यूनाइटेड किंगडम के ग्रेटर मैनचेस्टर के बरी क़स्बे में एक सामान्य सुबह थी. फिर लोगों के बीच माहौल कुछ-कुछ इस शेर के मानिंद हो गया-
वाह! क्या इस गुलबदन का शोख़ है रंग-ए-बदन
जामा-ए-आबी अगर पहना, गुलाबी हो गया
माफ़ी. पता है बरी-वासियों ने मुज़फ़्फ़र अली असीर का ये शेर नहीं पढ़ा. तभी तो 'मानिंद' लिखा था. मतलब कुछ ऐसा सोचा तो होगा. उनके साहित्य में कुछ इस-सा मिलता-जुलता होगा, तो वैसा कुछ पढ़ा होगा. क्यों? क्योंकि उन्हें दिखा एक कबूतर. गुलाबी रंग का एक कबूतर.
सही पढ़ा है आपने. कोई ग्लिच नहीं है. बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, बरी क़स्बे में राहगीरों को एक गुलाबी रंग का कबूतर दिखा. आदतन लोग वीडियो बनाने लगे. कबूतर भी मिलनसार था. फ़ुटपाथ पर ही फुदक रहा था. लोग दाना डाल रहे थे, वो दाना चबा रहा था. इधर से उधर उड़ रहा था. जहां जा रहा था, लोग अपने पूरे अचम्भे के साथ उसे देख रहे थे. लोगों को दिखा रहे थे. यहां तक कि ग्रेटर मैनचेस्टर पुलिस के अधिकारियों ने भी अपने गश्त के दौरान इस दुर्लभ पक्षी के दिखने की सूचना दी.
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इस कबूतर के दिखने के बाद उन लोगों को कुछ मलाल हुआ, जो कबूतर के ज़रिए चिट्ठी भिजवाते थे... गुलाब भिजवाते थे. उनके मन में आया होगा कि अगर तब ये कबूतर मिल जाता, तो सिर्फ़ उसे ही भिजवा देते. गुलाब का ख़र्च बच जाता.
खैर, ये गुलाबी कबूतर कहां से आया? कैसे आया? उसका रंग गुलाबी क्यों है? -- शहरियों के बीच अटकलें चली जा रही हैं. कुछ सोच रहे हैं कि ये रंग पक्का है, प्राकृतिक है. कुछ को लग रहा, इसे रंगा गया है या ये किसी तरह के पदार्थ में गिर गया है, जिस वजह से इसका रंग बदला.
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और, ये पहली बार नहीं है जब गुलाबी कबूतर सुर्खियों का हिस्सा हो, या उस पर ख़बरें लिखी जा रही हों. इससे पहले न्यूयॉर्क शहर के मैडिसन स्क्वायर पार्क में भी ऐसा ही पक्षी पाया गया था. उस कबूतर को कथित तौर पर किसी ने चमकीले गुलाबी रंग में रंगा था. फिर कुपोषण के लक्षण दिखने के बाद वाइल्ड बर्ड फंड ने उसे रेस्क्यू किया.
हालांकि गुलाबी कबूतर हमेशा रंगे जाने की वजह से नहीं दिखते. कभी ये अक्सर दिखते थे. लेकिन 70 और 90 के दशक में ये लगभग विलुप्त हो गए. अब कभी-कभी और कहीं-कहीं दिखते हैं.