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कहानी उस कमाल के शख्स की, जिसने सचिन तेंडुलकर को अरबपति बनाया

और क्रिकेट ब्रॉडकास्ट को हमेशा के लिए बदल दिया.

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Sachin Tendulkar के पहले एजेंट थे Mark Mascarenhas (फोटो AFP)

साल 1993. क्रिकेट रंगीन हो चुका था. पाकिस्तान वर्ल्ड चैंपियन बन चुका था. भारत में उदारीकरण आ चुका था. और आ चुका था एक और वनडे क्रिकेट वर्ल्ड कप के आयोजन का जिम्मा. एक और क्योंकि 1987 का वर्ल्ड कप भी भारत और पाकिस्तान ने मिलकर आयोजित किया था. जगमोहन डालमिया 1996 का वर्ल्ड कप भी महाद्वीप के तीन देशों को एक साथ लाकर झटक चुके थे.

भारत पाकिस्तान और श्रीलंका की संयुक्त मेजबानी. डालमिया ने आखिरी मिनट पर पाकिस्तान को रियायत देकर अपने साथ कर लिया. 1987 का फाइनल कोलकाता में हुआ था. पाकिस्तान चाहता था कि इस दफा पाकिस्तान को फाइनल मिले. डालमिया राजी हो गए. उनकी नजर फाइनल देखने वालों की नजर से होने वाली कमाई पर नहीं थी. दिखाने वालों से जुड़ी कमाई पर थी.

और ये खेल कितना बड़ा हो सकता था. ये क्रिकेट वालों को दिखाया बेंगलुरु के एक लड़के ने. जिसने बरसों से क्रिकेट नहीं देखा था. जो अब भारत में रहता भी नहीं था. जो जितनी तेजी से आया. कइयों की किस्मत बदलने, उतनी ही तेजी से अचानक चला गया. एक एक्सिडेंट के चलते. आदमी जिसने न सिर्फ क्रिकेट बोर्ड बल्कि क्रिकेटरों को भी मालामाल किया. और उसकी गढ़ी इस परीकथा का नायक था, सचिन तेंदुलकर. मगर वो खुद कौन था. जिसका निशां अमिट है. उसका नाम था मार्क. मार्क मस्करेन्हास.

# एक करोड़ डॉलर का जुआ

भारत में क्रिकेट चलाने वाली संस्था BCCI को उन दिनों दो लोग चलाते थे. प्रेसिडेंट आई जी बिंद्रा और जगमोहन डालमिया. डालमिया समझ चुके थे, जब तक क्रिकेट में बाकी खेलों से ज्यादा पैसा नहीं आएगा, इसकी चमक धमक नहीं बनेगी. और इसके लिए जरूरी था कि क्रिकेट के टीवी राइट्स महंगे बिकें.

मगर भारत में होने वाले सब मैच के राइट्स तो दूरदर्शन ले लेता था. सरकारी नियमों का हवाला देकर. और बदले में बीसीसीआई को बिल थमा देता था, मैच शूट करने के वास्ते. डालमिया ने कोर्ट में अपील की और फैसला ले आए. कि बोर्ड जिसे चाहे उसे ब्रॉडकास्टिंग राइट्स दे.

बोर्ड ने सबसे पहले 1993 की भारत- इंग्लैंड सीरीज के राइट्स बेचे. ट्रांस वर्ल्ड इंटरनेशनल (TWI) नाम की कंपनी को. छह लाख डॉलर में ( उस समय के 22 करोड़ रुपये ) गेम बड़ा हो चुका था. अब मेज पर क्रिकेट वर्ल्ड कप के राइट्स थे. और इन्हीं राइट्स के लिए डालमिया ने फाइनल का राइट खुशी-खुशी पाकिस्तान को दे दिया, ताकि इंग्लैंड को पस्त किया जा सके. 

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ये Sachin Tendulkar के Cricket God बनने से पहले की बात है.

वर्ल्ड कप ब्रॉडकास्टिंग के लिए बिड शुरू हुई. TWI ने 85 लाख डॉलर की बिड की. मगर एक पेच था. कंपनी एडवांस के लिए राजी नहीं थी. और BCCI को इसकी सख्त जरूरत थी. बोर्ड असोसिएट देशों में क्रिकेट का स्ट्रक्चर डिवेलप कराने के लिए ये रकम खर्च करना चाहता था. इसका लॉन्ग टर्म फायदा भी था.

भविष्य में दुनिया की क्रिकेट पॉलिटिक्स में ये देश भारत के साथ होते. इसके अलावा क्रिकेट वर्ल्ड कप को अब तक का सबसे भव्य आयोजन बनाने के लिए भी बोर्ड खुले हाथ से पैसा खर्च करना चाहता था. इसमें प्रचार के अलावा स्टेडियम दुरुस्त करने जैसी बुनियादी चीजें भी शामिल थीं.

और इसी मोड़ पर बोर्ड को नजर आए मार्क. मार्क एक्सपेंशन मोड में थे. उन्हें राइट्स कैसे मिले, खुद उन्होंने एक इंटरव्यू में बयान किया. मार्क ने आउटलुक से कहा था,

'मैंने 10 सालों से क्रिकेट नहीं देखा था. बिंद्रा और डालमिया के साथ मेरी पहली मुलाकात लंदन के एक फ्लैट में हुई थी. TWI पहले ही 85 लाख डॉलर की बिड कर चुकी थी. लेकिन वे एडवांस के रूप में कुछ भी नहीं देना चाहते थे. डालमिया ने कहा कि मुझे राइट्स मिल जाएंगे. अगर मैं 1 करोड़ डॉलर की बोली लगाऊं और 25 लाख डॉलर तुरंत दे दूं. मैंने हां कर दी. ये मेरे जिंदगी का सबसे बड़ा जुआ था. उस वर्ल्ड कप से मैंने 2 करोड़ डॉलर कमाए.'

मगर फ्लैट में हुई मुलाकात से पहले मार्क ने क्या किया था. कहां से आ गए थे उनकी जेब में 1 करोड़ डॉलर.

Mark Mascarenhas (@sachin_rt's manager) asked Ian Chappell, "Who's gonna be in the final?" Ian replied, "Australia n New Zealand." They then asked Greg Chappell who said the same. Mark looked at both of them and said- "Tendulkar will get'em home, you see."

22nd April. Sandstorm. pic.twitter.com/ioQcRvaQKc — Ketan | کیتن (@Badka_Bokrait) April 22, 2020

# तुम्हारी तनख्वाह मैं कमाकर दूंगा बॉस

मार्क बेंगलुरु का लड़का था. अस्सी के दशक का. जो 1976 में अमेरिका गया. कम्यूनिकेशन में मास्टर्स करने. सिर्फ 19 साल का यह लड़का बेहद मेहनती और टीवी प्रोडक्शन का मास्टर था. पढ़ाई पूरी करने के बाद मार्क ने टेलीविजन ग्रुप CBS के रेडियो डिपार्टमेंट से एक सेल्स मैन के रूप में शुरुआत की. रोचक ढंग से. आउटलुक मैगजीन में छपे ब्यौरों के मुताबिक एक जवाब के चलते मार्क के पहले बॉस रॉन गिल्बर्ट ने उन्हें नौकरी पर रखा. बकौल रॉन,

'मेरे पास कोई ओपनिंग नहीं थी. लेकिन हमारी पॉलिसी थी कि हम नौकरी की तलाश कर रहे लोगों को इंटरव्यू का मौका देते थे. मार्क आया. इंटरव्यू दिया. जाते वक्त अचानक से मुड़ा और पूछा, मिस्टर गिल्बर्ट, आप उन लोगों में से तो नहीं हैं जिनकी कमाई उनके अंडर काम कर रहे सेल्समैनों की परफॉर्मेंस से घटती बढ़ती है.

मैंने कहा- हां.

फिर मार्क बोला, मेरी बहुत इच्छाएं हैं. जिन्हें पूरा करने के लिए यहां तक आया हूं. फॉक्सवैगन बेचकर BMW खरीदनी है. भारत जाकर परिवार को लाना है. इसके लिए मुझे परफॉर्म करना ही होगा.'

गिल्बर्ट ने ये सुनकर मार्क को नौकरी दे दी. और मार्क की महात्वाकांक्षा पर उनका भरोसा सही साबित हुआ. गिल्बर्ट के मुताबिक. वो मेरा बेस्ट सेल्समैन बना. साल भर में मार्क की सैलरी लगभग तीन गुना हो गई. कुछ बरसों बाद उसने रेडियो से टीवी सेल्स में स्विच कर लिया. बड़ी-बड़ी डील्स करवाने लगा. कुछ ही बरसों में उसकी सालाना तनख्वाह करोड़ों डॉलर में पहुंच चुकी थी. और ये सब हुआ 1984 में.

मार्क ने इस साल अपने नेटवर्क के लिए चीन में एक बड़ी डील की. वो भारतीय टीवी मार्केट में भी घुसना चाहता था. उसने दूरदर्शन को स्पोर्ट्स सेटअप बनाने के लिए अपने सॉफ्टवेयर और कमाई का 30 फीसदी हिस्सा देने का प्रपोजल रखा. मगर इंदिरा गांधी की सरकार अमेरिकी कंपनियों की सरपरस्त दिखने को राजी नहीं हुई. कुछ बरस बाद, साल 1989 में मार्क ने अपनी कंपनी शुरू कर दी.

वो खेल के ब्रॉडकास्टिंग का गणित और भविष्य भांप चुका था. उसने शुरुआत की 1990 में इटली में हुए फुटबॉल वर्ल्ड कप से. फिर नजर घुमाई स्कीइंग की तरफ गई. आम जनता की दिलचस्पी से दूर एक महंगा खेल. मार्क की टीम ने स्कीइंग वर्ल्ड कप के राइट्स खरीदे, फिर इस खेल इवेंट का जोरदार प्रचार कर क्यूरियॉसिटी बिल्ड की और 30 लाख डॉलर में खरीदे राइट्स दो करोड़ डॉलर में बेच दिए. इन्हीं सबके बाद आया क्रिकेट वर्ल्ड कप.

# WorldTel

मार्क को दुनिया को अपनी कहानी सुनानी थी. उसकी कंपनी का नाम था, WorldTel. कंपनी ने इंडिया में पार्टनर बनाया मुंबई से आने वाले पूर्व क्रिकेटर रवि शास्त्री को. मगर कंपनी चर्चा में आई मुंबई से आने वाले उस वक्त के मौजूदा क्रिकेट सचिन तेंदुलकर को साइन कर. सचिन तब एक संभावना थे. छह साल का क्रिकेट करियर हो चुका था, लेकिन इस करियर का चरम आना अभी बाकी था.. मगर मार्क ने भांप लिया. भारतीय बाजार को एक आइकन चाहिए. मिडल क्लास फैमिली से आया, अपनी मेहनत के दम पर देश का हीरो बना आइकन. सचिन तेंडुलकर.

23. In 1995, WorldTel signed a multi-million dollar deal with Sachin Tendulkar. Sachin—the brand became quite popular. Mark Mascarenhas changed the life of the Little Master. In 2001, Sachin struck a 100-cr deal with WorldTel#HappyBirthdaySachin

— Sarang Bhalerao (@bhaleraosarang) April 24, 2020

मार्क की कंपनी वर्ल्ड टेल ने वर्ल्ड कप शुरू होने से पहले ही सचिन के साथ करार कर लिया. अक्टूबर 1995 में. सचिन उस दौरान साल के पांच छह ऐड करते थे और लगभग 15-16 लाख रुपये कमाते थे. मार्क ने उनके साथ पांच साल की डील की. 75 लाख डॉलर की. भारतीय करेंसी में लगभग 27 करोड़ रुपये. जिसने भी इसके बारे में सुना अविश्वास से पलकें झपकाने लगा. ये कितना पैसा था? उस दौर में खेल रहे भारतीय क्रिकेटर्स की कुल मिलाकर जितनी कमाई थी, उसका तीन गुना.

कई लोगों ने इतने ज्यादा पैसों पर सवाल उठाया तो रवि शास्त्री का जवाब था,

'इतिहास में पहली बार एक भारतीय एथलीट को डिजर्विंग वैल्यू मिल रही है. यह आसानी से मिलने वाली बड़ी रकम की बात नहीं है. यह कहानी उस लड़के की है जिसे वो पैसा मिला, जो वह डिजर्व करता है. एक लड़का जिसे लिटिल मास्टर सुनील गावस्कर 'ग्रेग चैपल जैसा टेक्निकल और विव रिचर्ड्स जैसी आक्रामकता' वाला बताते हैं.'

तो क्या मार्क का इनवेस्टमेंट सही साबित हुआ. आंकड़ों से समझिए. सचिन तेंदुलकर यह डील साइन करने के तीन साल के अंदर एक करोड़ डॉलर के एड साइन कर चुके थे. यानी इनवेस्टमेंट से 25 लाख डॉलर एक्स्ट्रा आ चुके थे. जबकि दो साल बाकी थे. ये क्रिकेटर्स के साथ मार्क की पार्टनरशिप की शुरुआत थी. रवि शास्त्री ने मार्क को सचिन से मिलवाया और फिर सचिन ने सौरव गांगुली से. मगर एक अफसोस फिर भी रह गया.

# अफसोस रह गया

मार्क बेंगलुरू से थे. कर्नाटक स्कूल ऑफ बैटिंग का मक्का. और यहीं के राहुल द्रविड़ तेजी से भारतीय टीम में नाम कमा रहे थे. राहुल और मार्क का स्कूल एक ही था. लेकिन दोनों साथ काम नहीं कर पाए. क्योंकि द्रविड़ को प्रफेशनली मैनेज करने के लिए एक कंपनी पहले ही करार कर चुकी थी. मार्क के हिस्से राहुल द्रविड़ का फैन होना और अफसोस आया.

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अपने क्लाइंट्स Sourav Ganguly और Sachin Tundulkar के साथ Mark Mascarenhas (मेंस वर्ल्ड इंडिया से साभार)

मार्क इंडियन क्रिकेट तक महदूद नहीं रहे. उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के भी शेन वार्न सरीखे प्लेयर्स को मैनेज किया. मार्क ऑस्ट्रेलियन क्रिकेट बोर्ड के प्रफेशनल रवैये के फैन थे. मगर सबसे बड़े फैन, सचिन के. वह कहते थे.

'ऑस्ट्रेलियन क्रिकेट अकैडमी के पास बेस्ट रिसोर्स और टैलेंट हैं. ऑस्ट्रेलिया बेस्ट स्पोर्टिंग कंट्री है. लेकिन सचिन को तो मुंबई ने बनाया. ऑस्ट्रेलिया सचिन जैसे किसी प्लेयर के बारे में बस सपने देख सकता है.'

अभी तक के क़िस्सों से आपको लगा होगा कि मार्क के हाथ कुंदन लग गया था और वह लोहे को सोना बनाते जा रहे थे. लेकिन ऐसा नहीं था. मार्क का हर दांव सफल नहीं हुआ. वर्ल्ड कप राइट्स के चलते उन्हें सरकारी ब्रॉडकास्टर दूरदर्शन से अदालती लड़ाई लड़नी पड़ी. जगमोहन डालमिया के साथ उनके रिश्ते आप ब्रेकिंग बैड के वॉल्टर व्हाइट और जेसी पिंकमैन जैसे मान सकते हैं. लव-हेट रिलेशनशिप.

श्रीलंका क्रिकेट बोर्ड के साथ भी मार्क की लड़ाई हुई. 90 का दशक खत्म होते-होते मार्क सरकार के निशाने पर भी आ गए. उनके दफ्तरों पर CBI और इनकम टैक्स की रेड पड़ना बेहद आम बात हो गई. लेकिन मार्क ने इन छापों के बारे में कभी मीडिया से बात नहीं की. इन मामलों पर उनका एक ही बयान होता था- मैं ग़लत नहीं हूं. सरकार, बोर्ड के साथ मार्क प्लेयर्स से भी भिड़े.

सौरव गांगुली को मार्क ने चार साल तक मैनेज किया. अजित आगरकर, रॉबिन सिंह, शेन वॉर्न, शोएब अख्तर जैसे दिग्गज मार्क के क्लाइंट रहे, लेकिन बहुत दिन तक नहीं. बेहद निर्ममता से बिजनेस करने वाले मार्क की सचिन के अलावा किसी प्लेयर से नहीं पटी. गांगुली से तो उनका काफी बड़ा झगड़ा हुआ था. और आखिरी झगड़ा जिंदगी के साथ हुआ.

My dear friend, late Mark Mascarenhas, my first manager. We unfortunately lost him in a car accident in 2001, but he was such a well-wisher of cricket, my cricket, and especially Indian cricket. He was so passionate. pic.twitter.com/gaXVgWwWzI

— Sachin Tendulkar Trends ™ (@TrendsSachin) November 16, 2018

27 जनवरी 2002 को मार्क एक सड़क दुर्घटना में मारे गए. वह मध्य प्रदेश से एक टाटा सूमो के जरिए मुंबई लौट रहे थे. नागपुर से 80 किलोमीटर पहले उनकी गाड़ी का अगला टायर फट गया और गाड़ी पलट गई. मार्क की मौके पर ही मौत हो गई. अगले दिन भारत का मैच था, इंग्लैंड के साथ. इसमें सभी इंडियन प्लेयर बाजू पर काली पट्टी बांधकर उतरे. और मार्क के सबसे प्रिय प्लेयर सचिन ने कानपुर के इस मैच में 67 बॉल्स पर 87 मारने से पहले कहा,

‘यह बहुत बड़ा व्यक्तिगत नुकसान है.’

# अलविदा इंडियन पैकर

जब मार्क मरे तो ऑस्ट्रेलियन क्रिकेटर इयान चैपल ने ये लिखा,

'मार्क अपने ब्रॉडकास्ट के लिए हमेशा से हाई स्टैंडर्ड चाहते थे, एकदम कैरी पैकर की तरह. उसने भारतीय क्रिकेट की टेलिविजन कवरेज को हमेशा के लिए बदल दिया.'

कैरी पैकर. क्रिकेट को रंगीन बनाने वाले. कई कैमरों से लाइव करने वाले. डे नाइट करने वाले. सफेद गेंद लाने वाले. कुल मिलाकर क्रिकेट को पॉपुलर तेवर देने वाले. और इन्हीं से मार्क की तुलना कर रहे थे इयान चैपल. दरअसल उन्हें मार्क का पैकर कनेक्शन पता था. जब मार्क को 1996 वर्ल्ड कप के राइट्स मिले तो वह पैकर के पास गए. उनके चैनल नाइन की कॉमेंट्री टीम उधार मांगने.

कैरी इस नौजवान का माद्दा देखना चाहते थे. उन्होंने शर्त रखी. मेरी टीम जाएगी, मगर वो इंडिया में बेस्ट होटल में रहेगी और सिर्फ प्राइवेट जेट में सफर करेगी. यहां पर मार्क के काम आया बेंगलुरू कनेक्शन. विजय माल्या अपना जेट देने को राजी हो गए. मार्क ने अपनी एक क्रिकेट वेबसाइट और मैग्जीन भी लॉन्च की थी. दोनों नहीं चलीं. इनके फेल होने पर मार्क ने कहा था- जब मार्केट को बैलगाड़ी चाहिए थी, मैंने रॉल्स रॉयस उतार दी.

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