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पेरिस के आसमान से बरसेगा प्लास्टिक ही प्लास्टिक, ऐसा गंभीर अनुमान पहले कभी नहीं लगा

विडंबना देखिए पेरिस में ही 175 देश जल्दी ही प्लास्टिक प्रदूषण पर चर्चा करने जा रहे हैं.

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क्या और क्यों होती है प्लास्टिक की बारिश? (सांकेतिक फोटो-Unsplash.com)

फ्रांस की राजधानी पेरिस (Paris) में प्लास्टिक की बारिश (Plastic Rain) होने वाली है. मौसम वैज्ञानिकों ने ये अजीबोगरीब पूर्वानुमान जारी किया है. उनका कहना है कि पेरिस में रोजाना आसमान से लगभग 50 किलो का प्लास्टिक बरस सकता है. अगर भारी बारिश हुई तो इस मात्रा के और बढ़ने के अनुमान हैं. 

विडंबना देखें कि जल्दी ही पेरिस में प्लास्टिक पॉल्यूशन के मुद्दे पर एक अंतरराष्ट्रीय बैठक होने वाली है. आगामी 29 मई से यहां पांच दिन की प्लास्टिक संधि अंतरराष्ट्रीय चर्चा (Plastic Treaty International Discussion) का आयोजन शुरू होगा. इसमें 175 से ज्यादा देशों के राजनयिक शामिले होंगे. वे प्लास्टिक प्रदूषण को लेकर अंतरराष्ट्रीय कानून बनाने पर चर्चा करेंगे.

क्या है प्लास्टिक की बारिश?

प्लास्टिक रेन दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में होती रही है. ये पहली बार है जब मौसम वैज्ञानिकों ने इसको लेकर पूर्वानुमान जारी किया है. वो भी इतनी ज्यादा मात्रा में.

प्लास्टिक की बारिश में प्लास्टिक के मलबे के बहुत छोटे टुकड़े या माइक्रोप्लास्टिक आसमान से गिरते हैं. ये 5 मिलीमीटर से भी छोटे होते हैं. ये माइक्रोप्लास्टिक अलग-अलग स्रोतों से आता है. जैसे- पैकेजिंग, कपड़े, ऑटोमोबाइल, पेंट या पुराने कार के टायर. आमतौर पर ये सिंगल यूज प्लास्टिक में होता है जिसे इस्तेमाल के बाद फेंक दिया जाता है. यहां से यह हवा-पानी-मिट्टी को प्रदूषित करता चलता है. ये वेस्टवॉटर में जाकर समुद्र में पहुंचते हैं, इकोसिस्टम का हिस्सा बनते हैं और फिर बारिश बनकर धरती पर वापस लौट आते हैं.

इन्हें इकट्ठा किया जाए तो प्लास्टिक का पहाड़ खड़ा हो जाएगा. माइक्रोप्लास्टिक के ये टुकड़े खुली आंखों से नहीं दिखाई नहीं देते. अगर आप UV लाइट के साथ खड़े हो जाएं तो हवा में इसके छोटे-छोटे कण दिख सकते हैं. शोधकर्ताओं का मानना ​​है कि पेरिस में बरसने वाला ज्यादातर माइक्रोप्लास्टिक नायलॉन और पॉलिएस्टर से पैदा हुआ है.

सेहत पर क्या असर पड़ता है?

साल 2021 में माइक्रोप्लास्टिक के असर पर हुई रिसर्च में खुलासा हुआ कि हम रोज लगभग 7 हजार माइक्रोप्लास्टिक के टुकड़े अपनी सांस के जरिए लेते हैं. पोर्ट्समाउथ यूनिवर्सिटी की स्टडी में माना गया कि ये तंबाकू खाने या सिगरेट पीने जैसा है. फिलहाल ये पता नहीं लग सका है कि प्लास्टिक की कितनी मात्रा सेहत पर बुरा असर डाल सकती है. हालांकि ये बार-बार कहा जा चुका है कि इससे हमारे पाचन तंत्र से लेकर प्रजनन क्षमता पर बुरा असर होता है. प्लास्टिक कैंसर-कारक भी है. 

आजतक ने अपनी एक रिपोर्ट में साइंस जर्नल की अमेरिका पर हुई स्टडी का जिक्र किया. इसमें अमेरिका के सबसे साफ साउथ नेशनल पार्क की हवा की जांच की गई. इस दौरान वहां भी लगभग 14 महीने तक प्लास्टिक वाली बारिश देखी गई. पता लगा कि इतने ही महीनों में 1 हजार मैट्रिक टन से ज्यादा प्लास्टिक बरस चुका है. ये वो इलाका था जहां कई किलोमीटरों तक न तो वाहन होता है न पॉल्यूशन का कोई और स्त्रोत. वैज्ञानिकों ने जांच कर दावा किया था कि आर्कटिक जैसी जगह पर भी बर्फबारी में माइक्रोप्लास्टिक्स मिल रहे हैं. 

अनुमान है कि साल 2030 तक प्लास्टिक रेन 260 मिलियन टन से बढ़कर सीधे 460 मिलियन टन हो जाएगी. माइक्रोप्लास्टिक पॉल्यूशन को कम करने के लिए अलग अलग तकनीकों पर काम हो रहा है. 

वीडियो: तारीख: 27 सालों में नहीं सुलझा AK-47 की बारिश का रहस्य