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रॉकेट हुआ खराब, तो वापस कैसे आएंगे ऐस्ट्रनॉट?

गगनयान में कोई दिक्कत आने पर हमारे ऐस्ट्रनॉट सही सलामत धरती पर आ सकें, इसके लिए ISRO ने पक्का इंतज़ाम किया है.

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गगनयान मिशन में यात्रियों को दुर्घटना से बचाने के लिए Crew Escape System (क्रू एस्केप सिस्टम) डिजाइन किया गया है.

28 जनवरी 1986. अमेरिका के फ्लोरिडा स्थित जॉन एफ कैनडी स्पेस सेंटर. नासा स्पेस शटल प्रोग्राम के 25 वें मिशन को लेकर चैलेंजर अंतरिक्ष में जाने वाला है. स्पेश शटल लॉन्च को देखने के लिए हर बार लोग जुटते थे. लेकिन ऐसी भीड़ पहले कभी नहीं आई थी. क्योंकि नासा के इतिहास में पहली बार एक टीचर भी स्पेस में जा रही थी - शैरन क्रिस्टा मैकऑलिफ. नासा टीचर इन स्पेस प्रोग्राम के लिए 11 हज़ार से ज़्यादा आवेदन आए थे, जिनमें से शैरन को चुना गया था. इंजीनियर्स और वैज्ञानिकों से भरा नासा उम्मीद कर रहा था कि एक आम टीचर के स्पेस में जाने से अंतरिक्ष को लेकर दिलचस्पी बढ़ेगी. और नासा को भी पॉज़िटिव पीआर मिलेगा. और ऐसा ही हुआ भी. पूरे मिशन के पल पल को मीडिया में रिपोर्ट किया गया. जो लोग लॉन्च देखने खुद नहीं पहुंच पाए, वो टीवी पर लाइव सबकुछ देख रहे थे.

काउंटडाउन शुरू हुआ. और ठीक सुबह 11 बजकर 38 मिनट पर चैलेंजर, शैरन समेत 7 अंतरिक्ष यात्रियों को आसमान की ओर बढ़ा. लेकिन 1 मिनट 13 सेकंड बाद एक धमाके के साथ सबकुछ खत्म हो गया. सातों अंतरिक्ष यत्रियों की मृत्यु हो गई.

हादसे के बाद मालूम चला कि चैलेंजर में ऐसी कोई व्यवस्था नहीं थी, कि किसी अनहोनी के समय क्रू वाला हिस्सा (मॉड्यूल) स्पेश शटल से अलग हो जाए. ये नासा के इतिहास में सबसे बड़ा पीआर डिज़ास्टर था. 1 फरवरी 2003 को एक बार फिर यही कहानी दोहराई गई, जब स्पेस शटल कोलंबिया धरती पर लौटते हुए दुर्घटनाग्रस्त हुआ. कोलंबिया में भी ऐसा कोई इंतज़ाम नहीं था, कि हादसे के वक्त क्रू वाला मॉड्यूल स्पेश शटल से अलग हो जाए. पूरे क्रू की मौत हुई. एक नाम हमें याद है - कल्पना चावला.

लेकिन भारत अपने स्पेस मिशन में ऐसा इंतज़ाम कर रहा है, कि हमारा क्रू हमेशा सुरक्षित रहे. कैसे, यही आज के साइंसकारी की कहानी है.  

2018 के रिपब्लिक डे पर प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि अब हमारी ज़मीन से भी स्पेस में ऐस्ट्रनॉट भेजे जाएंगे. ऐस्ट्रनॉट यानी अंतरिक्ष यात्री.  ये काम मिला भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन, ISRO को और एक मिशन तैयार हुआ - गगनयान.

असली मिशन में गलती की कोई गुंजाइश ना रहे, इसलिए पहले ISRO कई सारे टेस्ट कर रहा है. साल मई में ऐसा ही एक टेस्ट होगा जिसे कहते हैं 'Pad Abort Test (पैड अबॉर्ट टेस्ट). इसका मकसद ये पक्का करना है, कि अगर मिशन के बीच कोई इमर्जेंसी हो जाए तो अंतरिक्ष यात्रियों को सुरक्षित रॉकेट से अलग किया जा सकेगा. ISRO 2018 में भी ऐसे टेस्ट्स कर चुका है.

क्या है गगनयान?

अमेरिका, रूस और चीन. ये वो तीन देश हैं जो अंतरिक्ष में इंसान को भेज चुके हैं. भारत अपने गगनयान के ज़रिए 2024 में ये कोशिश करने जा रहा है. सफल हुए, तो होमो सेपीयन जमात को स्पेस में भेजने वाले हम दुनिया के चौथे देश होंगे.

इसके ज़रिए पांच से सात दिनों के लिए 3 यात्रियों को अंतरिक्ष में भेज जाएगा और उन्हें सुरक्षित रूप से वापस लाया जाएगा. ISRO इन यात्रियों को एस्ट्रोनॉट्स नहीं गगननॉट्स बोल रहा है. दुनिया के और देशों की तरह ही हमारे पहले गगननॉट्स हमारी एयरफोर्स से आएंगे. ऐसे चार पायलट्स की ट्रेनिंग रूस में हुई है.   

गगनयान में दो मॉड्यूल्स होंगे. मॉड्यूल मतलब हिस्से.

‘Service Module (सर्विस मॉड्यूल)’: जब गगनयान धरती के चक्कर काटेगा तब ये मॉड्यूल ही उसकी देख-रेख करेगा. सर्विस करेगा. इसमें लगा सोलर पैनल अंतरिक्ष में यात्रा के दौरान यान को ज़रूरी बिजली देगा.

- ‘Crew Module (क्रू मॉड्यूल)’: ये अंतरिक्ष में गगननॉट्स का घर होगा. इसमें ज़रूरत के सारे सामान होंगे. जैसे नेविगेशन सिस्टम, हीटर, फ्रिज, टॉयलेट वगैरह.

इन्हीं दोनों को साथ में ‘Orbital Module (ऑर्बिटल मॉड्यूल)’ बोला जा रहा है.

गगनयान के दोनों मॉड्यूल. (इमेज क्रेडिट: Twitter @Gaganyaan_Isro)

इस ‘Orbital Module (ऑर्बिटल मॉड्यूल)’ को GSLV Mk-III पर कसकर स्पेस में भेजा जाएगा. GSLV MkIII को इस से पहले चंद्रयान-2 को लॉन्च करने के लिए यूज़ किया गया था. GSLV Mk-III एक लॉन्च व्हीकल है. सादी भाषा में - रॉकेट. ये गगनयान को तकरीबन 16 मिनिट की उड़ान के बाद धरती से 300-400 किलोमीटर ऊपर एक कक्षा में ले जाएगा. फिर गगनयान चक्कर धरती के चक्कर काटने लगेगा. हर 90 मिनट में पृथ्वी का एक चक्कर लगेगा.

यान में बैठे अंतरिक्ष यात्री कुछ-कुछ प्रयोग करेंगे. अपने को वहां से सूर्योदय और सूर्यास्त की फोटो भेजेंगे. और फिर आएंगे वापिस.

वापसी में गगनयान अरब सागर में उतरेगा. और वहां से उन्हें अपनी नेवी और Coast Guard (कोस्ट गार्ड) किनारे पर ले आएगी.  

कुछ दिक्कत हो गई तो??

यहां तक आते आते आप जान गए प्लान. लेकिन ज़िन्दगी में सब कुछ प्लान के हिसाब से हो ऐसा ज़रूरी नहीं. काम में अड़चन कभी भी आ सकती है. ऐसे ही अड़चनों से निपटने के लिए ISRO ने कुछ इंतज़ाम किए हैं. 

ISRO पहले कुछ मानव रहित टेस्ट करेगा. अब एक टैस्ट करने के लिए तो असली Crew Module (क्रू मॉड्यूल) और GSLV Mk3 रॉकेट को यूज़ करने में कोई समझदारी नहीं है. बिना बात का खर्चा हो जाएगा. इसलिए छोटी स्केल पर एक्सपेरिमेंट किया जा रहा है. जिसमें इस्तेमाल होगा Simulated Crew Module (सिम्युलेटेड क्रू मॉड्यूल). 

क्या है Simulated Crew Module (सिम्युलेटेड क्रू मॉड्यूल)?

Simulate (सिम्युलेट) मतलब ऐसा माहौल तैयार करना जिस में असल चुनौतियों की नकल की जाती हो. आपने कभी फोन में कार-रेसिंग वाला गेम खेला होगा. वो सच में कार चलाने का सिम्युलेशन ही है. इसी तरह विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र में बनाए गए सिम्युलेटेड क्रू मॉड्यूल SCM भी क्रू मॉड्यूल की एक नकल है. आकार और बनावट सब मिलता जुलता है. इसमें पैराशूट और आग से लड़ने वाले सिस्टम का सिम्युलेशन होगा. 

फिल्मों में आपने देखना होगा कि हीरो के फाइटर प्लेन में दुश्मन की मिसाइल लग जाती है. प्लेन क्रैश होने वाला होता है. लेकिन हीरो फुर्ती से आखिरी पल में अपनी सीट को इजेक्ट करके प्लेन से बाहर निकल जाता है. फिर एक पैराशूट खुलता है और अपना हीरो सही सलामत हौले-हौले ज़मीन पर लैंड कर जाता है.

गगनयान का ‘Crew Escape System (क्रू एस्केप सिस्टम)’ सिस्टम भी ऐसे ही इजेक्ट करके अंतरिक्ष यात्रियों की जान बचाएगा. फर्क ये कि ये अंतरिक्ष यात्रियों को यान से बाहर निकालने के बजाय, पूरे यान को ही लॉन्च व्हीकल से बाहर निकाल देगा.

अब ज़रा इस सिस्टम की साइंस जान ली जाए.

कैसे काम करता है Crew Escape System (क्रू एस्केप सिस्टम)?

ऐसे abort (अबॉर्ट) या escape (एस्केप) सिस्टम का उपयोग दुनिया भर की अंतरिक्ष एजेंसियों द्वारा किया जाता है. यहाँ अबोर्ट और एस्केप से मतलब एक ही है. इमरजेंसी से सुरक्षित बाहर निकलना. शब्दों के फेर में लॉजिक की गड़बड़ी होने से बचाएं.  

बहरहाल, एक अबोर्ट सिस्टम NASA ने अपने Orion अंतरिक्ष यान के लिए भी बनाया था.

NASA ने इस सिस्टम में तीन तरह की मोटर लगाई:

-पहली, Launch Abort Motor (लॉन्च एबॉर्ट मोटर) यानि LAM, 
-दूसरी, Attitude Control Motor (एटिट्यूड कंट्रोल मोटर) यानि ACM और 
-तीसरी, Jettison Motor (जेटीसन मोटर) यानि JM

नाम से गच्चा मत खाइए. ये मोटर छोटे छोटे रॉकेट ही हैं. और उसी तरह काम भी करते हैं.

ईंधन जलने पर ये बहुत तेज़ स्पीड से बाहर निकलता है और रॉकेट को आगे धक्का देता है. (इमेज क्रेडिट: cheezburger.com)

अब ये जानने के लिए कि कब क्या और कैसे होता है, आप क्रोनोलॉजी समझिये:  

-दुर्घटना कभी भी हो सकती है. जैसे कि इंजन में खराबी हो सकती है, लॉन्च व्हीकल में कोई टूट-फूट हो सकती है, या किसी और दिक्कत की वजह से अंतरिक्ष यात्रियों की सुरक्षा को खतरा हो सकता है.

-इमरजेंसी की स्थिति होने पर अबॉर्ट सिस्टम एक्टिव हो जाता है. सिस्टम का कंप्यूटर अपने आप इमरजेंसी वाली स्थिति भांप सकता है. नहीं तो अंतरिक्ष यात्री खुद भी उस सिस्टम को चालू कर सकते हैं.

-अब Launch Abort Motor (लॉन्च एबॉर्ट मोटर) का काम शुरू होता है. ये यान को झटके से लॉन्च व्हीकल से एक सुरक्षित दूरी पर ले जाएगी.

-यान के लॉन्चर से अलग होने के बाद Attitude Control Motor (एटिट्यूड कंट्रोल मोटर) यान को दिशा देने का काम करगी. जिससे अंतरिक्ष यात्री सही सलामत लैंड कर सकें.

-आखिरी दांव खेलना होता है Jettison Motor (जेटीसन मोटर) को. ये पूरे अबॉर्ट सिस्टम को यान से अलग कर देगी. ये इसलिए ताकि अंतरिक्ष यात्रियों के लिए अबॉर्ट सिस्टम खुद कोई खतरा पैदा नहीं करे.  

-ये सब हो जाने के बाद पैराशूट बाहर निकल आएंगे जो यान के नीचे गिरने की गति को धीमा कर देंगे.

अबॉर्ट सिस्टम को बेहतर समझने के लिए NASA का ये ग्राफिक देखिए.  

ISRO ने भी NASA की तरह गगनयान के लिए एक ‘Crew Escape System (क्रू एस्केप सिस्टम)’ बनाया है.

ये सिस्टम Crew Module (क्रू मॉड्यूल) की चोंच पर फिट होगा.

इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट के मुताबिक इस Crew Escape System (क्रू एस्केप सिस्टम) में भी तीन तरह की मोटर हैं. अलग-अलग ऊंचाई पर अलग-अलग मोटर काम करेगी

-पहली मोटर है Low Altitude Escape Motor (लो एल्टीट्यूड एस्केप मोटर). ये 0-17 किलोमीटर की ऊंचाई के बीच फायर करेगी. इससे लॉन्च के शुरआती चरण में ही मिशन को रोकने में मदद मिलेगी. ये मोटर यात्रियों को लॉन्चर से दूर ले जाने के लिए ज़रूरी फ़ोर्स पैदा करेगी.  

-दूसरी है High-Altitude Escape Motor (हाई-एल्टीट्यूड एस्केप मोटर). अगर लॉन्च के साथ कोई गड़बड़ी 17-80 किलोमीटर की ऊंचाई पर होती है तो ये मोटर काम आएगी.

-तीसरी है Crew Escape System Jettisoning Motor (क्रू एस्केप सिस्टम जेटीसनिंग मोटर). ये 80 किलोमीटर से ऊपर एक्टिव होगी और Crew Escape System (क्रू एस्केप सिस्टम) को लॉन्च व्हीकल से दूर ले जायेगी.

इमरजेंसी के समय क्रू एस्केप सिस्टम अंतरिक्ष यात्रियों को रॉकेट से अलग करके समंदर में लैंड करवा देगा. (इमेज क्रेडिट: इंडिया टुडे)

ISRO की कोशिश यही है कि इस तकनीक से कुछ सेकंड में ही वो Crew Module (क्रू मॉड्यूल) को लॉन्चर से कम से कम दो किलोमीटर दूर धकेल पाएं.

इसके अलावा एक Pitch Control Motor (पिच कंट्रोल मोटर) भी है जिसका काम Orion की Attitude Control Motor (एटिट्यूड कंट्रोल मोटर) की तरह यान को समंदर की तरफ दिशा देना है.

इंडिया टुडे ने अपनी रिपोर्ट में ये भी बताया कि इस टैस्ट में ये मॉड्यूल धरती से 19 किलोमीटर ऊपर हवा में जाएगा, और फिर रॉकेट से अलग होकर नीचे आना शुरू करेगा.  

इन सारी तैयारियों को देख कर ये बात तो साफ है कि ISRO की तैयारी पक्की है और इस मिशन को सफल करने में ISRO कोई कसर नहीं छोड़ रहा है. और सफलता का पैमाना बस यही नहीं है कि रॉकेट आसमान में कितना ऊंचा उठा. पैमाना ये भी है कि हमारा क्रू हर हाल में सुरक्षित रहे. क्योंकि रॉकेट बार-बार बनाए जा सकते हैं. लेकिन इंसानी ज़िंदगी बेशकीमती होती है.

 

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