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क़िस्से 1983 वर्ल्ड कप फाइनल में इंडिया की ओर से मैल्कम मार्शल से भिड़ गए अंपायर के

वर्ल्ड कप फाइनल में फ़ैन ने इनकी टोपी ही लूट ली.

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बलविंदर सिंह संधू, डिकी बर्ड, मैल्कम मार्शल (फोटो - सोशल)

स्टोरी शुरू करने से पहले आज आपसे एक सवाल है. सवाल ये कि आप की नज़रों में इंडिया का सबसे बड़ा मैच कौन सा है? आप में से कई लोगों के दिमाग में 2011 वर्ल्ड कप फाइनल होगा. क्योंकि 28 साल बाद हमने वनडे विश्व कप जीता था. कुछ कहेंगे 1983 वर्ल्ड कप फाइनल. यहां हमने पहली बार वनडे विश्व कप जीता था. माइटी वेस्ट इंडीज़ को हराकर. और वो भी महज़ 183 रन डिफेंड करते हुए. और ऐसे लोगों में मैं भी शामिल हूं.

इसलिए आज मैं आपको 1983 विश्व कप का एक क़िस्सा सुनाऊंगी. इस क़िस्से में एक अंपायर भी शामिल है. वो अंपायर, जिसको सभी प्लेयर इज्ज़त भरी निगाहों से देखते थे. अब चाहे वो इंग्लैंड के इयान बॉथम हो या ऑस्ट्रेलिया के डेनिस लिली या फिर वेस्ट इंडीज़ के गैरी सोबर्स या विव रिचर्ड्स. दुनिया के सबसे बेहतरीन खिलाड़ियों से इतनी तारीफ पाने वाले इन अंपायर को हम डिकी बर्ड के नाम से जानते हैं, लेकिन इनका पूरा नाम हैराल्ड डेनिस बर्ड था. क्रिकइंफो के अनुसार इन खिलाड़ियों से इतना प्यार पाने पर बर्ड ने कहा था,

‘उन्होंने मुझे बहुत ऊंचा रेट किया: सोबर्स, रिचर्ड्स, लिली और बॉथम. ये मेरे लिए बहुत मायने रखता है.’

डिकी बर्ड की अंपायरिंग की खूब तारीफ होती थी. वो मैदान पर छोटी-छोटी घटनाओं को भी पकड़ लिया करते थे. और अंपायर बनने से पहले उनका बेहतरीन फर्स्ट क्लास करियर भी रहा है. डिकी बर्ड अपने करियर में बानस्ली (Barnsley), यॉर्कशॉ, लेस्टरशॉ के लिए खेल चुके हैं. 32 साल की उम्र में रिटायर होने के कुछ साल उन्होंने कोचिंग की, क्लब प्रोफेशनल के तौर पर भी खेले. अपने क्रिकेट करियर के बारे में साल 1998 में द क्रिकेटर से बात करते हुए उन्होंने कहा था,

‘मैं सिर्फ यही उम्मीद करता हूं कि काश मैंने खुद पर एक बल्लेबाज के रूप में भी उतना विश्वास किया होता, जितना मैं एक अंपायर के तौर पर खुद पर करता हूं. मैं आपको बता रहा हूं मेरे पास क्षमता थी. अगर आपने नेट्स में मेरी तुलना ज्यॉफ्री बॉयकाट से की होती, तो आपने टेस्ट क्रिकेटर के तौर पर मुझे चुना होता. रे इलिंगवर्थ ने कहा था कि उन्होंने मेरे जैसा स्ट्रेट खेलते हुए आज तक किसी को नहीं देखा. अंपायरिंग मेरे लिए अच्छी रही है. लेकिन यह क्रिकेट खेलने के बाद दूसरी सबसे अच्छी चीज है.’

डिकी बर्ड का अंपायरिंग करियर 5 जुलाई 1973 को इंग्लैंड–न्यूज़ीलैंड मैच से शुरू हुआ था. उसके बाद से उन्होंने 66 टेस्ट और 69 वनडे मुकाबलों में अंपायरिंग की. साल 1996 में भारत के इंग्लैंड दौर पर वह आखिरी बार अंपायरिंग करते दिखे. और उनके डेब्यू की सालगिरह के अवसर पर हमने सोचा कि क्यों ना आपको उनके कुछ मशहूर क़िस्से सुनाए हैं. और इन क़िस्सों की शुरुआत होगी 1983 विश्व कप के फाइनल से.

#बाउंसर के लिए मार्शल को डांट पड़ गई!

1983 विश्व कप के कई क़िस्से फेमस है. और इसी में एक है नंबर 11 पर बल्लेबाजी करने आए बलविंदर सिंह संधू का. उनको वेस्ट इंडीज़ के पेसर मैल्कन मार्शल ने बाउंसर फेंकी. और इस पर डिकी बर्ड ने उनकी क्लास लगा दी. स्टार स्पोर्ट्स के शो में इसके बारे में बताते हुए सैयद किरमानी बोले, 

‘मुझे नहीं लगता कि किसी ने 1983 विश्व कप फाइनल की इस घटना के बारे में बात की होगी. बल्लू (बलविंदर सिंह संधू) का सामना दुनिया के सबसे तेज गेंदबाज मैल्कम मार्शल से हो रहा था. डिकी बर्ड अंपायर थे. मार्शल ने बल्लू को बाउंसर फेंकी. जब तक वो भांप पाते, तब तक गेंद उनके हेलमेट पर जा लगी. बल्लू ने फिर खुद को संभाला और हेलमेट को रगड़ने लगे.’

अपनी बात आगे रखते हुए उन्होंने बताया,

‘मैं नॉन-स्ट्राइकर छोर पर था. और अंपायर से अनुमति लेकर उनकी ओर दौड़ा. मैंने बल्लू से पूछा, ‘क्या कर रहा है यार, हेलमेट क्यों रगड़ रहा है?’ इस बीच, डिकी बर्ड, मैल्कम मार्शल बल्लू को देखने आए. डिकी बर्ड वेस्टइंडीज के पेसर मार्शल पर बरस पड़े और उन्हें खूब खरी-खोटी सुनाई. मुझे याद है तब उन्होंने चार अक्षर वाले भद्दे शब्द का भी इस्तेमाल किया था. उन्होंने कैरेबियाई पेसर से कहा, आपकी हिम्मत कैसे हुई आखिरी नंबर पर उतरे उस खिलाड़ी को बाउंसर फेंकने की, जो बल्लेबाजी नहीं कर सकता है. उससे सॉरी बोलो.'

फिर, मार्शल ने अपने ठेठ कैरेबियाई लहजे में बल्लू से कहा,

 ‘सॉरी मैन, मेरा मतलब तुम्हें मारना नहीं था.’

और जब मार्शल अपने रन पर लौट रहे थे, तो बल्लू ने उन्हें करारा जवाब देते हुए कहा,

'कोई बात नहीं, मैं दोबारा बाउंसर के लिए तैयार हूं.’

एक बार स्पोर्ट्स स्टार को दिए एक इंटरव्यू में बर्ड ने बताया था कि उनको इंडिया में अंपायरिंग करने में सबसे ज्यादा मज़ा आता था. वो बोले,

‘बेशक़ इंडिया में. मैंने वहां इंजॉय किया क्योंकि वहां का माहौल कमाल का था. मुझे नहीं लगता कि मैंने बॉम्बे, मद्रास और कलकत्ता जैसे बड़े स्टेडियम के ऐसे माहौल में कहीं और अंपायरिंग की है. और दर्शक भी कमाल के. वहां के लोग क्रिकेट को प्यार करते हैं.’

#क्वीन से मिलने पांच घंटे पहले पहुंच गए

डिकी बर्ड का सम्मान इंग्लैंड के शाही महल बकिंघम पैलेस तक था. एक बार तो खुद महारानी ने उन्हें मिलने बुलाया था. और महारानी के बुलावे पर बर्ड तय वक्त से पांच घंटे पहले ही बकिंघम पैलेस पहुंच गए. डेली मेल को यह क़िस्सा सुनाते हुए बर्ड ने बताया,

‘एक दिन जब मैं अपने घर में बैठा हुआ था तो मेरा फोन बजा. दूसरी तरफ से आवाज आई, मैं बकिंघम पैलेस से बोल रहा हूं, महारानी ने मुझे आदेश दिया है कि मैं पता करूं कि क्या आप उनके साथ बकिंघम पैलेस में लंच करने के लिए उपलब्ध हैं. जवाब में मैंने कहा, अगर मुझे रानी के साथ दोपहर का भोजन करने के लिए आमंत्रित किया गया है, तो मैं इसके लिए बानस्ली से पैदल चलकर भी आ सकता हूं.

मुझे वहां एक बजे पहुंचना था. और वहां सुबह 8.30 बजे पहुंच गया. गेट पर खड़े सुरक्षाकर्मियों ने मुझसे कहा, ‘हमको पहले गार्ड्स की ड्यूटी बदलनी है. और हम इसे डिकी बर्ड के लिए भी नहीं रोक सकते.’ ये सुनकर मैं एक छोटी सी कॉफी की दुकान में गया. और वहां चार घंटे बैठा. फिर मैंने महारानी के साथ कमाल का लंच किया. और पूरी दोपहर उनके साथ बैठा. वो मेरे जीवन का सबसे बढ़िया दिन था.’

#विश्व कप ट्रॉफी के साथ डिकी की कैप भी ले उड़े

डेली मेल को ही डिकी ने एक और क़िस्सा सुनाया था. साल 1975 के वर्ल्ड कप में उन्होंने अंपायरिंग की थी. ऑस्ट्रेलिया और वेस्ट इंडीज़ के बीच फाइनल में भी वह मैदान पर थे. जब मैच खत्म हुआ. वेस्ट इंडीज़ की टीम ने विश्व कप अपने नाम कर लिया. और इस दौरान जश्न मनाने ग्राउंड में घुसे विंडीज़ फ़ैन्स में से एक बंदा बर्ड के सर से उनकी सफेद कैप उड़ाकर ले गया.

इस क़िस्से को बताते हुए डिकी ने कहा,

‘एक साल बाद, मैं लंदन में एक बस में था. एक कंडक्टर आया और उसने सफेद कैप पहन रखी थी. मैंने उससे पूछा कि ये आपको कहां मिली? तो उन्होंने कहा, ‘आपने मिस्टर डिकी बर्ड के बारे में नहीं सुना? ये उनकी कैप है. वर्ल्ड कप फाइनल में ये मैंने उनके सर से उठा ली थी. मुझे इस पर बहुत गर्व है.’ और ये बात सुनकर भी मैंने उस बंदे को नहीं बताया कि वो किससे बात कर रहा है.’

डिकी बर्ड क्रिकेट की दुनिया के सबसे बेहतरीन अंपायर्स में से एक थे. 19 अप्रैल 1933 को बानस्ली में जन्मे डिकी ने अपना पूरा जीवन क्रिकेट को समर्पित कर दिया. उन्होंने क्रिकेट की दीवानगी के चलते कभी शादी भी नहीं की.

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