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सिद्धारमैया सीएम बने, लेकिन बड़ा काम मिला डीके शिवकुमार को

CM पद के लिए पार्टी आलाकमान को दंड बैठक करा देने वाले डीके शिवकुमार, अपने प्रतिद्वंद्वी के डिप्टी बनने के लिए माने कैसे?

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सोनिया गांधी के आश्वासन पर माने डीके शिवकुमार. (तस्वीरें- पीटीआई)

'मुझ से क्या हो सका वफ़ा के सिवा 
मुझ को मिलता भी क्या सज़ा के सिवा'

ये शेर लिखा तो हाफिज़ जालंधरी ने था, लेकिन आज इस शेर का वास्ता बस एक नाम के साथ जोड़ा जा रहा है - डीके शिवकुमार. तीन दिन तक बेंगलुरू से दिल्ली के बीच नेता इतना दौड़े, कि एयरलाइन वालों ने बेंगलुरू-दिल्ली का भाड़ा बढ़ा दिया. और अंत में हुआ वही, जो मानो पहले से तय था - सिद्धारमैया बने CM और डिके शिवकुमार, उनके डिप्टी. इसी के साथ कर्नाटक की पिक्चर का पर्दा आखिरकार गिर गया. 20 मई को शपथग्रहण होगा. लेकिन पर्दा गिरने का मतलब ये नहीं कि एक सवाल का वज़न कम हो गया. 

सवाल कौनसा? - CM पद के लिए पार्टी आलाकमान को दंड बैठक करा देने वाले डीके शिवकुमार, अपने प्रतिद्वंद्वी के डिप्टी बनने के लिए माने कैसे? दिन की बड़ी खबर में आज इसी बात पर माथापच्ची करेंगे. साथ ही एक ऐसे ऐलान पर भी सिर धुनेंगे, जिसका अंदाज़ा किसी को नहीं था. एक केंद्रीय मंत्री जो देश की सबसे बड़ी अदालत पर लगातार हमले कर रहा था, वो भी बिना कोई नुकसान झेले, अचानक उसका तबादला हो गया. हम किरेण रिजिजू की बात कर रहे हैं. आज सुबह अचानक वो कानून मंत्री से भू-विज्ञान मंत्री हो गए हैं. सादी भाषा में - डिमोशन हुआ है. लेकिन क्यों? सूत्र भी ठीक-ठीक बता नहीं पा रहे हैं. सो हम कर्नाटक के बाद इस गुत्थी को भी सुलझाने की कोशिश करेंगे.   

पहले बात कर्नाटक की.  16 मई को डीके शिवकुमार जब दिल्ली एयरपोर्ट पर उतरे तो उन्होंने मीडिया से कहा- ''मैं पार्टी लाइन को क्यों क्रॉस करूं. मैं धोखा नहीं दूंगा और ना ही मैं ब्लैकमेल करूंगा. जिनकी संस्कृति में ये है, उन्हें करने दीजिए.‘’

डीके ने धोखा नहीं दिया. और भारी मान-मनौव्वल के बाद डिप्टी सीएम के पद के लिए मान गए. कांग्रेस के आधिकारिक बयान में सिर्फ यही बताया गया है कि सिद्दारमैया मुख्यमंत्री बनेंगे. 20 मई को शपथ ग्रहण होगा और सिद्दारमैया के साथ डीके शिवकुमार डिप्टी सीएम की शपथ लेंगे.

लेकिन बात सिर्फ इतनी सी होती तो बात ही क्या थी. मुख्यमंत्री की कुर्सी पर आंखें गड़ाए बैठे डीके शिवकुमार ने जो शर्ते रखीं थी उन्हें पार्टी आलाकमान को अनमने से मन से मानना पड़ा. सिवाए एक के, कि इन बातों को सार्वजनिक भी किया जाए. यानी सबको बताया जाए. दरअसल डीके शिवकुमार इस बात को जानते हैं कि एक बार कुर्सी पर बैठने के बाद उतरता कौन है. डीके, राजस्थान में सचिव पायलट और छत्तीसगढ़ में टीएस सिंहदेव का हाल देख ही चुके हैं. इसीलिए वो चाहते थे कि उनकी मांगों को सार्वजनिक किया जाए. लेकिन पार्टी इस बात को लेकर तैयार नहीं हुई. और तब पिक्चर में आईं सोनिया गांधी. कांग्रेस की पूर्व अध्यक्षा और UPA की चेयरपर्सन. कांग्रेस से जुड़े सूत्र बताते हैं कि डीके को मनाने में सोनिया गांधी का अहम रोल रहा.

दरअसल, सोनिया गांधी से डीके शिवकुमार के अच्छे संबंध है. 2019 में डीके शिवकुमार को ईडी ने मनी लॉन्ड्रिंग केस में गिरफ़्तार किया था. करीब 50 दिन डीके जेल में रहे. डीके जब जेल में थे तब सोनिया गांधी उनसे मिलने गईं थी. ये बात नतीजों के दिन डीके ने मीडिया को खुद बताई थी. परसों जब डीके शिवकुमार दिल्ली पहुंचे और मुख्यमंत्री पद पर अड़ गए तो भी यही बात कही गई कि राहुल तो सिद्दा के नाम अड़े हैं लेकिन डीके को सोनिया की बैकिंग है.

लेकिन सोनिया की एक लाइन ने डीके को '''अभी''' कुर्सी का दावा छोड़ने पर मजबूर कर दिया. सोनिया ने कहा- loyalty will not go unrewarded. यानी वफादारी बेकार नहीं जाएगी. इनाम जरूर मिलेगा.  और यहीं पर डीके शिवकुमार पिघल गए. दरअसल सोनिया जिस इनाम की बात कर रही थीं वो मुख्यमंत्री की कुर्सी ही है. कांग्रेस जुड़े सूत्र बताते हैं कि डीके को ये आश्वासन दिया गया है कि दो साल बाद सिद्दारमैया कुर्सी से उतरेंगे और उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जाएगा. बताया जाता है कि ये बात सोनिया गांधी ने भी कही है और खरगे ने भी. इस पर ज्यादा जानकारी के लिए हमने बात की इंडिया टुडे के कंसल्टिंग एडिटर राजदीप सरदेसाई से. 

हालांकि कांग्रेस बीट के पत्रकार ये भी कहते हैं कि डीके जानते थे कि मुख्यमंत्री की कुर्सी अभी उन्हें नहीं मिलेगी. इसकी एक बड़ी वजह सिद्दा के पीछे खड़े विधायकों की गिनती भी थी. बताया जाता है कि विधायकों की गुप्ट वोटिंग में जितने वोट डीके के समर्थन में आए उससे दोगुने विधायकों ने सिद्दारमैया को अपना नेता माना. इसके अलावा डीके पर ईडी के मामले हैं. भ्रष्टाचार के आरोप हैं. वही आरोप, जो कांग्रेस, बीजेपी की सरकार पर चुनाव में लगा रही थी. कांग्रेस ये नहीं चाहती थी कि 2024 चुनाव से पहले उनका कोई मुख्यमंत्री ईडी या दूसरी जांच एजेंसियों के फेर में फंसे. और इसीलिए ये पहले से ही तय था डीके नहीं सिद्दारमैया ही सीएम बनेंगे. लेकिन डीके इस मामले को खींच रहे थे ताकी पावर शेयरिंग का फॉर्मूला तय हो सके.

डीके की कुछ और शर्ते भी थीं. जिन पर कांग्रेस आलाकमान को हामी भरनी पड़ी. डीके की सबसे बड़ी शर्त ये थी कि डिप्टी सीएम के साथ-साथ वो प्रदेश अध्यक्ष का पद भी अपने पास रखेंगे. और पार्टी को ये बात माननी पड़ी. इसके साथ डीके की एक और बड़ी शर्त थी. डीके ने पार्टी को ये साफ कर दिया था कि प्रदेश में डिप्टी सीएम सिर्फ एक ही होगा. पार्टी को ये शर्त भी माननी पड़ी. इसके अलावा सूत्रों के मुताबिक सरकार में डीके के पास 4-5 भारी-भरकम विभाग भी होंगे. हालांकि गृह मंत्रालय उन्हें मिलेगा या नहीं इस पर अभी क्लैरिटी नहीं है. इसके साथ ही डीके को ये आश्वासन भी दिया गया है कि सिद्दारमैया के कैबिनेट में डीके के लोगों को तरजीह दी जाएगी.

लेकिन कांग्रेस से जुड़े सूत्र एक और बड़ी बात बता रहे हैं. कहा जा रहा है कि डीके को ये आश्वासन भी दिया गया कि सरकार कोई भी बड़ा फैसला डिप्टी सीएम की रज़ामंदी के बगैर नहीं लेगी. लेकिन यहां सवाल ये उठता है कि क्या इन सारी शर्तों पर सिद्दारमैया ने कोई आपत्ति नहीं जताई. क्या वो इस बात के लिए मान गए कि 2 साल बाद मुख्यमंत्री पद छोड़ देंगे.

तो ये थी कर्नाटक में कांग्रेस की पूरी कहानी. अब बात दिल्ली की. 

आज सुबह सुबह जब जनता कर्नाटक लिख-लिख कर सर्च कर रही थी कि रात को क्या कुछ हुआ, सोशल मीडिया पर किरेण रिजिजू का नाम ट्रेंड होने लगा. 18 मई की सुबह राष्ट्रपति भवन से जो एलान आया, उसका वर्बेटम था -- भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सलाह पर किरेन रिजिजू को पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय का पोर्टफ़ोलियो सौंपा है. और रिजिजू की जगह अर्जुन राम मेघवाल को अपने मौजूदा विभागों के अलावा, क़ानून और न्याय मंत्रालय में राज्य मंत्री के रूप में स्वतंत्र प्रभार सौंपा गया है. मेघवाल अभी संसदीय कार्य और संस्कृति राज्य मंत्री हैं. इसके अलावा, दोपहर में अपडेट ये भी आया कि किरेन रिजिजू के डिप्टी भी कानून मंत्रालय से हटा दिए गए हैं. राष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री की सलाह पर राज्य मंत्री एसपी सिंह बघेल का विभाग भी बदल दिया है और अब वो कानून और न्याय मंत्रालय में राज्य मंत्री की जगह स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय में राज्य मंत्री होंगे.

किरेन रिजिजू, भाजपा में पूर्वोत्तर कोटे से आने वाले एक नामी मंत्री हैं. मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में भी उन्हें गृह राज्यमंत्री बनाया गया था. मोदी सरकार 2.0 में उन्हें 8 जुलाई, 2021 को कानून और न्याय मंत्री बनाया गया. इससे पहले, वो मई 2019 से जुलाई 2021 तक युवा मामले और खेल राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) के रूप में काम कर रहे थे. क़ानून मंत्रालय मिले अभी दो साल भी नहीं हुए थे, कि उन्हें वहां से हटा कर पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय दे दिया गया है. अरुणाचल प्रदेश से तीन बार के सांसद रिजिजू को सरकार के सबसे हाई-प्रोफ़ाइल मंत्रियों में से एक माना जाता रहा. न्यायपालिका और सरकार के बीच जो टसल हाल के दिनों में बढ़ा है, उसमें किरेन रिजिजू ही सरकार के झंडाबरदार थे. इसी वजह से रिजिजू को हटाने के पीछे नरेंद्र मोदी की मंशा क्या है, इसपर राजनीतिक विशेषज्ञों की समीक्षा भी धरी रह गई और सूत्रों की ख़बरें भी. 

1. मंत्रालय से जाते हुए रिजिजू ने क्या कहा? 
2. अर्जुन राम मेघवाल कौन हैं और उन्हें ये पद देने के मायने क्या हैं? 
3. और, रिजीजू को हटाए जाने की अंदर की कहानी क्या है?

इन्हीं सवालों को सिलसिलेवार तरीक़े से समझने की कोशिश करेंगे.

पहला सवाल: क्या बोले रिजिजू?

बोले नहीं, ट्वीट किया -

"माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन में क़ानून और न्याय मंत्री के रूप में सेवा करना एक विशेषाधिकार और सम्मान रहा. मैं भारत के माननीय मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, सर्वोच्च न्यायालय के सभी न्यायाधीशों, मुख्य न्यायाधीशों और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों, निचली न्यायपालिका और सभी क़ानून अधिकारियों को न्याय सुनिश्चित करने और हमारे नागरिकों के लिए कानूनी सेवाएं देने में समर्थन करने के लिए धन्यवाद देता हूं. मैं पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय में माननीय पीएम नरेंद्र मोदी के सपने को उसी उत्साह के साथ पूरा करने की उम्मीद करता हूं, जैसा कि मैंने भाजपा के एक विनम्र कार्यकर्ता के रूप में आत्मसात किया है."

अभी रिजिजू जिन्हें धन्यवाद दे रहे हैं, अपने पूरे कार्यकाल उन्हें ही आड़े हाथों लिया हुआ था. कॉलेजियम का मसला हो, या विवाह की बराबरी की याचिकाएं. रिजिजू ने हमेशा न्यायपालिका के ख़िलाफ़ अपना प्रत्यक्ष विरोध दर्ज करवाया है. आपको पहले उनके विवादों की छोटी सी समरी देते हैं. 

- पहला मसला कॉलेजियम का ही ले लेते हैं. हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति की व्यवस्था को लेकर पिछले साल से ही केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच खींचतान चल रही है. इसी साल की जनवरी में रिजिजू ने भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ को एक पत्र लिखा था. जजों की शॉर्टलिस्टिंग प्रक्रिया में एक सरकारी नॉमिनी को शामिल करने का सुझाव दिया था. इस पर ख़ूब हेडलाइन्स बनी थीं, कि सरकार न्यायपालिका के कामकाज में हस्तक्षेप करना चाहती है.

- जब ये फ़्रिक्शन स्मूदली चल रहा था, तभी रिजिजू ने एक इंटरव्यू क्लिप भी ट्वीट की थी. इंटरव्यू था दिल्ली हाईकोर्ट के रिटार्यड जज सोढी का, जिसमें वो कह रहे थे कि सुप्रीम कोर्ट ने संविधान को "हाइजैक" कर लिया. मनमानी नियुक्तियां की जाती हैं. इस इंटरव्यू को ट्वीट करते हुए रिजिजू ने लिख दिया था, “ज़्यादातर लोग ऐसा ही सोचते हैं.”

- अगला विवाद भी उसी महीने उठा था. तीन जजों की नियुक्ति का मसला था. उसमें केंद्र ने कुछ आपत्तियां जताई थीं. CJI चंद्रचूड़ ने उन आपत्तियों को न केवल ख़ारिज किया. बल्कि केंद्र ने जो वजहें बताई थीं, उन्हें पब्लिक कर दिया था. इसी को लेकर किरेन ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट का केंद्र की सीक्रेट और संवेदनशील रपटों को पब्लिक करना, चिंता की बात है. 

- इसके बाद मार्च में, इंडिया टुडे कॉन्क्लेव में बोलते हुए, रिजिजू ने दावा कर दिया था कि भारत की न्यायपालिका को कमज़ोर करने और इसे सरकार के ख़िलाफ़ करने के लिए एक "calibrated effort या सोची-समझा प्रयास" किया जा रहा है. कहा था कि कुछ रिटार्यड जज एक "anti-India gang" का हिस्सा हैं और न्यायपालिका को विपक्ष बनाने को मजबूर कर रहे हैं. इस कथित भारत-विरोधी गिरोह को चेतावनी भी दे डाली, कि देश के ख़िलाफ़ काम करने वालों को इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी. 

तो ये तो आप समझ गए कि सुप्रीम कोर्ट बनाम सरकार की लड़ाई में सरकार की तरफ़ से कटप्पा कौन था. फिर यहां एक सवाल उठता ही है - कि शिवगामी देवी ने कटप्पा को क्यों मारा? न सरकार की तरफ़ से कोई स्पष्ट जवाब आया, न संगठन के. चारों तरफ़ मामला संभावना और आशंका पर चल रहा है. क्या संभावनाएं? संभावना ये कि किरेन रिजिजू के मंत्रालय में रहने से "संदेश ग़लत जा रहा था". उनके न्यापालिका पर सवाल उठाने, सुप्रीम कोर्ट पर टिप्पणी करने और CJI चंद्रचूड़ से उलझने के चलते सरकार और न्यायपलिका के बीच टकराव का संदेश जा रहा था और सरकार का फ़ैसला इस टकराव को कम करने, सरकार और न्यायपालिका के बीच सामंजस्य का संदेश देने की कोशिश कही जा सकती है. फिर से कह रहे हैं, संभावनाएं हैं. बाक़ी बतौर क़ानून मंत्री किरेन रिजिजू के कार्यकाल को कैसे देखा जाता है? ख़ासकर लॉ सर्किट में, ये जानने के लिए हमने बात की लीगल मामलों के विशेषज्ञों से

कोई साफ़ कारण नहीं मिला, तो कैबिनेट के इस फेरबदल में सवाल ये भी उठे कि क्या रिजिजू ने हाल में Earth Sciences में कोई Ph.D कर ली है? या अर्जुन राम मेघवाल ने लॉ की कोई डिग्री पा ली? अब अर्जुन राम मेघवाल का नाम आ गया है, तो इस तईं नहीं तो दूसरा सवाल ही पूछ लेते हैं -- “अर्जुनराम मेघवाल क्यों?”

इससे पहले ये जान लेते हैं कि अर्जुनराम मेघवाल हैं कौन? राजस्थान के बीकानेर के सांसद हैं. वोटिंग पैटर्न के हिसाब से, राजस्थान में बड़ी संख्या में दलित और ख़ासकर के मेघवाल समुदाय के लोग कांग्रेस के साथ हैं. इसे देखते हुए राज्य की राजनीति देखने-बूझने वालों के बीच ये चर्चा पहले से हो रही थी कि उन्हें केंद्र से हटाकर राजस्थान भेजा जाएगा और वहां इलेक्शन कैंपेन कमेटी का चेयरमैन बनाया जाएगा. उन्हें "दलित चेहरे" के तौर पर प्रोजेक्ट किया जाएगा. लेकिन ये क़यास धरे रह गए. उन्हें केंद्र में बड़ी ज़िम्मेदारी मिल गई है. अब क्या कहा जा रहा है? कहा जा रहा है कि मेघवाल को इतना महत्वपूर्ण पोर्टफ़ोलियो देने का मक़सद ये है कि राजस्थान चुनाव के वक़्त इसे भुनाया जा सके.