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कमजोर आंखों के कारण नहीं मिलते थे मौके, अब ओपनिंग की और MP को रणजी चैंपियन बना दिया!

क़िस्से मध्य प्रदेश के ओपनर यश दुबे के.

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शतक सेलिब्रेट करते यश (फोटो - PTI)

‘अगर यह टूटा नहीं है, तो इसे मत जोड़ो.’ – बर्ट लैंस

मध्य प्रदेश पहली बार रणजी ट्रॉफी (Ranji Trophy) चैम्पियन बन गई है. टीम ने फाइनल मुकाबले में मुंबई को छह विकेट से हराया. इस मैच की पहली पारी में टीम को बढ़त दिलाने के लिए यश दुबे ने 133 रन की शानदार पारी खेली थी. दुबे इस सीजन एमपी के लिए दूसरे सबसे ज्यादा रन बनाने वाले बल्लेबाज रहे. इन सबके बीच आप सोच रहे होंगे कि हमने ये कहानी किसी अंग्रेज के क़ोट से क्यों शुरू की? दरअसल एमपी की रणजी जीत में इस क़ोट का बड़ा रोल है.

क्योंकि अगर सब इस क़ोट जैसा ही सोचते, तो शायद रणजी ट्रॉफी को नया चैंपियन नहीं मिल पाता. और इस क़ोट से उल्टा जाकर एमपी को रणजी चैंपियन बनाने का पूरा क्रेडिट एमपी के कोच चंद्रकात पंडित को जाता है. दरअसल, एमपी के लिए पहले रमीज़ खान और अजय रोहेरा ओपन करते थे. इन्होंने टीम के छह मुकाबलों में से दोनों ने दो मैच में ओपनिंग की. और ठीक-ठाक शुरुआत दिलाई. लेकिन कोच थोड़ा ज्यादा उम्मीद कर रहे थे. वो नंबर छह या सात पर आकर बल्लेबाजी करने वाले यश के आचरण, तकनीक और उनकी स्ट्रोक खेलने की क्षमता से प्रभावित हो चुके थे.

ऐसे में कोच चाहते थे कि यश ओपनिंग करे. टूर्नामेंट में केरल के खिलाफ़ खेले गए अपने तीसरे मुकाबले में यश से ओपनिंग करवाई गई. और उन्होंने भी शानदार तरीके से डिलिवर करते हुए 591 गेंदों में 289 रन बना दिए. यह उनके करियर का सबसे बड़ा स्कोर भी. यहां से यश ने टीम के लिए हर मैच में ओपनिंग की. 

इस बात का ज़िक्र करते हुए कोच संजीव राव, MPCA (मध्य प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन) के सेक्रेटरी ने कहा, 

‘हमारे पास ओपनर हैं, लेकिन कोच उनकी परफॉर्मेंस से संतुष्ट नहीं है. ट्रेनिंग के दौरान नई गेंदों का सामना करते हुए यश के कारनामों को देखने के बाद, कोच ने उन्हें एक सलामी बल्लेबाज के रूप में आजमाने का फैसला किया. और केरल के खिलाफ हुए मैच में इस कदम ने तुरंत असर दिखाया जहां यश ने दोहरा शतक बनाया.’

क्वॉर्टर फाइनल और सेमी फाइनल मुकाबले में उनके बल्ले से रन नहीं आए. लेकिन उसके बावजूद कोच ने फाइनल में भी यश से ओपनिंग करवाई. और उन्होंने फिर एक बार अपनी टीम के लिए डिलिवर किया. और जब ये फैसला सही साबित हुआ तो सबने चंद्रकांत पंडित के इस फैसले की खूब तारीफ की. मध्य प्रदेश टीम के पूर्व कोच मुकेश साहनी बोले, 

‘देखिए, ये चंदू भाई की सोच की खूबसूरती है. उन्होंने स्पष्ट रूप से दुबे के आचरण में कुछ ऐसा देखा है जिससे उन्हें यकीन हो गया कि उनमें पारी की शुरुआत करने की क्षमता है. दुबे ने क्रिकेट भोपाल में सीखा था, लेकिन पड़ोसी होशंगाबाद डिविजन के लिए खेलने चले गए. क्योंकि उन्हें भोपाल डिवीजन में पर्याप्त मौके नहीं मिल रहे थे. वह तब से हर लेवल पर उस कॉम्पैक्ट तकनीक से रन बना रहे हैं.’ 

उनके बचपन के कोच शैलेश शुक्ला ने न्यू इंडियन एक्सप्रैस से बात करते हुए कहा,

‘ना होने से देर से होना अच्छा है. मैं हमेशा चाहता था कि वह ओपन करें लेकिन जब आप सेट-अप में नए होते हैं तो यह आसान नहीं होता. अब उन्होंने अपनी क़ाबिलियत साबित कर दी है, मुझे उम्मीद है कि वह लंबे समय तक उस भूमिका में बने रहेंगे.’

#यश की जर्नी! 

यश दुबे का नाम अब मध्य प्रदेश के सेलेक्टर्स के जुबान पर होगा. लेकिन एक समय ऐसा था, जब सेलेक्टर्स उनको सेलेक्ट करने से कतराते थे. और इसका कारण सिर्फ इतना था कि वो चश्मा लगाते थे. उनके बचपन में आई परेशानियों का ज़िक्र करते हुए शैलेश बताते है,

‘जब वह आठ या नौ साल के थे, तब उन्होंने भोपाल में मेरी क्रिकेट अकैडमी जॉइन की थी. कुछ साल के बाद, एक आंंखो के डॉक्टर ने उनको चश्मा पहनने को कहा था. क्योंकि उनको पढ़ने में दिक्कतें हो रही थी.’ 

अपनी बात आगे बढ़ाते हुए उन्होंने बताया,

‘सेलेक्टर्स को समझाना मुश्किल था, क्योंकि आंखों की रोशनी बल्लेबाज की सबसे बड़ी ताकत मानी जाती है. यहां तक कि जब वो बेहतर मौकों की तलाश में भोपाल से पास के जिले होशंगाबाद (अब नर्मदापुरम) चले गए, तब भी ये चीज़ उन्हें परेशान करती रही. लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी और लगातार मेहनत करते रहे. जैसे-जैसे वह एक क्रिकेटर के रूप में आगे बढ़े, उन्होंने कॉन्टैक्ट लेंस का उपयोग करना शुरू कर दिया.’ 

बताते चलें, यश दुबे ने 2018 में फर्स्ट क्लास डेब्यू किया था. तब से अब तक वो 22 मुकाबले खेल चुके है. इनमें उन्होंने 47.51 की एवरेज से 1473 रन बनाए हैं. इस सीज़न वो चौथे सबसे ज्यादा रन बनाने वाले खिलाड़ी हैं. मध्य प्रदेश के लिए उनसे ज्यादा रन सिर्फ रजत पाटीदार ने बनाए हैं. दुबे ने इस सीजन छह मैच की 10 पारियों में 76.75 की एवरेज से 614 रन बनाए हैं.

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