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WTC फाइनल में 'बॉल' का क्या चक्कर, जो जान इंडिया खुश, ऑस्ट्रेलिया दुखी होगा?

टीम इंडिया ने आधा काम तो IPL में कर लिया था, पर ऑस्ट्रेलिया...

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ICC ट्रॉफी से बस एक कदम दूर टीम इंडिया (PTI/ Twitter)

‘हमें इसके बारे में पहले से ही पता था और हम इसकी तैयारी...’, ये बात कही है अक्षर पटेल ने. विश्व टेस्ट चैंपियनशिप (WTC Final)  के फाइनल से ठीक पहले. इस मैच में इस्तेमाल होने वाली गेंद को लेकर. 7 जून से WTC का फाइनल मैच खेला जाएगा. भारत और ऑस्ट्रेलिया (India vs Australia) के बीच. इस मैच में जीत के साथ ही इंडियन टीम 10 साल से चले आ रहे ICC ट्रॉफी के सूखे को खत्म कर सकती है.

हालांकि जिस मैदान पर ये मैच खेला जाने वाला है, उस पर दोनों टीम का रिकॉर्ड कुछ खास अच्छा नहीं रहा है. टीम इंडिया ने इस मैदान पर कुल 14 टेस्ट मैच खेले हैं. इनमें भारत ने 2 मैच जीते जबकि पांच मैच में हार मिली. वहीं सात मैच ड्रॉ हुए. ऑस्ट्रेलिया की टीम इस मैदान पर कुल 38 मुकाबले खेल चुकी है. इनमें 7 में जीत और 17 मैच में हार मिली है. 14 मैच ड्रॉ हुए हैं. 

यानी रिकॉर्ड के लिहाज से दोनों टीम्स में ज्यादा अंतर नहीं है. लेकिन भारत ने सबसे हालिया जीत अपने पिछले दौरे में ही हासिल की है. इस मैच में भारत ने इंग्लैंड को 157 रन से हराया था. जबकि ऑस्ट्रेलिया की आखिरी जीत यहां साल 2015 में इंग्लैंड के खिलाफ आई थी. साथ ही वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप 2021-23 साइकल के टॉप विकेट टेकर और ऑस्ट्रेलिया के बड़े मैच विनर रहे नेथन लायन का रिकॉर्ड भी इस मैदान पर भी कुछ खास नहीं रहा है. लायन ने यहां कुल तीन मैच खेले हैं जिसमें उनके नाम 9 विकेट हैं. इस दौरान उनका औसत 30.77 का रहा है.

अब सबसे बड़ी बात ये है कि यहां बॉल्स की भूमिका अहम रहने वाली है. ओवल में होने वाला ये मैच ड्यूक बॉल से खेला जाने वाला है. जिससे IPL के दौरान से ही इंडियन टीम प्रैक्टिस करने लगी है. और इस चीज का फाइनल मैच में इंडियन टीम को फायदा मिल सकता है. वो कैसे ये आप आगे समझ जाएंगे. लेकिन गेंद को लेकर पहले इंडियन स्पिनर अक्षर पटेल ने क्या कहा वो जान लीजिए. उन्होंने ICC के एक प्रोग्राम में बात करते हुए बताया,

‘हम इसके (गेंद के) बारे में IPL शुरू होने से पहले ही जानते थे. इसलिए IPL के दौरान भी चर्चा होती थी कि हम लाल गेंद से गेंदबाजी करेंगे. हमारे पास लाल गेंदें थीं, इसलिए हम उनका इस्तेमाल कर रहे थे. सफेद गेंद से लाल गेंद की ओर मानसिक रूप से बदलाव करना स्पष्ट रूप से कठिन है. लेकिन हमारे पास पर्याप्त समय है. हम सफेद गेंद से लाल गेंद में बदलाव कर रहे हैं. यह एसजी से ड्यूक गेंद में बदलाव करने के समान ही है.’

अब सफेद गेंद और लाल गेंद का जिक्र क्यों है? वो SG और ड्यूक गेंद की बात क्यों कर रहे? और इसका फाइनल मैच से क्या लेना-देना है, आइए जानते हैं.

सबसे पहले ये जान लीजिए कि क्रिकेट में तीन रंग की गेंदों का इस्तेमाल होता है. लाल, उजला और गुलाबी. लाल बॉल का टेस्ट फॉर्मेट में, उजली बॉल का लिमिटेड ओवर फॉर्मेट में और पिंक बॉल का इस्तेमाल डे-नाइट टेस्ट मैच के दौरान होता है.

क्या है अंतर?

ड्यूक बॉल क्रिकेट की सबसे पुरानी बॉल है. यह साल 1760 से बनाई जा रही है, और क्रिकेट के पहले दिन से इसका इस्तेमाल किया जा रहा है. हालांकि अगर हम इंडिया में होने वाले टेस्ट और फर्स्ट क्लास मैच की बात करें तो यहां SG की गेंदें प्रयोग की जाती हैं. साल 1994 के बाद से ही भारत में इनका प्रयोग किया जा रहा है. वहीं साल 1946 से ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड में कूकाबुरा गेंद का प्रयोग किया जा रहा है. लेकिन इन गेंदों में अंतर क्या है? पूरी दुनिया में एक ही गेंद का प्रयोग क्यों नहीं किया जाता?

#गेंद की सिलाई

तीनों गेंदों में सबसे बड़ा फ़र्क सिलाई का ही होता है. और यही सिलाई बताती है कि गेंदबाज को कितनी सीम मिलेगी. यहां एक चीज बता दें कि हर गेंद में कुल छह धारियां हैं. भारतीय कंपनी SG की गेंदें हाथ से सिली हुई होती हैं. छह लाइन में की गई इस सिलाई में जो धागा इस्तेमाल होता है, वो बाकी दोनों बॉल्स से मोटा होता है. इस वजह से बॉल की सीम उभरी हुई होती है. जब ये सीम पुरानी हो जाती है, तब फील्डिंग टीम बॉल की किसी एक साइड को चमकाने लगती है. इससे आगे चलकर पेसर्स को रिवर्स स्विंग मिलता है.

अब ड्यूक की बात कर लेते हैं. एसजी की तरह ही ड्यूक भी हाथ से ही सिली जाती है. अब आप सोच रहे होंगे कि फिर ड्यूक और SG में अंतर क्या है? अंतर है. हमने आपको पहले बताया कि SG बॉल की सिलाई जिस धागे से होती है, वो थोड़ा मोटा होता है. यानी ड्यूक की सिलाई SG से पतले धागे से होती है. इससे बोलर्स को बेहतर ग्रिप मिलती है. एक और अंतर है. SG की सीम बहुत कऱीब सिली जाती है. ड्यूक की सिलाई में थोड़ा गैप रहता है. इससे बॉल की शेप ज्यादा देर तक अच्छा रहती है. तभी आपने देखा होगा कि इंग्लैंड में बॉल लगातार स्विंग करती है. और स्लिप फील्डर्स के पास पूरे दिन कैच आते रहते हैं.

वहीं कूकाबुरा की बात करें तो इस बॉल के दोनों भागों को सिर्फ बीच की दो लाइनों की सिलाई एक साथ पकड़कर रखती है. इसलिए इन दो लाइन्स की सिलाई हाथ से की जाती है. बाकी की चार धारियों की सिलाई मशीन से की जाती हैं. ऐसा कह सकते हैं कि एसजी बॉल की सीम कूकाबुरा की सीम से मोटी होती है. बोलर्स के लिए SG की बॉल से ज्यादा आसान कूकाबुरा की बॉल पकड़ना होता है, क्योंकि ये बहुत सख्त होती है.

मशीन से की गई सिलाई जब हल्की हो जाती है, तब भी पेसर्स इस बॉल की सख़्ती को बाउंस जेनरेट करने में यूज़ कर लेते हैं. ऑस्ट्रेलिया और साउथ अफ्रीका में इन बॉल्स का इस्तेमाल किया जाता है. मशीन की सिलाई की वजह से ही कूकाबुरा अपनी शेप जल्दी खो देती है.

#कंडीशन्स

हर बॉल का कंडीशन के हिसाब से यूज़ होता है. भारत में पिच SENA देशों (मतलब साउथ अफ्रीका, इंग्लैंड, न्यूजीलैंड और ऑस्ट्रेलिया) की तरह हार्ड नहीं होती और इनमें क्रैक्स ज्यादा होते हैं. पिच पहले या दूसरे दिन ही क्रैक करने लगती है. इसलिए हाथ से सिली हुई SG बॉल ज्यादा देर टिकती है. जब बॉल की शाइन खत्म होना शुरु होती है, तब फील्डिंग टीम किसी एक साइड को चमकाना शुरु कर देती है. इससे स्पिन और रिवर्स स्विंग मिलने में सुविधा होती है.

कूकाबुरा इस लिहाज़ से काफी अलग है. मशीन से सिले जाने के बाद ये बॉल काफी कड़ी रहती है. सीम गायब हो जाती है. इसके बाद बोलर्स बाउंसी पिच का फायदा उठाते हैं. कूकाबुरा थोड़ी देर बाद अपना शेप खोने लगती है, क्योंकि उसकी सिलाई इतनी अच्छी नहीं होती है.

ड्यूक की बॉल हवा में लहराती बहुत है, और इसलिए पेस बोलर्स उससे गेंदबाजी करना पसंद भी करते हैं. इंग्लैंड की कंडीशन्स, जहां हम ज्यादातर ओवरकास्ट वेदर देखते हैं, वहां बोलर्स को ऐसी बॉल से काफी मदद मिलती है. ये बॉल काफी देर तक हार्ड रहती है, इसलिए लंबा चलती है.

किन देशों में यूज होती है कौन सी गेंद?

जैसा पहले बताया, भारत में SG गेंद का इस्तेमाल होता है. जबकि इंग्लैंड में DUKE बॉल का इस्तेमाल होता है. इसके अलावा बाकी सभी देशों में कूकाबुरा गेंद का इस्तेमाल किया जाता है. इनमें ऑस्ट्रेलिया के अलावा न्यूजीलैंड, दक्षिण अफ्रीका, पाकिस्तान, वेस्टइंडीज, श्रीलंका और जिम्बाब्वे जैसे देश शामिल हैं.

यानी अब तक साफ हो गया होगा कि SG और Duke में काफी हद तक समानताएं हैं. ऐसे में इंडियन बॉलर्स इसका अधिक फायदा उठा सकते हैं और टीम इंडिया लंबे समय बाद ICC ट्रॉफी पर कब्जा कर सकती है.

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