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जब गांधी ने टैगोर से पूछा, मुझे दुल्हन के कमरे में क्यों लाए हो?

साल 1925 में महात्मा गांधी, रवींद्रनाथ टैगोर से मिलने गए थे.

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गांधी और टैगोर (फोटो- कॉमन सोर्स)

भारत की आज़ादी के 75 बरस हो चुके हैं. बचपन से सुनते आए हैं और सच सुनते आए हैं कि हमारी आज़ादी में बहुत से पुरखे-पुरखिनों का योगदान रहा है, जिनके लिए हम कृतज्ञ हैं. आज हम लाए हैं एक सरस क़िस्सा. लप्पूझन्ना वाले अशोक दाज्यू से शब्द उधार लेकर कहें, भौत बड़े लीडर्स की बात हो रही है. महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) और रवींद्रनाथ टैगोर (Rabindranath Tagore) की. दोनों उन्नीसवीं सदी के एक ही दशक में जन्मे थे. इतिहासकारों का कहना है कि दोनों विद्वानों की कई मुद्दों पर अलग-अलग राय थी. टैगोर ने गांधी के असहयोग आंदोलन की कड़ी आलोचना की थी. राष्ट्रवाद पर भी दोनों अलग-अलग विचार रखते थे.

अलग-अलग राय होने के बाद भी कई मुद्दों पर दोनों एक जैसे विचार रखते थे. मसलन, दोनों इस निष्कर्ष पर पहुंच चुके थे कि नए भारत के निर्माण की प्रक्रिया गांवों से शुरू होगी. या फिर स्वराज तब तक एक खोखला विचार रहेगा, जब तक लोग अपने मन मुताबिक अपना जीवन नहीं चला पाते. टैगौर और गांधी एक दूसरे का सम्मान भी करते थे. दोनों के बीच स्नेह के भी कई किस्से प्रचलित हैं. दोनों ने एक उद्देश्य के लिए भी पूरे मन से काम किया. वो था- पूरे देश को एकता के धागे में बांधना.  

गांधी और टैगोर की मुलाकातें भी होती रहती थीं. एक ऐसी ही मुलाकात 1925 में हुई. गांधी शांतिनिकेतन गए थे. वही शांतिनिकेतन, जहां टैगोर रहते थे. ये जगह कोलकाता से 180 किलोमीटर दूर स्थित है. 29 मई को जब गांधी पहुंचे, तो टैगोर ने उन्हें शांतिनिकेतन में अपना कमरा दिखाया. कमरे को खूब फूल-पत्तियों से सजाया गया था. तब गांधी ने टैगोर से चुहल करते हुए कहा, 

"मुझे दुल्हन के इस कमरे में क्यों लाया गया है? यहाँ दुल्हन कौन है?" 

रवींद्रनाथ टैगोर ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, 

“शांतिनिकेतन, हमारे दिलों की सर्वदा युवा रानी, आपका स्वागत करती है." 

गांधी ने नहले पर दहला मारा, 

“हां, बिल्कुल लेकिन शायद वह इस बूढ़े, दंतहीन दरिद्र पर दोबारा नज़र भी डाले!" 

गुरुवर तो गुरु थे. फटाक से बोले, 

“नहीं, हमारी रानी ने सत्य से प्रेम किया है और इतने बरसों में पूरी श्रद्धा से उसे पूजा है.”

रुद्रांशु मुखर्जी अपनी किताब ‘Tagore and Gandhi, Walking alone, Walking Together’ में बताते हैं कि अपने विचारों में अलग-अलग होने के बावजूद भी टैगोर और गांधी के एक-दूसरे को लिखे गए खतों में रत्तीभर भी खटास नहीं थी. वे एक-दूसरे को नीचा दिखाने के उद्देश्य से कोई प्रयत्न नहीं करते थे. वे बहुत सम्मान के साथ एक दूसरे के साथ बहस में शामिल होते थे.

हम वापस गांधी की शांतिनिकेतन यात्रा पर आते हैं. इस यात्रा के मानीख़ेज परिणाम हुए. उसी साल 7 जून को गांधी ने लिखा था कि उन्होंने टैगोर से घंटों तक बात की. उन्हें बेहतर तरीके से समझा. गांधी ने ये भी लिखा कि टैगोर ने भी उन्हें अच्छे से समझा और उनके प्रति टैगोर के स्नेह की कोई सीमा नहीं है.

(इस किस्से के तथ्य, प्रो. रुद्रांशु मुखर्जी की पुस्तक, “Tagore and Gandhi, Walking alone, Walking Together” से लिए गए हैं.)

वीडियो: तारीख: जब राष्ट्रगान बजता रहा और महात्मा गांधी बैठे रहे