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Ima Keithal: मणिपुरी महिलाओं का वो बाजार, जिसने अंग्रेजों की नाक में दम कर दिया था

दुनिया का ऐसा सबसे बड़ा बाज़ार जिसे सिर्फ औरतें चलाती हैं, 11 महीने बाद खुला है.

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Ima Keithal बाजार को कोविड 19 महामारी की वजह से पिछले साल बंद कर दिया गया था. इससे हजारों करोड़ों का नुकसान हुआ.
मणिपुर का इम्फाल. यहां एक बाज़ार है. नाम है- इमा कैथल. आम बाज़ार की तरह ही यहां भी ज़रूरत की चीज़ें मिलती हैं. लेकिन इसकी एक खास बात है. वो ये कि इसे केवल महिलाएं चलाती हैं. और केवल महिलाओं द्वारा चलने वाला ये दुनिया का सबसे बड़ा बाज़ार है. जिसे करीब 3600 महिला व्यापारी चलाती हैं. करीब 500 साल पुराना ये बाज़ार औरतों के सामाजिक-आर्थिक आंदोलनों का केंद्र भी रहा है.
लेकिन हम अभी इस बाज़ार की बात क्यों कर रहे हैं? क्योंकि कोविड 19 लॉकडाउन की वजह से 11 महीनों से बंद ये बाज़ार अब जाकर खुला है.
इस बाजार के दोबारा से खुलने के मौके पर राज्य के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह चीफ गेस्ट के तौर पर आए. उन्होंने कहा कि अगले एक साल तक बाजार की महिला व्यापारियों को लाइसेंस फीस नहीं देनी होगी. मुख्यमंत्री ने कहा कि सरकार ने यह फैसला कोविड 19 की वजह से लिया है. 11 महीने तक बाजार बंद रहने से व्यापारियों को काफी नुकसान हुआ है. इस बारे में उन्होंने ट्वीट भी किया. कुछ मार्केट रिसर्च के मुताबिक, 11 महीने बाज़ार बंद रहने की वजह से करीब तीन से चार हजार करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. यह भी सामने आया है कि बाजार बंद होने की वजह से यहां व्यापार करने वाली महिला व्यापारियों को खासी परेशानी हुई. हालांकि, बड़ी व्यापारियों को ऐसी दिक्कत नहीं आई. छोटी व्यापारियों को अपने बच्चों को पढ़ाने और इलाज कराने में दिक्कतों का सामना करना पड़ा. क्या है Ima Keithal यह बाजार मणिपुर की राजधानी इम्फाल में स्थित है. इसका नाम इमा कैथल है. इमा का मतलब होता है- मां. यहां पर 50 से 70 साल की स्त्रियां अपनी दुकान लगाती हैं. पुरुष यहां दुकान नहीं लगा सकते. हालांकि, वे खरीदारी करने आ सकते हैं.
इस मार्केट में तीन कॉम्प्लेक्स हैं. यहां पर मणिपुर के लोकल प्रोडक्ट्स से लेकर दूसरे जरूरी सामान भी मिलते हैं. महिलाएं अपनी पारंपरिक वेशभूषा में दुकानें लगाती हैं. यहां पर समय-समय पर सांस्कृतिक कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं.
11 महीने बाद जब बाजार खुला तो वहां की महिला व्यापारियों के चेहरों पर मुस्कान वापस आ गई.
11 महीने बाद जब बाजार खुला तो वहां की महिला व्यापारियों के चेहरों पर मुस्कान वापस आ गई.

यह बाजार महिलाओं के मुद्दों पर विचार-विमर्श के लिए एक मंच भी मुहैया कराता है. बाजार मणिपुर की अर्थव्यवस्था में भी अच्छा खासा योगदान करता है.
इम्फाल के लेखक और राजनीतिक टिप्पणीकार इबोयैमा लैथंगम ने न्यूज एजेंसी IANS को बताया,
"इमा कैथल केवल एक बाजार नहीं है. बल्कि यहां सालों से महिलाओं के खिलाफ होने वाले अत्याचारों और असामाजिक गतिविधियों के खिलाफ आवाज उठाई जाती रही है. मणिपुरी महिलाओं के सामाजिक आर्थिक विकास में भी यह मार्केट बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है."
बाज़ार खुलने के साथ ही सरकार ने व्यापारियों और यहां शॉपिंग के लिए आने वालों से अपील की है कि वो कोविड 19 प्रोटोकॉल्स का पालन करें. अंग्रेजो का विरोध लगभग 500 साल से चल रहे इस मार्केट ने देश में आए कई उतार-चढ़ावों को देखा है. इसने गुलामी का दौर भी देखा है, आज़ादी देखी है और आज़ादी के बाद देश में हुए बदलावों को भी. अंग्रेज़ी राज में एक वक्त ऐसा भी आया जब यहां की महिलाओं ने अंग्रेज़ों के गलत फैसलों के खिलाफ बिगुल फूंक दिया.
साल 1891 में अंग्रेजों ने कुछ आर्थिक और राजनीतिक बदलाव किए थे. इससे इस बाजार पर नकारात्मक असर पड़ा था. लैथंगम के मुताबिक,
"अंग्रेजों ने बहुत सारे बदलाव किए. खासकर की टैक्स बहुत बढ़ा दिया. इससे मणिपुर के सामाजिक-आर्थिक ढांचे पर बहुत गलत असर पड़ा. इमा कैथल बाजार भी इससे अछूता नहीं रहा. इससे आम जनता के बीच असंतोष पैदा हो गया."
अंग्रेजों के इस कदम के खिलाफ मणिपुर की महिलाओं ने कमर कसी. खासकर इमा कैथल बाजार की महिलाओं ने. उन्होंने 1939 में 'नूपी लाना' आंदोल खड़ा किया. इसका मतलब होता है- महिलाओं का युद्ध. लैथंगम ने IANS को आगे बताया,
"इस बाजार की महिलाओं ने विरोध रैलियां निकालीं. भाषण दिए. लोगों को इकट्ठा किया. कैंपेन चलाए और अंग्रेजों के ऊपर भारी दबाव डाला."
औरतों ने अपने प्रोटेस्ट से अंग्रेज़ों की नाक में इतना दम कर दिया कि वो कैथल बाज़ार को विदेशी व्यापारियों को बेचने की कोशिश करने लगे. लेकिन इन महिलाओं ने ऐसा होने नहीं दिया. आखिर में अंग्रेज़ों को अपने फैसले वापस लेने पड़े.