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इंडिया में अपराधियों को पकड़ने के लिए AI की इस झामफाड़ टेक्निक का यूज हो रहा है!

देश में बनी इस टेक्निक को एक स्टार्टअप के तहत डेवलप किया गया.

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सांकेतिक इमेज. (image credit-pexels)

बाजार में अपराधी घूम रहा है, पुलिस वाले की नजर उस पर पड़ती है. वो अपना मोबाइल बाहर निकालता है, अपराधी की फोटो लेता है और बूम. स्मार्टफोन में इंस्टॉल एक सॉफ्टवेयर कन्फर्म करता है कि ये वही है, जिसकी तलाश थी. हमारी बताई हुई कहानी शायद आपको हॉलीवुड की किसी साइंस फिक्शन फिल्म का सीन लग सकती है. लेकिन अगर हम बताएं कि ऐसा वास्तव में संभव है और वो भी इंडिया में, तो आप हैरान हो जाएंगे. फिलहाल, आपकी हैरानी को हम कम करते हैं और इसके बारे में सबकुछ बताते हैं.

दरअसल, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के सहारे रोज नए काम हो रहे हैं. कई तो असंभव से लगने वाले. बस एक दुख है. AI के खेल में अभी हमारा देश वहां नहीं है, जहां उसे होना चाहिए. मतलब टैलेंट तो बहुत है, बस उसका इस्तेमाल ठीक से नहीं हो रहा है. लेकिन ऐसे में एक इंडियन कंपनी है, जो AI का खूब इस्तेमाल कर रही है, वो भी सीधे पुलिस के साथ. कई राज्यों की पुलिस इसका इस्तेमाल कर रही है.

तकनीक का नाम है  Staqu, जो दिल्ली बेस्ड स्टार्ट-अप है. वैसे तो ये साल 2015 से ही सक्रिय हैं, लेकिन इनको मौका मिला 2018 में राजस्थान के अलवर में. उस साल अलवर में मॉब लिंचिंग की घटना हुई थी. कंपनी ने तब ट्रायल बेस चेहरे की पहचान (facial recognition) कर अपराधियों को पकड़ने में राजस्थान पुलिस की मदद की थी.

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अब आपको लगेगा कि करोड़ों लोगों के देश में कितने चेहरे पकड़ में आएंगे, तो जरा इन आकंड़ों पर गौर कीजिए. NCRB के डेटा के मुताबिक, देश में हर घंटे 300 से ज्यादा क्राइम होते हैं जिसमें से 70 प्रतिशत अपराधी आदतन होते हैं. कहने का मतलब बार-बार अपराध करने वाले. आज की तारीख में तकरीबन डेढ़ करोड़ विचाराधीन कैदी भी हैं. मतलब, डेटा तो है बस उसको ढंग से इस्तेमाल करना है.

अब आते हैं सीधे पॉइंट पर. कंपनी को पुलिस से सहयोग मिला, तो जन्म हुआ जार्विस (JARVIS) का. सुना हुआ नाम है. वैसे काम भी कुछ-कुछ उसी टाइप का करता है. राजस्थान पुलिस के बाद पंजाब पुलिस भी इसका इस्तेमाल कर रही है. उन्होंने नाम रखा है PAIS. बोले तो पंजाब आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सिस्टम. एक तरफ यूपी पुलिस ने इसको नाम दिया है त्रिनेत्रा  (TRINETRA) तो बिहार पुलिस इसके लिए चक्र (Chakra) के नाम से इस्तेमाल करती है. 

त्रिनेत्र ऐप

जार्विस ने अभी तक 45 लाख से ज्यादा अपराधियों का डेटा मैनेज किया है और 22,000 से ज्यादा अपराधी इसकी मदद से पकड़े गए हैं. आपको लगेगा अगर जार्विस किसी गलत आदमी को पकड़ लाए तो? इसका भी इंतजाम है, अपराधी की पहचान के कई तरीके हैं. जैसे इमेज में कितने फीसदी मैच हो रहा है. कहने का मतलब 100 फीसदी, तो यही आदमी है. 30 फीसदी मैच है, तो फिर वॉयस सैम्पल से मिलाकर देखिए. 

कुल मिलाकर तकनीक ठीक से काम कर रही है. इतना ही नहीं, इस तकनीक का इस्तेमाल अपराधी को पकड़ने के साथ चुनाव में, ऑफिस मैनेजमेंट और फायर सेफ़्टी में भी हो रहा है. कैसे, उसकी चर्चा फिर कभी. 

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