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'क्या गुजरात HC में ऐसा ही होता है?' तीस्ता सीतलवाड़ की जमानत याचिका पर SC ने पूछे सवाल

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि पुलिस की FIR में सिर्फ कोर्ट की ही टिप्पणियों का जिक्र है और ये ऐसा मामला नहीं है, जिसमें जमानत देने से मना कर दिया जाए.

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सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़. (फोटो: फेसबुक)

सुप्रीम कोर्ट ने सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड़ की जमानत याचिका पर सुनवाई के दौरान गुजरात पुलिस और गुजरात हाईकोर्ट पर कई तीखे सवाल उठाए हैं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सीतलवाड़ के खिलाफ दर्ज FIR में उसके फैसले के एक हिस्से का ही जिक्र है, और कुछ नहीं. साथ ही कोर्ट ने ये भी पूछा कि इस मामले की सुनवाई के लिए हाईकोर्ट ने छह हफ्ते के बाद का समय क्यों दिया था?

तीस्ता सीतलवाड़ 26 जून से ही जेल में बंद हैं. गुजरात पुलिस ने गोधरा कांड के बाद हुए दंगों के मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को क्लीन चिट देने वाले सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश का हवाला देकर उनपर दस्तावेजों के फर्जीवाड़े करने का आरोप लगाया है.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, मुख्य न्यायाधीश यूयू ललित, जस्टिस रवींद्र भट्ट और जस्टिस सुधांशू धूलिया की पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता पिछले दो महीने से हिरासत में है, लेकिन अभी तक कोई चार्जशीट फाइल नहीं की जा सकी है. कोर्ट ने कहा कि ये FIR जकिया जाफरी मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अगले दिन ही दायर की गई थी और इसमें कोर्ट की टिप्पणियों के अलावा और कुछ नहीं है.

FIR में बस सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

न्यायालय ने कहा कि गुजरात हाईकोर्ट ने तीस्ता सीतलवाड़ की जमानत याचिका पर 3 अगस्त को नोटिस जारी करते हुए कहा कि इसका जवाब 6 हफ्ते के भीतर में दिया जाए, जो कि काफी लंबा स्थगन है. सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि पुलिस ने जिस तरह के आरोप लगाए हैं, वे हत्या या किसी को चोट पहुंचाने जैसे गंभीर नहीं हैं, बल्कि ये कोर्ट में जाली दस्तावेज दायर करने के आरोप हैं.

आखिर में कोर्ट ने ये भी कहा कि ये इस तरह का मामला नहीं है कि याचिकाकर्ता को जमानत देने से इनकार किया जाए. इस सुनवाई के दौरान CJI यूयू ललित, वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल और सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता के बीच लंबी बहस भी देखने को मिली.

CJI ने मौखिक तौर पर कहा,

'इस मामले में UAPA, POTA जैसे अपराध के आरोप नहीं हैं कि इसमें जमानत नहीं दी जा सकती है. ये एक सामान्य IPC अपराध है. ऐसे मामलों में शुरुआती पुलिस हिरासत के बाद ऐसे कुछ नहीं बचता है कि बिना कस्टडी के जांच एजेंसी को जांच करने में बाधा आएगी.'

CJI ने पुलिस को फटकार लगाते हुए कहा, 

'FIR में सिर्फ वही बातें लिखी हैं जो कि कोर्ट में हुआ है. इसलिए क्या इसमें सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अलावा कोई और बात है? पिछले दो महीनों में क्या आपने चार्जशीट दायर की है? या फिर जांच चल रही है?'

जस्टिस ललित ने आगे कहा, 

'पिछले दो महीनों में आपके पास क्या सबूत आए हैं? महिला ने पूरे दो महीने हिरासत में बिता दिए हैं. आपने हिरासत में पूछताछ भी कर ली है. क्या आपके पास इससे कोई प्रमाण आए हैं.'

इसके साथ-साथ मुख्य न्यायाधीश ने गुजरात हाईकोर्ट के रवैये पर आश्चर्य जताया कि इस तरह के मामले में कोर्ट पूरे छह हफ्ते के लिए नोटिस जारी कर रहा है.

जस्टिस ललित ने कहा, 'क्या गुजरात हाईकोर्ट में यह स्टैंडर्ड प्रैक्टिस है?' 

CJI ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा कि आप ऐसा कोई मामला दिखाएं, जहां इस तरह के मामले में किसी महिला को आरोपी बनाया गया हो और नोटिस छह हफ्तों के लिए जारी किया गया हो. अब इस मामले की अगली सुनवाई दो सितंबर को दोपहर दो बजे होगी.

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