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नोबेल विजेता अमर्त्य सेन को शांति निकेतन में जमीन छोड़ने को क्यों कहा जा रहा है?

हफ्ते भर पहले ही सेन ने देश की मौजूदा सरकार को दुनिया की सबसे भयावह सरकारों में से एक कहा था

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नोबेल विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन (फोटो- रॉयटर्स)

इन दिनों रवींद्र नाथ टैगोर के शांति निकेतन (Shanti Niketan) में कोलाहल का माहौल है. वजह है विश्व भारती यूनिवर्सिटी का एक नोटिस. यह नोटिस नोबेल पुरस्कार विजेता और अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन को जारी किया गया है. नोटिस में शांति निकेतन कैंपस की उनकी 13 डेसिमल (5662 वर्ग फीट) पारिवारिक जमीन को 'अवैध' बताकर लौटाने को कहा गया है. इस नोटिस के बाद अमर्त्य सेन ने बताया कि वे इसके पीछे यूनिवर्सिटी का उद्देश्य समझ नहीं पा रहे हैं कि उन्हें अपनी ही जमीन लौटाने को क्यों कहा जा रहा है. सेन ने कहा है कि उनके वकील विश्व भारती प्रशासन को पत्र भेजेंगे.

1940 के दशक से रह रहा सेन परिवार

शांति निकेतन में अमर्त्य सेन का परिवार 1940 के दशक से रह रहा है. अमर्त्य सेन के पिता आशुतोष सेन ने 1943 में विश्व भारती से 125 डेसिमल जमीन लीज पर ली थी. यह जमीन साल 2006 में अमर्त्य सेन के नाम हो गई थी. हालांकि विश्व भारती का दावा है कि जिस जमीन के लिए नोटिस भेजा गया है वो इससे अलग है. विश्व भारती की स्थापना रवींद्र नाथ टैगोर ने 1921 में की थी. आजादी के बाद भारत सरकार ने इसे सेंट्रल यूनिवर्सिटी बना दिया. यूनिवर्सिटी के चांसलर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं.

विश्व भारती ने अमर्त्य सेन को ये भी लिखा कि अगर वो चाहें तो यूनिवर्सिटी वकील की मौजूदगी में ज्वाइंट सर्वे करवा सकती है. 24 जनवरी को विश्व भारती ने सेन को जो लेटर भेजा उसके मुताबिक, 

"रिकॉर्ड्स और सर्वे में पाया गया है कि विश्व भारती की 13 डेसिमल जमीन आपके अवैध कब्जे में है. यह उस 125 डेसिमल जमीन के अतिरिक्त है जो 27 अक्टूबर 1943 को आशुतोष सेन को लीज पर दी गई थी. आपसे अनुरोध है कि जल्द से जल्द 13 डेसिमल जमीन यूनिवर्सिटी को लौटा दें."

अंग्रेजी अखबार द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक, इस 13 डेसिमल जमीन की मार्केट प्राइस 43 लाख रुपये है. ये मामला पहले भी उठ चुका है. साल 2021 में विश्व भारती ने राज्य सरकार को पत्र लिखा था. इसमें कहा गया था कि 'प्रतीची' (अमर्त्य सेन का घर) के एरिया को मापा जाए ताकि ये "विवाद" खत्म हो. अमर्त्य सेन ने तब विश्व भारती के वाइस चांसलर बिद्युत चक्रबर्ती को जवाब दिया था कि वे उनके खिलाफ झूठे आरोपों को वापस लें. सेन ने इसे जानबूझकर परेशान करने की कोशिश बताया था.

‘100 सालों की लीज पर थी जमीन’

नोटिस के बाद अमर्त्य सेन ने समाचार एजेंसी पीटीआई से बातचीत में कहा कि उन्हें इसके पीछे की राजनीति समझ नहीं आ रही है. सेन ने कहा, 

"मेरे परिवार को यह जमीन 100 सालों की लीज पर दी गई थी. मेरे पिता ने इनमें से कुछ हिस्सा नियमों के तहत खरीदा भी था. मुझे इसके पीछे समय बर्बाद करने का कोई कारण समझ नहीं आ रहा है. यह समझना काफी मुश्किल है कि विश्व भारती अचानक से मुझे निकालने के लिए एक्टिव क्यों हो गई है."

विश्व भारती के एक प्रोफेसर ने टेलीग्राफ से कहा कि यह नोटिस अमर्त्य सेन को परेशान करने की एक और कोशिश है. उन्होंने कहा कि सेन के परिवार पर इस तरह का आरोप कभी नहीं लगा था. वहीं रवींद्र नाथ टैगोर के बड़े भाई सत्येंद्रनाथ टैगोर के पड़पोते सुप्रिया टैगोर ने अखबार से कहा, 

"मुझे विश्वास नहीं हो रहा है कि विश्व भारती अमर्त्य सेन पर जमीन हथियाने का आरोप लगा रही है. क्या हमें अब ये मानना पड़ेगा कि सेन ने किसी जमीन पर अतिक्रमण किया है. अमर्त्य सेन और उनके खिलाफ जो लोग ये गंदे आरोप लगा रहे हैं, उनके बीच कोई तुलना नहीं है."

अमर्त्य सेन को 1998 में अर्थशास्त्र में नोबेल पुरस्कार मिला था. इसके अगले ही साल भारत सरकार ने उन्हें देश के सबसे बड़े सम्मान 'भारत रत्न' से सम्मानित किया था. अमर्त्य सेन अलग-अलग मुद्दों और नीतियों पर लगातार मोदी सरकार की आलोचना करते रहे हैं. हाल में उन्होंने कहा था कि मोदी सरकार दुनिया की सबसे "भयावह सरकारों" में एक है. सेन ने एक इंटरव्यू में कहा था कि अल्पसंख्यकों के साथ बुरा व्यवहार देश के इतिहास और वर्तमान का अपमान है.

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