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Gender Equality पर बात करने से पहले ये बातें ज़रूर पढ़ लीजिए.

एक ही काम के लिए औरतों और पुरुषों की भूमिकाएं अलग-अलग तय हैं ?

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जेंडर एक्वालिटी की बात करने से पहले उन बातों पर गौर करना ज़रूरी है जो आज भी लड़कियां करें तो बवाल मच जाता है. (सांकेतिक तस्वीर)
काटे नहीं कटते ये दिन ये रात कहनी थी जो तुमसे जो दिल की बात लो आज मैं कहती हूं I LOVE YOU... मिस्टर इंडिया को दिल ही दिल में चाहने वाली सीमा.. अरुण यानी मिस्टर इंडिया से I LOVE YOU सुनने के बाद अपने गाना गाते हुए प्यार का इज़हार करती है... कल अपनी शिफ्ट खत्म होने के बाद मैं घर जाने के लिए कैब का वेट कर रही थी इस दौरान मैंने सोचा कि क्यों ना इस टाइम का इस्तेमाल मैं किसी सॉन्ग को सुनकर करूं. मैंने अपने यूट्यूब अकाउंट की प्लेलिस्ट खंगाली तो मुझे मिस्टर इंडिया फिल्म का ये गाना नज़र आया. इसे पूरा सुनने के बाद मुझे नॉस्टैल्जिया सा फील हो गया. घबराइये मत मैं आपको आज मिस्टर इंडिया फिल्म से जुड़ी कोई कहानी नहीं बताने जा रही हूं.
अनिल कपूर और श्रीदेवी के इस गाने को सुनकर मुझे एक बात बड़ी फील हुई कि फिल्म के हीरो मिस्टर इंडिया को बेहद प्यार करने वाली सीमा ने मिस्टर इंडिया के प्रपोज़ करने के बाद ही उसे I love you क्यों बोला? अगर वो पहले ही अपने दिल की बात बोल देती तो क्या मोगैंबो नाराज़ हो जाता ? लड़कों का ही पहले प्रपोज़ करना ज़रूरी क्यों ? झ
बॉलीवुड की कुछ फिल्में तो सिर्फ़ हीरो के एक प्रपोज़ल सीन से हिट हो जाति हैं. (फ़िल्म जन्नत का एक पॉपुलर सीन)

हीरो के पहले प्रपोज़ करने की ये प्रथा सालों से चली आ रही है. जन्नत मूवी में अर्जुन यानी इमरान हाशमी चलती कार में फिल्म की हीरोइन के दिल में ज़रा सी जगह मांगते दिखते हैं तो बॉडीगार्ड फिल्म के लवली सिंह यानी सलमान खान पूरे कॉलेज में नाच-नाच कर l love you बोलते हैं. अरे भाई! हम लड़कियां क्या सिर्फ प्रपोज़ल एक्सपेट या रिजेक्ट करने के लिए ही बने हैं? फिल्मों की बात छोड़िए अपने आसपास नज़र दौड़ाइये अपनी या अपने किसी दोस्त की लव स्टोरी याद कीजिए ज्यादातर मामलों में आपको लड़के ही पहले प्रपोज़ करते मिलेंगे.
इसकी वजह समझने के लिए आपको किसी एक्सपर्ट या लाइब्रेरी में जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी. हमारी सोसायटी की सोच में ही एक बात फिट हो गई है कि पहले प्रपोज़ करने वाली लड़कियां ठीक नहीं होतीं. लड़का अगर पहले अपने प्यार का इज़हार कर दे तो उसे स्वीट, रोमांटिक, कॉन्फिडेंट कहा जाता है वहीं लड़कियां अगर अपने दिल की बात पहले जाहिर कर दें तो उनको करेक्टर सर्टिफिकेट थमा दिया जाता है. लड़कियों के पहले प्रपोज़ करने के बारे में जब मैं गूगल पर अपने नेट का डेटा खर्च कर रही थी तो मुझे डिस्कशन फ़ोरम कोरा पर कुछ महानुभावों के विचार देखने को मिले पहले इस पर नज़र डालिए इस पोस्ट में लिखा है कि
"लड़कियां कभी प्रपोज़ नहीं करतीं क्योंकि बरसों पहले शूपर्णखा ने कोशिश की थी तब उसकी नाक काट दी गई थी वो डर आज भी जिंदा है."
एक शख्स ने लड़कियां पहले प्रपोज़ क्यों नहीं करती हैं इसके एक नहीं कई वजहें गिना दी जिसमें उन्होंने सबसे बड़ी वजह जो बताई है उसके मुताबिक – ‘लड़कियां के पास ज्यादा नहीं तो 4–5 प्रपोजल ऑफर हमेशा पड़े रहते हैं.इस लिए वो अंत समय तक बेस्ट कैंडिडेट का इंतजार करती रहती हैं और पहले प्रपोज नहीं करती.
बताइये भला लड़कियों के पहले अपनी फीलिंग्स शेयर करने को लेकर इस तरह की बातें बोली जाती हैं, मान लीजिए ऐसे लोगों की गर्लफ्रेंड या पत्नियां किसी दिन इनसे सेक्स की इच्छा ज़ाहिर कर दें तो सोचिए इनका क्या हाल होगा.
खैर हमारे यहां ऐसी और भी कई बातें कही सुनी जाती हैं जिनके मतलब महिला और पुरुषों के लिए अलग-अलग बना दिये गए हैं. माने काम एक ही है, लेकिन मायने दोनों के लिए अलग. और इसे ही माय फ्रेंड, सेक्सिज्म कहा गया है.
  लड़का करे तो ठीक, लड़की करे तो गलत क्यों ? अब जिम जाने की ही बात ले लीजिए. मैं छोटे शहरों में रहने वाली कई ऐसी लड़कियों को जानती हूं जिन्होंने अपने जिम जाने के एक्सपीरिंयस मुझसे शेयर किये हैं. उनका कहना है कि हमारी तरफ अगर लड़के खुद को फिट रखने के लिए जिम जाते हैं तो परिवार वाले उन्हें हेल्थ कॉन्शियस बोलते हैं, ठेले पर उबले अंडे लगाने वाले से लेकर दूध के पैकेट बेचने वाले लोग उनकी तारीफें करते हैं. लेकिन किसी लड़की को जिम जाता देख ये बोला जाता है कि ये लड़कों पर डोरे डालने के लिए और अंग दिखाने वाले कपड़े पहनने के लिए जिम जाती हैं.
महिला बॉस
एक ही दफ़्तर में महिला और पुरुष के गुस्से का कारण अलग समझा जाता है. (सांकेतिक तस्वीर)

छोटे शहरों से मेट्रो सिटीज़ की ओर चलिए. तो यहां के मल्टी स्टोरी बिल्डिंग वाले ऑफिसज की बात की जाए. यहां अगर कोई पुरुष अपने काम में हद से ज्यादा इनवाल्व दिखता है तो उसे एंबिशियस और मेहनती कहा जाता है. वहीं अगर कोई शादीशुदा महिला ऐसा करने लगे तो उसे पारिवारिक तौर पर लापरवाह महिला या फिर बैड मॉम जैसे तमगे थमाने में लोग कतई देरी नहीं करते.
ऑफिस में पुरुष बॉस अगर गुस्सा करे तो कहा जाता है कि आज बॉस का बीपी ज्यादा है. औरत बॉस अगर नाराज़ हो तो क्या नहीं कहा जाता- उसके पीरियड चल रहे हैं, लगता है आज पति से लड़कर आई है, लगता है सेक्शुअली सेटिस्फाइड नहीं है.
  क्या घर चलाने वाले आदमी महापुरुष हो जाते हैं ? ऑफिस से अगर किचन की ओर जाने पर भी एक बात साफ तौर पर नज़र आती है. मैंने निज़ी तौर पर कई परिवारों में देखा है कि अगर संडे या किसी छुट्टी वाले दिन कोई पुरुष घर में किसी रेसिपी पर हाथ आज़माता है तो उसे सपोर्टिव मेन वाले कॉम्पिलिमेंट मिलने लगते हैं लेकिन अपनी जिंदगी का एक लंबा चौड़ा वक्त किचन में बिता देने वाली महिला के लिए ये काम नॉर्मल है, ये उनका फ़र्ज़ है. यही लॉजिक बच्चे पालने में भी लागू किया जाता है. पिता रोते हुए बच्चे को चुप कराए तो सपोर्टिव डैड है, मां कराए तो ऑफ कोर्स ये उसका काम है.
किचन मेंपुरुष
पुरुष जब महिलाओं की तरह घर का काम करते हैं तो अचानक से महान हो जाते हैं. (सांकेतिक तस्वीर)

आपने एक बात और गौर की होगी कि अगर किसी गैदरिंग में बैठा कोई पुरुष सबसे हंस-हंस कर बात कर रहा तो उसे मिलनसार बोला जाने लगता. है वहीं अगर कोई महिला अगर किसी से हंसते हुए बात कर ले तो उसके अफेयर के चर्चे शुरू हो जाते हैं. कि ये तो बड़ी तितली है. फ़्लर्टेशस है.
  लड़कियों के लिए और कितने कायदे ? अब बात शादियों की भी कर ली जाए. वेडिंग सीज़न चल रहा है. आप भी हाल-फिलहाल किसी शादी की पार्टी में गए होंगे वहां आपने कई लड़कों को कोट लहरा-लहराकर नागिन डांस करते देखा होगा. क्या आपको ऐसी कोई शादी याद है जिसमें आपने लड़कियों के किसी ग्रुप को इतना खुश होकर या खुलकर डांस करते देखा हो. क्योंकि लड़कियां अगर अपने घर की ही किसी शादी में बेफिक्री से नाचने लगें तो मोहल्ले की आंटियों समेत खुद के कई रिश्तेदारों की भंवे टेढ़ी होने लगती हैं और बात ‘सही रिश्ता ना मिलने तक’ आ जाती है. लड़कियों को नाचना है तो लेडीज संगीत में लड़कियों के बीच ही नाच लें.
नागिन डांस
लड़कियों को लड़कों की तरह सबके सामने नाचने की आज़ादी नहीं होती.

अक्सर मुझे इस शो में कमेंट्स आते हैं कि आपको मर्दों से प्रॉब्लम क्या है. शायद ये पढ़ते वक़्त भी आपको लग रहा हो कि आ गईं मर्दों के खिआफ राग अलापने महिला मोर्चा एंड व्हाट नॉट. लेकिन अगर आप ध्यान से सुनें तो मैंने ये कहीं नहीं कहा कि लड़कों का कुकिंग करना, बच्चे को चुप कराना, शादियों में डांस करना या लोगों से मिलकर बतियाना कोई गलत काम है. यहां मैं सिर्फ ये बताने की कोशिश कर रही हूं कि एक समाज के तौर पर हमारी प्रोग्रामिंग, हमारे दिमाग की वायरिंग स्त्री-विरोधी है. फिर चाहे वो औरत हो या पुरुष, सब इसके दोषी हैं. घर के काम हों या बाहर के, एक ही काम के लिए औरतों और पुरुषों की भूमिकाएं अलग-अलग तय हैं. और यही हमारे समाज की बेसिक प्रॉब्लम है.
आपकी इस बारे में क्या राय है हमें कमेंट में जरूर बताएं.