सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने कहा है कि जबरन धर्मांतरण (Forced Religious Conversion) न सिर्फ व्यक्ति को प्रभावित करता है, बल्कि इससे देश की सुरक्षा को भी खतरा है. ऐसे मामलों को बेहद गंभीर बताते हुए कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा है. कोर्ट ने सरकार से पूछा है कि वो जबरन धर्मांतरण रोकने के लिए क्या कर रही है. लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस हिमा कोहली की पीठ ने सोमवार 14 नवंबर को मामले की सुनवाई करते हुए कहा,
"जबरन धर्मांतरण बहुत गंभीर मुद्दा, इससे देश की सुरक्षा...", सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को दिया नोटिस
कोर्ट ने कहा है कि धर्म परिवर्तन की आजादी है, लेकिन जबरन धर्म परिवर्तन की नहीं.
'यदि कथित धर्मांतरण से जुड़ा हुआ मामला सही पाया जाता है तो यह बेहद गंभीर मुद्दा है. इससे देश की सुरक्षा को खतरा है. यह नागरिकों की धार्मिक स्वतंत्रता और उनकी अंतरात्मा को प्रभावित करता है.'
पीठ ने आगे कहा,
'इसलिए बेहतर होगा कि भारत सरकार अपना मत जाहिर करे और जवाबी हलफनामा दायर कर बताए कि ऐसे जबरन धर्मांतरण के मामलों को रोकने के लिए केंद्र और अन्य द्वारा क्या कदम उठाए जा सकते हैं.'
सुप्रीम कोर्ट ने जवाब दाखिल करने के लिए केंद्र सरकार को 22 नवंबर तक समय दिया है. इस मामले की अगली सुनवाई 28 नवंबर को होगी.
‘जबरन धर्म परिवर्तन की आजादी नहीं’दरअसल, वकील अश्विनी कुमार उपाध्याय ने एक याचिका दायर कर मांग की है कि काला जादू, अंधविश्वास और जबरन धर्मांतरण पर रोक लगाने के लिए केंद्र और राज्य सरकार को निर्देश दिए जाएं. इसी मामले पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने ये आदेश दिया है. कोर्ट ने कहा कि धर्म परिवर्तन की आजादी जरूर है, लेकिन जबरन धर्म परिवर्तन की आजादी नहीं है.
इस दौरान कोर्ट ने केंद्र के वकील से कहा,
'केंद्र सरकार क्या कदम उठा रही है, नहीं तो ये बेहद मुश्किल हो जाए. इस पर अपना मत जाहिर करें, आप क्या कदम उठाने जा रहे हैं. संविधान के तहत धर्मांतरण कानूनी है, लेकिन जबरन धर्मांतरण की जगह नहीं.'
इस पर केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि ऐसे मामलों को लेकर राज्य आधारित कानून बनाएं गए हैं. उन्होंने इसके लिए मध्य प्रदेश और ओडिशा का उदाहरण दिया. तुषार मेहता ने कहा कि इन कानूनों को सुप्रीम कोर्ट ने वैध ठहराया है.
याचिकाकर्ता ने कहा कि जबरन धर्मांतरण के मामलों में ज्यादातर पीड़ित सामाजिक और आर्थिक तौर पर पिछड़े वर्ग के होते हैं. विशेष रूप से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से आने वाले लोग. उन्होंने कहा कि ये न सिर्फ संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 25 का उल्लंघन है, बल्कि यह धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत का भी उल्लंघन है.
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