लोको पायलट जैसे क्रिटिकल स्टाफ की ट्रेनिंग पूरी करानी थी, जो जरूरी ऑपरेशन में लगे रहते हैं. ताकि उनकी तरफ से गलती होने की गुंजाइश कम रहे.

रिपोर्ट बताती है कि साल दर साल जरूरी और प्राथमिकता वाली चीजों पर खर्च घटा है और 'गैरजरूरी' चीजों पर बढ़ा है. सबसे पहली प्राथमिकता जो सिविल इंजीनियर से जुड़े काम थे, उन पर 2017-18 के दौरान 81.55 फीसदी खर्च हुआ. ये 2019-20 में घटकर 73.76 फीसदी पर आ गया. ट्रैक के नवीनीकरण पर 2018-19 में 9,607 करोड़ रुपये खर्च हुए थे. ये 2019-20 में घटकर 7,417 करोड़ पर आ गया. ट्रैक को नया करने के लिए जो फंड जारी हुए, उनका भी पूरा इस्तेमाल नहीं हुआ.

रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2017 से 2021 के दौरान 1127 ट्रेन पटरी से उतरने के मामले आए. इनमें 289 मामले (26 फीसदी) पुराने ट्रैक के रिन्यूअल से जुड़े थे.

राष्ट्रीय रेल सुरक्षा कोष के बारे में

एक लाख करोड़ रुपये का फंड पांच सालों में बंटना था. इसमें 15 हजार करोड़ रुपये सरकार को देने थे और 5 हजार करोड़ रेलवे को अपने इंटरनल रिसोर्सेज से देना था. लेकिन रेलवे इसमें भी पीछे रही है. इन चार सालों में रेलवे की तरफ से इस फंड में 20 हजार करोड़ आने थे, लेकिन उसने सिर्फ 4,225 करोड़ रुपये ही दिए गए. ये अपने आप में रेल सुरक्षा के उपायों की गंभीरता पर एक सवालिया निशान खड़ा करता है.

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