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'तालिबान ने महिलाओं को दबाया, उनके खिलाफ हिंसा बढ़ी', UN में भारत ने जताई चिंता

अगस्त 2021 में सत्ता पर क़ाबिज़ होने के बाद से ही तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान की महिलाओं पर एक के बाद एक प्रतिबंध लगाए हैं.

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भारत ने कहा कि राजनीतिक स्पेस में महिलाओं की भागीदारी जरूरी है. (फोटो: सोशल मीडिया)

भारत ने बुधवार, 15 जून को अफ़ग़ानिस्तान (Afghanistan) में महिलाओं की स्थिति पर चिंता व्यक्त की. कहा कि देश में अराजकता की वजह से लड़कियों की शिक्षा असर पड़ा है. साथ ही UN सुरक्षा परिषद (Security Council) से आतंकवाद के प्रभाव पर ध्यान केंद्रित करने की मांग की है.

‘लोकतंत्र और कानून का शासन जरूरी’

अगस्त 2021 में सत्ता पर क़ाबिज़ होने के बाद से ही तालिबान ने अफ़ग़ानिस्तान की महिलाओं पर एक के बाद एक प्रतिबंध लगाए हैं. मार्च के महीने में भी लड़कियों की माध्यमिक शिक्षा पर बैन के ख़िलाफ़ महिलाओं ने मोर्चा बुलंद किया था.

कल यानी 15 जून को UN Security Council में खुली बहस हुई. मुद्दा था महिलाओं के लिए शांति और सुरक्षा पर. डिबेट को संबोधित करते हुए, UN में भारत के स्थाई प्रतिनिधि टीएस तिरुमूर्ति ने कहा कि अफ़ग़ानिस्तान में सोशल और पॉलिटिकल सिस्टम की वजह से समाज में महिलाओं के ख़िलाफ़ हिंसा को जगह मिली है. हिंसा और ज़्यादा सिस्टमैटिक और गहरी हो गई है. और, आर्म्ड कॉन्फ़लिक्ट के समय महिलाओं को टार्गेट बना दिया जाता है.

उन्होंने कहा कि शांति के लिए ज़रूरी है कि महिलाओं को राजनीतिक स्पेस में भागीदारी मिले. टीएस तिरुमूर्ति ने आगे कहा,

"इस तरह के माहौल को बढ़ावा देने के लिए, ज़रूरी है कि लोकतंत्र, बहुलतावाद और क़ानून का शासन हो. क्षेत्र में स्थिरता के लिए हमें चाहिए कि महिलाओं की सार्थक भागीदारी बढ़े. अफ़ग़ानिस्तान में समावेशी और प्रतिनिधि शासन हो." 

दरअसल, पिछले साल अफ़ग़ानिस्तान पर क़ब्ज़े के बाद तालिबान ने इस्लामिक शासन के 'सॉफ़्ट वर्ज़न' का वादा किया था. लेकिन समय के साथ वो अपनी पुरानी कट्टरता की तरफ बढ़ता चला गया. दसियों हज़ार लड़कियों को माध्यमिक विद्यालयों से बाहर कर दिया गया. महिलाओं को सरकारी नौकरियों में लौटने से रोक दिया. उनके अकेले यात्रा करने पर रोक लगा दी गई. स्नानघर बंद करवा दिए. सिर से पांव तक का बुर्का पहनने के फ़रमान निकाल दिया.

भारतीय अम्बैस्डर ने इस बात पर ज़ोर दिया कि आतंकवाद और हिंसक उग्रवाद मानवाधिकारों का उल्लंघन करता है और वैश्विक शांति और सुरक्षा के लिए ख़तरा है. साथ ही इस तरह की अस्थिरता से महिलाओं के ऊपर बहुत गलत असर पड़ता है. उन्होंने कहा,

"सबको पता ही है कि आतंकी गतिविधियों की वजह से महिलाओं और लड़कियों को असमान रूप से पीड़ित होना पड़ता है. इसकी कड़ी निंदा होनी चाहिए और इसपर ज़ीरो टॉलरेंस का रवैया होना चाहिए.

तालिबान शासकों ने पब्लिक लाइफ़ में महिलाओं की आवाज़ दबाई है. बांटने वाले विचारों और हिंसक कट्टरता को बढ़ावा दिया है. आतंकवाद की वजह से, महिलाओं का जो नुक़सान हो रहा है, सुरक्षा परिषद को उसपर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए."

अफगानिस्तान में महिलाओं ने शिक्षा और रोज़गार के लिए समय-समय पर सड़कों पर प्रदर्शन किए हैं. इसे लेकर एंबेसडर तिरुमूर्ति ने विशेष चिंता जताई.