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मेडिकल टेस्ट में 'पुरुष' साबित कर दी गई महिला को महाराष्ट्र पुलिस में नौकरी मिल गई है

कोर्ट ने कहा- मेडिकल रिपोर्ट्स ठीक, पर ये भी देखना होगा कि अभ्यर्थी खुद को महिला के तौर पर आइडेंटिफाई करती हैं.

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महिला के आए थे 171 नंबर, यानी वो महिला कैटगरी के लिए पास थीं और पुरुष कैटगरी के लिए फेल (फोटो - India Today)

महाराष्ट्र की एक महिला ने महाराष्ट्र पुलिस में नौकरी के लिए अप्लाई किया. टेस्ट निकाल लिया, लेकिन उसे नौकरी नहीं मिली. उसे बताया गया कि वो एक महिला है ही नहीं, बल्कि पुरुष है. अब इस केस में बॉम्बे हाईकोर्ट ने महिला के पक्ष में फैसला सुनाया है.

2018 में महिला ने अनुसूचित जाति (SC) कैटगरी से नासिक ग्रामीण पुलिस भर्ती के लिए अप्लाई किया था. उस समय वो 19 वर्ष की थीं. इम्तेहान हुआ और उन्हें 200 में से 171 नंबर मिले. इसके बाद हुआ फिज़िकल टेस्ट. वो भी उन्होंने क्लियर कर लिया.

इसके बाद होना था मेडिकल टेस्ट. मुंबई के जेजे अस्पताल में. अल्ट्रासाउंड रिपोर्ट से पाया गया कि महिला के पास यूट्रस और ओवरीज़ नहीं थे और ब्लैडर के बेस के पास प्रोस्टेट जैसा कुछ देखा गया. संभवत: लिंग. इसके बाद जेजे अस्पताल के एनाटॉमी विभाग ने महिला अभ्यार्थी को बताया कि उन्हें नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ इम्यूनोहेमेटोलॉजी में कैरियोटाइपिंग मेडिकल टेस्ट करवाना होगा. कैरियोटाइपिंग एक तरह का टेस्ट है, जो क्रोमोज़ोम्स के असंतुलन के बारे में पता लगाने के लिए किया जाता है. टेस्ट्स से पता चला कि महिला के ख़ून में ‘XY’ क्रोमोज़ोम पाए गए थे. बता दें कि महिलाओं में XX क्रोमोज़ोम्स और पुरुषों में XY क्रोमोज़ोम्स होते हैं.

रिपोर्ट मिलने पर जेजे अस्पताल ने नासिक ग्रामीण के SP को एक पत्र लिखा, जिसमें बताया कि उनकी राय में ‘अभ्यर्थी एक पुरुष है’.


अब ये सब तो डिपार्टमेंट के अंदर हो रहा था. इधर अभ्यार्थी को क्लैरिटी नहीं मिल रही थी. अच्छा स्कोर हासिल करने के बावजूद उन्हें पुलिस से कोई जवाब नहीं मिल रहा था. तो उन्होंने पुलिस भर्ती मेरिट लिस्ट के स्टेटस के बारे में जानने के लिए एक RTI दायर की. इस पर जवाब आया. पुलिस विभाग से आए जवाब में उन्हें बताया गया कि अनुसूचित जाति वर्ग में पुरुषों के लिए मेरिट लिस्ट 182 नंबर पर और महिलाओं के लिए 168 पर बंद हो गई. इसलिए, मेडिकल टेस्ट्स के आधार पर, वो पुरुष कैटेगरी का कट-ऑफ़ क्लियर नहीं कर पाईं.

अभ्यर्थी के आए थे 171 नंबर, यानी वो महिला कैटेगरी के लिए पास थीं और पुरुष कैटेगरी के लिए फेल. इसके बाद महिला ने नासिक के स्पेशल इंस्पेक्टर जनरल ऑफ़ पुलिस को एक पत्र लिखा था, जिसमें कहा कि उन्होंने एग्ज़ाम पास किया है. इसके अलावा लेटर में बताया कि उनके परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी और उनके माता-पिता गन्ना काटने का काम करते थे. घर में दो बहनें और एक भाई है और परिवार में सबसे बड़ी होने के नाते उन्हें अपनी फैमिली को फाइनैंनशियली सपोर्ट करना है.

Bombay High Court ने क्या फैसला सुनाया?

इसके बाद महिला मामले को लेकर हाई कोर्ट चली गईं. कहा कि उन्हें ये पता ही नहीं था कि उनके शरीर की बनवाट में विसंगति है और वो जन्म से ही एक महिला के रूप में रहती आई हैं. उसके सभी शैक्षिक प्रमाण पत्र और दस्तावेज़ में वो बतौर एक महिला ही रजिस्टर्ड हैं. अपील की कि उन्हें सिर्फ़ इसलिए भर्ती से वंचित नहीं किया जा सकता है क्योंकि मेडिकल टेस्ट ने उन्हें पुरुष घोषित कर दिया है.

बेंच के सामने अधिवक्ता विजयकुमार गरड ने तर्क दिया कि केवल कैरियोटाइपिंग रिपोर्ट के आधार पर महिला को अयोग्य नहीं ठहराया जाना चाहिए क्योंकि उसने अपने टेस्ट्स में अच्छा परफ़ॉर्म किया है. साथ ही महिला ने पूरी ज़िंदगी ख़ुद को महिला के रूप में आइडेंटिफ़ाई किया है. ये प्रस्ताव भी रखा कि महिला को ग़ैर-कॉन्स्टेबुलरी पद पर रखा जा सकता है. ग़ैर-कॉन्स्टेबुलरी माने पुलिस विभाग का क्लेरिकल काम.

महिला ने अदालत को बताया कि वो केवल एक सरकारी नौकरी चाहती थीं, ताकि वो अपने परिवार का भरण-पोषण कर सकें. अदालत ने महिला अपीलकर्ता की एजुकेशन क्वालिफिकेशन्स और अकादमिक रिकॉर्ड को देख कर उनकी सराहना की.

जस्टिस रेवती मोहिते डेरे और एमजे जामदार की बेंच ने महाराष्ट्र के महाधिवक्ता आशुतोष कुंभकोनी से महिला के मामले को संवेदनशीलता के साथ देखने को कहा. कोर्ट ने कहा,

“महिला यह भी नहीं जानती थी कि वो महिला नहीं है. उसने एक महिला के रूप में अपना करियर बनाया, इसमें उनका कोई दोष नहीं. महिला की मेडिकल स्थिति को सहानुभूतिपूर्ण देखा जाना चाहिए.”

बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र सरकार को दो महीने दिए थे, महिला के राज्य पुलिस विभाग में नियुक्ति को फ़ाइनलाइज़ करने के लिए.

14 मई को महाराष्ट्र सरकार ने बॉम्बे हाई कोर्ट को सूचित किया कि उन्होंने तीन साल से संघर्ष कर रही महिला को पुलिस विभाग में एक ग़ैर-कॉन्स्टेबुलरी पद दे दी है.