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ये Equinox क्या है, जिसमें धरती पर दिन और रात के बीच इतना बड़ा घपला हो जाता है?

ऐसा साल में कितनी बार होता है?

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उत्तरी गोलार्द्ध में Equinox 21 मार्च के नज़दीक पड़ता है. (सांकेतिक फोटो)

एक सीन की कल्पना कीजिए. कुछ एक्सपर्ट लोग साथ में बैठे हैं. आपस में धरती के आकार, बनावट और उसके नक्शे को समझने की चर्चा कर रहे हैं. ये सब समझने में आसानी हो, इसलिए उन्होंने मान लिया कि धरती के बीच से एक काल्पनिक रेखा गुज़रती है. इस रेखा का नाम उन्होनें रखा ‘Equator’ या ‘भूमध्य रेखा’. इसे आपने दुनिया के नक्शों और ग्लोब पर देखा होगा.

ये रेखा धरती को दो बराबर भागों यानि गोलार्द्ध में बांटती है. ऊपर वाले भाग को उत्तरी गोलार्द्ध बोला जाता है और निचले भाग को दक्षिणी गोलार्द्ध. अपना इंडिया ‘Equator’ के ऊपर मौजूद उत्तरी गोलार्द्ध में पड़ता है. आगे भी हम उत्तरी गोलार्द्ध की नज़र से ही बतियाएंगे.

Equator यानि भूमध्य रेखा धरती को दो हिस्सों में बाँटती है. (इमेज क्रेडिट: विकिमीडिया)

लेकिन, हम इसकी बात क्यों कर रहे हैं? दरअसल, 21 मार्च को अपने देश में ‘Spring Equinox’ था.

अब सवाल है कि ये ‘Spring Equinox’ है क्या? कोई और पूछ सकता है कि ये आया तो मार्च में ही क्यों आया? और जिसे कुछ जानकारी हो वो कह सकता है कि थोड़ा -बहुत तो हमें भी पता है, कुछ और बताओ. तो लीजिए, बताते हैं.

क्या होता है ‘Equinox’?

‘Equinox’ यानी साल का वो दिन जब कहा जाता है कि दिन और रात बराबर होते हैं. ये लैटिन के ‘aequus’ और ‘nox’ से मिलकर बना है. ‘aequus’ का मतलब ‘equal’ यानि बराबर और  ‘nox’ मतलब  'night' यानी रात.  

‘Equinox’ साल में दो बार आता है. एक बार 21 मार्च के आसपास जिसे ‘Spring Equinox’ बोलते हैं. स्प्रिंग माने बसंत ऋतु. आप कहीं-कहीं इसको ‘Vernal Equinox’ भी पढ़ेंगे. ‘Vernal’ मतलब ‘ताज़ा या फ्रेश’. साल का दूसरा वाला ‘Equinox’, 22 सितंबर के आसपास पड़ता है. तब इसे ‘Fall Equinox’ कह देते हैं. ‘Fall’ मतलब ‘Autumn’ यानी ‘पतझड़’.  

तारीखें अलग हैं, लेकिन कहानी एक. कहानी ये कि दोनों तारीखों पर दिन और रात बराबर होंगे.

है ना?

नहीं. गलत.  

चलिए, आपका कॉन्सेप्ट सही करते हैं. 

दरअसल, ये बात तो हम सबको ही पता है कि दिन और रात अलग-अलग समय पर लंबे और छोटे होते हैं. जब दिन लंबे होते हैं, तब सूरज ज़्यादा देर तक चमकता है और जब इसका उल्टा होता है तो रातें लंबी हो जाती हैं. इस आधार पर साल को चार अलग-अलग हिस्सों में बांट दिया गया.

-एक हिस्सा वो वाला जब दिन सबसे लंबा होता है 
-दूसरा हिस्सा वो जब रात सबसे लंबी होती है
-और बाकी दो हिस्से वो, जहां दिन और रात बराबर होते हैं. 12 घंटे का दिन और 12 घंटे की रात.

ये आखिरी वाले दो हिस्से ‘Equinox’ ही हैं. इस दिन सूरज ‘Equator’ यानी ‘भूमध्य रेखा’ पर सीधे चमक रहा होता है. दोनों गोलार्द्ध के एकदम बीचोबीच.

कायदे से यहां दिन और रात को बिलकुल बराबर होना चाहिए था. लेकिन ऐसा होता नहीं है. 

‘Equinox’ पर दिन और रात बराबर होते हैं?  

‘Equinox’ अपने आप में एक पूरा दिन नहीं बल्कि एक पल होता है. जैसे भारत में 2023 के ‘Spring Equinox’ का सटीक टाइम मंगलवार, 21 मार्च सुबह 02:54 था.

इस समय धरती की धुरी सूरज की तरफ या उससे दूर झुकी हुई नहीं होती है. एकदम सीधी होती है. सूरज का केंद्र भी बिलकुल ‘Equator’ के ठीक ऊपर होता है. और अच्छे से समझने के लिए ये विडिओ देखें. 

 

जैसा आप विडिओ में देख पा रहे हैं , धरती के उस वाले आधे हिस्से पर जहां सूरज को रोशनी पड़ रही है, वो रोशन है और दूसरे वाले हिस्से पर अंधेरा है. लेकिन तब भी दिन और रात की लंबाई बराबर नहीं होती है. काफी जगहों पर दिन थोड़ा लंबा होता है.

ये फर्क क्यों होता है?

जवाब ‘सूर्योदय’ और ‘सूर्यास्त’ में छुपा है.

धरती से सूरज हमें एक डिस्क की तरह गोल नज़र आता है.  

जब इस डिस्क यानि सूरज का ऊपरी सिरा ‘क्षितिज’ यानी ‘Horizon’ के ऊपर आता है तो हम बोलते हैं कि दिन शुरु हो गया है. ऐसे ही जब ये सिरा फिर से पूरी तरह पश्चिम में जाकर ‘Horizon’ के नीचे चला जाता है तब कहा जाता है कि दिन ढल चुका है. यहीं से रात की शुरुआत होती है.

जब भी सूरज का ऊपरी सिरा क्षितिज के ऊपर जाता है हम बोलते हैं कि सूरज उग गया है. ऐसे ही जब ये सिरा क्षितिज के नीचे चला जाता है तो सूरज डूब जाता है. (इमेज क्रेडिट: www.timeanddate.com)

यूंही हर रोज़ दिन और रात होने का सिलसिला चलता रहता है. दिन शुरू और खत्म होने के इसी समय को नोट कर इसकी लंबाई का मापते हैं. 

आपने ध्यान दिया होगा कि आपको सूरज पूरा दिखना शुरू भी नहीं होता लेकिन उजाला उससे पहले ही होने लगता है. ठीक ऐसा ही शाम को होता है. जब सूरज तो डूब जाता है लेकिन फिर भी पूरी तरह अंधेरा होने में टाइम लगता है.

ऐसा इसलिए क्योंकि हमारा वातावरण सूरज की किरणों के लिए एक लेंस की तरह काम करता है. ये वातावरण वाला लेंस सूरज की किरणों को ‘Horizon’ पर मोड़ देता है.
 

वातावरण में सूरज की किरणें मुड़ जाने की वजह से सूरज अपनी ‘True position’ यानि सही लोकेशन के बजाय क्षितिज के ऊपर एक ‘Perceived Position’ पर दिखाई देता है.  (इमेज क्रेडिट: www.timeanddate.com )

ये ऊपर वाली फ़ोटो देखिए. यहां सूरज की असली स्थिति को 'True Position' बोला गया है. गौर से देखिए अभी सूरज ‘Horizon’ से नीचे है. मतलब सूरज अभी उगा नहीं है. सूरज से निकलने वाली किरणें वातावरण में मुड़कर हम तक सूरज के उगने से पहले ही पहुंच रही हैं. इस वजह से हमें सूरज अपनी वास्तविक जगह से थोड़ा ऊपर दिखाई देने लगता है.

सूरज की इस नई स्थिति को 'Perceived Position' बोला जाता है.  ‘Perceive’ मतलब हमें ऐसा ‘लगता’ है कि सूरज 'horizon' से ऊपर आ चुका है. वास्तव में आया नहीं है.  

प्रकाश की किरणों का ऐसे किसी एक माध्यम से दूसरे माध्यम से गुज़रते वक़्त मुड़ जाने को साइंस ‘अपवर्तन’ यानि ‘Refraction’ कहती है. इस वजह से दिन की लंबाई में लगभग 6 मिनिट और जुड़ जाते हैं.

तो क्या दिन और रात की लंबाई कभी एक सी नहीं होती?

होती है.

और ये घटना ‘Equinox’ के आसपास ही घटती है. इसीलिए लोगों में ‘Equinox’ को लेकर उलझन रहती है.

इस घटना को ‘Equilux’ बोलते हैं. ‘Equilux’ का मतलब ही होता है ‘बराबर रौशनी’.  

‘Equilux’ की सटीक तारीख आपकी लोकेशन किस ‘अक्षांश’ यानी ‘Latitude’ पर है, उसपर निर्भर करती है. अक्षांश भी ‘Equator’ के समानांतर एक काल्पनिक रेखा ही होती है. ‘Equilux’, ‘Spring Equinox’ से कुछ दिन पहले और ‘Autumn Equinox’ के कुछ दिन बाद होते हैं.

यहां ये सवाल पूछ जा सकता है कि ‘अपवर्तन’ तो ‘Equilux’ के समय भी होता होगा? फिर वहां सब बराबर कैसे हो गया?

इसका कॉन्सेप्ट बस इतना ही है कि हमारी धरती सूरज का बिल्कुल गोल चक्कर नहीं काटती है. उसका चक्कर अंडाकार होता है. इस वजह से कभी ये सूरज के ज़्यादा पास होती है और कभी ज़्यादा दूर.

न्यूटन ने बताया था कि दो चीजें एक दूसरे के जितना पास होंगी वो उतने ही ज़्यादा गुरुत्वाकर्षण से एक दूसरे को खींचेगी.

हम यहां ज़्यादा डिटेल में नहीं जाएंगे. बस इतना जान लीजिए कि इस बढ़े हुए गुरुत्वाकर्षण की वजह से जब-जब धरती सूरज के पास से गुज़रती है, उसकी गति बढ़ जाती है. नीचे वाले ग्राफिक में देखिए कैसे धरती सूरज के पास पहुंचते ही तेज़ी से गुज़र रही है. 'Equilux' के समय यही हो रहा होता है.

यहाँ देखिए कि जब धरती सूरज के पास से गुज़रती है तब उसकी गति बढ़ जाती है. (इमेज क्रेडिट- http://theperihelioneffect.com)

ज़ाहिर सी बात है जब धरती तेजी से चक्कर काटेगी तो सूरज भी ज़्यादा टाइम तक आसमान में नहीं दिखेगा. इस तेजी में अपवर्तन की वजह से जो कुछ मिनट दिन की लंबाई में बढ़ जाते हैं, वो यहां बैलेन्स हो जाते हैं. और 'Equilux' पर दिन-रात एक बराबर हो जाते हैं.    

उम्मीद है कि उत्तरी गोलार्द्ध वाले पाठकों को 'Equinox' और 'Equilux' का ये रिश्ता समझ आया होगा.

बाकी अगर आप दक्षिणी गोलार्द्ध में बैठकर ये आर्टिकल पढ़ रहे हैं, तो बस इतना जान लीजिये कि कॉन्सेप्ट वहां भी वही लगेगा. दक्षिणी गोलार्द्ध में मौसम उत्तरी गोलार्द्ध के एकदम उलट होता है. आपके लिए ये मार्च वाला ‘Equinox’ Spring की जगह 'Autmun Equinox' हो जाएगा.    

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