राहुल गांधी को सजा, पीछे की पूरी कहानी क्या है?

09:19 PM Mar 23, 2023 | निखिल
Advertisement

राहुल गांधी के लिए मुश्किलें खत्म होने का नाम नहीं ले रही हैं. पहले उनके लंदन वाले बयान पर हंगामा हुआ. और अब तो उन्हें प्रधानमंत्री मोदी पर दिए अपने बयान के चलते 2 साल की सज़ा भी हो गई है. राहुल को तुरंत बेल भी मिल गई. लेकिन उनकी सांसदी पर संकट खत्म नहीं हुआ है. क्योंकि मानहानि ही सही, लेकिन राहुल को एक आपराधिक मामले में दो साल की सज़ा हुई तो है. माने यदि उनकी सज़ा पर रोक नहीं लगी, तो रीप्रेज़ेंटेशन ऑफ द पीपल एक्ट 1951 के तहत, संसद में उनकी सदस्यता को रद्द किया जा सकता है. भाजपा नेता कोर्ट के फैसले को अपनी सफलता की तरह पेश कर रहे हैं, वहीं कांग्रेस के मुताबिक ये विपक्ष को दबाने की एक और कोशिश है. तो कुछ लोगों ने सीधे आपराधिक मानहानि के कानून पर ही सवाल उठा दिया. 

Advertisement

जेल, बेल और सांसदी जाने न जाने के सवाल पर आने से पहले मामला जान लिया जाए. तो बात ऐसी है कि 13 अप्रैल 2019 के रोज़ राहुल गांधी थे कर्नाटक के कोलार में. जी हां, वही कोलार, जो सोने की खदानों के लिए मशहूर है. पूरे देश पर लोकसभा चुनाव का बुखार चढ़ा हुआ था. और इसी माहौल में राहुल की कोलार वाली जनसभा हुई. इसमें प्रधानमंत्री मोदी पर हमला बोलते हुए राहुल थोड़ा आगे बढ़ गए. राहुल गांधी ने कहा,

‘नीरव मोदी, ललित मोदी, नरेंद्र मोदी का सरनेम कॉमन क्यों है? सभी चोरों का सरनेम मोदी क्यों होता है?’ 

अपने नेता पर हमले को भाजपा हल्के में जाने नहीं देना चाहती थी. सो गुजरात के सूरत में आपराधिक मानहानि का मामला दर्ज कराया गया. शिकायतकर्ता थे - पूर्व मंत्री एवं सूरत पश्चिम सीट से भाजपा विधायक पूर्णेश मोदी. इल्ज़ाम ये, कि राहुल ने अपने बयान से पूरे मोदी समाज का अपमान किया है. दो धाराएं लगाई गईं - इंडियन पीनल कोड IPC की धारा 499 और 500. 
>धारा 499 के तहत मौखिक, लिखित या संकेतों के माध्यम से किसी की प्रतिष्ठा पर चोट करना मानहानि करार दिया जाता है. ये एक non cognisable offence है. माने ऐसे में मामलों में पुलिस स्वतः संज्ञान नहीं लेती. और बिना वॉरंट गिरफ्तारी भी नहीं करती. 
>राहुल पर लगी दूसरी धारा - IPC, सेक्शन 500 कहता है कि मानहानी को दोषियों को दो साल तक की जेल या जुर्माना हो सकता है. जेल और जुर्माने की सज़ा साथ-साथ भी सुनाई जा सकती है.

इन्ही धाराओं के तहत ट्रायल कोर्ट में मामला शुरू हुआ. और 3 बार राहुल गांधी अपने बयान आदि दर्ज कराने सूरत आए भी. पूर्णेश मोदी के वकीलों की दलील यही थी, कि राहुल के बयान से पूर्णेश और उनका समाज आहत है. इसीलिए राहुल सज़ा के पात्र हैं. वकीलों ने आगे जोड़ा कि राहुल पहले भी मानहानिकारक बयान देते रहे हैं. इसीलिए उन्हें रोकने के लिए कुछ करना ज़रूरी है. वहीं बचाव पक्ष ने उस दलील का सहारा लिया, जो सरकार को बड़ी पसंद है. जी हां. कर्नाटक हिजाब मामले से लेकर प्रयागराज हिंसा के बाद प्रशासन द्वारा आरोपियों के घरों पर की गई कथित अतिक्रमण विरोधी कार्रवाई के मामले में सरकार ने अदालत में यही कहा था कि अदालत में जिन लोगों ने याचिका लगाई है, वो स्वयं पीड़ित नहीं हैं. ऐसे में उनकी याचिका पर कोर्ट विचार न करे. कुछ-कुछ यही दलील राहुल के वकीलों ने सूरत की ट्रायल कोर्ट में दी. 

उन्होंने कहा कि राहुल की टिप्पणी का संबंध नरेंद्र मोदी से था. अगर उन्हें इस बात से आपत्ति थी, तो वो स्वयं कोर्ट आ सकते थे. लेकिन मामला दर्ज कराया है पूर्णेश ने. उन्होंने सूरत मोधवणिक समाज को मोदी समाज बताया है. लेकिन समाज के दस्तावेज़ों में कहीं मोदी समाज का उल्लेख नहीं है. और पूर्णेश का नाम भी पूर्णेश भूतवाला था, जिसे उन्होंने बाद में बदलकर पूर्णेश मोदी किया.  फिर एक भाषण की एक लाइन के आधार पर मानहानि का आरोप साबित नहीं किया जा सकता. इसीलिए मामला खारिज किया जाए. 

यहां थोड़ी देर रुककर पूर्णेश मोदी की बात कर लेते हैं. पूर्णेश सूरत के अदजन इलाके से आते हैं. ये पड़ता है सूरत पश्चिम सीट के इलाके में. भाजपा के लिए ये एक सेफ सीट मानी जाती है. 2012 में इसे भाजपा के लिए जीता किशोर भाई वांकावाला ने. लेकिन जून 2013 में किशोर भाई को दिल का दौरा पड़ा और उनका देहांत हो गया. तब जो उपचुनाव हुए, उनमें भाजपा टिकट मिला पेशे से वकील और पूर्व पार्षद पूर्णेश को. ये चुनाव पूर्णेश आसानी से जीत गए. 2017 और 2022 में भी पूर्णेश इस सीट से बढ़िया मार्जिन के साथ जीते. वो गुजरात सरकार में परिवहन मंत्री, नागरिक उड्डयन मंत्री और तीर्थ विकास मंत्री भी रहे हैं. और अब इनके परिचय में एक और चीज़ जुड़ गई है. खैर, मामले पर लौटते हैं. 

मार्च 2022 में एक विचित्र घटना हुई. राहुल के खिलाफ चल रहे मामले पर खुद पूर्णेश मोदी गुजरात हाईकोर्ट से स्टे ले आए. टाइम्स ऑफ इंडिया के लिए सईद खान की रिपोर्ट के मुताबिक घटनाक्रम कुछ ऐसा था. -
मामला दर्ज हुआ. सुनवाई शुरू हुई. और आरोपी, माने राहुल के बयान भी हो गए. लेकिन पूर्णेश चाहते थे कि राहुल की मौजूदगी में उन तीन CD को प्ले किया जाए, जो अदालत के समक्ष रखी गई थीं. और राहुल से सीडी में मौजूद सामग्री को लेकर आपराधिक दंड संहिता CrPC की धारा 313 के तहत सवाल जवाब हो.  धारा 313 के तहत ट्रायल कोर्ट को ये अधिकार होता है कि वो आरोपी से उसके खिलाफ पेश सबूतों को लेकर स्पष्टीकरण मांगे.  लेकिन ट्रायल कोर्ट ने पूर्णेश की इस मांग को खारिज कर दिया. तो पूर्णेश के वकीलों ने गुजरात हाईकोर्ट में याचिका लगाकर कह दिया कि सबूतों का अभाव है. इसीलिए राहुल को व्यक्तिगत रूप से अदालत में पेश होने का आदेश दिया जाए. तब तक सुनवाई पर रोक लगा दी जाए. और पूर्णेश को हाईकोर्ट से स्टे मिल भी गया. 

एक साल बाद पूर्णेश फिर हाईकोर्ट आए. और इस बार उन्होंने अदालत को बताया कि ट्रायल कोर्ट के रिकॉर्ड पर पर्याप्त सबूत हैं. लेकिन स्टे के चलते मामला लंबित पड़ा हुआ है. पूर्णेश के वकील हर्षित तोलिया ने अदालत से दरख्वास्त की, कि उन्हें अपनी याचिका वापिस लेने की अनुमति दी जाए.  जस्टिस विपुल पंचोली की अदालत ने दलीलें सुनने के बाद पूर्णेश की मांग मान ली और इसी के साथ 16 फरवरी 2023 को सूरत की ट्रायल कोर्ट में सुनवाई पर लगा स्टे हट गया. और मानहानि का मुकदमा एक बार फिर आगे बढ़ा. 

मार्च 2023 के दूसरे हफ्ते में दोनों पक्षों की दलीलें पूरी हो गईं. और आज आया है फैसला. ट्रायल कोर्ट के जज हरीश हसमुखभाई वर्मा ने अपने 168 पन्ने के फैसले में जो कहा, हम उसे कुछ बिंदुओं में समेट रहे हैं -

>> राहुल गांधी को सुप्रीम कोर्ट ने पहले भी अपने बयानों को लेकर सावधान रहने को कहा था, लेकिन उनमें कोई बदलाव नहीं आया 
>> राहुल गांधी एक सांसद हैं. और सांसद के तौर पर जब आप जनता को संबोधित कर रहे होते हैं तो ये एक गंभीर विषय होता है
>>सांसदों के बयानों का जनता पर बहुत व्यापक प्रभाव पड़ता है, और इससे उनका अपराध और गंभीर हो जाता है
>>कम सजा से जनता में गलत संदेश जाएगा और मानहानि का उद्देश्य पूरा नहीं होगा

कोर्ट ने अपने फैसले में कुछ पुराने मानहानि मुकदमों का उदाहरण भी दिया है. कोर्ट ने अपने आदेश में लिखा - 
13 अप्रैल 2019 को कोलार में भाषण दिया जाता है, जिसमें चोर कहते हुए पूछा जाता है कि हर चोर मोदी ही क्यों होता है? प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उपनाम का उपयोग पूरे भारत में किया जाता है. बहुत से लोगों का सरनेम मोदी होता है. ये बयान अभियुक्त ने निजी राजनैतिक स्वार्थ के लिए दिया, जिससे बदनामी हुई. अभियुक्त ने मोदी समाज के लोगों का अपमान किया है, जो अक्षम्य है.

जज ने राहुल गांधी की मंशा पर टिप्पणी करते हुए कहा- 

"नीरव मोदी, मेहुल चोकसी, विजय मालया, अनिल अंबानी और नरेंद्र मोदी. चोरों का ग्रुप है. आपके जेब से पैसे लेते हैं.. किसानों, छोटे दुकानदारों से पैसा छीनते हैं. और उन्हीं 15 लोगों को पैसा देते हैं. आपको लाइन में खड़ा करवाते हैं. बैंक में पैसा डलवाते हैं और ये पैसा नीरव मोदी लेकर चला जाता है. 35,000 करोड़ रुपये. मेहुल चोकसी, ललित मोदी.. अच्छा इसमें एक छोटा सा सवाल है. इन सब चोरों के नाम मोदी-मोदी-मोदी कैसे हैं? नीरव मोदी, ललित मोदी, नरेंद्र मोदी और अभी ढूंढेंगे तो और मोदी निकलेंगे."

 उन्होंने आरोपी पर जोर देने कि बजाय सरनेम पर जोर दिया. अभियुक्त का इरादा "मोदी" नाम के साथ पूरे "मोदी" स्टीरियोटाइप की पहचान करना था. उपरोक्त पहलुओं को ध्यान में रखते हुए, पाया गया है कि शिकायतकर्ता को व्यक्तिगत, शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रूप से प्रताड़ित किया गया है. फैसले के आखिरी में जज ने लिखा-  राहुल गांधी को IPC की धारा 499 और 500 के तहत दोषी पाया गया और उन्हें दो साल की सजा सुना दी गई. हालांकि साथ में ये भी कहा गया कि अभियुक्त पहले ऐसे किसी अपराध में दोषी नहीं पाए गए हैं और उन्हें एक महीने की मोहलत दी जाती है, ताकि वो अपील कर सकें. 

तो राहुल को सज़ा के साथ साथ महीने भर की बेल भी मिल गई है. 
इस फैसले पर शिकायतकर्ता पुर्णेश मोदी ने कहा, 

‘राहुल गांधी के भाषण पर सूरत न्यायालय में हमनें याचिका दायर की थी.और आज उस याचिका पर जो फैसला आया है उस फैसले का हम स्वागत करते हैं.’

स्वाभाविक ही है, कि राहुल के वकील इस फैसले से संतुष्ट नहीं हैं. उन्होंने कहा,

‘कोर्ट ने आज राहुल गांधी जी को IPC की धारा 504 के तहत दोषी पाया गया है. और 2 साल की सजा सुना दी. आगे राहुल गांधी अपील कर सकें इसलिए उन्हें 30 दिन की बेल दी गई है.’ 


आखिर में बात लाख रुपये के सवाल की. क्या राहुल की सांसदी जाएगी?
आपको साल 2013 की ये बहुचर्चित तस्वीर याद होगी. सितंबर महीने में यूपीए सरकार एक अध्यादेश ले आई. मकसद था उसी साल जुलाई में सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश को निष्क्रिय करना. सुप्रीम कोर्ट का आदेश था कि दोषी पाए जाने पर सांसद हो या विधायक, उनकी सदस्यता तुरंत रद्द की जाएगी और उनकी सीट को खाली घोषित किया जाएगा. तब कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8 (4) को बनाए रखने की कोशिश की. कहा गया, तब यूपीए में राष्ट्रीय जनता दल भी शामिल थी और लालू प्रसाद यादव पर चारा घोटाले को लेकर अयोग्यता की तलवार लटक रही थी. कांग्रेस ने तय किया कि सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के खिलाफ अध्यादेश लाया जाएगा, जिसके जरिए सांसद या विधायकों 3 महीने की मोहलत दी जाएगी, तुरंत सदस्यता रद्द नहीं होगी. बीजेपी समेत विपक्षी पार्टियों ने इसका पुरजोर विरोध किया.

इस पूरे हंगामे के बीच कांग्रेस ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई, जिसमें कांग्रेस नेता अजय माकन अध्यादेश की अच्छाईयों को देश के सामने रखने वाले थे. उनकी प्रेस कॉन्फ्रेंस बस थोड़ा ही आगे बढ़ी थी, तभी एंट्री होती है तत्कालीन कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी की. राहुल गांधी ने तब अध्यादेश लाने के लिए न सिर्फ अपनी ही सरकार पर सवाल उठाए बल्कि अध्यादेश पूरी तरह बकवास बताते हुए कहा कि इस अध्यादेश को फाड़कर फेंक दिया जाना चाहिए. 

राहुल गांधी के इस बयान के वो अध्यादेश कभी बिल की शक्ल में आ ही नहीं पाया. जब राहुल गांधी प्रेस कॉन्फ्रेंस कर यूपीए सरकार के अध्यादेश को बकवास बता रहे थे, उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अमेरिका दौरे पर थे. इस घटना के बाद राहुल गांधी ने मनमोहन सिंह को भी चिट्ठी लिखकर अपना पक्ष रखा था. जिसके बाद अक्टूबर 2013 में यूपीए सरकार ने इस अध्यादेश को वापस ले लिया था. लोग कह रहे हैं कि अगर उस दिन राहुल गांधी ने यूपीए सरकार के फैसले का विरोध नहीं किया होता तो आज राहुल गांधी की सांसदी पर कोई मुसीबत नहीं आई होती.

दरअसल लिली थॉमस बनाम भारत संघ केस में सुप्रीम कोर्ट का फैसला नजीर है. राजनीति भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने उस मामले में फैसला सुनाया कि किसी सांसद या विधायक को सजा हो जाती है तो उसकी सदस्यता रद्द हो जाएगी. पहले ये नियम 3 साल की सजा पर था, बाद में संशोधन कर इसे 2 साल कर दिया गया। साथ ही सजा होने पर 6 साल तक व्यक्ति चुनाव भी नहीं लड़ सकता है.  हाल में सपा के आजम खान और बीजेपी के विक्रम सैनी की सदस्यता जाना इसी का उदाहरण था. इस नियम के तहत पहली सदस्यता कांग्रेस सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री रशीद मसूद की गई थी. बाद में कानून का हिस्सा हो गया. रेप्रेज़ेंटेशन ऑफ़ द पीपल ऐक्ट या जनप्रतिनिधित्व ऐक्ट 1951 की धारा-8 कहती है इस मामले में सबकुछ तय करती है.

Advertisement
Next