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बृजभूषण के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे पहलवानों को राहत, लेकिन नाबालिग पीड़िता ने बयान बदला

बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे पहलवानों को दिल्ली पुलिस से राहत मिली है. खबर ये भी है कि नाबालिग पीड़िता ने अपने आरोप बदल दिए हैं. और दूसरी बड़ी खबर में बात होगी आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के रिश्तों पर.

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अनुराग ठाकुर, बजरंग पूनिया, विनेश फोगाट (बाएं से दाएं) (फोटो: आजतक)

आज दो बड़ी खबरें हैं. दोनों हरियाणा से हैं. पहली खबर जुड़ी है पहलवानों के प्रदर्शन से. बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे पहलवानों को दिल्ली पुलिस से राहत मिली है. खबर ये भी है कि नाबालिग पीड़िता ने अपने आरोप बदल दिए हैं. और दूसरी बड़ी खबर में बात होगी आम आदमी पार्टी और कांग्रेस के रिश्तों पर. क्योंकि पिछले एक महीने से कांग्रेस से समर्थन मांग रहे केजरीवाल ने हरियाणा की एक रैली में बीजेपी के साथ-साथ कांग्रेस पर हमला बोल दिया है. 

बड़ी ख़बर में सबसे पहले बात होगी पहलवानों की. आज दिल्ली पुलिस ने पटियाला हाउस कोर्ट में एक ATR माने Action Taken Report दाखिल की. ये रिपोर्ट का क्या मसला है?

-पहलवानों की अनुराग ठाकुर से मुलाकात का क्या मतलब है? 

23 अप्रैल से जंतर-मंतर पर कुश्ती संघ के अध्यक्ष के खिलाफ पहलवानों के धरने का दूसरा चरण शुरू हुआ. जो कि 28 मई तक चला. इससे ठीक तीन दिन पहले यानी 25 मई को पहलवान साक्षी मलिक, विनेश फोगाट और बजरंग पुनिया के खिलाफ हेट स्पीच का मामला दर्ज करने की अर्जी दायर की गई. इस याचिका में कहा गया कि पहलवानों ने विरोध प्रदर्शन के दौरान अपने भाषण में पीएम मोदी और बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ अभद्र भाषा का प्रयोग किया था. इस मामले में पटियाला हाउस कोर्ट ने दिल्ली पुलिस को जांच कर 9 जून तक रिपोर्ट पेश करने को कहा था.

आज 09 जून को दिल्ली पुलिस ने रिपोर्ट दाखिल की. जिसमें कहा गया कि 'शिकायतकर्ता बम बम महाराज की ओर से पेश किए गए वीडियो क्लिप में बजरंग पुनिया, विनेश फोगाट या कोई दूसरा पहलवान पीएम मोदी के खिलाफ भड़काऊ नारे लगाते नज़र नहीं आया है. प्रदर्शन स्थल पर ऐसे नारे सिख प्रदर्शनकारियों ने लगाए थे. लिहाजा पहलवानों के खिलाफ हेट स्पीच का कोई मामला नहीं बनता. दिल्ली पुलिस ने पहलवानों को हेट स्पीच के इस मामले में क्लीन चिट देते हुए उनके खिलाफ FIR दर्ज करने की मांग वाली अर्जी को खारिज करने का अनुरोध किया है.

हेट स्पीच के मामले में मिली क्लीन चिट पर पहलवानों की ओर से बुलेटिन लिखे जाने तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है लेकिन सोशल मीडिया पर इसे ब्रजभूषण के खिलाफ पहलवानों की पहली जीत बताया जा रहा है. दूसरी ओर ब्रजभूषण सिंह बनाम पहलवान विवाद में आज एक और नाम सामने आया है. अंतर्राष्ट्रीय कुश्ती रेफरी जगबीर सिंह का. जिन्होंने बृजभूषण सिंह के खिलाफ दिल्ली पुलिस को गवाही दी है. जगबीर सिंह का कहना है कि उनकी आंखों के सामने ब्रजभूषण ने महिला पहलवानों का परेशान किया. आज तक से बातचीत में एक घटना का जिक्र करते हुए जगबीर ने बताया कि ‘मैंने बृजभूषण को एक महिला पहलवान के बगल में खड़ा देखा था. पहलवान ने बृजभूषण से खुद को छुड़ाया था, उसने बृजभूषण को धक्का दिया और कुछ कहते हुए वो दूर चली गई.’ 

जगबीर के आरोपों के अलावा आज इस मामले में कई और डेवलपमेंट हुए हैं. दिल्ली पुलिस अपनी जांच आगे बढ़ाते हुए आज ब्रजभूषण सिंह के दिल्ली स्थित आवास पर पहुंची. पुलिस अपने साथ एक महिला पहलवान को भी लेकर गई. मकसद था क्राइम सीन का रिक्रिएशन. जो कि करीब आधे घंटे तक चला. 

Wrestlers Protest Highlights: Probe to be completed by June 15, WFI  elections by June 30, says Anurag Thakur
फोटो- इंडिया टुडे

गवाही के अलावा एक बड़ा अपडेट बयान पर भी आया. नाबालिग पहलवान के पिता का बयान, जिसने बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी. दरअसल कई दिनों से मीडिया में सूत्रों के आधार पर कयास लगाए जा रहे थे कि बृजभूषण शरण सिंह पर यौन शोषण का आरोप लगाने वाली नाबालिग पीड़िता ने अपने आरोप वापस ले लिए हैं. अब ये स्थिति साफ हो गई है. आज तक की विशेष संवाददाता श्रेया चटर्जी के मुताबिक नाबालिग महिला पहलवान ने अपने बयान में बदलाव करते हुए कुश्ती संघ के पूर्व अध्यक्ष पर भेदभाव का आरोप लगाया है. नाबालिग पीड़िता के पिता ने आज तक से फोन पर हुई बातचीत में बताया है कि उनकी बेटी ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 164 के तहत दिए गए अपने पुराने बयान को बदल दिया है. बृजभूषण सिंह पर पहले उसने जो यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए गए थे, वह नए बयान में नहीं हैं.

पीड़िता के पिता ने ये भी बताया कि उन्होंने गुस्से में आकर शिकायत दर्ज कराई थी क्योंकि उन्हें लगता है कि चयन प्रक्रिया में उनकी बेटी के साथ गलत व्यवहार हुआ था. फिलहाल नाबालिग के आरोप वापस लेने की खबरों पर बृजभूषण सिंह और केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर का भी बयान आया है.

WFI elections to be held by June 30, assures Spors Minister Anurag Thakur  after meeting protesting wrestlers - India Today
फोटो- इंडिया टुडे

यहां आपको बता दें कि 7 जून को केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने पहलवानों के साथ मीटिंग की थी. जिसमें मीटिंग अनुराग ठाकुर ने उन्हें भरोसा दिया था कि बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ 15 जून तक चार्जशीट दाखिल हो जाएगी. बैठक के बाद साक्षी मलिक और बजरंग पूनिया ने भी कहा था कि आंदोलन अभी खत्म नहीं हुआ है बल्कि सरकार के अनुरोध पर 15 जून तक प्रदर्शन रोका है. अब बृजभूषण का भी कहना है कि हम 15 तारीख का इंतजार कर रहे हैं.

अब आते हैं हरियाणा से आने वाली दूसरी खबर पर. अगले साल होने वाले लोकसभा और विधानसभा चुनाव के लिए आम आदमी पार्टी ने तैयारी शुरू कर दी है. 8 जून को दिल्ली और पंजाब के मुख्यमंत्री ने हरियाणा के जींद में रोड शो किया. केजरीवाल ने हरियाणा को अपनी जन्मभूमि बताई और कहा कि रोडशो में आए लोगों से कहा कि आप में से बहुत मेरे ताऊ, चाचा, चचेरे-ममेरे भाई हैं. केजरीवाल ने लोगों से आगामी चुनाव में आम आदमी पार्टी को वोट देने की अपील की. उन्होंने राज्य की बीजेपी सरकार पर तो हमला बोला ही, साथ ही कांग्रेस को भी लपेटे में ले लिया. केजरीवाल ने पूछा कि एक काम बता दो जो कांग्रेस और बीजेपी ने इतने सालों में हरियाणा में किया हो?  

बीजेपी और कांग्रेस दोनों पर हमला बोलना केजरीवाल के लिए नया नहीं है. हाल की बात करें तो मार्च में रायपुर में भी उन्होंने कांग्रेस-बीजेपी दोनों पर निशाना साधा था. जहां कांग्रेस की सरकार है. इससे पहले भी वो ऐसा करते रहे हैं. लेकिन जींद में जब उन्होंने कांग्रेस पर निशाना साधा तो लोग चौंके. इसके पीछे वजह ये है कि पिछले एक महीने से केजरीवाल लगातार घूम-घूम कर विपक्षी दलों से समर्थन मांग रहे हैं.

किस बात पर समर्थन?

दरअसल 11 मई को सुप्रीम कोर्ट ने लंबे समय से चले आ रहे एक विवाद का निपटारा करते हुए फैसला सुनाया था. ये विवाद था राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में अधिकारियों के ट्रांसफर पोस्टिंग के अधिकार को लेकर. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में अधिकारियों के ट्रांसफर पोस्टिंग का अधिकार राज्य की चुनी हुई सरकार को देने का फैसला किया था. अभी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल हैं तो कह सकते हैं कि केजरीवाल के पक्ष में. लेकिन हफ्ते भर के भीतर ही केंद्र सरकार एक अध्यादेश लेकर आ गई. इस अध्यादेश के मुताबिक राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में अधिकारियों की ट्रांसफर पोस्टिंग के लिए एक अथॉरिटी बनाई जाएगी. नेशनल कैपिटल सिविल सर्विसेज अथॉरिटी (NCCSA).ये अथॉरिटी दिल्ली में अधिकारियों की तैनाती, तबादले और उनके खिलाफ मिली शिकायतों पर कार्रवाई करेगी.

इस अथॉरिटी में दिल्ली के मुख्यमंत्री, मुख्य सचिव और प्रधान सचिव (गृह) होंगे. दिल्ली के मुख्यमंत्री NCCSA के अध्यक्ष, प्रधान सचिव (गृह) इस अथॉरिटी के सचिव और मुख्य सचिव सदस्य होंगे. ये अथॉरिटी बहुमत के आधार पर अधिकारियों की तैनाती-तबादले की सिफारिश करेगी, पर अंतिम फैसला दिल्ली के उपराज्यपाल (LG) का होगा. LG चाहें तो फाइल को वापस लौटा सकते हैं या उसे मंजूरी दे सकते हैं. वहीं अगर किसी मुद्दे पर तीनों की राय अलग-अलग होगी, तब भी फाइनल फैसला LG का होगा.

यानी अधिकारियों की ट्रांसफर-पोस्टिंग का अधिकार एक बार फिर से दिल्ली के उपराज्यपाल के हाथ चला गया. केंद्र सरकार के इसी अध्यादेश के खिलाफ केजरीवाल घूम-घूम कर विपक्षी दलों से समर्थन मांग रहे हैं. क्योंकि किसी भी अध्यादेश को 6 महीने के भीतर संसद से पास कराना जरूरी होता है. और केजरीवाल ऐसी उम्मीद जता रहे हैं कि अगर सारे विपक्षी दल एकजुट हो जाएं तो राज्यसभा से इसे पास होने से रोका जा सकता है. केजरीवाल इसे 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले का सेमीफाइनल भी बता रहे हैं. वो कहते हैं कि अगर विपक्ष इस अध्यादेश को राज्यसभा में गिरा देती है तो जनता के बीच एक मजबूत संदेश जाएगा.

इसके लिए केजरीवाल अब तक बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव, तृणमूल कांग्रेस अध्यक्ष ममता बनर्जी, शिवसेना (उद्धव गुट) के उद्धव ठाकरे, एनसीपी प्रमुख शरद पवार, CPI(M) महासचिव सीताराम येचुरी, DMK प्रमुख स्टालिन, झामुमो के कार्यकारी अध्यक्ष हेमंत सोरेन और समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव से मुलाकात कर चुके हैं. इन सभी पार्टियों की ओर से केजरीवाल को समर्थन का आश्वासन मिला है. राज्यसभा का गणित देखें तो इन सभी दलों के सदस्यों की संख्या है 62. कांग्रेस 31 सदस्यों के साथ दूसरी सबसे बड़ी पार्टी है. जबकि बीजेपी के पास 93 सदस्य हैं. तो यहां पर सवाल ये है कि केजरीवाल जो मोर्चा बना रहे हैं अगर वो इकट्ठा हो जाए तो क्या 250 सदस्यों वाली राज्यसभा में ऑर्डिनेंस गिर सकता है?

हालांकि गौर करने वाली बात ये है कि अभी तक सबसे बड़े विपक्षी दल कांग्रेस के रूख पर संशय है. 26 मई 2023 को केजरीवाल ने ट्वीट कर कहा,
भाजपा सरकार द्वारा लाए गए अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक अध्यादेश के खिलाफ संसद में कांग्रेस का समर्थन लेने, संघीय ढांचे पर हो रहे हमले और मौजूदा राजनीतिक स्थिति पर चर्चा के लिए आज सुबह कांग्रेस अध्यक्ष श्री खड़गे जी और श्री राहुल गांधी जी से मिलने का समय मांगा.

इस तरह से पब्लिकली समय मांगने के अलावा केजरीवाल विपक्षी दलों के नेताओं से मुलाकात के दौरान भी कई बार कांग्रेस पर स्टैंड लेने का दबाव बना चुके हैं. 30 मई को सीताराम येचुरी से मुलाकात के बाद केजरीवाल ने कहा कि मामला केजरीवाल का नहीं देश का है. कल को अगर ये राजस्थान सरकार के खिलाफ भी कोई अध्यादेश लाते हैं तो वह राजस्थान के साथ खड़े होंगे.

इससे पहले 23 मई को कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल ने कहा था कि पार्टी अपनी राज्य इकाइयों और समान विचारधारा वाले दलों के साथ बातचीत कर आगे फैसला करेगी. इसके बाद 29 मई को दिल्ली और पंजाब इकाई के नेताओं के साथ कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे, पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी और वेणुगोपाल ने बैठक की थी. बैठके के दौरान दोनों राज्यों के नेताओं ने केजरीवाल को समर्थन न देने की अपील की थी. सोर्सेज के हवाले से आई मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया कि दोनों राज्यों के नेताओं ने कहा कि आम आदमी पार्टी ने दिल्ली, पंजाब के अलावा अन्य राज्यों में भी कांग्रेस को नुकसान पहुंचाया है. इसलिए न तो केजरीवाल से मुलाकात करना चाहिए और न ही अध्यादेश के विरोध का समर्थन करना चाहिए. दिल्ली इकाई के अजय माकन और संदीप दीक्षित ने सार्वजनिक मंचों पर केजरीवाल के साथ न जाने की बात कही थी.

आम आदमी पार्टी का रोल

और इसके पीछे वजहें भी हैं. अन्ना आंदोलन के बाद जिस तरीके से दिल्ली में आम आदमी पार्टी उभर कर आई कांग्रेस का सूपड़ा साफ हो गया. दिसंबर 2013 में अपने पहले विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को 28 सीटें मिलीं. बीजेपी के हाथ आई 32 सीटें. 15 साल तक सत्ता में रही कांग्रेस महज 8 सीटों पर सिमट गई थी. हालांकि कांग्रेस के समर्थन से आम आदमी पार्टी पहली बार 49 दिनों के लिए सरकार बनाने में सफल रही थी. इसके बाद केजरीवाल ने कांग्रेस और बीजेपी दोनों पर जन लोकपाल विधेयक पारित करने में बाधा डालने का आरोप लगाया और इस्तीफा दे दिया.

इसके बाद 2015 और 2020 में हुए विधानसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी को प्रचंड बहुमत मिली और कांग्रेस खाता तक न खोल पाई. उसी राज्य में जहां 15 साल तक वे लगातार सत्ता में रहे थे.

2019 के आम चुनाव से पहले भी केजरीवाल ने कांग्रेस से इसी तरह देश हित में गठबंधन करने, जैसा अभी कर रहे हैं की अपील की थी. लेकिन कांग्रेस ने दिल्ली से बाहर हरियाणा, पंजाब और गोवा में सीट देने से इनकार कर दिया था. केजरीवाल ने उस समय कहा था,

"अगर मोदी-शाह सत्ता में लौटते हैं तो इसका जिम्मेदार केवल एक व्यक्ति होगा और वह हैं राहुल गांधी".

फोटो- इंडिया टुडे

जवाब में राहुल गांधी ने ट्वीट किया था,

'दिल्ली में कांग्रेस और आप के बीच गठबंधन का मतलब बीजेपी की हार होगी. इसे सुनिश्चित करने के लिए कांग्रेस आप को दिल्ली की 4 सीटें देने को तैयार है. लेकिन, मिस्टर केजरीवाल ने एक और यू-टर्न ले लिया है! हमारे दरवाजे अभी भी खुले हैं, लेकिन समय कम बचा है.'

गठबंधन नहीं हो पाया. लोकसभा चुनाव हुए. बीजेपी दिल्ली की सातों सीट जीतने में सफल रही. इसके बाद 2022 में आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस को पंजाब की सत्ता से बाहर किया. पार्टी ने गुजरात में पूरी ताकत से चुनाव लड़ा और 5 सीटें जीतीं. अब आगे राजस्थान, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और हरियाणा में चुनाव लड़ने की तैयारी में है. हरियाणा के अलावा बाकी तीनों राज्यों में कांग्रेस-बीजेपी की सीधी लड़ाई है. और जैसा कि हमने रायपुर और जींद में देखा केजरीवाल बीजेपी के साथ-साथ कांग्रेस पर भी हमला बोल रहे. एकदम तुम्हीं से मोहब्बत और तुम्हीं से लड़ाई वाला मामला है. 

23 जून को विपक्ष के नेताओं की पटना में एक रैली होनी है. इसमें केजरीवाल, राहुल गांधी, खड़गे, ममता बनर्जी, स्टालिन, अखिलेश यादव, उद्धव ठाकरे, सीताराम येचुरी समेत कई विपक्षी नेताओं के आने की बात कही गई है. लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी दलों को एक मंच पर लाने की कोशिश. लेकिन अब केजरीवाल की बयानबाजी के बाद सवाल उठ रहे हैं कि क्या आपसी मतभेद भूलकर ये सारे दल एक साथ आम चुनाव में खड़े होंगे?

राज्यसभा में केंद्र के अध्यादेश पर कांग्रेस का क्या स्टैंड होगा? क्या कांग्रेस, केजरीवाल का समर्थन करेगी? विपक्षी एकता की कोशिशें कितनी सफल होंगी?

इन सारे सवालों के जवाब वक्त के गर्भ में है. लोकसभा चुनाव और उससे पहले मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान चुनाव से जुड़े सारे अपडेट्स दी लल्लनटॉप आप तक पहुंचाता रहेगा.