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अंग्रेज 'स्पिरिट ऑफ क्रिकेट' का रोना रोएं तो आम भारतीय क्या करे?

हमने 'टिशू' तो बांट ही दिए हैं.

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दीप्ति शर्मा के रनआउट पर इंडिया को क्या करना चाहिए? (Twitter)

क्रिकेट. बाकी खेलों से थोड़ा अलग. अलग इसलिए क्योंकि बाकी जगह नियमों का पालन करने वालों की तारीफ होती है. लेकिन यहां नियमों का पालन करने वालों को नीचा दिखाया जाता है. मामला आपको पता ही होगा. दीप्ति शर्मा ने बीती रात जिस तरह चार्ली डीन को आउट किया, इसके बाद से ही उन्हें काफी कुछ सुनना पड़ रहा है.

इंग्लैंड क्रिकेट टीम के फ़ैन्स और उनके मौजूदा, पूर्व क्रिकेटर्स... गुट बनाकर भारतीय महिला क्रिकेट टीम पर अटैक कर रहे हैं. दीप्ति की हरकत को स्पिरिट ऑफ द गेम के खिलाफ़ बताया जा रहा है. लोग कह रहे हैं कि नियम-वियम अपनी जगह रहें, लेकिन स्पिरिट का ख्याल रखा जाना चाहिए. क्योंकि स्पिरिट इज इम्पॉर्टेंट.

इन सबमें सबसे गजब बात ये है कि क्रिकेट अंग्रेजों ने खोजा, ऐसा उनका दावा है. इसके नियम वही बनाते हैं, ये सच है. और फिर इसी नियम के हिसाब से अगर कोई बोलर उनके बल्लेबाज को आउट कर दे, तो ये रोते भी बहुत जोर से हैं. कहते हैं कि जी स्पिरिट मिसिंग है जी. स्पिरिट होनी ही चाहिए जी. तो क्या है ये स्पिरिट? मेरिलबोन क्रिकेट क्लब यानी MCC के मुताबिक,

'क्रिकेट एक ऐसा खेल है जिसकी अपनी अनूठी अपील इस तथ्य के कारण है, कि इसे न केवल अपने नियमों के भीतर बल्कि खेल की भावना के भीतर भी खेला जाना चाहिए. कोई भी एक्शन जो इस स्पिरिट यानी भावना के अपमान जैसा दिखे, यह खेल को ही चोट पहुंचाता है.'

अब खेल की स्पिरिट क्या है? किसी प्लेयर के साथ बदतमीजी ना की जाए और सारे नियमों का पालन किया जाए. इस तरीके के आउट से जुड़े MCC के नियम संख्या 41.16 के मुताबिक,

'गेंद के खेल में आने से लेकर बोलर द्वारा उसे रिलीज किए जाने के संभावित वक्त के बीच अगर नॉन-स्ट्राइकर क्रीज़ से बाहर निकलता है, तो उसे रन-आउट किया जा सकता है.'

बता दें कि नियम संख्या 41 अनफेयर प्ले से जुड़ी है. और ये चीज वहां होने के चलते बातें थोड़ी शेडी थीं. एकदम स्पष्ट नहीं थीं. लेकिन इसी महीने में MCC ने बोलर द्वारा किए जाने वाले रनआउट के प्रयास को नियम संख्या 41 से हटाकर नियम संख्या 38 में डाल दिया. यह नियम रनआउट से जुड़ा है. यानी अब ये चीज एकदम स्पष्ट है कि ये रनआउट ही है. इस पर किसी तरह का संदेह नहीं बचा है.

मतलब सारी बहस यहीं खत्म हो जाती है. जब क्रिकेट के नियम बनाने वाली अंग्रेजों की अपनी संस्था, जिसके 235 साल के इतिहास में सिर्फ एक नन-ब्रिटिश प्रेसिडेंट हुआ है, उसी ने इस तरीके को लीगली रन-आउट माना है, तो इस पर रोना क्या?

लेकिन ये अंग्रेज हैं. हारेंगे तो रोएंगे ही. आदत जो बन गई है. साल 2013 की एशेज के दौरान बल्ले के बाहरी किनारे का पटरे जैसा हिस्सा लगा, गेंद फर्स्ट स्लिप में कैच हुई. लेकिन स्टुअर्ट ब्रॉड अपनी जगह से हिले नहीं. क्यों, क्योंकि उन्हें 24-25 सितंबर को खेल की स्पिरिट पर ट्वीट करना था. जिमी एंडरसन, जिन्होंने साल 2014 नॉटिंघम टेस्ट के दौरान पविलियन की सीढ़ियों पर ना सिर्फ रविंद्र जडेजा को गाली दी, बल्कि उन्हें धक्का भी दिया.

और ऐसे करके भी वो बच गए, क्यों? क्योंकि उन्हें 24-25 सितंबर को ट्वीट कर दुनिया को बताना था कि दीप्ति शर्मा का एजेंडा ही चार्ली को आउट करना था. वह उस गेंद को डिलिवर ही नहीं करना चाहती थीं.

बाकी के अंग्रेज साल 2008 से अब तक शांत थे. क्योंकि, इसी साल रयान साइडबॉटम से टकराकर गिरे ग्रांट एलियट को रनआउट करने वाले ऑयन बेल और केविन पीटरसन के साथी रहे एंडरसन और ब्रॉड अभी स्पिरिट ऑफ क्रिकेट का मुरब्बा बांट रहे हैं. ये तो कुछ ऐसे उदाहरण हैं जो इन अंग्रेजों को रोता देख, भारतीय फ़ैन्स ने टिशू समझ इन पर फेंक दिए.

खोदने बैठेंगे तो इनके ऐसे कई कांड मिलेंगे, जो स्पिरिट की आत्मा को ऑलरेडी दफन कर चुके हैं. इतना ही नहीं, ये लोग नियमों को भी ताक पर रखकर भूल ही चुके हैं. और खेल का सम्मान तो ये इतना करते हैं कि इनके खिलाड़ी मैच जीतने की खुशी पिच पर मूतकर मना ही चुके हैं. तो ऐसे अंग्रेजों के रोने पर हमें क्या करना चाहिए? आइडली कुछ नहीं. लेकिन बहुत मन है तो इन्हें इनकी पहली वर्ल्ड कप जीत याद दिलाते रहिए, इतना काफी होगा.

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