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"टीवी चैनल्स पर हेट स्पीच को लेकर कड़ी कार्रवाई नहीं हो रही, सरकार चुप है"- सुप्रीम कोर्ट ने कहा

कोर्ट ने कहा कि कड़ाई से पेश नहीं आया जा रहा है. चैनल्स पर जुर्माना लगाया जा सकता है. ऑफ एयर किया जा सकता है.

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धर्म संसद में दिए गए भाषणों के ख़िलाफ़ भी याचिकाएं दायर की गई हैं. (फोटो - सोशल मीडिया)

"एक टीवी ऐंकर का कर्तव्य है कि वो नफ़रत फ़ैलाने से बचे. हम नफ़रत को फ़ैलने नहीं दे सकते."

ऐसा कहा है सुप्रीम कोर्ट ने. सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस के एम जोसेफ ने. दरअसल, सुप्रीम कोर्ट में हेट स्पीच (Hate Speech) से जुड़ी याचिकाओं पर सुनवाई चल रही है. कुल 11 रिट पेटिशन्स हैं. सुदर्शन न्यूज़ पर प्रसारित 'UPSC जिहाद' शो के ख़िलाफ़. 'धर्म संसद' की बैठकों में दिए गए भाषण के ख़िलाफ़. और, सोशल मीडिया के रेगुलेशन की मांग करने वाली याचिकाएं. इन्हीं की सुनवाई के दौरान जस्टिस के एम जोसेफ और जस्टिस ऋषिकेश रॉय की बेंच ने कहा है कि हेट स्पीच से निपटने के लिए एक ठोस सिस्टम की ज़रूरत है. साथ ही सरकार की भूमिका पर भी सवाल उठाए. पूछा कि सरकार मूक दर्शक बनकर क्यों बैठी है? और, क्या सरकार इस पर अंकुश लगाने के लिए कोई क़ानून बनाने का इरादा रखती भी है?

लाइव लॉ में छपी रिपोर्ट के मुताबिक़, जस्टिस केएम जोसेफ ने कहा,

"मुख्यधारा मीडिया और सोशल मीडिया पर इस्तेमाल हो रही भाषा बेलगाम है. जहां तक ​​मुख्यधारा के TV चैनलों का सवाल है, वहां ऐंकर की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है. जिस वक़्त ऐंकर किसी को नफ़रती भाषण देते देखता है, ये उसका कर्तव्य है कि वो उस व्यक्ति को आगे कुछ भी बोलने से रोके.

हमारे यहां अमेरिका की तरह प्रेस की स्वतंत्रता के लिए अलग से क़ानून नहीं है. इसमें कोई शक नहीं कि खुली बहस होनी चाहिए. प्रेस की स्वतंत्रता ज़रूरी है, लेकिन हमें पता होना चाहिए कि लाइन कहां खींचनी है. यूके में एक चैनल पर भारी जुर्माना लगा था, ऐसा यहां नहीं है. उनके साथ कड़ाई से पेश नहीं आया जा रहा है. उनके ऊपर जुर्माना लगाया जा सकता है, ऑफ एयर किया जा सकता है."

‘इसका असर पूरा देश झेलता है’

कोर्ट ने केंद्र सरकार को भी फटकार लगाई. कहा कि सरकार को प्रतिकूल रुख नहीं अपनाना चाहिए. बल्कि अदालत की मदद करनी चाहिए. साथ ही ये भी पूछा कि क्या सरकार के लिए ये एक मामूली मुद्दा है? अदालत ने एक और बहुत अहम टिप्पणी की. कहा,

"राजनीतिक दल आएंगे-जाएंगे, लेकिन इसका असर असल में पूरा देश झेलता है. देश की संस्थाएं झेलती हैं. पूरी तरह से स्वतंत्र प्रेस के बिना, कोई भी देश आगे नहीं बढ़ सकता. और, हेट स्पीच इस साख को ही दूषित कर देती है... इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती!

हेट स्पीच में बहुत सी परतें हैं. किसी की हत्या करने जैसा. आप कई तरीक़ों से हत्या कर सकते हैं. धीरे-धीरे या तेज़ी से."

मामले की अगली सुनवाई 23 नवंबर को होगी. इसके अलावा, हेट स्पीच से निपटने के लिए भारत के विधि आयोग ने 2017 में एक रिपोर्ट पेश की थी. अदालत ने सरकार से ये स्पष्ट करने को कहा है कि वो विधि आयोग की सिफ़ारिशों पर कार्रवाई करने के बारे में क्या सोचती है.

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