कहानी मोटे तौर पर एक बच्चे से लेकर भारतीय क्रिकेट टीम के कैप्टन बनने के बाद तक की धोनी की यात्रा के बारे में है जो आसान नहीं रही है. दिखता है कि कैसे वह अपनी रेलवे की नौकरी और फुल टाइम क्रिकेटर बनने के बीच संघर्ष कर रहा है. कि वह पिता से कितना झिझकता है. कि सलेक्शन के स्तर पर उसे कितनी उपेक्षा का सामना करना पड़ता है. इस जर्नी में उसके कोच, दोस्त, परिवार के लोग, पिता, बहन, चयनकर्ता, कमेंटेटर नजर आते हैं. उन्हीं का सहारा लेकर सीन बुने जाते हैं जिससे केंद्रीय पात्र बहुत ज्यादा मौलिक लगता है और सीधा ध्यान उस पर न जाने से कहानी एक आम आदमी की भी लगती है. फिर जब क्रिकेट मैदान के सीन आते हैं, वहां सारा ध्यान धोनी के पात्र पर होता है क्योंकि उस समय उसे स्टार दिखाना होता है.
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ये इशारा सचिन तेंडूलकर, विरेंदर सहवाग और गौतम गंभीर की ओर किया है. धोनी की असल में भी ऐसी आलोचनाएं हुई थीं. युवराज सिंह के पिता योगराज सिंह ने भी आरोप लगाए थे कि धोनी ने उनके बेटे का करियर तबाह कर दिया. ट्रेलर में एक चयनकर्ता कहता है "जो धोनी को प्रमोट करता है, धोनी आज उसी को बाहर करना चाहता है." उसके बाद अन्य चयनकर्ता कहता है, "ये इन तीनों को निकालकर रुकने वाला नहीं है." जाहिर है उन वरिष्ठ खिलाड़ियों ने ही धोनी को शुरू में मौका दिया और सपोर्ट किया. ट्रेलर ठीक है. फिल्ममेकिंग के लिहाज से इसमें कुछ उल्लेखनीय नहीं है. इतना है कि कहीं से बोरिंग या बुरा नहीं लगता. ये भी अनुमान है कि फिल्म ठीक होगी. फैंस को बहुत पसंद भी आ सकती है. ट्रेलरयहां देखें: https://www.youtube.com/watch?v=6L6XqWoS8twये तीनों (सचिन, सहवाग, गंभीर) आज ओडीआई टीम में फिट नहीं बैठते!