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मोदी सरकार गे व्यक्ति को जज नहीं बनाना चाहती?

एक गे व्यक्ति जज बन जाए तो क्या दिक्कत होगी?

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वरिष्ठ वकील सौरभ कृपाल (फाइल फोटो: ट्विटर/@KirpalSaurabh)

सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच खींचतान फिर चर्चा में है. बात जजों की नियुक्ति से ही जुड़ी है लेकिन ये मामला सिर्फ न्यायिक स्वतंत्रता बनाम सरकार वाले खांचे में फिट नहीं किया जा सकता. यहां बात हो रही वरिष्ठ वकील सौरभ कृपाल को दिल्ली उच्च न्यायालय में जज बनाने हेतु सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम की सिफारिश की, जो एक बार फिर की गई है.

दरअसल 13 अक्टूबर, 2017 को दिल्ली उच्च न्यायालय के कोलेजियम ने सर्वसम्मति से सौरभ कृपाल को दिल्ली उच्च न्यायालय में जज नियुक्त करने की सिफारिश कर दी थी. सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम ने 11 नवंबर, 2021 को इस सिफारिश पर अपनी मुहर लगाकर सरकार के पास भेजा था. अगर सरकार इस सिफारिश पर अमल करती, तो सौरभ कृपाल भारत के न्यायिक इतिहास में पहले ओपनली गे जज होंगे, जो किसी संवैधानिक अदालत में सुनवाई करेंगे. कंफ्यूज़ मत होइएगा, भारत की सारी ही अदालतों की स्थापना संविधान के तहत हुई है लेकिन संविधान की व्याख्या उच्च न्यायालयों और अंततः सर्वोच्च न्यायालय में होती है.

कौन हैं सौरभ कृपाल?

सौरभ कृपाल के पिता, भूपेंद्र नाथ कृपाल भी वरिष्ठ वकील थे. दिल्ली उच्च न्यायालय समेत दीगर उच्च न्यायालयों में जज रहे. वो मई से नवंबर, 2002 के बीच भारत के मुख्य न्यायाधीश भी रहे. पिता की तरह सौरभ कृपाल भी दिल्ली उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट में वरिष्ठ वकील हैं. वो भारत में गे राइट्स के नामी पैरोकारों में से हैं. उन्होंने “Sex and the Supreme Court: How the Law is Upholding the Dignity of the Indian Citizen नाम से एक किताब भी लिखी है.

2018 में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों वाली पीठ ने इंडियन पीनल कोड की धारा 377 को डीक्रिमिनलाइज़ कर दिया. माने अब होमोसेक्शुएलिटी अपराध नहीं रहा. अपनी पसंद से अपने साथी के साथ होने का अधिकार देने वाला ये ऐतिहासिक फैसला आया था नवतेज सिंह जोहर एवं अन्य VS भारत संघ मामले में. नवतेज सिंह मामले में पैरवी करने वाले वकीलों में सौरभ कृपाल भी थे. इस मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक जो यात्रा रही, सौरभ लगातार उसका हिस्सा रहे.

2017 में दिल्ली उच्च न्यायालय के कोलेजियम की सिफारिश के बाद सुप्रीम कोर्ट से उनके नाम के अनुमोदन में 2021 तक वक्त लग गया. इस बीच हिंदुस्तान टाइम्स को दिए एक इंटरव्यू में सौरभ कृपाल ने कहा,

मीडिया रिपोर्ट्स से लगता है कि मेरे पार्टनर का स्विस नागरिक होना मेरे नाम के अनुमोदन के आड़े आ रहा है. अगर मैं एक स्ट्रेट शख्स होता, जिसकी पत्नी विदेशी नागरिक होती, तो कोई समस्या नहीं होती. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट के जजों की विदेशी पत्नियां रही हैं. लेकिन मैं स्ट्रेट नहीं हूं, इसीलिए ये बात मुद्दा बन रही है.

केंद्र का रुख

सौरभ 20 साल से जर्मेन बाखमान के साथ हैं. बाखमान एक स्विस मानवाधिकार कार्यकर्ता और राजनयिक हैं. मार्च 2021 में दिल्ली उच्च न्यायालय के सभी 31 जजों ने सौरभ को दिल्ली उच्च न्यायालय में वरिष्ठ अधिवक्ता की उपाधि देने पर सहमति दी. इसी महीने में तत्कालीन CJI एसए बोबडे ने केंद्र से स्पष्टीकरण मांगा कि उसे सौरभ को लेकर कैसी चिंताएं हैं. तब केंद्र ने सौरभ के पार्टनर वाली बात को ही रेखांकित किया था.

अप्रैल 2021 में कानून मंत्रालय ने एक चिट्ठी में लिखा कि भारत में होमोसेक्शुएलिटी अब अपराध नहीं रहा. लेकिन सेम सेक्स मैरिज को लेकर अब भी कोई कानून नहीं है. केंद्र ने तब ये भी संकेत किया था कि सौरभ का गे राइट्स आंदोलन से जुड़ाव के चलते ये संभव है कि वो पूर्वाग्रही हों. लेकिन नवंबर 2021 में सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम ने सौरभ के नाम पर अपनी मुहर लगाते हुए उसे केंद्र के पास भेज दिया.

कोलेजियम का रुख

18 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट द्वारा जारी बयान में कहा गया कि कोलेजियम की सिफारिश को लेकर दो आपत्तियां आई थीं. पहली सौरभ के साथी का एक स्विस नागरिक होना. और दूसरी - अपनी यौन पसंद को लेकर उनका खुला इज़हार. लेकिन सुप्रीम कोर्ट कोलेजियम का मत है कि इन बिंदुओं का राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंध नहीं है. कोलेजियम ने ये भी कहा कि,

ये दर्ज किया जाए कि सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ के फैसलों से भारत के संविधान का मत स्थापित होता है. इसके अनुसार हर व्यक्ति को अपनी यौन पसंद के मुताबिक गरिमा से जीने का अधिकार है.

कोलेजियम ने खुले तौर पर गे होने को लेकर सौरभ की तारीफ भी की. साथ ही ये जोड़ा कि उनके पास क्षमता, ईमानदारी और बुद्धि है. 

इन्हीं सारी बातों के आधार पर कोलेजियम ने कहा कि सौरभ कृपाल का नाम पांच वर्षों से लंबित है और अब इस बाबत अनुशंसा पर जल्द अमल किया जाना चाहिए. लेकिन कोलेजियम ने ये भी कहा कि कृपाल को अपने नाम के अनुमोदन के मामले में प्रेस से बात न करने की सलाह दी जाती है.

सुप्रीम कोर्ट ने सौरभ कृपाल को लेकर अपना संकल्प दोहरा दिया है. अब केंद्र के पास एक ही विकल्प है. कि वो इसपर रज़ामंदी दे दे. वो चाहे तो इसमें वक्त लगा सकता है, लेकिन सौरभ का नाम वापस नहीं भेज सकता.

वीडियो: दी लल्लनटॉप शो: सुप्रीम कोर्ट और नरेंद्र मोदी सरकार के बीच कोलेजियम पर बहस में कौन सही, कौन गलत?