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गुजरात दंगों पर SC के फैसले के बाद 300 वकीलों, कार्यकर्ताओं ने CJI को पत्र लिखकर क्या कहा?

सुप्रीम कोर्ट ने जकिया जाफरी की गुजरात दंगों से जुड़ी याचिका को खारिज कर दिया था.

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जकिया जाफरी की याचिका पर 24 जून को सुप्रीम कोर्ट का फैसला आया था (फोटो: पीटीआई)

साल 2002 के गुजरात दंगों (2002 Gujarat Riots) से जुड़ी जकिया जाफरी की याचिका पर बीती 24 जून को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) का फैसला आया. याचिका में उस समय गुजरात के सीएम रहे नरेंद्र मोदी और 63 अन्य लोगों को एसआईटी से मिली क्लीन चीट को चुनौती दी गई थी. अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया था. अब इस फैसले को लेकर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (CJI) एनवी रमना को 300 से ज्यादा वकीलों और एक्टिविस्टों ने एक लेटर लिखा है. लेटर में सीजेआई को स्वतः संज्ञान से यह स्पष्ट करने को कहा गया है कि जकिया जाफरी के फैसले का कोई प्रतिकूल परिणाम नहीं होगा.

तीस्ता सीतलवाड़ और आरबी श्रीकुमार की गिरफ्तारी पर चिंता

आजतक की कनु सारदा की रिपोर्ट के मुताबिक इस खत में तीस्ता सीतलवाड़, गुजरात के पूर्व एडीजीपी आरबी श्रीकुमार और अन्य की गिरफ्तारी पर चिंता व्यक्त की गई है. खत में कहा गया है कि हमें अपनी पीड़ा व्यक्त करनी चाहिए कि गुजरात पुलिस जकिया जाफरी केस में 24 जून, 2022 को दिए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के आधार पर गिरफ्तारी को सही ठहराती है.

लेटर में कहा गया है कि इस कार्रवाई से ऐसा लगता है कि अगर कोई भी याचिकाकर्ता या गवाह, जो कोर्ट में जाता है, अगर उसकी याचिका खारिज होती है, तो उस पर जेल जाने का खतरा मंडराने लगेगा. पत्र में कहा गया है कि कानून के मुताबिक, किसी व्यक्ति के खिलाफ कोई भी कार्रवाई उचित नोटिस देने के बाद ही शुरू की जा सकती है. कोर्ट ने इस मामले में किसी को भी न तो झूठी गवाही और न ही अवमानना ​​का नोटिस जारी किया. न ही कोर्ट ने किसी को कोई चेतावनी दी. 

खत में किन लोगों के हस्ताक्षर हैं?

इस पत्र पर सीनियर एडवोकेट्स चंद्र उदय सिंह, आनंद ग्रोवर और इंदिरा जयसिंह, एडवोकेट्स संजय हेगड़े, अनस तनवीर, फुजैल अहमद अय्यूबी, अवनी बंसल और भारतीय इतिहासकार रामचंद्र गुहा सहित अन्य लोगों के हस्ताक्षर हैं. 

रिपोर्ट के मुताबिक इस पत्र में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के एक पैरा का भी जिक्र है. इसमें लिखा है,

अंत में यह हमें गुजरात राज्य के असंतुष्ट अधिकारियों के साथ-साथ अन्य लोगों का एक संयुक्त प्रयास लगता है कि ऐसे खुलासों से सनसनी पैदा की जाए, जो उनकी खुद की जानकारी में गलत थे. एसआईटी की गहन जांच के बाद उनके झूठे दावों को उजागर कर दिया गया. वास्तव में, प्रक्रिया के ऐसे दुरुपयोग में शामिल सभी लोगों को कटघरे में खड़ा होना चाहिए और कानून के अनुसार उन पर कार्रवाई होनी चाहिए.

खत में अदालत से ये स्पष्ट करने की अपील की गई है कि उसके फैसले का ये पैरा किसी प्रतिकूल परिणाम के इरादे से नहीं था. ये भी कहा गया है कि इमरजेंसी के दौरान भी सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे लोगों को जेल में नहीं डाला था, जिन्होंने कानूनी प्रक्रियाओं का इस्तेमाल करने की मांग की थी.