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गाड़ी पर ये वाली नंबर प्लेट लगा ली तो कोई गाड़ी नहीं रोक पाएगा!

गाड़ियों में ये अलग-अलग रंग की प्लेट्स क्यों होती हैं और ये मिलती कैसे हैं?

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अलग-अलग रंग के नंबर प्लेट.

मैं जब आज सुबह ऑफिस आ रही थी, तो मेरी नज़र सड़क पर जा रही दो गाड़ियों पर अटक गई. दोनों गाड़ियों की नंबर प्लेट पर मेरा ध्यान गया. एक की प्लेट सफेद रंग की थी और दूसरी गाड़ी की हरे रंग की. जैसे ही मैंने इन्हें देखा, तो मेरे दिमाग में ये सवाल आया कि गाड़ियों को ये अलग-अलग कलर की नंबर प्लेट कैसे मिलती है? क्या इनके लिए ज्यादा पैसे देने पड़ते हैं या कोई फ़ॉर्मूला होता है? आपके दिमाग में भी कभी ना कभी ये सवाल तो ज़रूर आया ही होगा. चलिए, समझते हैं गाड़ियों की नंबर प्लेट का खेल.

दो ऐसे रंग, जो आपने नंबर प्लेट्स पर सबसे ज्यादा देखे होंगे वो हैं सफेद और पीले. इसके अलावा भी कई और रंग में गाड़ियों की नंबर प्लेट होती हैं. सबसे पहले बात कर लेते हैं सफेद रंग की. क्योंकि इस रंग की नंबर प्लेट सबसे ज्यादा देखने को मिलती हैं.

सफेद नंबर प्लेट

मान लीजिए कि रमेश ने अपने पर्सनल यूज़ के लिए एक गाड़ी खरीदी. अब जब वो गाड़ी की नंबर प्लेट के लिए अप्लाई करेगा, तो उसे जो नंबर प्लेट मिलेगी वो सफेद रंग की होगी, जिसमें काले रंग से नंबर लिखा हुआ होगा. इस गाड़ी को रमेश किसी भी तरह के कमर्शियल या ट्रांसपोर्ट के काम में इस्तेमाल नहीं कर सकता है. वो इसे सिर्फ अपने और अपने परिवार के कामों के लिए इस्तेमाल कर सकता है.

सफेद रंग वाली नंबर प्लेट.

पीली नंबर प्लेट

अब मान लीजिए कि  रमेश का मन हुआ कि उसे अपना ट्रांसपोर्ट का काम शुरू करना है या गाड़ी खरीदकर उसे टैक्सी के बिजनेस में लगाना है. यानी कुल मिलाकर उसका कमर्शियल इस्तेमाल करना है. ऐसे में रमेश को जो नंबर प्लेट मिलेगी वो पीले रंग की होगी, जिसपर काले रंग से नंबर लिखा हुआ होगा. आपने सामान ढोने वाले गाड़ियों, टैक्सी, ट्रक, टैम्पो इत्यादि में पीले रंग की प्लेट्स देखी होंगी.

पीले रंग वाली नंबर प्लेट.

हरी नंबर प्लेट

अब रमेश को लगा कि पेट्रोल डीज़ल तो बहुत महंगा हो गया है. ऐसी गाड़ी खरीदी जाए जो इलेक्ट्रिसिटी से चलती हो. जिसे चार्ज किया और चल दिए. ऐसी गाड़ी की नंबर प्लेट हरे रंग की होगी. अब अगर रमेश ने ये इलेक्ट्रिक गाड़ी अपने पर्सनल इस्तेमाल के लिए ली होगी तो हरे रंग की प्लेट पर सफेद रंग से नंबर्स लिखे होंगे. अगर कमर्शियल यूज़ के लिए ली होगी तो नंबर्स सफेद की जगह पीले रंग से लिखे हुए होंगे.

हरे रंग वाली नंबर प्लेट.

काले रंग की प्लेट

पीले रंग की तरह काले रंग की प्लेट भी वाहनों के कमर्शियल यूज़ के लिए के लिए होती है, लेकिन ये अलग इसलिए हैं क्योंकि इन्हें ख़ास व्यक्तियों के लिए ख़ास मौकों पर इस्तेमाल किया जाता है. ये खासकर फाइव स्टार होटल्स में गेस्ट्स के लिए इस्तेमाल की जाती हैं. मान लीजिए अगर रमेश की गाड़ी किसी फाइव स्टार होटल में कमर्शियल वाहन के तौर पर इस्तेमाल होती है, तो उसकी नंबर प्लेट काले रंग की होगी, जिसमें पीले रंग से नंबर लिखे हुए होंगे.

काले रंग की नंबर प्लेट.

लाल रंग की नंबर प्लेट

लाल रंग की नंबर प्लेट रमेश को नहीं मिल सकती. लाल रंग की नंबर प्लेट भारत के राष्ट्रपति और अलग-अलग राज्यों के राज्यपाल की आधिकारिक गाड़ियों में ही लगी होती है. इन प्लेट्स में गोल्डन कलर से नंबर्स लिखे हुए होते हैं. इन गाड़ियों में लाल रंग की नंबर प्लेट पर अशोक चिह्न बना हुआ होता है. 

हालांकि, 2018 के पहले तक इन VVIP सरकारी वाहनों पर नंबर्स की जगह सिर्फ अशोक चिह्न बना हुआ होता था. इसके अलावा लाल रंग की नंबर प्लेट उन गाड़ियों पर भी लगाई जाती है, जिन्हें कार निर्माता कंपनियां टेस्टिंग के लिए सड़कों पर उतारती हैं. इस तरह की गाड़ियों को टेम्पररी नम्बर्स दिए जाते हैं. इन नम्बर्स की वैलिडिटी एक महीने की होती है.

लाल रंग की नंबर प्लेट.

नीले रंग की प्लेट

नीले रंग की नंबर प्लेट्स उन गाड़ियों पर लगाई जाती हैं, जिनका इस्तेमाल विदेशी राजनयिक करते हैं. इस प्लेट पर सफेद रंग से नंबर लिखे जाते हैं. ये प्लेट बताती हैं कि गाड़ी विदेशी दूतावास की है या फिर यूएन मिशन के लिए है.

इन पर DC (Diplomatic Corps), CC (Consular Corps), UN (United Nations) जैसे अल्फाबेट्स लिखे हुए होते हैं. ये नंबर प्लेट भी रमेश को नहीं मिल सकती है.

नीले रंग की नंबर प्लेट.

तीर वाली प्लेट

इस तरह के तीर के निशान आपको मिलिट्री वाहनों पर देखने को मिल जाएंगे. ये नंबर प्लेट डिफेंस मिनिस्ट्री ही इशू करती है. इन गाड़ियों में पहले या तीसरे नंबर की जगह ऊपर की ओर इशारा करता हुआ तीर का निशान बना होता है. जिसे ब्रॉड एरो कहा जाता है. तीर के बाद के पहले दो नंबर्स उस साल को दिखाते हैं, जिसमें सेना ने ये वाहन खरीदा था, ये नम्बर 11 अंकों का होता है.

तीर वाली नंबर प्लेट.

अब रंगों का खेल तो समझ लिया, नंबर्स का गणित भी समझ लेते हैं. किसी भी वाहन को आखिर नंबर दिया कैसे जाता है? दरअसल, किसी भी नंबर प्लेट के कैरेक्टर्स चार फैक्टर्स पर डिपेंड करते हैं. स्टेट या यूनियन टेरेटरी, डिस्ट्रिक्ट, गाड़ी का यूनीक नंबर, और IND का चिह्न.

किसी भी गाड़ी के नंबर के पहले दो अक्षरों से पता चलता है वो स्टेट या यूनियन टेरेटरी जहां वो गाड़ी रजिस्टर की गई है. मान लीजिए, अगर रमेश ने उत्तर प्रदेश में गाड़ी खरीदी और रजिस्टर करवाई तो उसकी गाड़ी के नंबर प्लेट के शुरू के दो अक्षर होंगे 'UP' जिनकी फुल फॉर्म है उत्तर प्रदेश. नंबर प्लेट्स में इस तरह से राज्य को दर्शाने का ये तरीका 1980 के दशक से शुरू हुआ था.

अब स्टेट के बाद अगले दो अंक बताते हैं वो ज़िला या RTO कौन सा है जहां ये गाड़ी रजिस्टर्ड है. हर राज्य में अलग-अलग ज़िले होते हैं और हर ज़िले को अपना एक सीक्वेंशियल नंबर दिया जाता है. ये उस ज़िले या RTO की हर गाड़ी के लिए फिक्स्ड होता है. अब अगर रमेश ने नोएडा/गौतम बुद्ध नगर में अपनी गाड़ी रजिस्टर करवाई है, तो उसकी गाड़ी का नंबर UP-16 से शुरू होगा. अगर रमेश ने गाड़ी बिहार के पटना ज़िले में रजिस्टर करवाई होती, तो नंबर होता BR-1.

अब आता है तीसरा हिस्सा. ये एक, दो या तीन अंक का हो सकता है. ये उस रीजनल ट्रांसपोर्ट ऑफिस (RTO) में चल रही सीरीज के हिसाब से तय होता है. ये  A से Z तक कुछ भी हो सकता है. डिपेंड करता है कि उस समय कौन सी सीरीज़ चल रही है.

रजिस्ट्रेशन नंबर में चौथा हिस्सा उस वाहन का रजिस्ट्रेशन नंबर होता है. जो यूनीक होता है. ये  1 से लेकर 9999 तक का नंबर हो सकता है. लेकिन अगर किसी इलाके में रजिस्टर्ड वाहनों की संख्या 9999 से ज्यादा हो जाए तो इस 4 डिजिट के नंबर से पहले एक लेटर जोड़कर उसे आगे बढ़ा दिया जाता है. वहीं, अगर उस सीरीज में भी 10000 वाहन रजिस्टर हो जाते हैं, तो नंबर से ठीक पहले 2 लेटर जोड़ दिए जाते हैं.

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