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Sting Operation: घर बनवाने के लिए प्रयागराज विकास प्राधिकरण में यूं होता है 'फर्जीवाड़ा'

प्रयागराज प्राधिकरण ने 'अवैध' बता कर मोहम्मद जावेद का घर गिरा दिया था.

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(फोटो: आजतक/पीटीआई)

पैगंबर मोहम्मद पर विवादित टिप्पणी करने को लेकर बीती 10 जून को उत्तर प्रदेश के अलग-अलग जिलों में जुमे की नमाज के बाद विरोध प्रदर्शन हुए थे. इस दौरान कुछ जगहों पर हिंसा भी हुई थी. इसके जवाब में पुलिस ने फौरी कार्रवाई की और आरोपियों के खिलाफ संबंधित धाराओं में केस दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार किया था. हालांकि ये एक्शन यहीं पर नहीं रुका. स्थानीय प्रशासन ने कुछ लोगों को मुख्य आरोपी बताते हुए उनके घरों को बुलडोजर से जमींदोज कर दिया, जिसमें प्रयागराज के कार्यकर्ता मोहम्मद जावेद का भी घर शामिल है. प्रयागराज विकास प्राधिकरण ने दलील दी कि जावेद ने गैरकानूनी तरीके से दो मंजिला घर का निर्माण कराया था. 

लेकिन कार्रवाई को लेकर बाद में प्रशासन सवालों के घेरे में आ गया. कहा गया कि जिस घर को प्रशासन ने गिराया वो मोहम्मद जावेद के नाम पर था ही नहीं, ना ही उस पर बुलडोजर चलाने से पहले कोई एडवांस नोटिस दिया गया. और अब एक स्टिंग ऑपरेशन सामने आया है. आजतक के इस स्टिंग में बताया गया है कि प्रयागराज विकास प्राधिकरण में घर बनवाने का नक्शा पास कराने और संबंधित मंजूरी प्राप्त करने के लिए क्या-क्या करना होता है. 

इस स्टिंग में काफी चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं. आजतक के पंकज श्रीवास्तव और नितिन जैन की रिपोर्ट के मुताबिक प्राधिकरण में नक्शा पास कराने के लिए लोगों की लाइन लगी है और आम आदमी सरकारी दफ्तरों के चक्कर काट रहा है. लेकिन इस बीच जो अधिकारियों को पैसे खिला देता है, उसे तत्काल मंजूरी मिल जाती है.

प्रयागराज विकास प्राधिकरण के ऑफिस की सातवीं मंजिल पर 22 जून को करीब 12.30 बजे आजतक के रिपोर्टर ने इंस्पेक्टर कुंवर आनंद से मुलाकात की थी. कुंवर मकानों, दुकानों और व्यावसायिक बिल्डिंग के निरीक्षण का काम करते हैं. इसके बाद सुपरवाइजर वेद तिवारी से मुलाकात हुई. इन अधिकारियों के साथ बातचीत के बाद एक के बाद एक कड़ी खुलती गई कि किस तरह प्रयागराज विकास प्राधिकरण में भ्रष्टाचार हो रहा है और रिश्वस्त के बाद मंजूरियां दी जा रही हैं.

यहां हम रिपोर्टर और प्रयागराज विकास प्राधिकरण के अधिकारियों के साथ बातचीत का विवरण दे रहे हैं. 

रिपोर्टर- नमस्कार.

कुंवर- आपने फोन किया था.

रिपोर्टर-हां जी, खुल्दाबाद आप ही देखते है.

कुंवर- हां जी.

रिपोर्टर- लकड़ी बाज़ार है, वहां मकान बनाना है..

कुंवर- हां जी.

रिपोर्टर-उसका प्रोसेस बता दीजिए.

कुवंर – मकान बन चुका है आपका?

रिपोर्टर- नहीं बना हुआ है, तोड़ कर बनाना है.

कुंवर- नक्शा पास करवाना पड़ेगा…कितना बड़ा है?

रिपोर्टर- 150 गज.

पहले तो इंस्पेक्टर कुंवर आनंद ने बोला की वहां का नक्शा पास करवाना पड़ेगा, फिर बोले कि जैसा चाहे नक्शा पास हो जाएगा और बाकी जानकारी के लिए उनका सारा काम देखने वाले सुपरवाइजर वेद तिवारी से बात कर लें.

कुंवर आनंद- जैसा चाहें, नक्शा पास हो जाएगा..

रिपोर्टर- बाकी?

कुंवर आनंद - बाकी आप इनसे बात कर लीजिए.

इसके बाद वेद तिवारी ने 'आजतक' रिपोर्टर से मकान की लोकेशन समझ कर बताया कि सरकारी तौर पर काम करवाने में झंझट बहुत है. पैसे के साथ-साथ वक्त भी बहुत लगता है.

सुपरवाइजर- कहां पर है?

रिपोर्टर- लकड़ी मंडी..सर.

सुपरवाइजर- सब्जी मंडी है या उसके बाद है, आगे से नुरुला रोड मिल जाता है?

रिपोर्टर- कई तरफ से रास्ता मिल जाता है.

सुपरवाइजर- फ्रंट पर तो नहीं है

रिपोर्टर- नहीं.

सुपरवाइजर- कोई शिकायत तो नहीं है अगल-बगल आस-पड़ोस. मकान बनाना है तो नक्शा पास करवाना पड़ेगा, पहले फीस जमा करवानी है? सारे पेपर, स्वामित ले आइए, आर्किटेक्ट को बुलाइए और फीस जमा करा दीजिए. बहुत पैसा लगेगा. टाइम लगेगा.

इस पूरी प्रकिया से बचने का भी इलाज उनके पास था. यानी कि रिश्वत.

सुपरवाइजर- प्राइवेट और अगर आपको उसको बनाना है तो पहले आप इसको तोड़िए. जब टूट जाएगा तब शुरु होगा.

रिपोर्टर- क्या कुछ लगेगा?

सुपरवाइजर- ये उसी समय तय हो जाएगा कि आप क्या बनाएंगे, आवास बनाएंगे या मार्किट बनाएंगे.

रिपोर्टर-आवास बनाएगें…मार्केट की तो जगह ही नहीं है.

सुपरवाइजर- नहीं नहीं, पीछे मार्केट तो बना सकते हैं.

रिपोर्टर- मार्केट की लायक जगह नहीं है.

सुपरवाइजर- वो भी बन जायेगा..आप पहले तोड़कर शुरु तो करिए.

रिपोर्टर- फिर भी आप बताएं, क्या लगेगा.

सुपरवाइजर-जब बनाएंगें, तभी उस समय बात करेगें, अभी से क्या बताएं.

रिपोर्टर- फिर भी क्या लगेगा?

सुपरवाइजर-जब आप शुरु करेंगे मौके पर तब बताएंगे. देखिए, आप बढ़िया तरीके से काम शुरु करिये.

रिपोर्टर- इंजीनियर साहब का नाम क्या है?

सुपरवाइजर-कुंवर आनंद.

रिपोर्टर- और आप.

सुपरवाइजर- हम उनके सुपरवाइजर हैं.

रिपोर्टर- आपका नाम क्या है?

सुपरवाइजर- वेद तिवारी.

रिपोर्टर- वेद तिवारी.

सुपरवाइजर- हां हां, आ जाइए.

रिपोर्टर- नंबर दे दीजिए.

सुपरवाइजर- उनसे ले लीजिए, आप उन्हीं से बात कर लीजिएगा, जब उनसे बात हो जाएगी वो हमको मैसेज कर देगें.

इसी सिलसिले में सुपरवाइजर वेद तिवारी से रिपोर्टर की अगली मुलाकात हुई. इसका मकसद सुपरवाइजर से बिना नक्शे के मकान बनाने की रिश्वत का दाम पूछना था.

रिपोर्टर- हमें थोड़ा सा बजट एक बार पता चल जाता कि आप क्या लेंगे, क्योंकि बिना नक्शे का मकान बनेगा, वो बात तो आनंद जी से भी हो गई थी. बिना नक्शे के बनेगा तो कितना पैसा लग जाएगा. पैसा बता दीजिए आप.

सुपरवाइजर- आप काहे इतना परेशान हैं.

रिपोर्टर- बजट का दिक्कत आ रहा है, 150 गज का है, वो जो मंदिर नहीं देखा आपने…

सुपरवाइजर- कितने बाई कितने का है? इसका(मकान) फेस किधर है दक्षिण, उत्तर,पूर्व, पश्चिम...

रिपोर्टर- जैसे हम सीधे खड़े हैं.

सुपरवाइजर- पूर्व सामने रोड कितनी है?

रिपोर्टर- होगी 15-20  फीट.

सुपरवाइजर- 20 फीट पर तो नक्शा ही नहीं पास होगा. 150 गज में लंबाई कितनी है, चौड़ाई कितनी है? 20 बाई 70…कल तो आप मिले थे न कुंवर आनंद से, फिर कब बात हुई?

रिपोर्टर- फिर फोन नंबर लिया उनसे, वो कह रहे कि बात आपसे करें.

सुपरवाइजर- देखिए आपका निर्माण शुरु नहीं हुआ है. अभी से ये सब बात सीक्रेट होती है. इन बातों का ज्यादा प्रचार-प्रसार कि जरूरत नहीं है. आपकी हम मदद करेगें. आपका निर्माण विद आउट नक्शा करवायेंगें. तो आप करते जाइए, कोई दिक्कत नहीं.

रिपोर्टर- दाम क्या लगेगा? थोड़ा सा पता चल जाए तो आईडिया लग जायेगा

सुपरवाइजर- 20 बाइ 70 का निर्माण होगा, क्या बनाएंगे आवास?

रिपोर्टर- हां.

सुपरवाइजर- रहने का.

रिपोर्टर- हां.

सुपरवाइजर- टोटल आप रहने का बनाएगें, व्यापार का नहीं.

रिपोर्टर- हां.

(कागज पर लिखते हुए 70 हजार लिखते हुए.)

सुपरवाइजर-  पर फ्लोर.

रिपोर्टर- पर फ्लोर 70 हजार? 70 हजार रुपये ज्यादा नहीं है महाराज..

सुपरवाइजर-  नहीं.

रिपोर्टर- हैं?

सुपरवाइजर-नहीं, पर फ्लोर.

रिपोर्टर- पर फ्लोर 70 हजार में हो जायेगा न.

सुपरवाइजर- हां हां.

रिपोर्टर- तो मानकर चलिए 140 (हजार) के करीब.

सुपरवाइजर- दो मंजिला बनाएंगे न.

रिपोर्टर- हां एक लाख 40 हजार हो जाएगा न.

सुपरवाइजर- हां.

बिना नक्शे के मकान को बनाने की एक मंजिल की कीमत 70,000 रुपये थी. लेकिन इतना ही नहीं, अगर बिना नक्शे का मकान बनाने की कोई शिकायत आती है, तो उसको कैसे वेद तिवारी सुपरवाइजर संभालेगें, वो जानिए…  

रिपोर्टर- फिर कोई शिकायत वगैरह सब आप संभाल लेगें न?

सुपरवाइजर-पहले मेरी बात सुनिए, जब कोई शिकवा, शिकायत होगी आपको लेटर दिखाएंगें, पक्की बात होगी. वो कोई फॉरमेलिटी नहीं है. आपके दस रुपये लिए रहेगें (आपसे रिश्वत ले रखी है), आपका नमक खाए रहेंगे, तो वो आपको दिखाकर जो भी बन सकेगा, आपकी पूरी मदद करेंगे. आपको हैरान होने की कोई अवश्यकता नहीं है.

केस-2

आजतक की स्पेशल इंवेस्टिगेशन टीम ने अब दूसरे शख्स राकेश शर्मा से बात की. राकेश शर्मा कटरा इलाका देखते हैं. उनसे मुलाकात प्रयागराज विकास प्रधिकरण की इमारत के बाहर हुई.

रिपोर्टर- आप यहां पर क्या हैं?

राकेश शर्मा- सुपरवाइजर.

रिपोर्टर- आपसे बात करेंगे और किसी और से बात भी नहीं करेंगे.

राकेश शर्मा- जेई साहब हमारे बात भी नहीं करेंगे.

राकेश शर्मा-कितने बाई कितने का है.

रिपोर्टर-150 गज का है.

राकेश शर्मा- रोड पर है?  

रिपोर्टर- रोड पर नहीं है, अंदर की तरफ है.

फिर रिपोर्टर ने राकेश शर्मा से मकान बनाने का सेवा शुल्क यानी रिश्वत पूछी, तो उन्होंने हर एक मंजिल के लिए करीब 40 हजार रुपये बता दिए.

रिपोर्टर-आपका नाम क्या है?

राकेश शर्मा- राकेश शर्मा.

रिपोर्टर- तो हो जायेगा न पड़ित जी? आप सेवा बताएं.

राकेश शर्मा- सेवा, क्योंकि आज जेई साहब नहीं हैं, तो थोड़ा उनसे पूछ लिया जाए. थो़ड़ा मैं उनसे भी राय लेकर तब मैं आपसे बात करुंगा.

रिपोर्टर-फिर भी एक लम-सम बता देते.  

राकेश शर्मा- आपकी लिमिट में रहेगा..लिमिट में रहेगा..लिमिट के ऊपर नहीं जायेगा...लगभग 40 तक मान लीजिए.

रिपोर्टर- बना लेगें न दो मंजिल आराम से.

राकेश शर्मा- ना ना…

रिपोर्टर-सिंगल.

राकेश शर्मा-हां.

रिपोर्टर- दो मंजिल?

राकेश शर्मा- तो बस दुगुना कर लीजिए.

रिपोर्टर- तो 80 (हजार) बहुत ज्यादा है.

राकेश शर्मा- जो हम ये बात कर रहे हैं, जोनल और अफसर को भी देना पड़ता है जिससे कोई दिक्कत आए तो बराबर कर सकें...किसी को देखिए अंधेरे में रख कर काम नहीं किया जाता.

रिपोर्टर- बात साफ होनी चाहिए.

राकेश शर्मा- चोरी में भी ईमानदारी हो.

राकेश शर्मा- Complaint अगर कोई आएगा तो हम आपको बताकर तभी कोई कार्यवाही करेंगे कि आपकी शिकायत आ गई है. कार्यवाही मैं करने चल रहा हूं.

रिपोर्टर- तो फिर आप उसको कैसे निपटाएंगे?

राकेश शर्मा- निपटेगा सब.

रिपोर्टर-निपट जायेगा सब?

राकेश शर्मा- निपटेगा कैसे नहीं ...कौन सा ऐसा काम है जो नहीं होगा.