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गुजरात: पिछली बार लगा था 'झटका', इस बार गांव के वोटरों को ऐसे साधने जा रही है BJP

पिछले गुजरात विधानसभा चुनाव में BJP ने शहरी क्षेत्रों की 39 में से 35 सीटें जीती थीं. लेकिन ग्रामीण इलाकों की 143 में से 64 सीटें ही जीत पाई थी.

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गुजरात में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा. (फोटो: इंडिया टुडे)

साल 2017 का गुजरात विधानसभा चुनाव (Gujarat Assembly Election) कड़ी टक्कर वाला चुनाव था. बीजेपी (BJP) ने जैसे तैसे अपनी सत्ता बचाई थी. इस चुनाव में ये भी साफ हो गया कि बीजेपी की सत्ता शहरी इलाकों की वजह से बची. आंकड़े भी कुछ इसी तरह की गवाही देते हैं. पिछले गुजरात विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने शहरी इलाकं की 39 में से 35 सीटों पर जीत हासिल की थी. वहीं ग्रामीण इलाकों में पार्टी 143 में से 64 सीटों पर ही जीत हासिल कर पाई थी. ऐसे में पार्टी इस बार ग्रामीण इलाकों पर अलग से ध्यान दे रही है.

मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, बीते 17 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Modi) के जन्मदिन के मौके पर बीजेपी ने गुजरात में ‘नमो किसान पंचायत’ (Namo Kisan Panchayat) अभियान की जोर शोर से शुरुआत की. बीते 20 सितंबर को अपने दो दिन के दौरे पर गुजरात गए बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने गांधीनगर में नमो किसान पंचायत कार्यक्रम के लिए ई-बाइक (e-bike)को हरी झंडी दिखाई. इस दौरान नड्डा ने कहा, 

''कोविड-19 सदी की सबसे बड़ी त्रासदी थी. प्रधानमंत्री मोदी ने पीएम गरीब कल्याण अन्न योजना चलाकर 80 करोड़ लोगों को 5 किलो गेहूं, 5 किलो चावल और दाल देकर गरीब लोगों के लिए काम किया. ये योजना आज भी चल रही है."

नड्डा ने आगे कहा कि पीएम किसान सम्मान निधि योजना के तहत 11 करोड़ से अधिक किसानों के खातों में सालाना छह हजार रुपये भेजे जा रहे हैं.

क्या है नमो किसान पंचायत?

बीजेपी की इस नई पहल का मकसद गुजरात के ग्रामीण और दूरदराज क्षेत्रों के वोटरों से सीधे जुड़ना है. पार्टी का कहना है कि सरकार की किसानों से जुड़ी योजनाओं के बारे में लोगों को जागरुक किया जाएगा. 

बीजेपी का कहना है कि 'किसान मोर्चा' से जुड़े पार्टी के कार्यकर्ता गुजरात के लगभग 16,000 गांवों का दौरा करेंगे. लगभग डेढ़ करोड़ ग्रामीणों के साथ बातचीत करेंगे. इन ई-बाइक्स में एलईडी (LED) स्क्रीन लगाई जाएंगी. बीजेपी का कहना है कि लोगों को दिखाया जाएगा कि सरकार ने कैसे गांवों और किसानों की हालत को बदल दिया. 

बताया जा रहा है कि इस कार्यक्रम में हिस्सा लेने जा रहे बीजेपी कार्यकर्ताओं को स्पेशल ट्रेनिंग दी गई है. इसका पूरा फोकस ग्रामीण इलाकों में ही रहेगा. शहरी क्षेत्रों में ये अभियान नहीं चलाया जाएगा.

‘शहर तो बीजेपी के हैं, लेकिन…’

राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, पिछले गुजरात विधानसभा चुनाव में देखा गया कि शहरी इलाके को बीजेपी का गढ़ हैं, जबकि ग्रामीण वोटरों का झुकाव कांग्रेस की है. राजनीतिक विश्लेषक प्रशांत गढ़वी ने दी लल्लनटॉप को बताया, 

“ग्रामीण मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए पीएम मोदी की सरकार ने प्रधान मंत्री फसल बीमा योजना शुरू की. ऐसी और योजनाओं को लोकप्रिय बनाने की कोशिश की जा रही है. महंगाई और बेरोजगारी की वजह से गुजरात में सत्ता विरोधी लहर इस समय ज्यादा है. इसका मुकाबला करने के लिए बीजेपी ग्रामीण मतदाताओं से जुड़ने की कोशिश कर रही है, जो असल रूप से उसका वोटर आधार नहीं रहा है.”

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के रिटायर्ड प्रोफेसर और सेंटर फॉर सोशल स्टडीज, सूरत के पूर्व निदेशक घनश्याम शाह भी यही बात कहते हैं. उन्होंने बताया, 

'महंगाई और ग्रामीण आबादी को अन्य सुविधाएं उपलब्ध नहीं होने के कारण ग्रामीण क्षेत्रों में सरकार के खिलाफ भारी असंतोष है बना है. बीजेपी का विकास मॉडल उद्योगों के लिए अच्छा हो सकता है, लेकिन इसमें ग्रामीण आबादी को ध्यान में नहीं रखा गया है. किसानों को खुश करने और ग्रामीण गुजरातियों के वोट जीतने के लिए, उन्होंने ये पहल शुरू की है. क्योंकि 2017 के चुनाव परिणामों से यह स्पष्ट था कि बीजेपी के वोटर मुख्य रूप से शहरी हैं."

AAP और कांग्रेस के सवाल

शहरी पार्टी कही जाने वाली AAP को भी ग्रामीण वोटरों की अहमियत पता है. आम आदमी पार्टी गुजरात के महासचिव मनोज सोरथिया का मानना है कि आम आदमी पार्टी की बढ़ती मौजूदगी ने ही भाजपा को राज्य में ज़मीनी सक्रियता बढ़ाने के लिए मजबूर किया है. उन्होंने कहा, 

“गुजरात के ग्रामीण क्षेत्रों में आप (AAP)की पहुंच बहुत अधिक है. 2020 में हमने ग्रामीण मतदाताओं से जुड़ने के लिए जन संवेदना यात्रा शुरू की थी. आज हर 18 हजार गांवों पर एक गांव समिति और एक बूथ समिति है. यह तभी संभव है, जब हमें समर्थन मिले. ग्रामीण वोटर अपने बच्चों के लिए अच्छी शिक्षा और रोजगार की हमारी गारंटी के कारण आप (AAP)को सपोर्ट कर रहे हैं. लोग सत्तादल और उसके खराब शासन से थक चुके हैं. आम आदमी पार्टी  का मुकाबला करने के लिए उन्होंने नमो किसान पंचायत शुरू की हैं.”

इधर बीजेपी के इस अभियान के बारे में कांग्रेस नेता जिग्नेश मेवानी ने कहा, 

'राजनीतिक दलों को अपनी योजनाओं को लोगों तक पहुंचाने का अधिकार है. लेकिन बढ़ती बेरोजगारी, महंगाई, किसान विरोधी नीतियों, पानी के मुद्दों और खेती पर पॉलिसी की कमी ने गुजरात के ग्रामीण वोटरों के बीच  सत्ता विरोधी लहर पैदा कर दी है. भाजपा केवल प्रचार करना जानती है. वोट डालते वक्त सावधानी बरतनी चाहिए."

BJP का जवाब

विपक्ष के आरोपों का जवाब देते हुए गुजरात बीजेपी की प्रवक्ता डॉक्टर श्रद्धा राजपूत ने कहा कि गुजरात में भाजपा का मतदाता आधार पहले से कहीं अधिक मजबूत है. उन्होंने बताया, 

“गुजरात में बारिश पूरी नहीं होती और हमारे पास नदियों से पूरा पानी भी नहीं था. जब नरेंद्र मोदी ने मुख्यमंत्री के रूप में कार्यभार संभाला था, तो उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि बनासकांठा और कच्छ जैसे क्षेत्रों में भी किसानों तक पूरा पानी पहुंचे.ग्रामीण महिलाओं के हालात भी अच्छे है क्योंकि पानी की समस्या हल हो गई है. इसलिए ये कहना गलत होगा कि भाजपा का ग्रामीण मतदाता आधार कमजोर है.”

जब दी लल्लनटॉप ने डॉक्टर श्रद्धा राजपूत से पूछा कि बीजेपी को ग्रामीण क्षेत्रों में पर्याप्त सीटें क्यों नहीं मिलीं, तो उन्होंने कहा, 

"गुजरात मॉडल भारत में सबसे अच्छा मॉडल है, गुजरातियों को इस पर गर्व है. लेकिन 2017 में वो ऐसा चुनाव नहीं था, जहां लोगों ने काम और शासन पर वोट दिया हो. जातिगत आंदोलनों ने वोटरों की भावनाओं का दुरुपयोग किया और इसी वजह से कांग्रेस को ज़्यादा सीटें मिलीं."

उन्होंने आगे बताया,

"हमने केंद्र और राज्य सरकार द्वारा चलाई जा रहीं वेलफेयर योजनाओं को लोगों तक प्रचारित करने लिए नमो किसान पंचायत शुरू की है ताकि गुजरातियों को इनका ज़्यादा से ज़्यादा फायदा मिल सके."

आम आदमी पार्टी के इस दावे पर कि बीजेपी ने उसकी ग्राम समितियों को देखते हुए किसान पंचायत की शुरुआत की है, डॉक्टर श्रद्धा राजपूत ने कहा कि आम आदमी पार्टी झूठे लोगों की पार्टी है. उन्होंने कहा कि केजरीवाल की पार्टी के बारे में गुजरात के लोग सोचते भी नहीं हैं.