The Lallantop
लल्लनटॉप का चैनलJOINकरें

परिवार न्यायालय (संशोधन) विधेयक का केवल दो राज्यों में बेसब्री से इंतजार क्यों हो रहा था?

इन दोनों राज्यों के फैमिली कोर्ट के फैसलों, नियुक्तियों, नियमों आदि पर संदेह था, केंद्र ने ये बिल लाकर सब लीगल कर दिया.

post-main-image
केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजु. (फाइल फोटो: इंडिया टुडे)

शादी और पारिवारिक मसलों का समाधान करने के लिए देश की संसद ने साल 1984 में 'परिवार न्यायालय कानून' पारित किया था. इसे उसी साल सितंबर महीने की 14 तारीख को लागू किया गया. इस कानून में ये प्रावधान किया गया कि पारिवारिक विवाद और उससे जुड़े मामलों में सुलह और तेजी से समाधान करने के लिए देश के सभी राज्यों में 'परिवार न्यायालय' या ‘फैमिली कोर्ट’ बनाए जाएंगे.

इसका पालन करते हुए राज्यों ने अपने यहां परिवार न्यायालय बनाए और इस कानून के अनुसार मामलों का निपटारा करना शुरु किया. लेकिन इसमें दो राज्य पीछे रह गए थे- हिमाचल प्रदेश और नागालैंड. इन दोनों राज्यों ने काफी सालों बाद इस तरह की अदालतों का गठन किया था. नागालैंड में 2008 में और हिमाचल प्रदेश में 2019 में फैमिली कोर्ट की शुरुआत हुई थी.

हालांकि केंद्र सरकार ने इसे मंजूरी प्रदान नहीं की थी. इस कारण इन दोनों राज्यों के 'फैमिली कोर्ट' के फैसलों पर सवाल खड़े हो रहे थे कि इन्हें माना जाएगा या नहीं. इसी समस्या का समाधान करने के लिए केंद्र सरकार अब इस कानून में संशोधन कर रही है और मानसून सत्र में इसके लिए विधेयक लेकर आई है.

क्या है संशोधन बिल?

भारत के कानून मंत्री किरेन रिजिजु ने सोमवार, 18 जुलाई को लोकसभा में परिवार न्यायालय (संशोधन) विधेयक 2022 पेश किया. इसका मुख्य उद्देश्य हिमाचल प्रदेश और नागालैंड में बनाए गए परिवार न्यायालयों के गठन को कानूनी मान्यता प्रदान करना है. साथ ही इन अदालतों के सभी फैसलों, आदेशों, नियमों, नियुक्तियों आदि को वैध करार देना है.

हिमाचल प्रदेश ने 15 फरवरी 2019 को एक अधिसूचना जारी कर शिमला, धर्मशाला और मंडी जिले में तीन परिवार न्यायालयों का गठन किया था. वहीं नागालैंड ने 12 सितंबर 2008 को अपने एक सरकारी आदेश के तहत दिमापुर और कोहिमा में दो फैमिली कोर्ट का गठन किया था. ये न्यायालय तब से लगातार काम कर रहे हैं.

लेकिन इन अदालतों के गठन को लेकर एक महत्वपूर्ण मंजूरी अभी तक नहीं मिली हुई थी. दरअसल परिवार न्यायालय कानून, 1984 की धारा 1 की उपधारा 3 में ये प्रावधान किया गया है कि राज्य सरकार द्वारा इन फैमिली कोर्ट के गठन का आदेश जारी करने के बाद केंद्र सरकार को इसकी मंजूरी प्रदान करनी होगी और इस संबंध में नोटिफिकेशन जारी करना होगा.

लेकिन केंद्र सरकार ने अभी तक ये काम नहीं किया था. इसलिए इन दोनों राज्यों के फैमिली कोर्ट के न्यायाधिकार क्षेत्र पर सवाल उठ रहा था. साथ ही ये भी कहा जा रहा था कि केंद्र की मंजूरी नहीं मिलने का तकनीकी मतलब ये होगा कि इन अदालतों द्वारा दिए गए सभी फैसले या कार्यों का कोई ‘न्यायिक या कानून औचित्य’ नहीं है.

इसे लेकर साल 2021 में हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट में एक याचिका भी दायर की गई थी, जिसमें केंद्र सरकार को भी पार्टी बनाया गया है.

अब केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजिजु ने कहा कि इन दोनों राज्यों के फैमिली कोर्ट को मान्य ठहराने और इनके फैसलों को कानूनी करार देने के लिए ये संशोधन कानून पेश किया गया है.

विधेयक में क्या है?

परिवार न्यायालय (संशोधन) विधेयक, 2022 के तहत मूल कानून की धारा 1 की उप-धारा 3 में संशोधन करते हुए 15 फरवरी 2019 को हिमाचल प्रदेश और 12 सितंबर 2008 को नागालैंड में गठित परिवार अदालतों को वैध करार देने का प्रस्ताव किया गया है.

इसके साथ ही इसमें एक नई धारा 3A जोड़ी गई है, जिसके तहत इन दोनों राज्यों के फैमिली कोर्ट द्वारा लिए गए अब तक के सभी फैसलों, कार्यवाही इत्यादि को 'कानूनी' ठहराने का प्रस्ताव किया गया है.

विधेयक में कहा गया है, 

‘परिवार न्यायालय (संशोधन) कानून, 2022 के लागू होने से पहले हिमाचल प्रदेश और नागालैंड की फैमिली अदालतों द्वारा लिए गए सभी फैसलों, आदेश, कार्यवाही, मामलों पर विचार, कार्रवाई या सजा इत्यादि को इस कानून के तहत उठाया गया वैध कदम माना जाएगा.’

इसके साथ ही हिमाचल प्रदेश और नागालैंड राज्य की सरकारों द्वारा फैमिली अदालतों में की गई जजों की सभी नियुक्तियां, ट्रांसफर, प्रमोशन और पोस्टिंग संबंधी सभी फैसलों को भी वैध ठहराने का प्रस्ताव किया गया है.

मालूम हो कि 14 सितंबर 1984 को परिवार न्यायालय कानून लागू किए जाने के बाद से देश के 26 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश में कुल 715 फैमिली अदालतों का गठन किया गया है, जिसमें हिमाचल प्रदेश के तीन और नागालैंड के दो फैमिली कोर्ट्स भी शामिल हैं.

तारीख: मुगल फौज को जब सच में अपनी नाक कटवानी पड़ी